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अमृतसर ट्रेन त्रासदी: रेलवे संपत्तियों की सुरक्षा करने से दुर्घटनाओं से हो सकता है बचाव

भारत में ज्यादातर रेल हादसे मानव रहित क्रॉसिंग के चलते होते आए हैं. ऐसे में इस मुद्दे ने कई रेल मंत्रियों का ध्यान आकर्षित किया है

Jai Mrug

वर्ष 1990 के आखिरी महीनों में मैं मुंबई (तब बंबई) में ज्यादातर रेल यात्रा किया करता था. मुंबई की हार्बर ब्रांच लाइन पर कुर्ला से नवी मुंबई के बीच अक्सर मेरा आना-जाना लगा रहता था. इस लाइन पर तिलक नगर के बाद ट्रेनें रेंग-रेंग कर चला करती थीं. मानखुर्द स्टेशन तक ट्रेन की रफ्तार 15 किलोमीटर प्रति घंटा से ज्यादा नहीं हो पाती थी. ट्रेन की इस मंथर गति की वजह से हर कोई वाकिफ था.

या यूं कहें कि ट्रेन की रफ्तार पर ब्रेक लगाने वाली वजहें साफ नजर आया करती थीं. दरअसल तिलक नगर से लेकर मानखुर्द तक रेलवे ट्रैक के दोनों ओर अनगिनत झुग्गी-झोपड़ियां हुआ करती थीं. यह झुग्गी-झोपड़ियां रेलवे ट्रैक के 6 फीट नजदीक तक पहुंच गईं थीं. रेलवे ट्रैक से सटकर ही दैनिक हाट-बाजार लगा करते थे. जहां काफी भीड़ रहती थी. छोटे दुकानदारों, फेरी लगाने वालों और खरीदारों का जमघट वहां हमेशा मौजूद रहता था. रेलवे ट्रैक के आसपास ही स्थानीय महिलाएं हंसी-दिल्लगी करती दिखती थीं. जबकि छोटे-छोटे बच्चे दौड़ते-भागते या खेलते नजर आते थे. यहां तक कि झुग्गियों में रहने वाली गृहणियां ताजा बनाए पापड़ों को धूप में सुखाने के लिए रेलवे ट्रैक के नजदीक वाली जगह ही चुना करती थीं. कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि, इलाके की झुग्गी-झोपड़ियों के निवासी रेलवे ट्रैक के साथ सामंजस्यपूर्ण तरीके से सह-अस्तित्व में रह रहे थे.


मुंबई हार्बर लाइन पर यात्रियों को तमाम दिक्कतों के बावजूद रेलवे प्रशासन कई साल तक इस समस्या का कोई हल नहीं निकाल सका. बाद में इस मामले में कोर्ट में एक जनहित याचिका (पीआईएल) दाखिल की गई. याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने सभी झुग्गी-झोपड़ियों को रेलवे ट्रैक से दूर हटाने का आदेश दिया. कोर्ट का वह आदेश लोगों की सुरक्षा के साथ-साथ लोकल ट्रेनों के निर्बाध और तेज गति से आवागमन के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण था. कोर्ट के आदेश के बाद रेलवे ने आनन-फानन में कार्रवाई करते हुए मुंबई के सभी रेलवे ट्रैक के आसपास से अतिक्रमण को हटवाया. जिससे मुंबई के हर रेलवे रूट पर यात्रियों को करीब 8 मिनट की बचत होने लगी. यानी लोकल ट्रेनें नियत रफ्तार से और तय समय में अपने गंतव्य तक पहुंचने लगीं.

बता दें कि, घनी आबादी से गुजरने वाली ट्रेनों के लिए रेलवे की तरफ से कॉशन ऑर्डर (चेतावनी आदेश) जारी किए जाते हैं. जिसके तहत उन इलाकों से ट्रेनें धीमी गति से और बार-बार हॉर्न बजाती हुई गुजरती हैं.

रेलवे की दलील- अमृतसर हादसा स्थानीय लोगों की लापरवाही का नतीजा

पंजाब के अमृतसर में हुए हालिया ट्रेन हादसे की बात करें तो, रेलवे ने कहा है कि, उस लाइन पर ट्रेन ड्राइवरों, केबिनमैन्स और गेटमैन्स के लिए कॉशन ऑर्डर जारी नहीं किए गए थे. रेलवे की दलील है कि, यह हादसा स्थानीय लोगों की लापरवाही का नतीजा है. लोगों ने न सिर्फ अपनी सुरक्षा की अनदेखी की बल्कि वे नियमों का उल्लंघन करके रेलवे ट्रैक पर घुस आए थे. अगर रेलवे को उस जगह लोगों के जमावड़े की सूचना पहले से होती तो उस लाइन पर कॉशन ऑर्डर जारी होता. जिससे उस ट्रैक पर ट्रेनें धीमी गति से गुजरतीं. उस स्थिति में या तो यह दुर्घटना होती ही नहीं, और अगर दुर्घटना हो भी जाती तो हताहतों की तादाद इतनी ज्यादा न होती.

भारत में ज्यादातर रेल हादसे मानव रहित क्रॉसिंग के चलते होते आए हैं. ऐसे में इस मुद्दे ने कई रेल मंत्रियों का ध्यान आकर्षित किया है. लेकिन रेलवे ट्रैक के नजदीक अतिक्रमण और पटरियों के आसपास के गतिरोधों पर किसी ने भी अबतक खास ध्यान नहीं दिया है. अतिक्रमण और रेलवे ट्रैक के आसपास के गतिरोधों से न सिर्फ लोगों की सुरक्षा पर असर पड़ता है बल्कि इनसे ट्रेनों की गति भी प्रभावित होती है.

साल 2016 में, मुंबई के उपनगरीय रेलवे नेटवर्क में रेलवे ट्रैक पर घुसपैठ या अतिक्रमण के चलते 1400 लोगों को अपनी जिंदगी गंवाना पड़ी. इसका मतलब यह हुआ कि रेलवे ट्रैक पर हादसों की वजह से मुंबई में हर महीने तकरीबन 100 से ज्यादा लोग मारे गए. या यूं कहें कि, घनी आबादी वाले शहरी इलाकों में एक महीने में जितने लोग रेल हादसों में मारे जाते हैं, उनकी संख्या पंजाब के हालिया एक रेल हादसे की अपेक्षा ज्यादा हो सकती है. इससे स्पष्ट है कि, रेलवे ट्रैक पर घुसपैठ या अतिक्रमण के चलते रेल हादसों का खतरा ग्रामीण इलाकों से ज्यादा शहरी इलाकों में होता है.

अफसोस की बात यह है कि, रेलवे ने अबतक केवल मानव रहित क्रॉसिंग पर ही अपना ध्यान केंद्रित किया है. रेलवे की तरफ से मानव रहित क्रॉसिंग्स को सुरक्षित बनाने के उपाय तो किए जा रहे हैं, लेकिन रेलवे ट्रैक पर अतिक्रमण और घुसपैठ जैसे मुद्दों पर खास तवज्जो नहीं दी जा रही है. दरअसल मानव रहित क्रॉसिंग की वजह से हादसा होने पर जिम्मेदारी रेलवे के सिर आ जाती है. लिहाजा अपना गिरेबां बचाने के लिए रेलवे फिलहाल मानव रहित क्रॉसिंग पर ही फोकस कर रहा है.

अमृतसर में दशहरे के दिन रावण दहन देख रहे लोगों की भीड़ को ट्रेन ने कुचल दिया. इस हादसे में 60 लोगों की मौत हो गई (फोटो: पीटीआई)

रेलवे के सामने सेमी हाई स्पीड कॉरिडोर का सपना साकार करने की चुनौती है 

हालांकि रेलवे के सामने सेमी हाई स्पीड कॉरिडोर का सपना साकार करने की चुनौती भी है. जाहिर है कि, सेमी हाई स्पीड रेलवे कॉरिडोर में ट्रेनों के परिचालन में गति के साथ-साथ सुरक्षा भी सबसे अहम चिंता का विषय है. लिहाजा भारतीय रेलवे ने 2016 से गतिमान एक्सप्रेस के पूरे रूट पर बाड़ लगाने का काम शुरू कर दिया है. इसी तरह, दिसंबर 2017 में, मुंबई से दिल्ली और दिल्ली से कोलकाता तक के पूरे रेल रूट पर भी बाड़ लगाने का फैसला लिया गया. ऐसा ट्रेनों की गति (स्पीड) बढ़ाने के उद्देश्य से किया गया है. लेकिन किसी ने भी इस बात पर गौर नहीं किया कि, रेलवे ट्रैक के दोनों ओर बाड़ लगाने से ट्रेनों की गति के साथ सुरक्षा भी बढ़ेगी. बाड़ लग जाने से रेलवे ट्रैक पर इंसानों और जानवरों की घुसपैठ थम जाएगी. जिससे अनगिनत जिंदगियों को मौत के मुंह में जाने से बचाया जा सकेगा.

पंजाब के अमृतसर में जो कुछ भी हुआ है, वह एक प्रकार से भारतीय रेलवे के लचर रवैए और कमजोर दृष्टिकोण का नतीजा है. रेलवे ने मानव रहित क्रॉसिंग्स पर गेटमैन्स की तैनाती को लेकर तो खासी तत्परता दिखाई है, लेकिन रेलवे ट्रैक पर बाड़ लगाने को लेकर उतनी गंभीरता नहीं दिखाई. अगर रेलवे चाहता तो गेटमैन्स की तैनाती की तरह ही देशभर के सभी रेलवे ट्रैक पर बाड़ लगाने का काम अबतक पूरा हो चुका होता.

आप सोच रहे होंगे कि, देशभर के सभी रेलवे ट्रैक के दोनों ओर बाड़ लगाना क्या वाकई इतना आसान काम है. आप यह भी सोच रहे होंगे कि, इतने बड़े पैमाने पर बाड़ लगाने के लिए बेहिसाब धनराशि की जरूरत होगी. तो जान लीजिए जनाब कि यह कोई ज्यादा मुश्किल या बेहद खर्चीला काम नहीं है. साल 2016 में गतिमान एक्सप्रेस के 195 किलोमीटर लंबे रूट पर बाड़ लगाने की अनुमानित लागत 70 करोड़ रुपए आंकी गई थी. यानी बाड़ लगाने का खर्चा प्रति किलोमीटर 36 लाख रुपए आ रहा था.

भारतीय रेलवे के कुल मार्ग (रूट) की लंबाई लगभग 64,000 किलोमीटर है. जिसका करीब 20 फीसदी हिस्सा घनी आबादी वाले शहरी और अर्ध शहरी इलाकों में आता है. यानी तकरीबन 12,800 किलोमीटर लंबा रेलवे ट्रैक घनी आबादी वाले क्षेत्रों से होकर गुजरता है. इस 12,800 किलोमीटर लंबे रेलवे ट्रैक के दोनों ओर बाड़ लगाने का अनुमानित खर्चा 5000 करोड़ रुपए होगा. भारतीय रेलवे के 1.35 लाख करोड़ रुपए के सालाना बजट के सामने 5000 करोड़ रुपए कोई ज्यादा बड़ी रकम नहीं है. बाड़ लगाने के लिए आवश्यक यह राशि रेलवे के सालाना बजट का महज 4 फीसदी हिस्सा ही है. लिहाजा भारतीय रेलवे को ट्रैक पर बाड़ लगाने के लिए यह रकम प्रतिबद्धता के साथ आवंटित कर देना चाहिए. इससे न सिर्फ सुरक्षा बढ़ेगी बल्कि रेलवे के मिशन रफ्तार को नई बुलंदी भी मिलेगी.

मुंबई में 2016 में उपनगरीय रेलवे नेटवर्क में रेलवे ट्रैक पर घुसपैठ या अतिक्रमण के चलते 1400 लोगों को अपनी जिंदगी गंवाना पड़ी

रेलवे ट्रैक पर बाड़ लग जाने से अड़चनें खुद-ब-खुद खत्म हो जाएंगी 

घनी आबादी वाले इलाकों में रेलवे ट्रैक पर बाड़ लग जाने से अड़चनें खुद-ब-खुद खत्म हो जाएंगी. तब न तो अतिक्रमण की समस्या होगी और न ही रेलवे ट्रैक पर घुसपैठ की. बाड़ लगने से ट्रेनों को स्पीड घटाने के लिए मजबूर करने वाले कॉशन ऑर्डर जारी होना भी बंद हो जाएंगे. यानी रेलवे ट्रैक पर ट्रेनों की आवाजाही धारा प्रवाह और बेरोकटोक हो जाएगी. जाहिर है इससे ट्रेनों की गति पर असर पड़ेगा. अनुमान है कि, बाड़ लगने के बाद भारतीय रेलवे के 130 किलोमीटर प्रति घंटे के मौजूदा स्पीड बैंचमार्क में इजाफा होगा. यानी तब भारत में एक्सप्रेस ट्रेनें 160 किलोमीटर प्रति घंटे की स्पीड तक दौड़ सकेंगी.

हालांकि घनी आबादी वाले इलाकों में रेलवे ट्रैक पर बाड़ लगाने में रेलवे को कुछ दिक्कतें भी आएंगी. ज्यादातर ट्रैक्स के आसपास से अतिक्रमण हटाने के लिए रेलवे को मशक्कत करना होगी. कुछ कानूनी पचड़ों से भी पार पाना होगा. लेकिन मजबूत इच्छाशक्ति और दृढ़ इरादा कर लेने पर यह काम ज्यादा मुश्किल नहीं होगा. मौजूदा हालात की गंभीरता को देखते हुए रेलवे को प्रशासनिक सहयोग प्राप्त करने में भी समस्या नहीं आएगी.

इन उपायों से लोगों की जिंदगी के साथ सार्वजनिक संपत्तियों की सुरक्षा के लिए भी सख्त आवश्यकता है. क्या होगा, अगर रेलवे लाइन से सटी किसी निजी जमीन का इस्तेमाल अवैध पटाखा फैक्ट्री चलाने के लिए किया जा रहा हो, और वहां अचानक विस्फोट हो जाए. लिहाजा रेलवे ट्रैक के नजदीक केवल उन्हीं गतिविधियों और निर्माण कार्यों की इजाजत होना चाहिए जिन्हें कानूनी मान्यता प्राप्त हो. रेलवे ट्रैक के नजदीक स्थित संपत्तियों के असली मालिकों की पहचान भी प्रमाणिक होना चाहिए. यही नियम नेशनल हाईवेज (राष्ट्रीय राजमार्गों) से सटे आबादी वाले इलाकों में भी लागू होना चाहिए.

अनधिकृत झुग्गी-झोपड़ियों से घिरे किसी भी एयरपोर्ट पर हमेशा खतरा मंडराता रहता है 

अनधिकृत झुग्गी-झोपड़ियों से घिरे किसी हवाईअड्डे (एयरपोर्ट) पर भी खतरा हमेशा मंडराता रहता है. भारत में इसकी सबसे बड़ी नजीर मुंबई एयरपोर्ट है. कल्पना कीजिए, अगर झुग्गी-झोपड़ियों में भीषण आग लग जाए और उनमें रहने वाले हजारों लोग अपनी जान बचाने के लिए एयरपोर्ट के रनवे की तरफ दौड़ पड़ें. तब क्या होगा? उन हालात में अनगिनत लोग लैंड और टेक ऑफ करते विमानों की चपेट में आकर कुचल सकते हैं. या फिर रनवे पर भीड़ जमा होने की वजह से दर्जनों विमानों को दूसरी जगहों पर डायवर्ट करना पड़ सकता है. जिससे एयरलाइंन कंपनियों को भारी नुकसान उठाना पड़ेगा.

भारत में हर वर्ष हजारों लोगों की ट्रेन दुर्घटनाओं में मौत हो जाती है (फोटो: पीटीआई)

सार्वजनिक यातायात के साधनों और सार्वजनिक परिसंपत्तियों को सुरक्षित बनाकर हम न सिर्फ अनगिनत लोगों को बेमौत मरने से बचा सकते हैं बल्कि यातायात को सुगम और प्रभावी भी बना सकते हैं. इसके लिए सार्वजनिक परिसंपत्तियों के आसपास की निजी संपत्तियों की वैधता और उनके प्रमाणिक स्वामित्व की जानकारी होना बेहद जरूरी है. ऐसा होने से उन निजी संपत्तियों पर गैरकानूनी गतिविधियां होने से रोकी जा सकती हैं. लिहाजा गतिमान एक्सप्रेस हो या कोई लोकल ट्रेन, रोडवेज बस हो या यात्री विमान हमें अपनी सार्वजनिक परिवहन संपत्तियों के लिए सुरक्षा घेरे (बाड़) की सख्त जरूरत है.