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धारा 377 खत्म होने के बाद LGBTQ के लिए डेटिंग का रास्ता हुआ आसान!

छह सितंबर को सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद उनकी दुनिया बदलने लगी. शीर्ष न्यायालय ने ब्रिटिश राज से चले आ रहे कानून को खत्म कर दिया और सहमति से बने समलैंगिक संबंध को अपराध के दायरे से बाहर कर दिया

Bhasha

कोयल एम को जब अपने समलैंगिक होने के रूझान का पता चला तो उन्हें अपनी मां का सामना करने तक की हिम्मत नहीं थी. धीरे-धीरे झिझक मिटने के बाद उनकी मां भी उन्हें समझने लगीं और उन्हें ढाढस बंधाया.

मां का सामना करते हुए कोयल की झिझक तो समय के साथ खत्म हो गई, लेकिन दुनिया का सामना करना इतना आसान नहीं था. सार्वजनिक जगह पर एक महिला के साथ डेटिंग के लिए जाने पर कोयल को लोगों की तिरछी नजर और फुसफुसाहट भरे स्वरों से दोचार होना पड़ता.


छह सितंबर को सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद उनकी दुनिया बदलने लगी. शीर्ष न्यायालय ने ब्रिटिश राज से चले आ रहे कानून को खत्म कर दिया और सहमति से बने समलैंगिक संबंध को अपराध के दायरे से बाहर कर दिया.

समाज की सोच बदलने में तो वक्त लगेगा लेकिन इस फैसले के बाद उन्हें हर वक्त कानून का डर नहीं लगा रहेगा. कोयल ने कहा, ‘कानून अब मेरी ढाल बन गया है.’

वह सोशल नेटवर्किंग साइटों की तुलना में रूबरू होकर नए लोगों से मिलना पसंद करती हैं लेकिन यह भी स्वीकार करती हैं कि ऑनलाइन डेटिंग का रास्ता ‘सहज और सरल’ है.

उन्होंने कहा, ‘सोशल नेटवर्किंग साइट के जरिए तो किसी से दिल से जुड़ने की बहुत उम्मीद नहीं करती हूं लेकिन ऑनलाइन डेटिंग की दुनिया ऐसी है जो सहज और आसान है.’

क्वीर-कवि-एक्टिविस्ट दिव्या दुरेजा ने कहा एलजीबीटीक्यू समुदाय के लिए लोकप्रिय डेटिंग एप्लिकेशन में टिंडर और ओकेक्यूपिड जैसा मंच सहज और दोस्ताना माहौल प्रदान करता है.

दुरेजा इस इस तरह की सोच पर भी सवाल उठाती हैं कि टिंडर एक हेट्रोसेक्सुअल (विपरीत लिंगी रूझान) डेटिंग एप है. उनका कहना है कि अपनी पसंद के मुताबिक इसका इस्तेमाल किया जा सकता है.

अपनी पसंदीदा शख्स की तलाश के लिए वह 10 एप्लिकेशन और वेबसाइटों का इस्तेमाल करती हैं और अपनी जैसी अन्य क्वीर महिलाओं के लिए वर्षों से टिंडर पर हैं.

बहरहाल, एलजीबीटी समुदाय के लिए हेट्रोसेक्सुअल लोगों की तरह ही ऑनलाइन डेटिंग के उपयोग पर दूसरे जोखिम भी हैं.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के पहले इस समुदाय के लोग ‘फंसाए जाने और पैसे वसूलने’ वाले लोगों से सतर्क रहते थे और उन्हें जेल भेजे जाने का भी डर रहता था.

एलजीबीटीक्यू एक्टिविस्ट हरीश अय्यर का कहना है कि अब सबसे बड़ा डर खुलासा होने का है. अय्यर ने कहा, ‘हेट्रोसेक्सुअल जोड़े की तरह ही उन्हें भी नाम का खुलासा होने का डर रहता है क्योंकि उन्हें डर होता है कि इससे परिवार वाले, अन्य लोग भी उनकी असलियत जान जाएंगे.’