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स्टार्ट अप कंपनियों की सच्चाई... उनमें महफूज नहीं महिलाएं!

'द वायरल फीवर' की पूर्व महिला कर्मचारी ने ट्विटर पर अपने साथ हुए यौन शोषण की दास्तां बयां की

Sharanya Gopinathan

ये खबर वैसे तो दो दिन पुरानी है, मगर कहानी और भी पुरानी है. रविवार को देर रात 'इंडियन फाउलर' नाम के अनजाने से ट्विटर हैंडल से एक पोस्ट की गई. इसमें फाउलर ने दावा किया कि वो मीडिया और कंटेंट कंपनी 'द वायरल फीवर' की पूर्व कर्मचारी है.

फाउलर ने आरोप लगाया कि उसने 'द वायरल फीवर' कंपनी में लगातार यौन शोषण का सामना किया. ये यौन शोषण किसी और ने नहीं बल्कि कंपनी के 34 साल के सीईओ अरुणाभ कुमार ने किया.


फाउलर ने अपने तजुर्बे को खुलकर बयां किया. उसने बताया कि किस तरह उसका शोषण होता रहा. अरुणाभ कुमार ने एक खास तरह के कारोबारी लेन-देन का प्रस्ताव रखा. फिर एक और मौके पर उसने 'रोल प्ले' का ऑफर दिया. एक बार उसने फटाफट सेक्स संबंध बनाने का प्रस्ताव भी रखा.

इस पूर्व कर्मचारी का दावा है कि जब उसने इसकी शिकायत पुलिस से करने की चेतावनी दी तो, अरुणाभ कुमार ने उससे कहा कि पुलिस तो उसकी जेब में है. इस गुमनाम कर्मचारी ने ये भी लिखा कि जब उसने अपने साथ हो रहे बर्ताव की जानकारी साथी कर्मचारियों को दी, तो उन लोगों ने उसे क्या जवाब दिया. इस महिला ने टीवीएफ के साथ लंबे वक्त तक जुड़े रहे अभिनेता नवीन कस्तूरिया से इस बारे में बात की थी.

फाउलर का दावा है कि उसे अभी भी कंपनी से कानूनी नोटिस भेजे जा रहे हैं. इसमें इल्जाम लगाया जा रहा है कि उसने कंपनी के साथ हुए समझौते की शर्तें तोड़ी हैं. इस महिला कर्मचारी का कहना है कि जब उससे बर्दाश्त नहीं हुआ तो उसने कंपनी छोड़ने का फैसला किया. ये बेहद अफसोसनाक कहानी है. इस महिला को इतनी तकलीफ हुई कि उसे खुद को खत्म करने का ख्याल भी आया.

अरुणाभ कुमार (तस्वीर फेसबुक प्रोफाइल से)

जिस वक्त ये लेख लिखा गया उस वक्त तक कलाकार-निर्देशक रीमा सेनगुप्ता समेत कुल नौ लोग यौन शोषण का इल्जाम लगा चुके थे.

इन आरोपों पर टीवीएफ का जवाब भी काबिले गौर है. इसे कई नजरिए से देखा जा सकता है. टीवीएफ का कहना है कि यौन शोषण के इल्जाम बेबुनियाद हैं, सच से परे हैं और बदनाम करने की नीयत से लगाए गए हैं. यहां तक कि टीवीएफ ने कहा कि वो पता लगाएगी कि ये पोस्ट किसने लिखा, ताकि उसे कानून का सामना करने के लिए सामने लाया जा सके.

ये बयान, ऐसे हालात में आने वाले हर बयान की मिसाल के तौर पर पेश किया जा सकता है. एक अमीर और ताकतवर शख्स का ये कहना कि वो पीड़ित महिला से बदला लेगा क्योंकि उसने सच बोलने की हिम्मत दिखाई है. ये उस मर्दवादी समाज के आहत इगो की गवाही देने वाला बयान भी है.

हालांकि जो आधिकारिक बयान है वो खुले तौर पर तो पीड़ित को हिंसक धमकी नहीं देता. मगर इंसाफ से सामना कराने की चेतावनी इस बात का प्रतीक है कि इस बयान के पीछे की नीयत क्या है. इसमें कोई पछतावा नहीं दिखता. ये संकेत भी नहीं दिखता कि मामले की, आरोपों की निष्पक्ष जांच की जाएगी. न ही ये संकेत मिलता है कि इस महिला के आरोपों को गंभीरता से लिया जाएगा.

आखिर ऐसे इल्जाम पर क्या किया जाना चाहिए? दफ्तर में यौन शोषण को लेकर जारी विशाखा गाइडलाइन इस बारे में एकदम साफ हैं. पहले तो इस तरह की शिकायत की जांच के लिए एक अंदरूनी समिति होनी चाहिए. दस या इससे ज्यादा कर्मचारियों वाली हर कंपनी के लिए जरूरी है कि वो यौन शोषण के आरोपों से निपटने के लिए ऐसी समिति बनाए.

फैक्टर डेली से बात करते हुए एक महिला ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि 'द वायरल फीवर' कंपनी में एचआर विभाग ही नहीं है. जबकि कंपनी ने हाल ही में टाइगर ग्लोबल समेत कई कंपनियों से एक करोड़ डॉलर का निवेश हासिल किया था. विशाखा गाइडलाइंस कहती हैं कि सेक्सुअल कमेंट करना और बेहूदा बातें कहना भी यौन शोषण होता है. 2013 का सेक्सुअल हैरेसमेंट एक्ट विशाखा गाइडलाइंस की बुनियाद पर ही तैयार किया गया था. इस एक्ट के मुताबिक भी पीड़ित महिलाओं का दूसरे दफ्तर में तबादला होना चाहिए. या फिर उन्हें तीन महीने की छुट्टी लेने की छूट होनी चाहिए.

हालांकि स्टार्ट अप कंपनियों के हालात अलग होते हैं. ऐसी ज्यादातर कंपनियां छोटी होती हैं. इनका कामकाज कुछ गिने-चुने लोगों के इर्द-गिर्द चलता है. ऐसे लोग ही फैसले लेते हैं कि किसे नौकरी पर रखना है. किसे हटाना है. किसका तबादला करना है और किसे प्रमोट करना है. एचआर डिपार्टमेंट से जुड़े फैसले भी यही गिने-चुने लोगों की टीम करती है.

ऐसे लोगों के बीच भाईबंदी की डोर काफी मजबूत रहती है. ये अक्सर पुराने दोस्तों का गुट होता है. उनके बीच आपसी ताल्लुकात काफी मजबूत होते हैं. उनका दूसरी स्टार्ट अप कंपनियों के मालिकों से भी करीबी संबंध होता है. कई बार तो ऐसे लोग कॉलेज के दिनों के साथी होते हैं.

ऐसे में यौन शोषण की शिकार महिलाओं के लिए सामने आकर अपनी बात कहना बहुत मुश्किल हो जाता है. पीड़ित की शिकायतों को गंभीरता से नहीं लिया जाता. उल्टे उन्हें ही ब्लैकलिस्टेड कर दिया जाता है. दूसरी कंपनियों में भी उनके लिए नौकरी हासिल करना नामुमकिन सा हो जाता है.

यही वजह है कि पीड़ितों को सोशल मीडिया का सहारा लेना पड़ता है. पुलिस के पास जाना भी कोई आसान काम नहीं होता. बदनामी का डर होता है. अजीबो-गरीब सवालों से सामना होता है. कंपनी के बॉस बदले की भावना पाल लेते हैं. ऐसे में यौन शोषण के पीड़ितों के पास सोशल मीडिया का ही सहारा बचता है.

फोटो. न्यूज इंडिया 18 से साभार

टीवीएफ के खिलाफ उठा ये मामला यौन शोषण का कोई पहला केस नहीं. इस बारे में जो पहली पोस्ट लिखी गई थी, उसमें टीवीएफ को भारतीय उबर कंपनी कहा गया था, क्योंकि उबर पर भी खराब माहौल में काम कराने और यौन शोषण के इल्जाम लगे थे. ये बातें उस वक्त सुर्खियों में आई थीं. जब उबर में काम करने वाली एक इंजीनियर ने सोशल मीडिया पर अपना किस्सा बयां किया था.

हाल ही में लिंक्डइन पर महेश मूर्ति नाम के शख्स पर इल्जाम लगा था कि उसने पूजा चौहान नाम की लड़की को सेक्सुअल मैसेज भेजे थे. ऐसा उसने तब किया जब पूजा ने कुछ मशविरा करने के लिए उसकी मदद ली. जब उसने ऐसे मैसेज का विरोध किया तो उसने खुद को सही साबित करने की कोशिश की. उसे अपने किए पर जरा भी अफसोस नहीं हुआ.

पूजा चौहान की पोस्ट पर कई महिलाओं ने कमेंट में लिखा कि वो भी महेश मूर्ति के ऐसे बर्ताव की शिकार हुई थीं. इसके बाद महेश ने मीडियम पोस्ट पर लंबा सा लेख लिखकर सफाई दी और आरोप लगाने वालों का मजाक बनाया.

द गार्जियन अखबार लिखता है कि अमेरिका में स्टार्ट अप कंपनियों में यौन शोषण की कई शिकायतें सामने आई हैं. इसकी वजह एचआर डिपार्टमेंट के न होने से लेकर कई बार उनके पास पैसे नहीं होने की दिक्कतों तक को वजह बताया गया. अखबार के मुताबिक स्टार्ट अप कंपनियों में भाईचारे का जो माहौल होता है, वो भी कई बार यौन शोषण की वजह बनता है.

ये वहां काम करने वाले लोगों पर खास तरीके का बर्ताव करने का दबाव बनाता है. साथ ही दफ्तर के बाहर भी गैर-पेशेवराना बर्ताव का दबाव ऐसे भाईचारे वाले माहौल की वजह से बनता है. नतीजा कई बार यौन शोषण के तौर पर सामने आता है.

मनोरंजन की दुनिया की स्टार्ट अप कंपनियों में काम कर चुकी मेरी दोस्त का कहना है कि एक दूसरे से मेल-जोल में दिक्कत नहीं. मगर ऐसी कंपनिया चलाने वाले अचानक मिली कामयाबी से खुद को खुदा मान बैठते हैं, वो बेलगाम हो जाते हैं. ताकत और पैसा मिलने के बाद उन्हें लगता है कि वो कुछ भी करने के लिए आजाद हैं. वो बर्ताव की पाबंदियां तोड़ने लगते हैं.

कई बार जब उनके मन का काम नहीं होता, तो वो अजीब व्यवहार करते हैं. जैसे हाउसिंग डॉट कॉम के राहुल यादव ने इंफोसिस के चेयरमैन विशाल सिक्का की एयरपोर्ट पर सोते हुए तस्वीरें पोस्ट कर दीं. उस वक्त हुआ ये था कि थकान की वजह से विशाल ने राहुल से बात करने से मना कर दिया था.

कॉमेडी की दुनिया के कई लोगों ने टीवीएफ पर लगे यौन शोषण पर अपनी बात रखी है. जैसे कि कॉमेडियन अदिति मित्तल ने कई ट्वीट कर के बताया कि यौन शोषण की ऐसी घटनाएं तो आम हैं. अदिति ने उन मर्दों पर निशाना साधा जो खुद को महिलाओं का समर्थक बताते हैं. मगर ऐसे आरोपों पर खामोश रहते हैं.

प्रतीकात्मक तस्वीर

रोहन जोशी, आशीष शाक्य और तन्मय भट्ट ने भी अपनी बात ट्विटर पर रखी. उनकी सलाह थी कि स्टार्ट अप कंपनियों को अपने कर्मचारियों को सही बर्ताव की ट्रेनिंग देनी चाहिए. साथ ही यौन शोषण के आरोपों की जांच करने के लिए उन्हें कमेटियां बनानी चाहिए. हालांकि इनमें से किसी के ट्वीट में टीवीएफ का जिक्र न के बराबर था. सिर्फ अदिति मित्तल ने आरोपों को सही बताकर समर्थन किया.

सोमवार शाम टीवीएफ के कई कर्मचारियों ने कहा कि वो ऐसे किसी शख्स को नहीं जानते जो मुजफ्फरपुर का रहने वाला है. इंडियन फाउलर ने खुद को मुजफ्फरपुर का ही बताया था. यानी ये कर्मचारी कह रहे थे कि फाउलर नाम की उस गुमनाम महिला की शिकायतें झूठ थीं. यानी इन आरोपों की जांच की भी जरूरत नहीं. उन्होंने आरोप लगाया कि ये कंपनी और अरुणाभ को बदनाम करने की साजिश है.

कई महिला कर्मचारियों ने तो ये भी कहा कि उन्हें कंपनी के माहौल में कोई कमी नहीं दिखती. साफ है कि वो इल्जाम लगाने वाले के तजुर्बे को सिरे से खारिज करना चाहती थीं. टीवीएफ की कलाकार, लेखक और कास्टिंग डायरेक्टर निधि बिष्ट इकलौती ऐसी महिला कर्मचारी थीं जिन्होंने कहा कि मामले की जांच होगी. हालांकि पहले निधि ने भी आरोपों को खारिज कर दिया था. पूरे मामले पर टीवीएफ का ट्विटर हैंडल पूरी तरह खामोश रहा.

ऐसे में क्या हमें उस जांच से कुछ भी निकलने की उम्मीद करनी चाहिए, जिसकी बात निधि ने की? मुझे नहीं लगता. मगर जो हालात हैं उनमें तो जांच होना भी बड़ी बात है.