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कश्मीर ग्राउंड रिपोर्ट: आर्मी अफसर उमर फयाज की हत्या ने बहन की शादी को मातम में बदला

उमर फयाज की लाश शोपियां जिले के हर्मिन गांव के मुख्य चौराहे पर सड़क किनारे मिली थी.

Sameer Yasir

कश्मीर के यारीपोरा गांव के सुरसानू में मातम पसरा है. श्रीनगर से 75 किमी दक्षिण यारीपोरा के पैरी हाउस के आंगन में बने एक टेंट में शोकाकुल लोग इकट्ठा हुए हैं. यहां रह-रहकर बिलखती महिलाओं की आवाज वातावरण में गूंज रही है.

सुरसानू के 'होनहार बच्चे' लेफ्टिनेन्ट उमर फयाज पैरी इंडियन आर्मी के एक अफसर थे, जिन्हें पड़ोस के शोपियां जिले के हर्मिन गांव से मंगलवार की शाम को अगवा कर लिया गया था. इसके अगले दिन उनकी हत्या कर दी गई थी. बुधवार की सुबह पूरे सैनिक सम्मान के साथ उन्हें दफनाया गया.


दफन करने से कुछ मिनट पहले जब दिवंगत जवान के पार्थिव शरीर को पास के बगीचे में ले जाया गया तो शोकाकुल लोग आपस में कानाफूसी करते हुए सुने जा सकते थे.

दरअसल, उमर की पीठ पर यातना के निशान बेरहमी की कहानी बयां कर रहे थे. टूटे हुए जबड़े, टूटी एड़ियां, गायब हुए दांत और शरीर पर जगह-जगह चोट और कटे के निशान पाए गए थे.

उमर फयाज के अंतिम संस्कार के दौरान रोते-बिलखते परिजन (तस्वीर-समीर यासिर)

कश्मीर में अशांति के 28 साल में यह पहला मौका है जब एक जवान को किसी शादी समारोह से अगवा कर उन्हें मार डाला गया.

शोक में डूबे उमर के पिता फयाज अहमद पैरी ने किसी से भी बात करने से मना कर दिया. यहां तक कि उस आर्मी अफसर से भी उन्होंने बात नहीं की जो उमर को श्रद्धांजलि देने पहुंचे थे.

शोपियां जिले के हर्मिन गांव के मुख्य चौराहे पर सड़क किनारे जब बेटे की लाश बुधवार करीब 8.30 बजे उन्हें मिली थी तो उसे वो अपने भाई के साथ कंधे पर लेकर लौटे थे.

8 जून 1994 को जब उमर फयाज का जन्म हुआ तब उनके परिवार ने आस-पड़ोस में मिठाइयां बांटी थीं. उन्होंने दोबारा ऐसा 10 दिसंबर 2016 को तब किया जब फयाज ने इंडियन आर्मी में एक अफसर के तौर पर कमीशन पूरा किया.

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उमर के चाचा मंजर अहमद पैरी जीवन भर उनके मार्गदर्शक रहे. पहलगाम में आर्मी गुडविल स्कूल के छात्र उमर को खेलों से बहुत लगाव था और उनके चाचा ने हमेशा उन्हें जीवन में दूसरों से अलग रास्ता चुनने के लिए प्रेरित किया.

चाचा मंजर अहमद पैरी उमर के लिए हमेशा टिकट खरीदकर लाया करते जब भी वो अपने घर आते थे. पिछले चार साल में 12 बार जब भी उमर घर आए तो उन्होंने जवानों के लिए रियायती टिकट का फायदा लेने से इंकार कर दिया था.

मंजूर अक्सर उमर को कहा करते, 'तुम हमारे बहादुर बेटे हो.' शोक में डूबे मंजूर के गालों पर आंसू लगातार छलक रहे हैं. वे कहते हैं, 'वह सिर्फ मेरे भाई का बेटा नहीं था बल्कि मेरा भी बेटा था.' आप मुझे बताओ, जब मैंने उसकी लाश देखी तो मैं कैसा महसूस करता.'

उमर फैयाज के मित्र और संबंधी उसके अंतिम संस्कार के दौरान (तस्वीर-समीर यासिर)

उन्होंने आगे कहा, 'तीन साल नेशनल डिफेंस एकेडमी (एनडीए), एक साल इंडियन मिलिट्री एकेडमी (आईएमए) में रहना उसके लिए बहुत रोमांचकारी था. वह आर्मी अफसर ही बनना चाहता था.'

उमर जम्मू के अखनूर एरिया में तैनात थे जब कश्मीर के कुलगाम में पिछले साल अशांति शुरू हुई. परिवार के लोग हमेशा उन्हें घर आने से रोका करते थे क्योंकि हालात लगातार खराब होते जा रहे थे.

लेकिन जैसे-जैसे बहन की शादी की तारीख नजदीक आती जा रही थी वह लगातार कॉल कर उन्हें बुलाया करती. फोन पर पूछा करती कि उसके जीवन के सबसे बड़े दिन में शरीक होने के लिए वो कब आ रहे हैं.

उमर के भाई तारिक अहमद ने कहा, 'सबसे बड़ा दिन हमारे जीवन का काला दिन बन गया.'

10 दिन पहले वो बहन की शादी में शामिल होने के लिए घर लौटे थे. वह हफ्तों से उन्हें फोन कर बुला रही थी. यहां तक कि उनके अफसरों को भी फोन कर रही थी क्योंकि वह उसके परिवार का सबसे करीबी लड़का था.

मंगलवार को शाम 6 बजे हर्मिन गांव के उस घर में एक अजनबी आया जहां शादी संपन्न हो रही थी. उसने इस नौजवान अफसर से कहा कि उसके कुछ पुराने मित्र बाहर उनका इंतजार कर रहे हैं.

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फल कारोबारी 40 वर्षीय मंजूर ने फर्स्टपोस्ट को बताया, 'और बुधवार की सुबह करीब 8.30 बजे हमें उसकी लाश हर्मन चौक पर मिली. उसके मृत शरीर की पीठ पर यातनाओं के निशान हैं. मुझे जो पता है वो ये कि उसे मार डाला गया.'

पैरी के दो मंजिला मकान के बाहर लगे अस्थायी टेंट में तारिक ने बताया, 'कोई इंसान दूसरे इंसान को ऐसी यातना कैसे दे सकता है. अगर आप कश्मीरी हैं, इंडियन आर्मी की सेवा कर रहे हैं तो इससे आपके अपने लोग ही दुश्मन हो जाते हैं? कैसे कोई मेरे फूल जैसे लड़के की मौत को सही ठहरा सकता है?'

उमर फैयाज के श्रद्धांजलि देते सेना के जवान (तस्वीर- समीर यासिर)

जनाजे में एक हजार से ज्यादा लोगों ने हिस्सा लिया. शोकाकुल लोगों ने हत्या के विरोध में नारे लगाए. लेकिन ताजा हालात और आसपास की नजाकत को समझते हुए विरोध की ये आवाज बहुत धीमी सुनाई पड़ रही थी.

पिछले साल कई महीनों तक कुलगाम जिला सुरक्षा बलों की पहुंच से बाहर रहा था. पुलवामा के बाद इस जिले में नये आतंकियों की संख्या सबसे ज्यादा है.  यहां लोगों के बीच खौफ साफ दिखाई पड़ता है. यहां तक कि उन शोकाकुल लोगों के चेहरों पर भी जो दुख की घड़ी में परिवार के साथ खड़े हुए.

तारिक ने आगे बताया, 'वह सिर्फ अपने पिता ही नहीं बल्कि पूरे परिवार की आंखों का तारा था.'

कश्मीर की बर्बर वास्तविकता को बेहतर तरीके से एक महान व्यक्ति के शब्दों में कहा जा सकता है जिन्होंने कहा था, 'हमारी घाटी में लकीरें इस तरह खींच दी गई हैं कि आज हम जानते हैं कि कौन आपके लिए शोक मनाएगा और कौन मेरे लिए.'

घर में 10 दिन की छुट्टी के बाद 12 मई को उमर को अपने पोस्टिंग वाली जगह पर रिपोर्ट करनी थी. लेकिन अफसोस कि इसकी जगह वो हमेशा हमेशा के लिए कब्र में सो गए.

परिवार में खुशी का माहौल निराशा में बदल गया. उमर के रिश्तेदार भाई तारिक कहते हैं, 'उसकी मौत न सिर्फ हमारे लिए, बल्कि देश के लिए बड़ा नुकसान है.'