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आर्टिकल 35-A को समाप्त करने से कमजोर होगी कश्मीरी स्वायत्तता की भावना

सुप्रीम कोर्ट में संविधान की आर्टिकल 35-ए की संवैधानिक वैधता को चुनौती देनी वाली याचिका पर मंगलवार से बहस शुरू हो गई है और कोर्ट ने मामले को सुनना शुरू कर दिया है.

Ajay Kumar

सुप्रीम कोर्ट में संविधान की आर्टिकल 35-ए की संवैधानिक वैधता को चुनौती देनी वाली याचिका पर मंगलवार से बहस शुरू हो गई है और कोर्ट ने मामले को सुनना शुरू कर दिया है. इस मामले के शुरू होने से पहले ये जानना जरूरी है, कि आर्टिकल 35-ए को लेकर जो सबसे बड़ा सवाल खड़ा हुआ है वो ये है कि, क्या आर्टिकल 35-ए संविधान का हिस्सा है या नहीं, इसको लेकर संदेह बना हुआ है.

आर्टिकल 35-ए में जम्मू कश्मीर के स्थायी निवासियों के अधिकारों की रक्षा के बारे में लिखा गया है. इससे पहले की इस संवैधानिक सवाल का जवाब तलाशने की कोशिश की जाए, ये जरूरी है कि इससे जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातों पर भी गौर फरमाया जाए.


यहां ये जानना महत्वपूर्ण है कि ब्रिटिश इंडिया में सभी जगहों पर एक जैसा शासन नहीं चलता था. उस समय भारत के केवल कुछ ही हिस्से थे जो कि वास्तविक रूप से ब्रिटिश इंडिया कहलाते थे. बाकी जगहों पर राजघरानों का शासन चलता था. उन जगहों पर अंग्रेजों का शासन पूर्णरूप से न होकर सीमित होता था. ब्रिटिश सरकार के पास केवल विदेश मामलों और संविधान से जुड़े मामलों पर ही नियंत्रण था. इसका सबसे बड़ा उदाहरण है हैदराबाद.

हैदराबाद की न केवल खुद की मुद्रा थी बल्कि उनके पास उनका खुद का रेलवे सिस्टम भी था. देशभर में राजघरानों पर नियंत्रण के लिए उन राज्यों में ब्रिटिश सरकार की तरफ से रेजीडेंट कमिश्नर बैठाया गया था. रेजीडेंट कमिश्नर का काम था कि वो प्रिंसली स्टेट्स को गाइड करे. रेजीडेंट कमिश्नर इसके माध्यम से राज्य की पूरी घेरलू गतिविधियों की जानकारी रखने के साथ साथ उनपर नियंत्रण भी रखता था.

फोटो पीटीआई से ( प्रतीकात्मक)

यही वजह है कि उस समय ब्रिटिश भारत के प्रमुख को वायसराय और गवर्नर जनरल की दोहरी उपाधि दी जाती थी. गवर्नर जनरल का रोल केवल वास्तविक ब्रिटिश इंडिया पर शासन करने का होता था. उस समय ब्रटिश इंडिया में मद्रास, बॉम्बे, सेंट्रल प्रोविंस, बंगाल इत्यादि आते थे. जबकि प्रिंसली स्टेट्स पर नजर और नियंत्रण रखने के लिए उन्हें वायसराय की उपाधि दी जाती थी.

जब ब्रिटेन की संसद में पारित इंडियन इंडिपेंडेंस एक्ट 1947, लागू हुआ तो अचानक राजघरानों को महसूस हुआ कि वो तो अब स्वतंत्र राज्य बन गए हैं. गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट, 1935 में ये प्रावधान किया गया था कि ये राज्य भारतीय संघ में शामिल हो जाएं. स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद ये एक्ट कुछ बदलावों के साथ भारतीय संविधान के 26,जनवरी 1950 को लागू होने से पहले तक अंतरिम रूप से मौजूद रहा.

इस दौरान राज्यों से कई समझौते भी किए गए. उस समय के सरकारी दस्तावेजों में इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेसन भी शामिल था जिसके अंतर्गत ये राज्य भारतीय राज्य का हिस्सा बनने पर सहमत हुए थे. इस समय सरकार के साथ प्रिसली स्टेट्स के समझौते में ये तय हुआ था कि स्वतंत्र भारत और राजपरिवारों द्वारा नियंत्रित राजघरानों के बीच का संबंध वैसा ही रहेगा जैसा स्वतंत्रता से पहले था.

1948 में जम्मू कश्मीर राज्य, जहां पर महराजा हरि सिंह का शासन था, इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेसन पर हस्ताक्षर करने के बाद भारतीय संघ में शामिल हो गया था. इसमें ये स्पष्ट रूप से उल्लिखित था कि हस्ताक्षर करने के बावजूद जम्मू कश्मीर के महराज भविष्य में बनने वाले संविधान का पालन करने के लिए बाध्य नहीं होंगे. यही वजह थी संविधान के निर्माण के समय उसमें धारा 370 को जोड़ा गया जिससे की वहां के लोगों के लिए परिवर्तन प्रावधानों को उपलब्ध कराया जा सके.

इसे यूएन सिक्योरिटी काउंसिल के रिजोल्यूशन 47 के माध्यम से और उलझा दिया गया. इस रिजोल्यूशन में जम्मू कश्मीर के भारत में विलय को लेकर खुले रूप से सवाल उठाया गया था और कहा गया था कि वहां पर संयुक्त राष्ट्र की तरफ से जनमत संग्रह के बाद इस संबंध में फैसला लिया जाएगा. हालांकि ये रिजोल्यूशन मानने की बाध्यता भारत सरकार की नहीं थी इसके बावजूद भारत को स्वीकृति का इंतजार करना था जब तक कि एक्सेसन को पूरी तरह से मान्यता न मिल जाए.

ये तब तक चला जब तक कि राज्य ने यहां के संविधान को 1957 में स्वीकार कर लिया और खुद को भारत का एक अंग घोषित कर दिया. आर्टिकल 370 के मुताबिक भारतीय संविधान जम्मू-कश्मीर में भी मान्य होगा लेकिन उन शर्तों के साथ जैसा देश के राष्ट्रपति निर्धारित करें. इसका मतलब है कि इसमें संशोधन हो सकता है. इसी के अनुसार आर्टिकल 35-ए राज्य सरकार की सहमति के साथ लागू हुआ. ये 1954 के कॉन्स्टीट्यूशनल आर्डर के द्वारा लागू किया गया. इसके अंतर्गत जम्मू कश्मीर के निवासियों को भारतीय नागरिकता प्रदान कर दी गई लेकिन इसके साथ ही स्थाई निवासी का एक विचार इसके साथ जोड़ दिया गया.

ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि जम्मू-कश्मीर के निवासियों के हितों की रक्षा की जा सके. इसके पीछे वजह ये थी कि जो व्यक्ति पहले जम्मू कश्मीर के नागरिक कहे जाते थे वो अब भारतीय गणराज्य के हिस्सा बन गए थे ऐसे में उन्हें जम्मू-कश्मीर की प्रजा न मानकर उन्हें वहां का स्थानीय निवासी मान लिया गया था.

1954 से पहले जम्मू कश्मीर का भारत के साथ वही संबंध था जो की अभी चीन का हांगकांग के साथ है. कहने का तात्पर्य ये है कि कश्मीर भारत का हिस्सा जरूर है लेकिन उसे विशेष दर्जा प्राप्त है. आर्टिकल 35-ए भारतीय संविधान का वास्तविक हिस्सा नहीं है बल्कि ये संविधान का एक ऐसा छोटा हिस्सा है जो कि केवल जम्मू कश्मीर पर लागू होता है. इसका मतलब ये भी है कि आर्टिकल 35-ए कहीं और के लिए नहीं है और न ही देश के अन्य भागों के लिए मान्य है ये केवल और केवल जम्मू कश्मीर राज्य के लिए है.

प्रतीकात्मक तस्वीर

ऐसे में ये कहना कि आर्टिकल 35-ए संविधान का वास्तविक हिस्सा है कानूनन गलत होगा. ये न तो संशोधन है और न ही संविधान के महत्वपूर्ण भागों में एक है. इसे धारा 370 के अनुरूप लागू किया गया है जो कि देश के राष्ट्रपति को ये अधिकार देता है कि वो इसे संशोधित कर सकते हैं क्योंकि ये केवल जम्मू कश्मीर के लिए लागू होता है. हां, धारा 370 संविधान के महत्वपूर्ण प्रावधानों में से एक है.

ऐसे में आर्टिकल 35-ए की संवैधानिक वैधता पर उठ रहे सवाल बुनियादी संरचना से जुड़े नहीं हो सकते हैं क्योंकि आर्टिकल 370 संविधान में आरंभ से ही है. प्रेसिडेंशियल ऑर्डर भी समय-समय पर संशोधित किए जाते रहे हैं. इस आदेश के माध्यम से भारतीय संविधान के प्रावधानों को लागू किया गया है और अगर राज्य के संविधान के प्रावधानों के साथ इसके किसी तरह के टकराव की नौबत आती है तो ऐसी स्थिति में राज्य के संविधान के ऊपर भारतीय संविधान की मान्यता रहेगी. इसी तरह से अगर जिन मुद्दों पर भारतीय संविधान में स्थिति स्पष्ट नहीं की गई है, वहां पर राज्य के संविधान की मान्यता होगी. हालांकि ये सब कुछ केवल जम्मू कश्मीर सरकार की सहमति से ही किया जा सकेगा.

अगर आर्टिकल 35-ए को एकतरफा तरीके से निरस्त किया जाता है तो 1952 में दिल्ली समझौते के बाद जम्मू कश्मीर के नागरिकों के मिले संवैधानिक अधिकारों में कटौती हो जाएगी. जम्मू-कश्मीर भारत का हिस्सा है लेकिन संयुक्त राष्ट्र संघ के सुरक्षा परिषद का रिजोल्यूशन 47 अभी भी लागू है, जिसके अनुसार अंतरराष्ट्रीय कानूनों के मुताबिक राज्य की स्थिति को लेकर सवाल कायम है. ऐसे में भारत का नियंत्रण भले ही जम्मू कश्मीर पर है लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसका भविष्य जनमत संग्रह के परिणामों के बाद ही मालूम होगा.

भारत के लिए जम्मू कश्मीर का संविधान जनमत संग्रह का सबूत है जिसको पाकिस्तान मानने के लिए तैयार नहीं होता है. लेकिन आर्टिकल 35-ए, जो कि कश्मीरियों को अलग पहचान देता है,अगर समाप्त कर दिया जाए तो इसका परिणाम देश के पूर्ण एकीकरण के रूप में हो जाएगा. लेकिन ये स्वायत्तता की उस भावना के खिलाफ होगा जो कि उन्हें आर्टिकल 370 से प्राप्त होता है.

कई अन्य राज्यों को भी कुछ विशेष अधिकार दिए गए हैं. उदाहरण के लिए अरुणाचल प्रदेश को लें. अगर आर्टिकल 35-ए को समाप्त कर दिया गया तो अरुणाचल प्रदेश को भी अपनी संस्कृति और परंपरा के बचाने वाली नीतियों को खत्म करना पड़ सकता है.

आर्टिकल 35-ए संविधान का मुख्य हिस्सा नहीं है और न ही ये मूल पाठ का हिस्सा है बल्कि ये एक परिशिष्ट का हिस्सा है.