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सहारनपुर हिंसा ग्राउंड रिपोर्ट (पार्ट 2): राजपूत महाराणा प्रताप की मूर्तियां लगाएं तो दलित अंबेडकर की क्यों नहीं?

'ग्राम समाज की जमीन पर हम मूर्ति तो क्या बाबा साहेब की फोटो भी नहीं लगा सकते. पुलिस प्रशासन तुरंत हमें रोकने चला आता है. 5 मई, 2017 को हुई हिंसा इसी वजह से हुई थी'

Vivek Anand

एडिटर नोट: बीजेपी, इसकी वैचारिक शाखा आरएसएस और दलितों से पहचानी जानी वाली पार्टियां यहां तक कि बीएसपी भी, पिछले कुछ महीनों में दलित समुदाय से दूर हो रही है. इस समुदाय ने भारतीय राजनीतिक पार्टियों और समाज में खुद को स्थापित करने का नया रास्ता खोजा है. फ़र्स्टपोस्ट यूपी में घूमकर दलित राजनीति का जायजा लेगा. गांवों, शहरों और कस्बों में क्या है दलित राजनीति का हाल, जानिए हमारे साथ :

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सहारनपुर इलाके में पिछले कुछ वर्षों में अंबेडकर की प्रतिमाएं भी बढ़ी हैं और महाराणा प्रताप की भी. इस मामले में दलित और ठाकुर समुदायों के बीच तकरीबन एक होड़ सी दिखती है. हर दलित बहुल इलाकों में अंबेडकर की प्रतिमाएं लगाई जा रही हैं. इसका जवाब इलाके के ठाकुर महाराणा प्रताप की मूर्तियों से दे रहे हैं. अंबेडकर जयंती और महाराणा प्रताप जयंती को लेकर भी कुछ इसी तरह का मुकाबला है.


सहारनपुर के शब्बीरपुर गांव में 5 मई, 2017 को दलितों और ठाकुरों के बीच हुई हिंसा की एक वजह गांव में अंबेडकर की प्रतिमा से जुड़ा विवाद भी बताया जाता है. दलित इस हिंसा की मुख्य वजह इसे ही बताते हैं. शब्बीरपुर में 5 मई, 2017 को दलितों और ठाकुरों के बीच हुए झगड़े में 1 दलित और 1 ठाकुर समुदाय के युवक की मौत हो गई थी. दर्जनों लोग इस हिंसा में घायल हुए थे. इस हिंसा ने समूचे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जातीय तनाव पैदा कर दिया था. शब्बीरपुर गांव में इस हिंसा के बाद पैदा हुई कड़वाहट अब भी खत्म नहीं हुई है. दलितों और ठाकुरों के बीच मुकदमेबाजी अब भी जारी है. दोनों ही समुदाय के लोग जेलों में बंद हैं.

(फोटो: विवेक आनंद)

'हम मूर्ति तो क्या बाबा साहेब की फोटो भी इस पर नहीं लगा सकते'

शब्बीरपुर गांव के रहने वाले सुदेश कुमार बताते हैं कि गांव के रविदास मंदिर में अंबेडकर की प्रतिमा लगाए जाने की पूरी तैयारी थी. मंदिर के एक कोने में प्रतिमा को स्थापित करने के लिए स्टेज भी बना लिया गया था. लेकिन ऐन मौके पर ठाकुर जाति के लोगों ने पुलिस प्रशासन की मदद लेकर उन्हें अंबेडकर की मूर्ति स्थापित करने से रोक दिया. सुदेश कुमार कहते हैं, ‘यह जमीन ग्राम समाज की है. इस पर कोई विवाद नहीं है. लेकिन हम मूर्ति तो क्या बाबा साहेब की फोटो भी इस पर नहीं लगा सकते. पुलिस प्रशासन तुरंत हमें रोकने चला आता है. 5 मई, 2017 को हुई हिंसा इसी वजह से हुई.’

(फोटो: विवेक आनंद)

सुदेश कुमार शब्बीरपुर गांव के पूर्व प्रधान शिवकुमार के भाई हैं. शब्बीरपुर हिंसा के वक्त शिवकुमार ही गांव के प्रधान हुआ करते थे. हिंसा के बाद पुलिस ने शिवकुमार को गिरफ्तार कर लिया था. वो अब भी जेल में बंद हैं. उनपर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत मुकदमा दर्ज हुआ है. इसके बाद ठाकुर जाति से आने वाले सुमित कुमार को गांव का प्रधान चुना गया है. गांव के दलित कहते हैं कि उनके साथ सिलसिलेवार तरीके से नाइंसाफी हुई है.

5 मई को हुई हिंसा में मंदिर में स्थापित संत रविदास की मूर्ति को भी नुकसान पहुंचाया गया. दलित नाराजगी जताते हैं कि मूर्ति अब तक क्षतिग्रस्त है. प्रशासन ने इसे ठीक करने के लिए कुछ नहीं किया. ठाकुर जाति से आने वाले गांव के प्रधान सुमित कुमार से इस बारे में बात करने पर वो कहते हैं, ‘अंबेडकर की मूर्ति को लेकर हमारी ओर से कोई आपत्ति नहीं है. वो पुलिस प्रशासन से इजाजत ले आएं और मूर्ति स्थापित कर लें.’

(फोटो: विवेक आनंद)

दलितों का आरोप- हमें अंबेडकर की प्रतिमा लगाए जाने से रोका जा रहा है

मूर्ति को लेकर इस इलाके में कई विवाद हैं. शब्बीरपुर गांव के दलित शिवराज कहते हैं कि हमें तो अंबेडकर की प्रतिमा लगाए जाने से रोका जा रहा है. लेकिन शब्बीरपुर गांव से बाहर निकलते ही महेशपुर में एक नई महाराणा प्रताप की मूर्ति लगाई जा रही है. हालांकि पता करने पर जानकारी मिलती है कि वहां राजस्थान के किसी संत की मूर्ति स्थापित की जा रही है, जिसपर सभी समुदायों की श्रद्धा है.

शब्बीरपुर गांव से आगे निकलते ही एक कस्बा है बड़गांव. यहां भी एक मूर्ति विवाद चल रहा है. बड़गांव के रामपुर तिराहे पर महाराणा प्रताप की एक बड़ी सी मूर्ति लगी है. मूर्ति के पास ही चाट का ठेला लगाने वाले मनोज कहते हैं, ‘जिसकी लाठी उसकी भैंस की कहानी है साहब. 3 साल पहले इस मूर्ति को यहां ठाकुर जाति के कुछ युवकों ने बिना प्रशासन की इजाजत के स्थापित कर दिया. इस मूर्ति को लेकर पुलिस और ठाकुर जाति के युवकों के बीच झड़प भी हुई. लेकिन पुलिस भी उन्हें रोक नहीं पाई.’ प्रतिमा जिस मंच पर स्थापित की गई है वो टूटा-फूटा है. देखकर लगता है जैसे आनन-फानन में प्रतिमा स्थापित की गई है. यह इलाका देवबंद विधानसभा क्षेत्र में आता है. इस बारे में यहां के बीजेपी विधायक कुंवर ब्रजेश सिंह से बात करने पर वो कहते हैं कि यह प्रतिमा यहां पहले से ही है और इसको लेकर कोई विवाद नहीं है.

(फोटो: विवेक आनंद)

बीते 5 मई को सहारनपुर हिंसा का एक साल पूरा हो गया. इस मौके पर महाराणा प्रताप की इसी मूर्ति पर इलाके के राजपूत चेतना मंच नाम के एक संगठन ने माल्यापर्ण का कार्यक्रम रखा था. महाराणा प्रताप की मूर्ति पर फूल माला चढ़ाई गई. पास में मोमबत्ती जलाई गई और सहारनपुर हिंसा में मारे गए ठाकुर जाति के युवक सुमित राणा को श्रद्धांजलि दी गई. इस तरह के कार्यक्रम में आपसी भाईचारा की बात तो की जाती है लेकिन यह समुदायों के भीतर कड़वाहट फैलाने का ही काम करता है.

दो समुदायों के बीच संघर्ष का आधार यहीं से हो रहा है तैयार 

अपनी धार्मिक और जातीय पहचान को लेकर ऐसे छोटे-छोटे समूह रोज पैदा हो रहे हैं. और संकट पैदा करने वाले ऐसे समूह ऊंची जातियों के साथ दलितों के बीच से भी पनप रहे हैं. दो समुदायों के बीच संघर्ष का आधार यहीं से तैयार हो रहा है.

(फोटो: विवेक आनंद)

सहारनपुर से करीब 35 किलोमीटर की दूरी पर है खुशहालीपुर गांव. इस गांव को इलाके के सांसद राघव लखनपाल शर्मा ने गोद लिया है. गांव में राजपूत जाति के बाद दलितों की आबादी सबसे ज्यादा है. दलित शिकायत करते हैं कि उनके इलाकों की अनदेखी की जा रही है. गलियों की ढलाई नहीं हुई है, नालियां नहीं बनी है, पुलिया नहीं बनी है, कुंओं पर लोहे के जाल नहीं डाले गए हैं. यह सब नहीं हुआ है लेकिन एक मंदिर का निर्माण हो रहा है. दलित समाज अपने कंट्रीब्यूशन (योगदान) से गांव में रविदास मंदिर का निर्माण कर रहा है. इसके लिए पैसे जोड़ लिए गए हैं और काम तेजी से चल रहा है.

खुशहालीपुर गांव को स्थानीय सांसद राघव लखनपाल शर्मा ने गोद ले रखा है (फोटो: विवेक आनंद)

इन सबको देखकर लगता है कि इलाके के दलित अपनी पहचान को लेकर ज्यादा मजबूत हुए हैं. हक और अधिकार की बात एक तरफ है. लेकिन साथ में उन्हें भी हर जगह अंबेडकर की प्रतिमाएं चाहिए, संत रविदास के मंदिर चाहिए, अंबेडकर जयंती पर ज्यादा रौनक और तड़क-भड़क के साथ मनाए जाने की इजाजत चाहिए. खुशहालीपुर गांव में पिछले 14 अप्रैल को गांव के दलितों ने अंबेडकर जयंती पर बड़ा जलसा किया था. आसपास के गांव से समाज के लोग बुलाए गए थे. डीजे लगा था. बढ़िया खाना-पीना हुआ था. मेरे यह पूछने पर कि इस तरह के जलसे का आयोजन कब से हो रहा है. गांव के दलित विनोद सिंह बताते हैं कि पिछले साल से शुरू किया है. इस बार ज्यादा बड़े पैमाने पर प्रोग्राम किए थे.

प्रशासन ने दलितों को अंबेडकर जयंती मनाने की नहीं दी इजाजत

शब्बीरपुर गांव के दलितों ने भी इस बार अंबेडकर जयंती धूमधाम से मनाने का फैसला किया था. लेकिन तनाव पैदा होने के मद्देनजर प्रशासन ने उन्हें इजाजत नहीं दी. रविदास मंदिर के प्रांगण में ही डीजे लगाकर अंबेडकर जयंती मनाई गई. देवबंद में भी अंबेडकर जयंती बड़े पैमाने पर मनाने और जुलूस निकालने की इजाजत मांगी गई थी. लेकिन प्रशासन ने इसकी इजाजत नहीं दी. प्रशासन के सामने दलित समाज राजी हो गया लेकिन वो शिकायत करते हैं कि जैसे हमें अंबेडकर जयंती मनाने से रोका जाता है उसी तरह महाराणा प्रताप जयंती मनाने से क्यों नहीं रोका जाता. प्रशासन के सामने इस तरह के मसलों को सुलझाकर उस बड़ा बनाने से रोकने की बड़ी चुनौती है.