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चंद्रबाबू नायडू का फैसला सीबीआई की गिरती साख या फिर इसके अलग राजनीतिक मायने हैं?

‘राज्य सरकार के इस फैसले के बाद सीबीआई के राज्य स्थित दफ्तर में ताला लग जाएगा. भारत के संविधान में कानून-व्यवस्था का जो सवाल है वह राज्य सरकारों के पास है. ऐसे में सीबीआई इस फैसले के खिलाफ अपील भी नहीं कर सकती है.'

Ravishankar Singh

केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के अंदर दो वरिष्ठ अधिकारियों की लड़ाई का मामला अभी ठंडा भी नहीं हुआ था कि आंध्र प्रदेश सरकार के एक नए फरमान ने सीबीआई के लिए मुसीबत पैदा कर दी है. आंध्र प्रदेश सरकार ने एक सर्कुलर जारी कहा है कि अब सीबीआई को किसी भी ऑफिशियल कामकाज के लिए राज्य में प्रवेश करने से पहले आंध्र प्रदेश सरकार से इजाजत लेनी होगी. साथ ही आंध्र प्रदेश सरकार ने सीबीआई को भेजे अपने सभी मामले पर पूर्व की सहमति पत्र को भी वापस ले लिया है.

बता दें कि पिछले कुछ दिनों से सीबीआई के अस्तित्व को लेकर देश में सवाल उठने शुरू हो गए हैं. राजनीतिक पार्टियों से लेकर आम लोगों का भी मानना है कि सीबीआई की विश्वसनीयता अब सवालों के घेरे में आ गई है. पिछले दिनों ही सीबीआई के दो वरिष्ठ अधिकारियों ने एक दूसरे पर रिश्वत लेने का आरोप लगाया था.


सुप्रीम कोर्ट में इस समय सीबीआई के डायरेक्टर और स्पेशल डायरेक्टर पर रिश्वत लेने के मामले की सुनवाई चल रही है. दोनों अधिकारियों ने एक दूसरे पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया है. पिछले दिनों ही केंद्र सरकार ने सीबीआई के दोनों टॉप लेवल के अधिकारियों को छुट्टी पर भेज कर मामले की जांच सीवीसी को सौंपी थी. केंद्र सरकार के इस फैसले के विरोध में सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे.

शुक्रवार को भी सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई हुई. सुप्रीम कोर्ट ने आलोक वर्मा को अगले सोमवार तक अपने ऊपर लगे आरोपों का जवाब दाखिल करने को कहा है. इस मामले की अगली सुनवाई अब मंगलवार को होगी.

पिछले कुछ दिनों से कोर्ट के अंदर और बाहर सीबीआई को लेकर संग्राम मचा हुआ है. अब आंध्र प्रदेश सरकार के एक नए फरमान से सीबीआई के लिए मुसीबत खड़ी हो सकती है. ऐसे में सवाल उठता है कि सीबीआई अधिनियम में इस तरह के फरमान का कितना महत्व है? आंध्र प्रदेश से पहले किसी अन्य राज्य सरकारों ने भी इस तरह का सर्कुलर पहले जारी किया है? क्या राज्य सरकार को अधिकार है कि वह सीबीआई के कार्यक्षेत्र में दखलंदाजी कर सकती है? क्या राज्य सरकार इस तरह के फैसले ले सकती है? सीबीआई अब आंध्र प्रदेश सरकार के इस नए फरमान को मानने के लिए कितना बाध्य है? ये कुछ सवाल हैं जिसका जवाब अब जानना जरूरी हो गया है.

जानकारों का मानना है कि आंध्र प्रदेश सरकार का नया फरमान राजनीति से प्रेरित लग रहा है. राज्य सरकार का यह फैसला सिर्फ राजनीतिक फायदे को ध्यान में रख कर लिया गया है. राज्य सरकार का केंद्र सरकार पर दबाव डालने का यह एक तरीका मात्र है. आज आंध्र प्रदेश की सरकार सीबीआई को लेकर नया फरमान सुनाया है कल को अन्य राज्य सरकारें भी इस तरह का फैसला ले सकती हैं? राज्य सरकारों को अधिकार है कि वह इस तरह के फैसले ले.

सीबीआई के पूर्व पब्लिक प्रोसिक्यूटर एमपी सिंह फ़र्स्टपोस्ट हिंदी से बात करते हुए कहते हैं, ‘देखिए यह पूरी तरह राज्य का विषय है. सीबीआई का अपना कोई जुडीक्शन नहीं है. लॉ-एंड ऑर्डर का मामला राज्य सरकार का विषय है. सीबीआई तभी कोई जांच करती है जब वहां की राज्य सरकार अपनी सहमति देती है. अमूमन यह होता है कि राज्य सरकार एक बार अपनी सहमति दे देती है तो बार-बार किसी स्पेशल केस में राज्य सरकार की सहमति की जरूरत नहीं होती है. देश में 70-80 के दशक में कर्नाटक सरकार ने भी आंध्र प्रदेश की तरह ही एक बार इस तरह का फैसला लिया था. देश में एक बार और सिक्किम की सरकार ने भी ऐसा कदम उठाया था.’

एमपी सिंह आगे कहते हैं, ‘राज्य सरकार के इस फैसले के बाद सीबीआई के राज्य में स्थित दफ्तर में ताला लग जाएगा. भारत के संविधान में कानून-व्यवस्था का जो सवाल है वह राज्य सरकारों के पास है. ऐसे में सीबीआई इस फैसले के खिलाफ अपील भी नहीं कर सकती है. संविधान में डिविजन ऑफ पावर में स्टेट और सेंटर गवर्नमेंट दोनों कानून बना सकती है. सीबीआई जो पुराने मामलों की जांच कर रही है, वह ऐसे ही चलते रहेंगे. अगर मान लीजिए आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू के खिलाफ अगर कोई मामला सीबीआई दर्ज करना चाहती है तो वह अब दर्ज नहीं कर पाएगी. सीबीआई को भी स्टेट पुलिस के थाने में जाकर मुकदमा दर्ज कराना होगा. देखिए सीबीआई का अपना कोई अस्तित्व नहीं है वह तो दिल्ली स्टेबलिशमेंट एक्ट का क्रियएशन है. सीबीआई नाम का देश में कोई एक्ट नहीं है.’

चंद्रबाबू नायडु की फेसबुक वॉल से साभार

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक सीबीआई के विवाद और सुप्रीम कोर्ट में चल रहे केस की वजह से जांच एजेंसी पर राज्य सरकारों का भरोसा कम हुआ है. और इसी कारण आंध्र प्रदेश ने अपनी सहमति को वापस ले लिया है. हालांकि, राज्य सरकार के इस कदम को केंद्र के साथ टकराव के रूप में देखा जा रहा है. क्योंकि मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू गठबंधन बनाने के लिए गैर-बीजेपी दलों को साथ लाने की कोशिश में हैं.

बता दें कि दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान अधिनियम के तहत सीबीआई का गठन हुआ था. 3 अगस्त 2018 को अन्य राज्यों की तरह आंध्र सरकार ने सीबीआई को दी गई सहमति को रिन्यू कर दिया था. अब राज्य सरकार द्वारा समझौते को रद्द करने के बाद सीबीआई राज्य सरकार की सहमति के बगैर राज्य में किसी भी तरह की खोज, छापे या जांच नहीं कर सकती.

हाल ही में आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने केंद्र सरकार पर सेंट्रल एजेंसियों का उपयोग करके उनकी सरकार को अस्थिर करने की कोशिश का आरोप लगाया था. उन्होंने बीजेपी पर विपक्षी नेता जगन मोहन रेड्डी के साथ मिलकर सीबीआई और आयकर विभाग के सहारे उनकी सरकार गिराने का आरोप लगाया था. इसके बाद ही चंद्रबाबू नायडू ने यह कदम उठाया है. चंद्रबाबू नायडू के इस फैसले को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का भी समर्थन मिला है.

कुलमिलाकर सीबीआई के भीतर हाल के दिनों में कई ऐसे घटनाक्रम घटित हुए हैं, जिससे सीबीआई की साख पर सवाल उठने लगे. सीबीआई या केंद्र सरकार भले ही अब लाख सफाई दें, लेकिन इन घटनाओं ने सीबीआई की छवि को काफी नुकसान पहुंचाया है, जिसकी भरपाई करने में सीबीआई या सरकार को काफी वक्त लग सकता है.