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फेस्ट में भगदड़ मामला : कोर्ट से रामजस कॉलेज के पूर्व प्रिसिंपल बरी

पूर्व प्रिंसिपल पर अपने निर्णय से फेस्ट देखने आई एक छात्रा की जिंदगी को खतरे में डालने का आरोप था

Bhasha

दिल्ली की एक अदालत ने दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के पूर्व प्रिंसिपल को एक छात्रा की जिंदगी खतरे में डालने के आरोपों से बरी कर दिया है. यह छात्रा कॉलेज फेस्ट के दौरान मेन गेट खोलने के प्रिंसिपल के फैसले के बाद मची भगदड़ में घायल हो गई थी.

सत्र अदालत ने रामजस कॉलेज के तत्कालीन प्रिंसिपल राजेंद्र प्रसाद के खिलाफ आरोप तय करने वाली मजिस्ट्रेट की अदालत के उस फैसले को रद्द कर दिया, जिसमें उनके खिलाफ आईपीसी के तहत दूसरे लोगों के जीवन और उनकी निजी सुरक्षा को खतरे में डालने और इस तरह के कृत्य से गंभीर चोट पहुंचाने का अरोप तय किए गए थे.


अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश नरिंदर कुमार ने कहा कि जब कॉलेज के प्रिंसिपल ने देखा कि सड़क पर छात्रों की जमा भीड़ एक-दूसरे से उलझ रही है, तो उन्हें उनके कॉलेज में आने का रास्ता आसान बनाने के लिए गेट खुलवा देना उचित लगा. ऐसा नहीं कहा जा सकता कि ऐसे निर्देश देने में उन्होंने लापरवाही बरती.

नहीं कहा जा सकता कि प्रिंसिपल पहले से यह कल्पना कर सकते थे 

अदालत ने कहा कि ऐसा नहीं कहा जा सकता कि प्रिंसिपल पहले से यह कल्पना कर सकते थे कि छोटे गेट के सामने लाइन बनाकर खड़े छात्र मेन गेट की ओर दौड़ेंगे, जिससे वहां भगदड़ मच जएगी.

अदालत ने कहा, ‘अदालत को रिकॉर्ड में दर्ज ऐसा कोई सबूत नहीं दिखता कि मेन गेट खोलने का निर्देश देने के फैसले में प्रिंसिपल ने कोई लापरवाही बरती.’ यह घटना 10 फरवरी, 2012 की है, जब दयाल सिंह कॉलेज की छात्रा आरूषि वशिष्ठ दूसरे छात्रों के साथ रामजस कॉलेज के फेस्ट में आई थी. वो लोग कैंपस  में दाखिल होने के लिए एक छोटे गेट के सामने कतार बनाकर खड़े थे. तभी प्रिंसिपल ने मेन गेट खोलने का निर्देश दे दिया.

मेन गेट खुलते ही भीड़ कॉलेज में दाखिल होने के लिए दौड़ पड़ी और आरूषी गिर पड़ी. भागदौड़ में लोग उसके ऊपर से होकर निकलने लगे. वह बेहोश हो गई जिसके बाद उसे पास के अस्पताल में ले जाया गया.

मॉरिस नगर पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज कराई गई, जिसके बाद निचली अदालत ने प्रिंसिपल राजेंद्र प्रसाद के खिलाफ आरोप तय किए.