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जेल के लोग बाहर के लोगों से ज्यादा अच्छे हैं: नूपुर तलवार

नूपुर ने कहा 'जेल से छूटने के बाद मुझे नहीं लगता कि हम अपना सामान्य रूटीन जीवन जी सकेंगे. हम पहले की तरह अपने क्लीनिक नहीं जा सकेंगे'

FP Staff

9 साल पुराने आरुषि मर्डर केस में आरोपी मां-पिता नूपुर और राजेश तलवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गुरुवार को बरी कर दिया. सीबीआई ने कोर्ट में जो दलीलें दीं उससे कोर्ट सहमत नहीं हो सका. इस बीच नूपुर का एक इंटरव्यू सामने आया है. इसमें वह जेल की जिंदगी, बेटी को खोने के डरावने अनुभव, बेटी के मर्डर में आरोपी बनने और जेल में बिताए समय पर बात कर रही हैं.

जेल सुधार पर काम करने वाली पत्रकार वर्तिका नंदा को दिए इंटरव्यू में नूपुर डासना जेल से छूटने के बाद की योजनाओं पर भी बात कर रही हैं. उन्होंने कहा, वह आरुषि के नाम से एक एनजीओ खोलना चाहती हैं, जो बच्चों के लिए काम करे.


नूपुर ने कहा, 'जेल से छूटने के बाद मुझे नहीं लगता है कि हम अपना सामान्य रूटीन जीवन जी सकेंगे. हम पहले की तरह अपने क्लीनिक नहीं जा सकेंगे. हम चाहते हैं कि इस समाज को कुछ वापस करें. हो सके तो आरुषि के नाम से एक एनजीओ बनाकर बच्चों के लिए काम करेंगे.' उन्होंने कहा कि यह देखकर सुखद एहसास होता है कि जेल के अंदर लोग जजमेंटल नहीं होते हैं. वे बाहर के लोगों की अपेक्षा चीजों को ज्यादा बेहतर तरीके से स्वीकार करते हैं.

उन्होंने कहा, 'जेल में हमें जिस तरह का सम्मान मिला, वैसा संभवत: हमने बाहर भी नहीं पाया. यहां की दुनिया कम जजमेंटल है. यहां के लोग आपके चरित्र पर सवाल नहीं उठाते हैं. जिस तरह से हम आरोपी थे, जिस तरह से लोगों ने आरुषि का चरित्र हनन किया, उस तरह का जेल में नहीं हुआ. यहां लोगों ने हमें स्वीकार किया. जब हमें भावनात्मक समर्थन की सबसे ज्यादा जरूरत थी तब जेल के लोगों ने हमें ये दिया. यहां के लोग हमेशा सांत्वना देते थे कि एक दिन जेल की सजा खत्म हो जाएगी और हम जेल से बाहर निकल जाएंगे.'

त्यौहार का समय बहुत कष्टदायक होता है

जेल के शुरुआती दिनों के बारे में चर्चा करते हुए उन्होंने कहा, शुरुआत में हम सजा को स्वीकार नहीं कर पा रहे थे. राजेश और मैं यही सोचते थे कि क्यों भगवान हमारी परीक्षा ले रहा है? हम हीं क्यों? हम ही शिकार हुए हैं, हम ही पीड़ित हैं, हमने ही बेटी को खोया है और हमें ही सजा मिल रही है. हालांकि, अंत में हमने इसमें भी शांति बना ली. उन्होंने कहा, दिन में बेटी के बारे में पढ़ते हुए और रात में उसके बारे में सोचते हुए हमने जेल में समय काट लिए.

नूपुर ने आगे कहा, त्यौहार का समय बहुत कष्टदायक होता है. इस दौरान उसे पुराने दिन याद आते हैं जब आरुषि सहित उनका पूरा परिवार साथ में रहता था और खूब मजे करता था. हर दिवाली और दशहरा हमें पुराने दिन याद आते हैं. उसकी कमी से हमें दुख होता है. उन्होंने कहा, बाहर की जिंदगी में हम जिससे चाहते उससे गले मिल सकते थे, जिससे चाहते बात कर सकते थे. जेल में पुराने दिनों को याद करके बहुत दुख होता.

(साभार: न्यूज़18)