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AMU छात्र संघ चुनाव में दिखा सांप्रदायिक रंग, मुस्लिम उम्मीदवारों ने मारी बाजी

अध्यक्ष पद के लिए मसकूर अहमद उस्मानी, अबू बक्र और ठाकुर अजय सिंह की टक्कर ने इस बार अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के छात्रों को सांप्रदायिक नजरिए से सोचने पर मजबूर कर दिया

FP Staff

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में छात्र संघ चुनाव संपन्न हो गए. 11 दिसंबर को वोटिंग हुई थी और 12 दिसंबर को चुनाव नतीजे आए. लेकिन इस बार छात्र संघ चुनाव में सांप्रदायिक रंग बहुत ज्यादा चढ़ा और उसका असर नतीजों पर साफ दिखा. अध्यक्ष पद के लिए मसकूर अहमद उस्मानी, अबू बक्र और ठाकुर अजय सिंह की टक्कर ने इस बार अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के छात्रों को सांप्रदायिक नजरिए से सोचने पर मजबूर कर दिया. ठाकुर अजय सिंह बीजेपी के विधायक ठाकुर दलवीर सिंह के पौत्र हैं. इसी के चलते मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण होना शुरू हुआ और फाइनल रिज़ल्ट में एकतरफा वोटिंग का नजारा दिखा. अलीगढ़ मुस्लिम यूनिरवर्सिटी के छात्र संघ का अध्यक्ष पद मसकूर अहमद उस्मानी के पक्ष मे ही गया. मसकूर अहमद फैकल्टी ऑफ मेडिसिन से हैं और बिहार के दरभंगा के एक राजनीतिक परिवार से आते हैं. मसकूर अहमद को मजहब और सांप्रदायिक फिजां का फायदा पूरी तरह मिला. हालांकि अभी तक एएमयू में छात्र संघ के चुनावों में मजहब फैक्टर रहा है लेकिन इस बार सांप्रदायिकता का रंग इस चुनाव पर गहरा दिखाई दिया जिसका फायदा सीधे तौर पर मसकूर अहमद को ही मिला. मसकूर अहमद अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की सबसे मजबूत बिहार लॉबी से आते हैं जो कि केवल अध्यक्ष पद के लिए ही अपना उम्मीदवार खड़ा करती है. जबकि वोट बैंक के हिसाब से GBS यानी गोंडा, बस्ती और सिद्धार्थ नगर माने जाते हैं.


उपाध्यक्ष पद पर कश्मीर के सज्जाद सुबहान ने बाजी मारी. कश्मीरी उम्मीदवारों को लेकर अबतक यहां छात्र सशंकित रहा करते थे लेकिन इस बार सज्जाद के भाषणों ने यहां के छात्रों पर गहरा असर छोड़ा जो उनकी जीत की वजह बना. उपाध्यक्ष पद के लिए मैदान में छह उम्मीदवार उतरे थे जिनमें एक उम्मीदवार गैर-मुस्लिम विक्रांत जौहरी भी थे. उपाध्यक्ष पद की लड़ाई में सांप्रदायिक रंग इस तरह चढ़ा कि विक्रांत जौहरी के खिलाफ जा कर लोगों ने कश्मीरी उम्मीदवार सज्जाद सुबहान को वोट दिया जबकि पहले यही वोटर कश्मीरी उम्मीदवार को लेकर दिलचस्पी नहीं लेते थे. यहां तक कि बिहार की लॉबी ने भी उपाध्यक्ष पद के लिए सज्जाद का ही साथ दिया. जिस तरह से इस बार अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के छात्र संघ चुनाव में सांप्रदायिक असर देखने को मिला वो कई सवाल खड़े करता है. छात्र संघ का बनना जितना जरूरी है उतना ही जरूरी है कि उसको गलत मुद्दों के सहारे सत्ता पर काबिज होने से बचाना. लेकिन अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के छात्रसंघ चुनाव में सिर्फ सांप्रदायिक बयार ही देखने को मिली जो यहां की संस्कृति के लिये अच्छा संकेत नहीं माना जा सकता.

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में बीए की छात्राओं का छात्र संघ चुनाव अलग से होता है. अब्दुल्लाह कॉलेज में ये चुनाव होता है. इस बार यहां के चुनाव में एक सकारात्मक बदलाव देखने को मिला. इस बार यहां की छात्राओं ने समाज के ज्वलंत मुद्दों पर सार्थक बहस के बाद अपना वोट दिया. आधुनिक इतिहास और राजनीतिक शास्त्र की छात्रा नबा नसीम अध्यक्ष चुनी गईं. नबा लखनऊ की रहनेवाली हैं और खुद को आंबेडकरवादी मानती हैं. अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में आंबेडकर विचारधारा से प्रभावित किसी छात्रा का जीतना एक नए बदलाव की तरफ इशारा करता है जहां पर धर्म और संप्रदाय का रंग अपना असर नहीं दिखा सका. बहरहाल अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में किसी गैर मुस्लिम का चुनाव जीतना नामुमकिन ही है क्योंकि यहां मुस्लिम कट्टरपंथी विचारधारा का ही असर है. यही वजह है कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के छात्र संघ  चुनावों पर हमेशा अलोकतांत्रिक और सांप्रदायिक चुनावों का आरोप लगता रहा है. बस फर्क इतना भर है कि बाहर हिंदूवादी सोच तो यूनिवर्सिटी के भीतर मुस्लिम कट्टरपंथ का बोलबाला दिखाई देता है.