view all

नोट बैन पर सुप्रीम कोर्ट में याचिका : आम आदमी त्रस्त है जनाब!

नोट बैन के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया है. फैसले को ‘बेरहम निर्णय’ बताते हुए अपील की गई है.

Kinshuk Praval

रोजमर्रा की जिंदगी में जरुरी सामान की खरीद के लिये पांच सौ और हजार के नोटों पर निर्भरता अब अफरा-तफरी में बदल गई. सरकार ने इन नोटों पर अपनी करप्शन की थ्योरी के तहत कोड़ा चला दिया. एलान के पंद्रह मिनट के भीतर ही एटीएम और पेट्रोल पंप पर लोगों की भीड़ टूटने लगी.

सरकार के एलान के साथ ही लोगों का ‘टाइम-अप’ हो गया था. सिर्फ चार घंटे बाकी थे 12 बजने में और उसके बाद सारे दौड़ने वाले 500-1000 के नोट रद्दी होने वाले थे. फैसले के चलते अगले ही दिन से सौ के नोट की मंदी और पांच सौ- हजार के नोट की बंदी का खेल दिखना शुरु हो गया. सबसे बड़ी मार पड़ी मिडिल क्लास, लोअर क्लास और गरीब तबके पर. बैंक बंद थे और एटीएम वीरान तो जेब खाली. सरकार ने कहा कि दो दिन तक ऐसा रहेगा लेकिन बाद में क्या हालात सुधर जाएंगे ?


इस फैसले से ऐसा कोई वर्ग नहीं रहा जो प्रभावित न हुआ. ऐसे में सरकार के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया है. उत्तर प्रदेश के वकील संगम पांडेय ने नोट बैन करने के फैसले को ‘बेरहम निर्णय’ बताते हुए सर्वोच्च अदालत से गुहार लगाई है. याचिका में सरकार के इस फैसले को खारिज करने की मांग की गई है. याचिका में कहा है कि 'निजी अस्पताल, दवा की दुकानें, दिल्ली मेट्रो सहित सरकारी और निजी परिवहन पांच सौ और हजार के नोट लेने से साफ इनकार कर रहे हैं.'

साथ ही ये भी कहा गया है जिन परिवारों ने अपने बच्चों की शादी के लिये अपने अकाउन्ट से लाखों रुपए निकाले हैं, उनके लिये सबसे मुश्किल की घड़ी है. नवंबर में हर साल हजारों शादियां होती हैं. ऐसे में अकाउन्ट से निकाले गए पैसे का अब क्या इस्तेमाल होगा ?

काले धन का जंजाल खत्म होगा ?

डूबने वाला आदमी आखिरी कोशिश तक हाथ-पैर मारता है. आम आदमी भी उसी कोशिश में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा रहा है. गेहूं के साथ घुन पिसने की कहावत यहां सटीक है. करप्शन का कोड़ा उन रसूखदार लोगों पर पड़ा है, जिनके पास अकूत ब्लैकमनी है. चाहे वो कारोबारी हों या नेता, बिल्डर हों या डॉक्टर-इंजीनियर. रिश्वत से घर में कैसे खजाना इकट्ठा किया जा सकता है ये यूपी के यादव सिंह और एमपी के आईएएस दंपति अरविंद और टीनू जोशी को देखकर समझा जा सकता है.

यादव सिंह के पास हजारों करोड़ रुपए की संपत्ति का पता चला तो जोशी दंपत्ति के घर से करोड़ों रुपए कैश बरामद हुआ. यहां तक कि छोटे और मध्यम ओहदे पर काम कर रहे सरकारी कमर्चारियों के पास छापेमारी में करोड़ों की रकमें बरामद हुईं. चपरासी के पास 12 करोड़ रुपए मिले तो पटवारी के पास 20 करोड़ रुपए.

लेकिन उनका क्या जिन्होंने ईमानदारी से मेहनत का पैसा इकट्ठा किया और वो पैसा भी अब कागज का टुकड़ा बन गया. सरकार ने नोट बदलने की प्रक्रिया इतनी लंबी और जटिल बना दी है कि किसी भी आम आदमी को आपात स्थिति में 24 घंटे के भीतर दस हजार रुपये ही जुटा पाना बेहद मुश्किल होगा.

देशहित के फैसले जनहित को प्रभावित करते हैं क्योंकि इनके नतीजे आने में वक्त लगता है. लेकिन देश जिस व्यवस्था में आजादी के बाद के कई दशक गुजार चुका है अचानक उसे बदल देना विपक्ष को कई सवाल खड़े करने का मौका दे गया.

विरोध में अगर तर्कशक्ति है तो वो बहस बेमानी नहीं कही जा सकती. सरकार के 2000 रुपये के नोट जारी करने पर कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी पूछ रहे हैं कि - 'प्रधानमंत्री के लिए एक सवाल: एक हजार रुपए मूल्य के नोट को 2000 रुपये मूल्य के नोटों से बदलने से काला धन जमा करना कैसे और अधिक मुश्किल होगा?'

दो बड़े नोट बंद हो रहे हैं और एक दोनों से बड़ा नोट जारी हो रहा है. ब्लैकमनी कंट्रोल का ये फॉर्मूला किसी को भी कन्फ्यूज कर सकता है.

आम आदमी पार्टी ने आम आदमी से जुड़ा सवाल दागा - 'जिस व्यक्ति के पास बैंक खाता नहीं है और उसने 500 रुपए और 1000 रुपए के कुछ नोट बचा कर रखे हैं, वह क्या करेगा?'

फाइनेंस मिनिस्टर कह रहे हैं कि दो महीने में गाड़ी पटरी पर आ जाएगी. लेकिन जिनकी जिंदगी ही रोजमर्रा की कमाई पर टिकी है वो क्या करें? रेहड़ी पटरी वाले, ऑटो रिक्शावाले, फल-सब्जी की मंडी, दवाई और राशन की दुकानें तो दूध-चाय की बिक्री पर सीधा असर पड़ा है.

सर्वोच्च अदालत में नोट की पेशी

सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर दी गई है. सुप्रीम कोर्ट मोदी सरकार के दो फैसलों पर ऐतिहासिक फैसला सुना चुकी है. सुप्रीम कोर्ट ने अरुणाचल प्रदेश और उत्तराखंड में लगे राष्ट्रपति शासन को रद्द कर दिया था. ऐसे ही किसी चमत्कार की उम्मीद लेकर याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. हालांकि वो दो मामले सियासत से जुड़े थे, जबकि इस मामले में सरकार देश की आंतरिक सुरक्षा और भ्रष्टाचार का हवाला देकर अपना पक्ष मजबूती से रख सकती है.

लेकिन बड़ा सवाल ये है कि सिर्फ सिस्टम में ही नहीं बल्कि नैतिकता में पतन भी करप्शन की देन है. ऐसे में सिर्फ करप्शन ही इस ‘बेरहम निर्णय’ का आधार नहीं हो सकता. हर साल ट्रांसपैरेंसी इंटरनेशनल की एक रिपोर्ट आती है जो भारत में व्याप्त भ्रष्टाचार को आइना दिखा जाती है. 168 भ्रष्ट देशों में भारत 85 वें नंबर पर पिछले दो साल से खड़ा है.

करप्शन और ब्लैकमनी पर कंट्रोल करने के लिये 38 साल पहले भी बड़े नोटों पर रोक लगी थी. बड़ा सवाल ये है कि इसके बाद अगली बार क्या फिर नोट बंद करने के टूल को ही हथियार बनाया जाएगा ?

बहरहाल पीएम मोदी जब साल 2014 में सत्ता में आए तो देश की इकॉनमी को सुधारने के लिए कड़े फैसले लेने की बात की थी. मोदी सरकार ने राजनीतिक स्तर पर एक कड़ा फैसला लेने का जोखिम उठाया है.