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राम मंदिर के समर्थन में उतरे नदवी को AIMPLB ने कमेटी से निकाला

नदवी ने शनिवार को सलाह दी थी कि बाबरी मस्जिद को अयोध्या से कहीं और शिफ्ट कर देना चाहिए

FP Staff

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) ने अपने कार्यकारी सदस्य सलमान नदवी को बोर्ड से निकाल दिया है. नदवी ने शनिवार को सलाह दी थी कि बाबरी मस्जिद को अयोध्या से कहीं और शिफ्ट कर देना चाहिए.

नदवी पर बोर्ड के स्टैंड के खिलाफ जाने का आरोप है. बोर्ड यह मानता रहा है कि बाबरी मस्जिद अयोध्या में ही बननी चाहिए.


मुस्लिम बोर्ड के सदस्य कासिम इलियास ने कहा, कमेटी का मानना है कि एआईएमपीएलबी अपने उस पुराने स्टैंड पर कायम है कि बाबरी मस्जिद को न तो गिफ्ट किया जा सकता है, न बेचा जाता है और न ही शिफ्ट किया जा सकता है. चूंकि सलमान नदवी ने बोर्ड के स्टैंड से हटकर बयान दिया है, इसलिए उन्हें हटा दिया गया है.

क्या कहा था नदवी ने?

इससे पहले मीडिया से बात करते हुए नदवी ने सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील जिलानी को हटाने की चेतावनी दी थी. इस पर जिलानी ने कहा था, वे जो कुछ चाहते हैं कर सकते हैं. हमलोग यह केस 1986 से लड़ रहे हैं. तब नदवी इस केस (बाबरी मस्जिद का मुकदमा) में शामिल भी नहीं थे.

शुक्रवार को नदवी ने धर्मगुरु श्री श्री रविशंकर से मुलाकात कर राम मंदिर निर्माण के लिए हरसंभव मदद देने की बात कही थी. नदवी ने कहा था कि उनकी प्राथमिकता लोगों के दिलों को जोड़ने की है.

नदवी ने अदालत से बाहर मंदिर-मस्जिद विवाद को सुलझाने की सलाह दी थी. नदवी ने कहा था, अदालत लोगों के दिल नहीं जोड़ सकती क्योंकि उसके फैसले में एक जीतेगा दो दूसरा हारेगा.

मस्जिद पर बोर्ड का बयान

हैदराबाद में मुस्लिम बोर्ड की बैठक रविवार को तीसरे दिन भी जारी रही. नदवी के बारे में फैसला इसी बैठक में ली गई.

बोर्ड ने अपने एक बयान में स्पष्ट किया कि बाबरी मस्जिद इस्लाम में विश्वास का प्रतीक है, इसलिए कोई भी मुस्लिम इसे छोड़ नहीं सकता. न तो इसे कहीं शिफ्ट किया जा सकता है. बाबरी मस्जिद एक मस्जिद है और मस्जिद ही रहेगी. इसे तोड़ देने से इसकी पहचान नहीं मिट सकती.

क्या है बाबरी मस्जिद मामला?

राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद हिंदुओं और मुस्लिमों के बीच वर्षों से चली आ रही है जो जमीन के पट्टे को लेकर है. हिंदुओं का मानना है कि अयोध्या में ही श्रीराम का जन्म हुआ था, इसलिए उस स्थान पर राम मंदिर ही बनना चाहिए.

बाबरी मस्जिद का निर्माण 1528-29 ईस्वी में हुआ था जिसे 6 दिसंबर 1992 को हिंदू कारसेवकों ने ढहा दी थी. इसके बाद देश के कई हिस्सों में दंगे भड़क गए थे. अभी हाल में सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की बेंच ने इस मामले पर सुनवाई की तारीख 14 मार्च तय की है क्योंकि इससे जुड़े कुछ कागजात और अनुवादों की कॉपी कोर्ट के सामने पेश की जानी है.