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16 मई 2014 : जब भारतीय राजनीति में लंबे गठबंधन युग का हुआ अंत

मोदी सरकार आने के बाद से अब चार साल बीतने को हैं. आने वाले कुछ दिनों में फ़र्स्टपोस्ट हिंदी सरकार के काम काज की समीक्षा करती हुई रिपोर्टें भी प्रकाशित करेगा.

FP Staff

16 मई 2014 को देश की 16 वीं लोकसभा के लिए हुए चुनावों की मतगणना का दिन तय किया गया था. काउंटिंग के दिन के पहले तक खूब आंकड़े लगाए जा रहे थे कि नरेंद्र मोदी पूर्ण बहुमत की सरकार बना पाएंगे या नहीं. बहुत से राजनीतिक विश्लेषक कह रहे थे आंकड़ा कितना भी बढ़ेगा लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा लाई गईं 181 सीटों के आगे नहीं पहुंचेगा.

यूपीए की सरकार के दस साल पूरे हो चुके थे. कोयला घोटाले से लेकर 2जी घोटाले की वजह से सरकार की हर तरफ किरकिरी हो रही थी. अन्ना आंदोलन से निकली आंधी ने 2014 आते-आते ने पर्याप्त सरकार विरोधी माहौल बना दिया था. लेकिन दशकों से चली आ रही गठबंधन की राजनीति की वजह से लोगों को भरोसा नहीं हो पा रहा था कि किसी एक दल की पूर्ण बहुमत की सरकार भी बन सकती है. लेकिन जैसे-जैसे नतीजे सामने आए दशकों की भारतीय राजनीति बदलती चली गई.


सारे आंकड़े धरे के धरे रह गए और बीजेपी अकेले दम पर 282 सीटों के आंकड़े को छू गई. सहयोगी पार्टियों के साथ मिलकर तो ये आंकड़ा 330 के ऊपर निकल गया. अकले उत्तर प्रदेश से भारतीय जनता पार्टी को 80 में से 71 सीटें जीती. बीजेपी की सहयोगी पार्टी अपना दल ने भी 2 सीटें जीती थीं.

दरअसल 16 मई 2014 के नतीजों ने सिर्फ बीजेपी को पूर्ण बहुमत नहीं दिया था बल्कि लंबे समय से भारतीय जनमानस में स्थापित हो चुकी उस धारणा को भी तोड़ा जिसके तहत लोगों को यह विश्वास हो चला था कि महज गठबंधन की सरकार ही देश पर राज कर सकती है. नतीजे आने के दस दिनों बाद  26 मई 2014 को मंत्रिमंडल ने अपनी शपथ ली थी. मोदी सरकार आने के बाद से अब चार साल बीतने को हैं. आने वाले कुछ दिनों में फ़र्स्टपोस्ट हिंदी सरकार के काम काज की समीक्षा करती हुई रिपोर्टें भी प्रकाशित करेगा.