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आधार पर आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को शुरू से लेकर आखिर तक समझिए

सुप्रीम कोर्ट ने आधार एक्ट 2016 को संवैधानिक रूप से वैध माना है

FP Staff

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को आधार एक्ट 2016 को संवैधानिक रूप से वैध कर दिया. सीजेआई दीपक मिश्र की अगुवाई में पांच जजों की बेंच ने कहा आधार योजना ने गरीबों के पास संसाधनों की पहुंच को सुनिश्चित करने के लिए बड़ी सेवा की है.

जस्टिस ए के सिकरी ने आधार के पक्ष में फैसला दिया. जिस पर सीजेआई दीपक मिश्र और जस्टिस खानविलकर ने सहमति जताई. जस्टिस भूषण भी आधार एक्ट के पक्ष में रहे. वहीं जस्टिस चंद्रचूण ने इस पर असहमति जताई और इसे असंवैधानिक माना.


4:1 के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने आधार एक्ट 2016 को संवैधानिक रूप से वैध माना. हालांकि कोर्ट ने एक्ट के कुछ सेक्शन जैसे 33(2), 47 और 57 पर आपत्ति जताई.

आधार की जरूरत क्यों है?

आधार कल्याणकारी योजनाओं का लाभ लेने के लिए अनिवार्य कर दिया गया है. इसके अलावा इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करने के लिए आधार और पैन कार्ड को लिंक करना अनिवार्य है.

हालांकि बैंक अकाउंट खोलने के लिए, सिम कार्ड प्राप्त करने के लिए और प्राइवेट कंपनियों की सेवाओं के लिए आधार अनिवार्य नहीं है. इसके अलावा स्कूल एडमिशन, नीट, यूजीसी और सीबीएसई परीक्षा के लिए भी आधार अनिवार्य नहीं है.

आधार से जुड़ा विवाद क्या था?

आधार मामले पर सुनवाई के दौरान मुख्य प्रश्न यह थे. क्या आधार एक्ट 2016 संवैधानिक रूप से वैध है? इसे संसद में मनी बिल की तरह पेश किया गया था?

दूसरा सवाल यह था कि हर नागरिक को सरकारी योजनाओं का लाभ लेने के लिए एक परिचय पत्र (आधार नंबर) रखना जरूरी क्यों है? क्या दूसरे परिचय पत्र जैसे राशन कार्ड और पासपोर्ट के जरिए सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं लिया जा सकता?

तीसरा सवाल यह था कि क्या आधार हमसे राइट टू प्राइवेसी का अधिकार छीन रहा है? चौथा सवाल यह था कि क्या आधार डाटा को ट्रैक किया जा सकता है?

आधार के पक्ष में सरकार ने क्या कहा?

सुनवाई के दौरान सरकार ने आधार का पक्ष रखते हुए कहा कि आधार से कल्याणकारी योजनाओं का लाभ मिलेगा. कोर्ट में अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि यह भ्रष्टाचार को मिटाने का गंभीर प्रयास है.

आधार के जरिए जनता को राइट टू राइफ, राइट टू फूड, राइट टू लिवलिहुड, राइट टू पेंशन समेत कई सामाजिक चीजों का लाभ मिलेगा.

सबसे पहले आधार का विचार कब आया?

सबसे पहले आधार का ढ़ांचा यूपीए-2 की सरकार में 2009-10 में आया. कारगिल रिव्यू कमेटी के मुताबिक मंत्रियों के एक ग्रुप ने इस बात की सलाह दी थी कि एक नेशनल आईडेंटिटी कार्ड होना चाहिए.

2010 में नेशनल आईडेंटिफिकेशन अथॉरिटी ऑफ इंडिया बिल 2010 आया. इस बिल 2016 मोदी सरकार में पास हुआ. जिसके बाद आधार एक्ट 2016 की वैधता को चुनौती देते हुए कई याचिकाएं दायर हुईं.

जनवरी 17, 2018 को पांच जजों की बेंच ने आधार केस की सुनवाई शुरू की और 10 मई 2018 को इस मामले पर फैसला सुरक्षित रख लिया.

सुप्रीम कोर्ट का राइट टू प्राइवेसी फैसला

24 अगस्त 2017 को नौ जजों की बेंच ने कहा कि राइट टू प्राइवेसी एक आधारभूत अधिकार है. कोर्ट ने यह भी कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए राज्य के पास न्यायिक वजह हैं कि वह डाटा को स्टोर करे.

वहीं जस्टिस बी एन श्रीकृष्ण रिपोर्ट के मुताबिक ऐसे प्रयासों की जरूरत है जिससे डाटा को किसी भी हालत में सुरक्षित रखा जा सके. दरअसल बी एन श्रीकृष्णा पैनल को इसलिए नियुक्त किया गया था जिससे वह डाटा प्रोटेक्शन फ्रेमवर्क पर सरकार को सलाह दे.

पूर्व यूआईडीएआई चेयरमैन नंदन नीलकणि ने आधार के पक्ष में कहा था कि यह मॉडर्न टेक्नालॉजी के प्रयोग का उदाहरण है. यह एक ऐसा प्रोग्राम है जिससे सरकार के करोड़ों रुपए फ्राड और बेकार होने से बचे हैं.