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'ऑपरेशन क्लीन अप' से बौखलाए आंतकियों की हताशा दिखाता है अमरनाथ हमला

सेना पिछले काफी समय से घाटी में ऑपरेशन क्लीन अप चला रही है

Kinshuk Praval

लहूलुहान हो गई अमरनाथ यात्रा. छड़ी मुबारक के सफर में 7 श्रद्धालुओं की जान ले ली गई. तीन अलग अलग जगहों पर आतंकियों ने अमरनाथ यात्रियों के जत्थे पर सबसे कायराना और क्रूर हमला किया. निहत्थे श्रद्धालु जिनकी जुबान पर भोले का भजन और हाथों में पूजा-आरती का समान था उन पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसा दी गईं. उनका कसूर सिर्फ इतना था कि वो कभी जन्नत रही घाटी के रास्तों से अपने भोलेनाथ के दर्शन करने बिना खौफ जा रहे थे क्योंक वो भक्ति में डूबे थे और आस्था में लीन थे.

अमरनाथ यात्रियों से भरी बस पर आतंकियों की फायरिंग तस्दीक करती है कि दहशतगर्दों का न कोई मुल्क है और न मज़हब. लेकिन कम से कम ये आतंकी इतना तो जान लेते कि जिस अमरनाथ गुफा में महादेव के दर्शन के लिये यात्री रवाना हुए हैं उस मंदिर को ढूंढने वाला कोई काफिर नहीं बल्कि एक गडरिया मुसलमान ही था.


आज भी अमरनाथ गुफा के मंदिर का चौथाई चढ़ावा उसी मुसलमान गडरिये के वंशजों को मिलता है. यहां तक कि मंदिर में फूल बेचने वाले भी सभी मुसलमान हैं. इसके बावजूद बस में सवार बेकसूर लोगों की जान लेते समय इन दहशतगर्दों के हाथ नहीं कांपे. उस गडरिया मुसलमान के परिवार से इंसानियत और मजहबी मुहब्बत का पैगाम नहीं सीख सके. बटेंगू में अमरनाथ यात्रियों से भरी बस पर फायरिंग की गई तो बालाटाल से लौट रही बस पर हमला किया गया.

अब सवाल उन लोगों से है जो कश्मीर में फौज की मौजूदगी पर सवाल उठाते हैं. जो पत्थरबाजों को रोकने की सेना की कार्रवाई पर आंसू बहाते हैं. घाटी के हालात बिगड़ने के लिये सरकार को जिम्मेदार ठहराते हुए बातचीत का न्योता देते हैं. किनसे बातचीत की जाए?  जो खुद को अलगाववादी बताते हुए ऐसे आतंकियों की पनाहगाह तैयार करते हैं?

हमले का बुरहान वानी कनेक्शन?

पिछले साल 8 जुलाई को कश्मीर में आतंकी बुरहान वानी का एनकाउंटर होता है. इस साल उसके एनकाउन्टर को एक साल पूरा हो जाता है. क्या इस हमले को आतंकियों का बुरहान वानी की रूह को सलाम माना जाए?

निहत्थों को मार कर ही बुरहान वानी दहशतगर्दों में एक चेहरा बना था जिसे कश्मीर की आजादी का हीरो बताया गया. कुछ बहुत समझदार उससे बातचीत करने की ख्वाहिश तक जता गए. उन्हीं दहशतगर्दों का एक हिस्सा आस्था पर हमला कर हैवानियत की सारी हदें पार कर गया.

40 हजार जवानों के भरोसे यात्रा की सुरक्षा

बाबा बर्फानी के दर्शन करने हर साल लाखों भक्त आते हैं. बालटाल और पहलगाम से जाने वाली इस यात्रा को हर साल सुरक्षा दी जाती है. इस बार अमरनाथ यात्रा को लेकर खुफिया रिपोर्ट ने अलर्ट जारी किया था कि आतंकी यात्रियों को निशाना बना सकते हैं. जिसके बाद यात्रा के मद्देनजर सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किये गए. स्थानीय पुलिस, अर्धसैनिक बल और सेना  समेत 40 हजार जवानों को तैनात किया गया. तीर्थयात्रा के मार्ग के दोनों तरफ ये तैनाती की गई.  लेकिन आतंकियों ने इसके बावजूद निहत्थे यात्रियों को निशाना बनाने में देर नहीं की.

ये हमला उन आतंकियों की हताशा दिखलाता जिनका सफाया सेना युद्धस्तर पर कर रही है. हाल ही में हिजबुल के दर्जन भर से ज्यादा आतंकी मारे गिराए गए हैं. कश्मीर के त्राल में आतंकी संगठन हिजबुल मुजाहिदीन के टॉप कमांडर सब्जार अहमद भट को मार गिराया गया.जबकि दूसरा आतंकी फैज़ान मुजफ्फर भट भी मारा गया. सब्जार अहमद भट को हिजबुल के मारे गए आतंकी बुरहान बानी का उत्तराधिकारी माना जाता था.

 स्थानीय लोग आतंकियों को बचाते और छिपाते हैं

दरअसल जम्मू-कश्मीर के हिंसक इलाकों से आतंकवाद के खात्मे के लिये सरकार और सेना ने कड़े कदम उठाने का फैसला किया है. ऑपरेशन क्लीन अप के जरिये कश्मीर में सक्रिय लश्कर और हिज्बुल जैसे संगठनों के आतंकियों की चप्पे-चप्पे में तलाशी हो रही है. इस दौरान सेना के काफिले पर हमले भी हो रहे हैं. कई मामलों में स्थानीय लोगों की वजह से आतंकियों को पकड़ने में मुश्किलें आ रही हैं.

घाटी की कुछ जगहों पर स्थानीय लोग सेना पर पथराव कर आतंकियों को भगाने में मदद करते हैं. ऑपरेशन क्लीन अप में अनंतनाग, पुलवामा, शोपियां और कुलगाम जैसे दक्षिण कश्मीर के जिलों में आतंकी ज्यादा सक्रिय हैं. पाकिस्तान से घुसपैठ कर आए इन आतंकियों को यहां के स्थानीय लोग अपनी सुरक्षा देते हैं. बाद में यही आतंकी मौका पा कर सेना, सुरक्षा बलों और पुलिस पर हमला करते हैं.

अमरनाथ यात्रियों पर हमला भी ऐसे ही आतंकियों की करतूत है जिन्हें घाटी में शह और पनाह मिली. लेकिन अब दहशतगर्दों को कड़ा सबक सिखाने की जरूरत है क्योंकि आस्था पर हमला करने वाले दहशतगर्द  नासूर बने वो जख्म हैं जिसके इलाज के मरहम में रहम नहीं किया जा सकता. ये जंगे आजादी की जिंदा कौम नहीं बल्कि बेकसूरों के खून से सनी भटकाव की पीढ़ी है.