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निर्भया कांड: कब खत्म होगा न्याय के लिए इंतजार

निर्भया की लड़ाई पूरे देश ने एक साथ लड़ी थी, लेकिन कानून के सामने अभी भी निर्भया कतार में है

Pratima Sharma

दिसंबर 2012 का दूसरा पखवाड़ा. दिल्ली में सर्दियां शुरू हो चुकी थी. इंडिया गेट पर बड़े-बूढ़े महिलाओं के साथ हजारों की संख्या में युवाओं का हुजूम हाथों में तख्तियां लेकर प्रदर्शन कर रहा था.


भीड़ को तितर-बितर करने के लिए पुलिस ने लाठियों के साथ पानी की बौछार करनी शुरू कर दी. दिसंबर के सर्द दिन में ठंडे पानी की बौछार झेलने के बाद भी लोगों का गुस्सा ठंडा नहीं पड़ा था.

न्याय की मांग कर रहे ये लोग अपने लिए नहीं बल्कि निर्भया के लिए पुलिस के डंडे झेल रहे थे.

सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है केस

16 दिसंबर 2016 को दिल्ली को पूरी दुनिया में निर्भया कांड के 4 साल हो गए. आज से ठीक 4 साल पहले दिल्ली के साथ पूरा देश निर्भया को न्याय दिलाने के लिए एक साथ खड़ा हो गया था.

लेकिन आज भी न्याय के लिए निर्भया का इंतजार खत्म नहीं हुआ है. निर्भया का केस फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है. इस केस के मामले में सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट रविशंकर कुमार का कहना है, 'अभी इसमें दोनों पक्षों की तरफ से सुनवाई चल रही है.

बचाव पक्ष के वकील एम एल शर्मा ने अपना पक्ष रखते हुए कहा है कि इसमें कोई इंडिपेंडेंट आई विटेनस नहीं है. 'निर्भया की तरफ से यह केस सरकारी वकील सिद्धार्थ लूथरा लड़ रहे हैं.

बरसी मनाने से नहीं बनेगी बात

समाज और परिवार की चिंता किए बगैर निर्भया के परिवार ने अपनी बेटी को न्याय दिलाने की हर मुमकिन कोशिश की.

निर्भया की मां आशा देवी ने कहा, 'चार साल हो गए लेकिन अभी तक मेरी बेटी को न्याय नहीं मिल पाया है. शुरू में लोगों का काफी साथ था, लेकिन अब धीरे-धीरे लोग भूलते जा रहे हैं.'

उन्होंने कहा, 'मेरी बेटी नहीं रही. अब यह सब मैं अपने लिए नहीं कर रही हूं. दूसरी बच्चियों के साथ ऐसा ना हो इसलिए जरूरी है कि इन्हें सजा मिले.'

फास्ट ट्रायल में इस केस की सुनवाई चली जिसके बाद लोअर कोर्ट ने पांच आरोपियों को मौत की सजा सुनाई थी. एक आरोपी की उम्र 18 साल से कम थी जिसे जुवेनाइल कोर्ट भेजा गया था. इसके बाद आरोपियों ने याचिका दायर की, जहां अभी भी सुनवाई चल रही है.

एडवोकेट रविशंकर कुमार का कहना है, 'यह केस फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है. सुप्रीम कोर्ट में सभी केसों की सुनवाई अपनी प्राथमिकता से होती है. ऐसे में इस केस में फैसला आने और फिर उसके लागू होने में वक्त लग सकता है.'

निर्भया मामले के बाद आम जनता में काफी रोष था. ऐसा पहली बार हुआ है जब किसी केस की वजह से कानून में संशोधन करके उसे निर्भया एक्ट नाम दिया गया.

निर्भया कांड के बाद ऐसी लड़कियों की मदद के लिए 10 अरब रुपए से निर्भया फंड बनाया गया, लेकिन अभी तक ठीक से इसका इस्तेमाल नहीं हुआ है. दिवंगत पूर्व मुख्य न्यायधीश जस्टिस जे एस वर्मा की अगुवाई में एक कमेटी बनी थी.

वर्मा कमेटी ने अपनी सिफारिशों में पीड़ितों की मनोवैज्ञानिक काउंसलिंग की बात भी कही थी.

क्या है मनोवैज्ञानिक पक्ष

इस मामले में जाने-माने मनोवैज्ञानिक के डी ब्रूटा का कहना है, 'किसी भी मामले में फैसला जल्द आने से उसका असर ज्यादा होता है.' उन्होंने कहा कि इसे मनोवैज्ञानिक टर्म में 'पॉजिटिव रीइनफोर्समेंट'और 'नेगेटिव रीइनफोर्समेंट' कहते हैं.

ब्रूटा ने कहा, 'उस वक्त लोगों में जोश था. लोग इस खबर से जुड़े थे. जब खबर आनी बंद हो जाती है तो लोग इसे भूल जाते हैं.'

उन्होंने कहा कि अगर फैसला जल्दी लिया जाता है तो इसका असर पीड़ितों पर 'पॉजिटिव रीइनफोर्समेंट' और अपराधियों पर 'नेगेटिव रीइनफोर्समेंट' के तौर पर पड़ता है.

ब्रूटा ने कहा कि सजा में देरी होने पर अपराधियों में 'इंटेंशनर फॉरगेटिंग' सेंटीमेंट बढ़ जाता है. इस सेंटीमेंट से अपराध होने की आशंका बढ़ जाती है.

उन्होंने कहा, 'इंटेंशनल फॉरगेटिंग' की वजह से लोगों में ऐसी भावना प्रबल हो जाती है कि उनके साथ कुछ भी बुरा नहीं होने वाला है. इससे उनमें अपराध करने की प्रवृति बढ़ती है.

निर्भया की लड़ाई पूरे देश ने एक साथ लड़ी थी, लेकिन कानून के सामने अभी भी निर्भया कतार में है.

अब देखना है कि निर्भया का इंतजार कब खत्म होगा.