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नोटबंदी: अरुण जेटली के दावों पर यकीन करना जरा मुश्किल है

सरकार के इस दावे पर कोई यकीन नहीं करेगा कि नोटबंदी से अर्थव्यवस्था पर कोई असर ही नहीं पड़ा

Dinesh Unnikrishnan

केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने एक बार फिर नोटबंदी के विरोधियों पर सवाल उठाए हैं. वित्त मंत्री ने तो नोटबंदी से अर्थव्यवस्था की रफ्तार धीमी होने के सारे इल्जाम खारिज कर दिए हैं.

वित्त मंत्री का यकीन ये उम्मीद जगाता है कि आठ नवंबर को नोटबंदी के ऐलान के बाद अर्थव्यवस्था की रफ्तार बढ़ेगी. सरकार के 500 और 1000 के नोट बंद करने की घोषणा के बाद से देश की अर्थव्यवस्था को तगड़ी चोट पहुंची थी.


लेकिन अरुण जेटली का ये कहना कि नोटबंदी से अर्थव्यवस्था की रफ्तार धीमी नहीं हुई है, कुछ ज्यादा ही बड़ा दावा लगता है. उनका ये यकीन कई सवाल खड़े करता है.

पहली बात तो वित्त मंत्री ने कहा कि नोटबंदी के बाद टैक्स वसूली बढ़ी है जो ये दिखाता है कि कारोबार पर नोट बैन का कुछ असर नहीं हुआ है.

मगर सच ये है कि नोटबंदी के पहले और बाद की कर वसूली के आंकड़ों में कोई बढ़त नहीं देखी गई है. अगर कोई ये कहे कि टैक्स वसूली बढ़ने का मतलब ये है कि अर्थव्यवस्था की रफ्तार धीमी नहीं हुई है, तो ये बात बचकानी सी लगती है. अर्थव्यवस्था में तेजी या कमी को मापने के कई और पैमानों पर इस दावे को कसे जाने की जरूरत है.

चलिए एक नजर टैक्स वसूली के उन आंकड़ों पर डालते हैं जिनका जिक्र वित्त मंत्री अरुण जेटली ने किया.

सच्चाई से दूर हैं जेटली के आंकड़े

नोटबंदी से कारोबार पर असर नहीं पड़ा है: अरुण जेटली

वित्त मंत्री का दावा है कि प्रत्यक्ष कर वसूली में 12.01 फीसदी का इजाफा हुआ है. अप्रैल से दिसंबर के बीच ये बढ़कर 5.53 लाख करोड़ हो गया है. वहीं इनडायरेक्ट टैक्स 25 फीसदी बढ़कर 6.3 लाख करोड़ हो गया. दिसंबर 2016 में टैक्स की वसूली की सालाना दर 14.2 फीसद बढ़ी. वहीं नवंबर में इस वसूली की रफ्तार में 12.8 फीसद का इजाफा हुआ.

जेटली ने इन्हीं आंकड़ों के बूते पर ये दावा किया कि नोटबंदी से कारोबार पर असर नहीं पड़ा है और अर्थव्यवस्था की विकास की दर इस वित्तीय वर्ष में 7.1 फीसदी रहने वाली है.

अब जरा इन आंकड़ों पर करीब से नजर डालते हैं. इन आंकड़ों को ध्यान से देखने पर हमें इन्हें सही-सही समझने में मदद मिलेगी.

खुद सरकार के आंकड़े कहते हैं कि नवंबर के मुकाबले दिसंबर में अप्रत्यक्ष कर की नेट वसूली में 14.2 फीसदी की कमी आई है. इसी तरह एक्साइज की वसूली भी नवंबर के 33.7 फीसदी के मुकाबले दिसंबर में 31.6 फीसदी रह गई.

डायरेक्ट टैक्स वसूली जो अप्रैल से नवंबर के बीच 15.2 प्रतिशत थी, अप्रैल से दिसंबर के बीच 12.01 फीसदी ही रह गई.

कहने का मतलब ये कि नोटबंदी के एलान के बाद कर वसूली में काफी कमी दर्ज की गई है. आम हालात में ऐसा नहीं होना चाहिए क्योंकि त्योहारों के सीजन में टैक्स वसूली आम तौर पर बढ़ जाती है. अगर कारोबार तेजी से फल-फूल रहा है तो टैक्स वसूली बढ़नी चाहिए.

मगर बड़ी बात ये है कि अगर टैक्स वसूली की तादाद बढ़ भी रही है तो इसका ये मतलब नहीं निकाला जा सकता कि अर्थव्यवस्था की रफ्तार तेज है. टैक्स वसूली में इजाफे की और वजहें भी हो सकती हैं, मसलन सीजनल बढ़ोतरी, भले ही ये तेजी अच्छी बात हो.

जमीनी स्तर पर क्या हो रहा है इसे समझने के लिए हमें कई और पहलुओं पर नजर डालनी होगी. और ये आंकड़े वित्त मंत्री के दावे की तस्दीक नहीं करते.

नवंबर के कोर सेक्टर के आंकड़े अर्थव्यवस्था की रफ्तार धीमी होने की तरफ इशारा करते हैं.

नवंबर में कोर सेक्टर में वृद्धि 4.9 फीसदी ही रही. जबकि अक्टूबर में ये 6.6 प्रतिशत और सितंबर में 5.01 फीसदी रही थी, पीएमआई में भी इस दौरान गिरावट आई है. दिसंबर में ये 49.6 रही थी, जबकि नवंबर में ये दर 52.3 थी. निर्माण के क्षेत्र में विकास की ये इस साल की सबसे कम दर रही.

बैंकों के कर्ज देने की रफ्तार भी धीमी हुई है. रिजर्व बैंक के आंकड़े बताते हैं कि दिसंबर में कर्ज देने की रफ्तार 19 साल में सबसे कम रही थी.

इसके अलावा दुपहिया गाड़ियां बनाने वाली कमोबेश हर कंपनी ने बताया है कि नोटबंदी के बाद उसकी बिक्री में गिरावट आई है. ये आंकड़े बताते हैं कि विकास की रफ्तार में कमी आई है.

विकास दर को नापने के लिए हमें बेरोजगारी का आंकड़ों पर भी गौर फरमाना होगा. साथ ही छोटी कंपनियों के कारोबार पर भी नजर डालनी होगी. असंगठित क्षेत्र में नकदी के संकट से भयंकर परेशानी देखी गई है.

नोटबंदी के वास्तविक आंकड़े सरकारी आंकड़ों से मेल नहीं खाते

नोटबंदी का सबसे ज्यादा असर छोटे कारोबार पर पड़ा है

ऑल इंडिया मैन्यूफैक्चरर्स एसोसिएशन के मुताबिक, नोटबंदी के पहले 34 दिनों में छोटे कारोबार में रोजगार 35 फीसदी तक घट गया है. इनके राजस्व में भी 50 फीसदी की भारी गिरावट आई.

इस संगठन की सदस्य तीन लाख से ज्यादा छोटी बड़ी कंपनियां हैं. ये कंपनियां निर्माण से लेकर निर्यात तक के क्षेत्र में काम कर रही हैं. इनके मुताबिक, नोट बैन के बाद, कमोबेश हर तरह की औद्योगिक गतिविधि ठप हो गई. छोटे और मंझोले कारोबारियों पर इसका सबसे बुरा असर पड़ा है.

क्राइसिल के किए एक और सर्वे के मुताबिक छोटी कंपनियों के कैशलेस लेन-देन में 41 फीसदी का इजाफा हुआ है. मगर इनकी विकास दर का नोटबंदी के पहले अंदाजा 15-20 फीसदी लगाया जा रहा था, वो घटकर 6-8 फीसद ही रह गया.

नोट बैन का सबसे ज्यादा असर परंपरागत धंधों में लगे लोगों पर पड़ा, क्योंकि वो नकद में ज्यादा लेन-देन करते हैं. जैसे कि कपड़ा, खेती से जुड़े कारोबार, स्टील, खान-पान की चीजें, निर्माण और ऑटोमोबाइल कंपनियां. असंगठित क्षेत्र यानी दस से कम कर्मचारियों वाली कंपनियों को और भी दिक्कत रहने वाली है.

माना जा रहा है कि इनकी विकास दर बढ़ने के बजाय 37 फीसदी तक घट सकती है. वहीं संगठित क्षेत्र में वित्तीय वर्ष के दूसरे हिस्से में विकास दर 25 प्रतिशत तक गिरने की आशंका है.

नोटबंदी के बाद मनरेगा के तहत काम मांगने वालों की तादाद में जबरदस्त इजाफा हुआ है, जो आम तौर पर सूखे के हालात में होता है.

जब किसानों की आमदनी गिरने पर मजदूर रोजगार की गारंटी तलाशने लगते हैं. 100 दिन की रोजगार गारंटी मांगने वालों की तादाद 38.52 लाख से बढ़कर 83.60 लाख हो गई.

मनरेगा के ये आंकड़े बताते हैं कि बहुत से लोगों को नोटबंदी की वजह से फैक्ट्रियों और दूसरी जगहों पर नौकरी गंवानी पड़ी. इनमें पेशेवर कर्मचारी भी शामिल हैं. लोगों को न्यूनतम मजदूरी मिलना तो ठीक है. मगर मंझे हुए कर्मचारियों का मजदूरी तलाशना, किसी भी अर्थव्यवस्था के लिए अच्छे संकेत नहीं.

हम ये उम्मीद कर सकते हैं कि अरुण जेटली का यकीन आगे चलकर सही साबित हो. जब आंकड़ों से उनके दावे मेल खाएं.

हालांकि सरकार के इस दावे पर कोई यकीन नहीं करेगा कि नोटबंदी से अर्थव्यवस्था पर कोई असर ही नहीं पड़ा. आगे चलकर हमें और आंकड़े मिलेंगे तो सच्चाई का पूरी तरह से पता चलेगा. मगर फिलहाल तो वित्त मंत्री अरुण जेटली का दावा काबिले यकीन नहीं लगता.