view all

ब्लड कैंसर से पीड़ित अर्जुनवार को पाकिस्तान से वापस क्यों नहीं ला पा रहे हम

करीब तीन साल पहले ही सजा खत्म हो जाने के बावजूद पाकिस्तानी जेल में रहने को मजबूर हैं मध्य प्रदेश के अर्जुनवार

Parth MN

पाकिस्तान के अंग्रेजी अखबार 'फ्रंटियर पोस्ट' ने अगस्त 2013 में खबर दी थी कि पाकिस्तानी रेंजरों ने चेता चौक पर एक लड़के को गिरफ्तार किया है. किशोरवय उम्र के इस शख्स के पास पाकिस्तान की यात्रा के लिए जरूरी दस्तावेज नहीं थे और वह गलती से इस मुल्क की सीमा में प्रवेश कर गया था. उन्होंने खुद की पहचान जीतेंद्र अर्जुनवार के तौर पर बताई. इस शख्स का कहना था कि वह मध्य प्रदेश के एक गांव का रहने वाले हैं.

अर्जुनवार को उमर कोटा के अतिरिक्त जिला और सेशंस अदालत में पेश किया गया. अदालत ने उन्हें एक साल कैद की सजा सुनाई. हालांकि, उनकी सजा 14 जुलाई 2014 को खत्म हो गई और उसके बाद जनवरी 2015 में जीतेंद्र अर्जुनवार को कंस्यूलर एक्सेस दिया गया. कंस्यूलर एक्सेस का मतलब यह हुआ कि इस शख्स को पाकिस्तान में मौजूद दूतावास के अधिकारियों से संपर्क करने की इजाजत दी गई.


इसकी इजाजत मिले हुए तीन साल से ज्यादा गुजर चुके हैं, लेकिन भारत का विदेश मंत्रालय अब तक उनकी भारतीय राष्ट्रीयता की तस्दीक नहीं कर पाया है. अर्जुनवार की भारतीय राष्ट्रीयता की पुष्टि किए बिना उन्हें फिर से पाकिस्तान से भारत नहीं भेजा जा सकता. नतीजतन, अर्जुनवार अब भी पाकिस्तानी जेल में यातना सहने को मजबूर हैं. यह शख्स सजा पूरी करने के बाद भी पिछले साढ़े तीन साल से भी ज्यादा वक्त से जेल में ही है.

अर्जुनवार को देश लौटने के लिए भारत सरकार से हरी झंडी का इंतजार

मुंबई के पत्रकार और पाकिस्तान-इंडिया पीपल्स फोरम फॉर पीस एंड डेमोक्रेसी (पीआईपीएफपीडी) के सेक्रेटरी जतिन देसाई ने बताया कि उन्होंने इस स्थिति पर चिंता जताते 5 मार्च 2018 को विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को चिट्ठी लिखी है. देसाई इस मामले पर विदेश मंत्रालय के साथ मिलकर पहल कर रहे हैं.

विदेश मंत्रालय ने सूचना के अधिकार कानून के तहत जानकारी देते हुए 21 मार्च को इस बारे में साफ तौर पर बताया कि अब तक अर्जुनवार की राष्ट्रीयता के बारे में पुष्टि नहीं हो पाई है. उन्होंने कहा, 'आज के समय में किसी शख्स की राष्ट्रीयता की पुष्टि किए जाने में 3 साल का वक्त क्यों लगना चाहिए? हम लगातार मांग कर रहे हैं कि कंस्यूलर एक्सेस मिलने के तीन महीने के भीतर राष्ट्रीयता के बारे में तस्दीक हो जानी चाहिए. हालांकि, दिक्कत यह है कि इस तरह की पुष्टि के लिए कोई समयसीमा तय नहीं है, लिहाजा ऐसे मामलों में काफी देरी होती है.'

इसके अलावा, अर्जुनवार ब्लड कैंसर से भी पीड़ित हैं और खून चढ़ाने के लिए उन्हें कई बार अस्पताल ले जाना पड़ता है. पाकिस्तान में कैदियों के कल्याण से जुड़ी एक कमेटी में शामिल वकील हया जाहिद ने कराची के मालीर जेल में अर्जुनवार से मुलाकात की. इस जेल में तय सीमा से काफी ज्यादा कैदी हैं. साथ ही, यहां के मेडिकल वॉर्ड में स्टाफ और उपकरणों का भारी अभाव है. कैदियों के कल्याण से संबंधित कमेटी सिंध सरकार के गृह विभाग द्वारा बनाई गई है.

जेल का दौरा करने के बाद लिखे लेख में जाहिद का कहना था कि अर्जुनवार जेल के बाकी कैदियों के मुकाबले कम उम्र के और काफी बीमार लग रहे थे. उन्होंने लिखा, 'वह बमुश्किल मेरे सवालों के जवाब दे पा रहे थे और उन्हें खड़ा होने में भी बेहद दिक्कत हो रही थी. जेल के स्टाफ के पास इस शख्स को स्थायी रूप से मेडिकल वॉर्ड में रखकर उन्हें भूलने और अकेला छोड़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं था. बाद में (शायद तबीयत ज्यादा बिगड़ने पर) उन्हें जेल के एकमात्र एंबुलेंस के जरिए सिविल अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा.'

बहरहाल, मध्य प्रदेश के सियोनी जिले में स्थित बरघाट गांव में अर्जुनवार के परिवार को भी यह पता है कि उन्हें खून संबंधी कुछ समस्या है. अर्जुनवार की मां पार्वती ने बताया, 'वह घर पर भी अक्सर बीमार रहता था.'

अर्जुनवार ने पांचवीं क्लास तक पढ़ाई की है और वह बेहद गरीब परिवार से ताल्लुक रखते हैं. उनके पिता खाने-पीने की छोटी सी दुकान चलाते थे और कुछ साल पहले उन्होंने खुदकुशी कर ली थी. ऐसे में घर को चलाने की जिम्मेदारी अर्जुनवार और उनके भाई भरत के कंधों पर आ गई. भरत मेकेनिक का काम करते हैं. पार्वती ने बताया, 'वह (अर्जुनवार) काम की तलाश में घर से बाहर जाता था और कुछ दिनों में वापस आ जाता था. पिछली बार भी हमने सोचा कि वह लौट आएगा. हमें उसे देखे और उसकी आवाज सुने चार साल हो गए हैं. '

पार्वती का कहना है कि अर्जुनवार ने जब घर छोड़ा था, तब वह सोई हुई थीं. हालांकि, 2013 की कुछ रिपोर्ट की मानें तो वह कथित तौर पर अपनी मां से झगड़ा कर घर से बाहर निकले थे और खोखरापार के पास वह भारतीय सीमा को पार कर पाकिस्तान की जमीन पर पहुंचे. 2013 में इंडिया टुडे में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, अर्जुनवार ने पुलिस को बताया कि वह इधर-उधर भटकते रहे और तकरीबन एक महीना बाद वह ऐसी जगह पहुंच गए, जहां उन्हें कंटीली तारों की घेराबंदी नजर आई. उन्होंने सोचा कि तारों के जरिए यह घेराबंदी इस इलाके में जानवरों को रोकने के लिए की गई है. अर्जुनवार ने तार के नीचे मिट्टी खोदी और अपनी 'यात्रा' जारी रखी.

अर्जुनवार की मां पार्वती अनपढ़ महिला हैं. लिहाजा, अर्जुनवार की खोज के सिलसिले में मुख्यमंत्री, डीएम, एसपी और यहां तक कि राष्ट्रपति को चिट्ठी लिखने में सियोनी जिले के स्थानीय पत्रकार नीरज मिश्रा ने उनकी मां की मदद की. नीरज ने बताया, 'हमें कहीं से भी उम्मीद भरा जवाब नहीं मिला.'

सियोनी के एसपी तरुण नायक ने 4 अप्रैल (बीते बुधवार) को कहा था कि शाम तक जरूरी जानकारी ईएएम को भेज दी जाएगी. उन्होंने बताया, 'हमने अपनी तरफ से जांच-पड़ताल कर अर्जुनवार की राष्ट्रीयता के बारे में पुष्टि कर दी है.' हालांकि, एसपी तरुण नायक ने यह नहीं बताया कि अर्जुनवार के बारे में जानकारी हासिल करने के लिए ईएएम ने कब उनसे संपर्क किया था.

नौकरशाही के स्तर पर प्रक्रिया को आसान बनाने की जरूरत

पत्रकार और पाकिस्तान-इंडिया पीपल्स फोरम फॉर पीस एंड डेमोक्रेसी के सेक्रेटरी जतिन देसाई कहते हैं कि इस मामले से जुड़ी प्रक्रिया में नौकरशाही के स्तर पर असंवेदनशीलता झलकती है. उन्होंने बताया, 'भारतीय उच्चायोग ऐसे मामले में विदेश मंत्रालय को चिट्ठी लिखता है. उसके बाद विदेश मंत्रालय की तरफ से गृह मंत्रालय को चिट्ठी लिखी जाती है. तब गृह मंत्रालय संबंधित राज्य सचिवों की मदद से मामले का संज्ञान लेता है. उसके बाद संबंधित राज्य सचिव पुलिस से संपर्क करते हैं.'

जतिन देसाई की फेसबुक वॉल से साभार

इसके बाद भी कई तरह की बाधाओं और मुश्किलों से गुजरना पड़ता है और कभी-कभी अजीबोगरीब स्थिति का सामना करना पड़ता है. जतिन देसाई कहते हैं, 'अक्सर ऐसा देखने को मिलता है कि पति के पकड़े जाने पर पत्नी अपनी आजीविका के इंतजाम और वजूद बचाए रखने के लिए अपने बच्चों के साथ कहीं और चली जाती है. ऐसे में पुलिस जब जांच के सिलसिले में संबंधित पते पर पहुंचती है, तो घर के दरवाजे पर ताला बंद होता है.'

देश के प्रमुख अंग्रेजी अखबार 'द इंडियन एक्सप्रेस' ने इस साल जनवरी में गुजरात के कच्छ इलाके के एक गांव के शख्स- इस्माइल समा के बारे में खबर छापी थी, जो 2008 से गुम थे और काफी बाद में उनके पाकिस्तान जेल में होने का पता चला. उनकी जेल की सजा अक्टूबर 2016 में खत्म हुई और इसके डेढ़ साल बाद भी वह सिर्फ इसलिए अपने वतन और घर नहीं लौट पाए हैं, क्योंकि उनकी राष्ट्रीयता का के बारे में वेरिफिकेशन अब तक पूरा नहीं हुआ है.

'द इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट में इस्माइल की पत्नी कामाबाई के हवाले से बताया गया है कि उन्हें अपने पति के बारे में जिंदा होने के बारे में उस वक्त पता चला, जब अक्टूबर 2017 में रिहा हुए एक कैदी ने उन्हें (इस्माइल की पत्नी को) बताया कि वह कराची की जेल में इस्माइल के साथ थे. हालांकि, भारत सरकार के पास जाहिर तौर पर पिछले चार साल से यह सूचना थी.

इस सिलसिले में विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता को एसएमएस के साथ सवालों की सूची ईमेल के जरिये भेजी गई है. विदेशी मंत्री के प्रवक्ता रवीश कुमार ने फोन पर बताया कि उन्होंने सवालों की सूची वाली ईमेल को संबंधित विभाग को आगे बढ़ा दिया है. अगर विदेश मंत्रालय की तरफ से जानकारी मिलती है, तो इस मामले में अपडेट मुहैया कराया जा सकेगा.

( ये स्टोरी अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)