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10 फीसदी कोटा: मोदी सरकार ने 8 लाख की आमदनी वाले को गरीब क्यों माना

केंद्र सरकार की 10 फीसदी कोटा वाली आरक्षण की नई व्यवस्था पर विरोधी कई तरह के सवाल उठ रहे हैं. उन सवालों में एक ये भी है कि इस आरक्षण के दायरे में आने वालों के लिए 8 लाख सालाना की हाउस होल्ड इनकम की सीमारेखा क्यों रखी गई है?

Pankaj Kumar

केंद्र सरकार की 10 फीसदी कोटा वाली आरक्षण की नई व्यवस्था पर विरोधी कई तरह के सवाल उठ रहे हैं. उन सवालों में एक ये भी है कि इस आरक्षण के दायरे में आने वालों के लिए 8 लाख सालाना की हाउस होल्ड इनकम की सीमारेखा क्यों रखी गई है? गरीब सामान्य वर्ग के लिए 10 फीसदी आरक्षण दिए जाने के प्रस्ताव में ये व्यवस्था की गई है कि 8 लाख या उससे नीचे की हाउस होल्ड इनकम वाले लोग इस आरक्षण के दायरे में आएंगे.

8 लाख यानी करीब करीब 66 हजार से भी ज्यादा की मासिक आमदनी वाला शख्स. इस आरक्षण का विरोध करने वाले सवाल उठा रहे हैं कि 66 हजार से ज्यादा की मासिक आमदनी वाला आदमी गरीब कैसे हो सकता है? 8 लाख सालाना की लिमिट किस आधार पर बनाई गई है? 8 लाख की लिमिट की वजह से आरक्षण पाने वालों के दायरे में देश की करीब 95 फीसदी आबादी आ जा रही है. 8 लाख का सवाल बड़ा बन गया है.


लोकसभा में बहस के दौरान इस बिल का विरोध करने वाले भी ये सवाल उठा रहे हैं और बिल का समर्थन लेकिन इसे पेश किए जाने के तौर तरीकों को लेकर विरोध दर्ज करवाने वाले लोग भी 8 लाख वाला मसला पकड़े हुए हैं.

लोकसभा में इस बिल का समर्थन लेकिन सरकार की नीयत को कठघरे में रखने वाले बिहार के मधुबनी से सांसद पप्पू यादव बहस के दौरान पूछने लगे कि ये 8 लाख का पैमाना कैसे आया? अगर ओबीसी आरक्षण में क्रीमी लेयर को तय करने के लिए 8 लाख की सीमा तो सामान्य वर्ग के आरक्षण में 8 लाख की सीमा क्यों? क्या पिछड़ी जाति के लोगों के साथ भेदभाव है? पप्पू यादव का कहना था कि सरकार ओबीसी आरक्षण में 6 लाख की लिमिट पर क्रीमी लेयर तय कर रही है. हालांकि सामान्य वर्ग की 8 लाख की लिमिट को बहस में लाने के दौरान पप्पू यादव ने गलत तथ्य पेश कर दिए. पप्पू यादव पिछड़ी जाति से आते हैं. लेकिन खुद उन्हें नहीं पता है कि ओबीसी में क्रीमी लेयर की लिमिट 6 लाख पर नहीं बल्की 8 लाख पर है.

10 फीसदी कोटे के लिए संविधान संशोधन बिल पर चर्चा पर जवाब देने के लिए खड़े हुए सामाजिक कल्याण और आधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलौत ने भी भी पप्पू यादव की गलती की ओर इशारा किया. उन्होंने कहा कि पप्पू यादव ने कहा कि ओबीसी आरक्षण में क्रीमी लेयर की सीमा 6 लाख रुपए हैं. मैं उन्हें बता दूं कि क्रीमी लेयर की सीमा 6 लाख पहले हुआ करती थी हमारी सरकार ने क्रीमी लेयर की लिमिट 6 लाख से बढ़ाकर 8 लाख कर दी है. दरअसल 2017 में मोदी सरकार ने ओबीसी आरक्षण में क्रीमी लेयर की सीमा 6 लाख से बढ़ाकर 8 लाख कर दी थी.

10 फीसदी कोटे में 8 लाख की लिमिट और ओबीसी आरक्षण के क्रीमी लेयर के 6 लाख के लिमिट को लेकर लोगों में भ्रम की स्थिति पैदा हो गई है. ये भ्रम क्यों है?

क्रीमी लेयर क्या है?

सरकार ने आरक्षण को लेकर जो व्यवस्था की है, उसमें संपन्न लोगों को इससे अलग रखने के लिए एक आर्थिक पैमाना बनाया है. पिछड़ों के लिए ओबीसी आरक्षण में ये लिमिट 8 लाख की है. 8 लाख से ऊपर की आय वाले पिछड़े अपने सामाजिक पिछड़ेपन करे बावजूद अपनी आर्थिक हैसियत के लिहाज से उस ‘क्रीम’ समाज का हिस्सा माने गए, जिन्हें आरक्षण की जरूरत नहीं है. इसलिए 8 लाख के दायरे के क्रीमी लेयर के बाहर के दायरे के पिछड़े वर्ग के लोग ओबीसी आरक्षण की सुविधा का लाभ नहीं ले पाते हैं.

क्रीमी लेयर की ही तरह सरकार ने सामान्य वर्ग के 10 फीसदी कोटे में भी 8 लाख की लिमिट रखी है. सरकार ने माना है कि 8 लाख की सालाना आय से ऊपर वाले सामान्य वर्ग के लोगों को भी किसी तरह की आरक्षण की जरूरत नहीं है, जिस तरह से क्रीमी लेयर वर्ग को रिजर्वेशन की जरूरत नहीं है.

क्रीमी लेयर शब्द कहां से आया

सामाजिक और आर्थिक तौर पर पिछड़े वर्ग के निर्धारण के लिए सबसे पहले 1971 में सत्तनाथन कमीशन ने क्रीमी लेयर शब्द का इस्तेमाल किया था. क्रीमी लेयर के जरिए पिछड़े वर्ग में संपन्न और पढ़े लिखे तबके को सरकार की कल्याणकारी योजनाओं से अलग रखने की बात कही गई. मंडल कमीशन की सिफारिशें लागू करने के बाद जब ओबीसी आरक्षण की व्यवस्था की गई तो मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा.

मंडल कमीशन के अध्यक्ष बीपी मंडल.

8 सितंबर 1993 को हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने माना की क्रीमी लेयर के दायरे में आने वाले पिछड़े वर्ग के लोगों कों को सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक हैसियत के मद्देनजर इन्हें आरक्षण के दायरे से बाहर रखा जाए. उस वक्त क्रीमी लेयर की लिमिट 1 लाख रुपए रखी गई थी. यानी 1 लाख की सालाना आय से ऊपर वाले लोगों को ओबीसी आरक्षण से बाहर रखा गया.

बार-बार बदली गई क्रीमी लेयर की लिमिट

पहली बार क्रीमी लेयर की लिमिट 1 लाख रुपए रखी गई. उसके बाद आर्थिक विकास और महंगाई की दर के हिसाब से हर बार क्रीमी लेयर की लिमिट बढ़ाई गई. साल 2004 में क्रीमी लेयर की लिमिट बढ़ाकर 2.5 लाख रुपए की गई. इसके बाद 2008 में इसे बढ़ाकर 4.5 लाख रुपए की गई. इसके बाद 2013 में इसे फिर बढ़ाकर 6 लाख रुपए की गई. मोदी सरकार के आने के बाद 2014 में एक बार फिर लिमिट बढ़ी. अब ये लिमिट 8 लाख रुपए की है. जो अभी तक जारी है.