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चार्जशीट के बाद क्या एक बार फिर से मुश्किल में फंस सकते हैं अरविंद केजरीवाल?

दिल्ली पुलिस की यह चार्जशीट सीसीटीवी फुटेज, चश्मदीदों के बयान और सबूतों के आधार पर तैयार किए गए हैं. दिल्ली पुलिस की चार्जशीट में अरविंद केजरीवाल के पूर्व सलाहकार वीके जैन के रोल को काफी अहम माना गया. वीके जैन अब सरकारी गवाह बन चुके हैं.

Ravishankar Singh

दिल्ली सरकार के प्रमुख सचिव अंशु प्रकाश के साथ मारपीट मामले में दिल्ली पुलिस ने चार्जशीट दाखिल कर दी है. दिल्ली पुलिस ने इस चार्जशीट में सीएम अरविंद केजरीवाल, डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया समेत 13 विधायकों को आरोपी बनाया है. पटियाला कोर्ट में चार्जशीट दाखिल होने के बाद जहां दिल्ली की राजनीति गर्मा गई है वहीं अरविंद केजरीवाल और उनके साथियों के लिए यह चार्जशीट किसी मुश्किल से कम नहीं है.

दिल्ली पुलिस के मुताबिक यह एक मजबूत चार्जशीट है. यह चार्जशीट सीसीटीवी फुटेज, चश्मदीदों के बयान और सबूतों के आधार पर तैयार की गई है. इस चार्जशीट में अरविंद केजरीवाल के पूर्व सलाहकार वीके जैन की भूमिका को काफी अहम माना गया है. वीके जैन इस केस में अब सरकारी गवाह बन चुके हैं.


दिल्ली के मुख्य सचिव ने आरोप लगाया था कि 19 फरवरी की रात को आप के दो विधायक प्रकाश जारवाल और अमानतुल्ला खान ने उनके साथ मारपीट की. प्रमुख सचिव के आरोप के बाद ही दिल्ली पुलिस ने मामला दर्ज कर जांच शुरू की थी. इस घटना के कुछ दिन बाद ही दिल्ली पुलिस ने आप के दोनों विधायकों को गिरफ्तार कर लिया था. दोनों विधायक फिलहाल जमानत पर बाहर हैं.

बता दें कि सीएम आवास पर हुए इस मारपीट मामले में उस समय नया मोड़ आ गया था जब दिल्ली पुलिस ने सीएम और डिप्टी सीएम को पूछताछ के लिए नोटिस भेजा था. दिल्ली पुलिस ने सीएम और डिप्टी सीएम से लंबी पूछताछ भी की थी. दोनों से पूछताछ के बाद दिल्ली पुलिस ने कहा था कि जांच में सहयोग नहीं किया गया.

अंशु प्रकाश

कानून के जानकारों का मानना है कि दिल्ली पुलिस की इस चार्जीशीट के बाद अरविंद केजरीवाल मुश्किल में पड़ सकते हैं. सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता रविशंकर कुमार फ़र्स्टपोस्ट हिंदी से बात करते हुए कहते हैं, 'क्योंकि प्रमुख सचिव के साथ जो बदसुलूकी और मारपीट हुई है वह सीएम के मौजूदगी में हुई है. अब सीएम को अदालत में साबित करना होगा कि इस घटना के हम पक्षधर नहीं थे, जबकि, प्रमुख सचिव अदालत में पक्ष रखेंगे कि सीएम का साफ इरादा था मुझे जलील और मारने-पीटने का. रात के 12 बजे सीएम आवास पर मीटिंग बुलाई जाती है और एक आईएस अधिकारी रात को भी आता है.

इसके बाद उसके साथ मारपीट होती है तो सीधे इसके लिए सीएम जिम्मेदार होंगे. अगर आधिकारिक तौर पर यह मीटिंग बुलाई गई होती और उस परिस्थिति में सीएम पर मारपीट का आरोप लगता तो फिर एलजी से अनुमति लेनी पड़ती.

सीआरपीसी की धारा 197 के अंतर्गत एलजी के अनुमति के बाद ही दिल्ली पुलिस कार्रवाई करती है. इस धारा के अंर्गत किसी भी सरकारी नौकरशाह,जज, सीएम, मंत्री और सांसद और विधायकों को सुरक्षा मिली हुई है. इस केस में जो दिल्ली पुलिस ने मामला दर्ज किया है वह सीएम के व्यक्तिगत अधिकार क्षेत्र की बात है.

बता दें कि इस घटना के बाद से ही राजनीतिक दलों के साथ-साथ देशभर के आईएएस एसोसिएशनों ने भी अंशु प्रकाश के साथ हुई बदसलूकी को लेकर विरोध करना शुरू कर दिया था. उस समय आईएएस अफसरों के एसोसिएशनों का साफ कहना था कि उन्हें दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल के लिखित माफीनामे से कम कुछ भी मंजूर नहीं है.

प्रमुख सचिव के साथ कथित मारपीट के बाद आईएएस एसोसिएशन लगातार दबाव बना रही थी. आईएएस एसोसिएशन का साफ कहना था कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल घटना पर माफी मांगने के बजाए घटना से ही इंकार कर रहे हैं. घटना के इतने दिन बीत जाने के बाद भी सीएम अरविंद केजरीवाल का इस मामले में माफी नहीं मांगना बताता है कि वह भी इस षड्यंत्र में शामिल थे.

इस घटना के बाद कर्मचारियों के संयुक्त फोरम ने भी दिल्ली के एलजी अनिल बैजल और दिल्ली पुलिस से अपील की थी कि इस कथित हाथापाई मामले में अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया पर भी कार्रवाई की जाए.

दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी लगातार कहती आ रही थी कि मुख्य सचिव द्वारा विधायकों के खिलाफ की गई शिकायत पर दिल्ली पुलिस जरूरत से ज्यादा सक्रिय हो गई है. जिस घटना का कोई सबूत मौजूद नहीं है, उसको जबरदस्ती घटना बताया जा रहा है. एक तरफ विधायकों को गिरफ्तार करके जेल में डाला गया वहीं दूसरी तरफ संवैधानिक पद पर बैठे सीएम के साथ भी अभद्र व्यवहार किया जा रहा है.

आम आदमी पार्टी ने इस घटना के कुछ ही घंटों बाद दिल्ली सचिवालय में दिल्ली सरकार के मंत्री और दूसरे लोगों पर भी हमले हुए. उस हमले के सारे सबूत होने के बावजूद भी दिल्ली पुलिस कोई कार्रवाई नहीं की. यह दिल्ली पुलिस की दो तरह की न्याय प्रणाली की तरफ इशारा करता है.

बता दें कि इस विवाद के बाद ही बीते जून महीने में एलजी हाउस में 9 दिनों तक राजनीतिक ड्रामा चला था. दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल कैबिनेट के तीन मंत्रियों के साथ एलजी हाउस के वेटिंग रूम में धरने पर बैठ गए थे. इनकी मांग थी कि आईएस अफसर दिल्ली में विकास के काम में साथ नहीं दे रहे हैं.

12 जून से शुरू हुए इस राजनीतिक ड्रामे में कई किरदारों ने अलग-अलग अंदाज में और अपने स्वभाव के विपरीत रोल अदा किया था. राजनीतिक दलों में दिल्ली की जनता के नजरों में अपने आपको ईमानदार और दूसरों को बेईमान साबित करने की होड़ थी. कुछ नेता पर्दे के सामने आकर तो कुछ पर्दे के पीछे रह कर यह काम कर रहे थे. वहीं कुछ पार्टियों में अपने ही पार्टी नेताओं को नीचा दिखाने की होड़ चल रही थी.

आम आदमी पार्टी के सपोर्ट में जहां देश के चार राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने मोर्चा खोल रखा था तो वहीं बीजेपी को आप के ही बागी कपिल मिश्रा का सपोर्ट मिल रहा था. इस राजनीतिक ड्रामे के कई पहलू सामने आए. देश के कई ऐसे नेता अरविंद केजरीवाल के सपोर्ट में आए, जो पहले उनसे दूरी बनाने में ही विश्वास रखा करते थे. लेफ्ट पार्टियां हमेशा से ही अरविंद केजरीवाल से दूरी बना कर चला करती थी, लेकिन धरने के दौरान हुए पार्टी के प्रदर्शन में न केवल सीपीएम नेता सीताराम येचुरी शामिल हुए बल्कि प्रदर्शन में लेफ्ट के झंडे भी देखे गए.

कुलमिलाकर सीएम अरविंद केजरीवाल और डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया का नाम चार्जशीट में शामिल करने को लेकर एक बार फिर से दिल्ली की राजनीति गर्मा गई है. विपक्ष जहां सीएम और डिप्टी सीएम की इस्तीफे की मांग कर रही है वहीं सत्ता पक्ष इसे बीजेपी की एक नई चाल करार दे रही है.