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आलोक वर्मा के खिलाफ केस दर्ज कर सकती है सीबीआई

हालांकि, सीबीआई पर लगातार 1990 के बाद से ही सत्ताधारी दल के लिए काम करने का आरोप लगता रहा है.

Ravishankar Singh

सीबीआई डायरेक्टर आलोक वर्मा को 36 घंटे भी कार्यभार संभाले नहीं हुए थे कि सेलेक्शन कमेटी ने उन्हें डायरेक्टर पद से हटा दिया. मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद ही इसके कयास लगाए जा रहे थे कि आलोक वर्मा की छुट्टी होने जा रही है. लेकिन 36 घंटे के अंदर सेलेक्शन कमेटी के जरिए हटाए जाने के लिए आलोक वर्मा खुद ही जिम्मेदार बताए जा रहे हैं. सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा ने 77 दिन बाद अपना कार्यभार बुधवार को संभाला था. केंद्र सरकार ने 23 अक्टूबर 2018 को देर रात आदेश जारी कर वर्मा के अधिकार वापस लेकर उन्हें जबरन छुट्टी पर भेज दिया था. इस कदम की व्यापक स्तर पर आलोचना हुई थी.

पिछले 36 घंटे के अंदर सीबीआई में काफी हलचल मच गई थी. सुप्रीम कोर्ट का फैसले आने के बाद आलोक वर्मा के करीबी अधिकारियों ने सीबीआई मुख्यालय आना शुरू कर दिया था. आईबी ने सरकार को रिपोर्ट दी कि आलोक वर्मा बदले की भावना से काम करना शुरू कर दिया है. मंगलवार को जानबूझ कर सीबीआई दफ्तर नहीं जाना वर्मा की सोची समझी चाल थी. राकेश अस्थाना केस की जांच करने वाले अधिकारी का अंडमान से मंगलवार शाम को दिल्ली बुला लिया गया. अगले दिन वर्मा ने चार्ज संभालते ही बस्सी को दोबारा से सीबीआई में वापसी करा लिया.


2-1 के फैसले से विदाई 

दरअसल, बुधवार और गुरुवार शाम तक आलोक वर्मा के जरिए सीबीआई के अधिकारियों के तबादले से संबंधित लिए गए फैसले से हलचल मच गई थी. इसके बाद ही कयास लगाए जा रहे थे वर्मा की विदाई तय है. आखिरकार सेलेक्शन कमेटी ने 2-1 के फैसले से वर्मा की विदाई तय कर दी. सीवीसी रिपोर्ट भी वर्मा के खिलाफ थी. कमेटी ने भ्रष्टाचार मामलों में दोषी पाते हुए आलोक वर्मा को हटाने का फैसला किया. आलोक वर्मा को अब फायर डिपार्टमेंट के डीजी का पद दिया है.

वर्मा की विदाई के बाद नागेश्वर राव फिर से अंतरिम डायरेक्टर का पद संभाल सकते हैं. आलोक वर्मा के तबादले के साथ ही सीबीआई के नए निदेशक की नियुक्ति की प्रक्रिया भी शुरू हो गई है. सेलेक्शन कमेटी की बैठक में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस शामिल नहीं हुए थे. उनकी जगह सुप्रीम कोर्ट के जज एके सीकरी बैठक में गए थे. बताया जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रंजन गगोई ने सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा के पिटिशन पर फैसला दिया था, इसलिए उन्होंने सलेक्ट कमेटी के फैसले में भाग लेने से मना कर दिया था.

सीबीआई के नए निदेशक की बहाली में अब चीफ जस्टिस रंजन गगोई की भूमिका महत्वपूर्ण होने जा रही है, क्योंकि वो निदेशक बहाली को लेकर होने वाले पैनल की बैठक में भाग लेंगे. गौरतलब है कि सेलेक्शन कमेटी में तीन सदस्य है. जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस और विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे शामिल हैं. सुप्रीम कोर्ट ने दो दिन पहले ही वर्मा को हटाए जाने के सरकारी फैसले को गैरकानूनी बताया था. साथ ही वर्मा की बहाली करते हुए कुछ शर्तें लगा दी थी. वर्मा कोई नीतिगत फैसला नहीं ले सकते थे. साथ ही सेलेक्शन कमेटी की बैठक में वर्मा से संबंधित फैसले लेने को कहा गया था.

वर्मा पर लगे आरोपों पर सेलेक्शन कमेटी को फैसला लेने को कहा गया था, जिसके सदस्य खुद सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रंजन गगोई हैं. उधर वर्मा ने बहाली के साथ ही डायरेक्टर नागेश्वर राव के जरिए लिए गए कुछ फैसले को बदल दिया. नागेश्वर राव के जरिए बदले गए अधिकारियों को उन्हें पुराने स्थानों पर लाने का फैसला लिया. नागेश्वर राव ने आते ही वर्मा के खास अधिकारियों को बदल दिए थे. इसमें सीबीआई के एक प्रमुख अधिकारी आईपीएस अरुण कुमार शर्मा भी थे. जो गुजरात कैडर के अधिकारी हैं.

गुटबाजी

सीबीआई निदेशक को लेकर पिछले कुछ समय से चले विवाद ने देश के सबसे महत्वपूर्ण जांच संस्था की कार्यशैली पर सवाल खड़े कर दिए थे. जिस तरह से सीबीआई के अधिकारियों की गुटबाजी खुलकर सामने आई, उससे देश की जनता हैरान थी. हालात यहां तक बन गए कि सीबीआई के अधिकारी ही एक दूसरे की गिरफ्तार करने की तैयारी करने में लग गए.

आलोक वर्मा पर आरोप लगाया गया था कि वे सीबीआई के दूसरे बड़े अधिकारी राकेश अस्थाना की गिरफ्तारी की तैयारी कर रहे थे. सीबीआई पहली बार राजनीतिक दलों की निष्ठा के आधार पर बंटती नजर आ रही थी. राकेश अस्थाना का आरोप था कि सीबीआई के निदेशक आलोक वर्मा विपक्षी दलों के नेताओं को भ्रष्टाचार के मामलों में मदद कर रहे थे. अस्थाना का आरोप था कि आलोक वर्मा ने लालू यादव के रेल मंत्रालय में हुए घोटाले की जांच में मदद कर रहे थे. वहीं सीबीआई आलोक वर्मा के खिलाफ आपराधिक षड्यंत्र रचने का मामला दर्ज कर सकती है. उन पर मोईन कुरैशी केस को प्रभावित करने का भी आरोप है.

हालांकि, सीबीआई की इस लड़ाई का असर दूरगामी होने जा रहा है. सीबीआई के गठन और इसके नियम को लेकर आज भी विवाद है. सीबीआई के तमाम बड़े मुकदमे सालों से कोर्टों में लंबित हैं. सीबीआई के गठन और इसके नियमन को लेकर भी विवाद होता रहा है. अभी भी सुप्रीम कोर्ट में सीबीआई के अधिकारियों पर भ्रष्टाचार के कई मामले लंबित है. इस बीच अधिकारियों के आपसी विवाद ने सीबीआई को और विवादित कर दिया है.

हालांकि, सीबीआई पर लगातार 1990 के बाद से ही सत्ताधारी दल के लिए काम करने का आरोप लगता रहा है. सीबीआई के दुरुपयोग को लेकर कांग्रेस पर भी आरोप लगते रहे हैं. वहीं सीबीआई के दुरुपयोग का आरोप बीजेपी पर भी लगते रहे हैं. सीबीआई के हालात को देखते हुए सीबीआई को सुप्रीम कोर्ट में भी फजीहत झेलनी पड़ी. इसे सरकारी तोता कहा गया है.

यही नहीं, सीबीआई देश की पहली एसी संस्था है जिसके दो पूर्व निदेशकों पर खुद सीबीआई ने ही मुकदमा दर्ज कर रखा है. सीबीआई के दो पूर्व निदेशक एपी सिंह और रंजीत सिन्हा पर भ्रष्टाचार के आरोप में फंसे लोगों की मदद के आरोप लगे और उन दोनों पर एफआईआर दर्ज किया गया. हालांकि, सीबीआई ने कई महत्वपूर्ण कार्य भी अपने गठन के बाद किए. इसमें महत्वपूर्ण बिहार का चारा घोटाला था, जिसमें लालू यादव को सजा हुई. इसके ईमानदार अधिकारी के तौर पर उपेन विश्वास का नाम आया था जिन्होंने चारा घोटाले की जांच की थी और उसे तार्किक रूप से अंत भी किया.