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पहले कर्फ्यू, इंटरनेट बैन और अब नोटबंदी ने किया कश्मीरियों का जीना मुहाल 

कई मुसीबतों के बाद अब नोटबंदी ने घाटी में जिंदगी मुश्किल में डाल दिया है.

Aijaz Nazir

अनंतनाग में रहने वाले गुलाम अली पैसे को बदलवाने के लिए इधर-उधर भागदौड़ कर रहे हैं, जबकि उनके इलाके के बैंकों में कैश नहीं है.


पास के गांंव में वे एक बैंक के बाहर बहुत ही बैचैनी से इंतजार कर रहे हैं. उन्होंने कहा, ‘ मुझे अपनी बेटी के लिए टिकट बुक करवाना है जो कश्मीर के बाहर पढ़ रही है.’

गुलाम उसकी टिकटें घर से ही बुक करवाते हैं, जब घाटी में इंटरनेट की सेवा चालू थी. इस कैश की कमी के दिक्कत के बीच, गुलाम अपनी बेटी को बाहर भी भेजना नहीं चाहते क्योंकि उसके खर्चे के लिए उनके पास अधिक कैश नहीं है.

उनके जैसे लोग पहले इंटरनेट बैन से प्रभावित हुए और अब नोटबंदी के चलते हुई दिक्कत से.

पहले कर्फ्यू और अब नोटबंदी से परेशान, घाटी के व्यापारी 

केंद्र सरकार के नोटबंदी के फैसले ने कश्मीर में और भी अफरातफरी मचा दी है. इससे लोगों के संकट और बढ़ गये.

घाटी के लगभग लोग किसी न किसी वजह या लंबे आंदोलन से प्रभावित हुए हैं, खासकर परिवहन, व्यापार से जुड़े और मजदूरी करने वाले लोग.

वे पिछले चार महीने से दैनिक जरूरत की चीजों के अभाव में बहुत ही संकटपूर्ण जीवन जी रहे हैं. अब नोटबंदी ने उनकी परेशानियों में इजाफा कर दिया है.

व्यापार से जुड़े लोग चार महीने के आंदोलन के बाद कुछ पैसे कमाने की सोच रहे थे, वे अब बहुत बेचैन हैं. शहरों और कस्बों के बाजार 9 जुलाई से ही बंद हैं. सार्वजनिक यातायात की गाड़ियां अभी भी चलनी शुरू नहीं हुई हैं.

वे लोग जो सर्दियों में व्यापार के लिए बाहर जाते थे, इस बार नोटबंदी के चलते घाटी से बाहर नहीं जाना चाहते हैं. कई लोगों ने यह फैसला किया है कि वे इस कैश की दिक्कत के खत्म होने का इंतजार करेंगे.

एक व्यापारी मंजूर अहमद ने फर्स्टपोस्ट को बताया, ‘मैंने 11 नवंबर को घाटी से बाहर जाने का फैसला किया था. कैश की कमी से पैदा हुई मुश्किल के कारण, अब इस अफरातफरी के खत्म होने का इंतजार करूंगा.’

इंटरनेट बैन से छात्र दुखी

सरकार ने इस स्थिति से निपटने के लिए लोगों से कैश में लेन-देन की जगह, ऑनलाइन लेन-देन को अपनाने की अपील की है.

हालांकि कश्मीरियों के लिए यह दोहरी मार है. 8 जुलाई को हिजबुल मुजाहिदीन के आतंकी कमांडर बुरहान वानी की हत्या के बाद घाटी में इंटरनेट की सेवाएं बंद कर दी गई थीं. यह अभी चालू है. इस वजह से कश्मीर घाटी के लोग ऑनलाइन लेन-देन नहीं कर सकते.

सिर्फ व्यापारी ही नहीं,  परीक्षा की तैयारी कर रहे छात्र भी इंटरनेट बैन की वजह से बहुत दुखी हैं.

अजहक इब्राहिम कहते हैं, ‘मैं अपनी परीक्षा की तैयारी के लिए पूरी तरह इंटरनेट पर निर्भर था, लेकिन इंटरनेट बैन के कारण, मुझे यह डर है कि कहीं मैं परीक्षा में फेल न हो जाऊं.’

केवल इब्राहिम ही नहीं, उनकी तरह कई और छात्र भी इंटरनेट बैन के कारण इसी तरह की मुश्किलें झेल कर रहे हैं.

घाटी के लोगों को किसी राहत की उम्मीद नहीं 

एजाज अहमद को भी कुछ इसी तरह की दिक्कत हैं. वे दक्षिण कश्मीर के एक ग्रामीण इलाके में रहते हैं और पिछले 4 सालों से कश्मीर प्रशासनिक सेवा (केएएस) की तैयारी कर रहे हैं.

वह पूरी तरह हताश हैं. फर्स्टपोस्ट से बातचीत में वह कहते हैं- ‘उन्हें कम से कम स्टूडेंट्स की परेशानी समझनी चाहिए. मेरा सपना प्रशासनिक सेवा में जाने का है लेकिन जैसे-जैसे दिन गुजरते जा रहे हैं, मेरा सपना खत्म होते जा रहा है. इस नए जमाने में इंटरनेट सूचनाओं का मुख्य जरिया है. इसके बंद हो जाने से कोई इम्तहान की तैयारी कैसे कर सकता है?’

सिर्फ अहमद ही नहीं, बल्कि रोजगार की तलाश कर रहे, अन्य लोग भी इसी तरह की मुश्किलें झेल रहे हैं. पहले वे इंटरनेट बैन की वजह से नौकरी के लिए आवेदन नहीं कर पा रहे थे और अब बैंकों में मची अफरातफरी के कारण.

घाटी के लोगों को फिलहाल किसी राहत की उम्मीद नहीं दिख रही है. वे अब अपने खर्चों में कमी कर रहे हैं, मुश्किल वक्त के लिए हौसला पैदा रहे हैं और आने वाली लंबी और कठिन सर्दियों की तैयारी कर रहे हैं.

(लेखक श्रीनगर में रहते हैं और स्वतंत्र पत्रकार हैं. ये कश्मीर घाटी के सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों पर लिखते रहते हैं.)