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एयरसेल-मैक्सिस डील: मारन बंधुओं के बरी होने से उपजे गंभीर सवाल

सीबीआई की विशेष अदालत के जज अो.पी. सैनी ने कहा है कि जो साक्ष्य पेश किए गए हैं, वे विरोधाभासी है.

Suresh Bafna

छह साल तक एयरसेल-मैक्सिस सौदे में 742.58 करोड़ रुपए के कथित भ्रष्टाचार के मामले में मुख्‍य आरोपी बनाए जाने के बाद सीबीआई की विशेष अदालत ने आरोप निर्धारित करने के स्तर पर ही पूर्व केंद्रीय संचार मंत्री दयानिधि मारन व अन्य सभी को आरोपमुक्त घोषित कर दिया.

सीबीआई की विशेष अदालत के जज अो.पी. सैनी के इस निर्णय ने सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय को भी न्याय के कटघरे में खड़ा कर दिया है. यह सुप्रीम कोर्ट के लिए भी आत्म चिंतन का अवसर प्रदान करता है.


दयानिधि मारन पर आरोप था कि उन्होंने केंद्रीय संचार मंत्री पद का दुरुपयोग करते हुए अपने भाई कलानिधि मारन की मीडिया व टेलीविजन कंपनी को 742.58 करोड़ रुपए का लाभ पहुंचाया है. उन पर आरोप था कि एयरसेल के प्रमोटर सी. शिवशंकरन पर अनुचित दबाव बनाकर उनको अपने सभी शेयर मलेशियन कंपनी मैक्सिस ग्रुप को बेचने के लिए विवश किया था. इसके बदले में मैक्सिस ग्रुप ने दयानिधि मारन के भाई की मीडिया कंपनी में 742.58 करोड़ रुपए का निवेश किया था.

2011 में सी. शिवशंकरन ने सीबीआई से शिकायत की थी कि दयानिधि मारन ने उन पर दबाव बनाकर एयरसेल कंपनी के शेयर मैक्सिस कंपनी को बेचने के लिए विवश किया. इस शिकायत के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को इस मामले की जांच के आदेश दिए. छह साल तक सीबीआई व प्रवर्तन निदेशालय द्वारा जांच किए जाने के बाद भी यह मामला आरोप तय होने के स्तर पर ही अदालत में खारिज हो गया.'

अहम है सीबीआई जज की टिप्पणी

सीबीआई की विशेष अदालत के जज अो.पी. सैनी ने इस मामले को खारिज करते हुए जो टिप्पणी की है, वह काफी गंभीर है.

सीबीआई ने जो साक्ष्य पेश किए हैं, वे विरोधाभासी हैं. किसी मामले में सरकार के स्तर पर निर्णय लेने में हुए विलंब को आरोपी के खिलाफ साक्ष्य नहीं माना जा सकता है. यह आरोप पूरी तरह आधारहीन है कि संचार मंत्री दयानिधि मारन ने शिवशंकरन पर अपने शेयर मैक्सिस को बेचने के लिए दबाव डाला था.

जज सैनी ने कहा कि आरोपियों के खिलाफ कानूनी तौर पर स्वीकार्य साक्ष्य पेश नहीं किए गए हैं. शिवशंकरन का बयान पूरी तरह अटकलों, उपदेशों व अनुमानों पर आधारित है, जो तथ्यों के विपरीत भी है. शिवशंकरन की कंपनी को लाइसेंस देने में विलंब का सवाल विदेशी निवेश नीति में संभावित बदलावों से जुड़ा था, जिसमें दयानिधि मारन की कोई भूमिका नहीं थी.

जज सैनी की इस टिप्पणी को बेहद गंभीरता के साथ लेने की जरूरत है कि अटकलों व अनुमानों के आधार पर किसी के खिलाफ जांच शुरू नहीं की जा सकती है. सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर सीबीआई द्वारा शुरू की गई इस जांच की वजह से दयानिधि मारन को केंद्रीय मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था. जज सैनी की टिप्पणियां सुप्रीम कोर्ट के लिए भी नजीर बननी चाहिए.

सुप्रीम कोर्ट किसी की मिल्कियत नहीं है

पिछले कुछ सालों के दौरान कुछ लोगों द्वारा सुप्रीम कोर्ट को राजनीतिक अखाड़े में तब्दील करने की कोशिश हो रही है. कम्प्यूटर की एक्सेल शीट के आधार पर सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया जा रहा है कि वह सीबीआई को जांच के लिए निर्देश दें.

हाल ही में सहारा व बिड़ला के दफ्तरों से आयकर विभाग को मिली कम्प्यूटर एक्सेल शीट के आधार पर वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया था कि वह सीबीआई को जांच कराने का निर्देश दें. इस याचिका की सुनवाई के दौरान पूर्व मुख्‍य न्यायाधीश टी.एस. ठाकुर ने टिप्पणी की थी कि किसी कम्प्यूटर एक्सेल शीट के आधार पर जांच का निर्देश नहीं दिया जा सकता है. उनका कहना था कि जैन हवाला कांड में भी सुप्रीम कोर्ट ने इस तरह की जांच का निर्देश सीबीआई को दिया था, बाद में इस मामले में सभी आरोपी निर्दोष सिद्ध हुए.

जैन हवाला कांड में सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि किसी डायरी में दी गई जानकारी को साक्ष्य के रूप में पेश नहीं किया जा सकता है. इसी तरह अब जज सैनी ने कहा कि किसी व्यक्ति की अटकलों व अनुमानों को आधार बनाकर किसी के खिलाफ जांच शुरू नहीं की जा सकती है. जांच के लिए पर्याप्त प्राथमिक सबूत होना जरुरी है.

जब सुप्रीम कोर्ट की तरफ से सीबीआई या अन्य किसी एजेंसी को जांच का निर्देश दिया जाता है तो जांच एजेंसियों के लिए इसका अर्थ यह होता है कि प्राथमिक तौर पर मामला मजबूत है. सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्देशित जांच में यदि आरोपी के खिलाफ मामला नहीं बनता है, तब भी जांच एजेंसियां ऐसा निष्कर्ष निकालने से परहेज करती हैं.

सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्देशित जांच में यदि मामला आरोप तय करने के स्तर पर ही खारिज हो जाए तो यह बात स्वयं सुप्रीम कोर्ट के लिए आत्म चिंतन का विषय होनी चाहिए.

देखा गया है कि जो लोग राजनीति में विफल होते हैं, वे सुप्रीम कोर्ट का इस्तेमाल करके अपनी राजनीतिक प्रासंगिकता बनाए रखने की कोशिश करते हैं. इस सूची में भाजपा सांसद डा. सुब्रमण्यन स्वामी पहले नंबर पर है.

सीबीआई की विश्वसनीयता पर उठते रहे हैं सवाल

सीबीआई की विश्वनीयता पर लगभग सभी राजनीतिक दलों ने सवालिया निशान लगाया है. जब कांग्रेस पार्टी की सरकार होती है तो भाजपा व अन्य विपक्षी दल सीबीआई के राजनीतिक इस्तेमाल का आरोप लगाते हैं और जब भाजपा सत्ता में होती है तो कांग्रेस व अन्य विपक्षी दल यही आरोप दोहराते हैं. इसमें कोई संदेह नहीं है कि पिछले कुछ सालों के दौरान सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय की साख को गंभीर नुकसान पहुंचा है.

सीबीआई की स्थिति यह हो गई है कि सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कोयला घोटाले के संदर्भ में इसके पूर्व निदेशक रंजीत सिन्हा के कामकाज की जांच करने के निर्देश दिए हैं. वे अपने सरकारी निवास पर कोयला घोटाले में फंसे कई लोगों से लंबी मुलाकातें करते रहे हैं. सीबीआई की गिरती साख का ही नतीजा था कि सीवीसी के पद की स्थापना करनी पड़ी.

सुप्रीम कोर्ट के एक निर्देश की वजह से दयानिधि मारन व अन्य आरोपियों को छह साल तक जिन परेशानियों व नुकसान का सामना करना पड़ा, उसकी भरपाई किसी भी रूप में अब संभव नहीं है. लेकिन इस मामले से यह सबक तो सीखने की जरूरत है कि भविष्य में किसी और व्यक्ति को इस तरह मुसीबतों का सामना न करना पड़े.