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Attention : मर्दों से बड़ी लकीर खींचने को तैयार हैं बॉलीवुड की महिला प्रड्यूसर्स

महिला प्रड्यूसर्स ने कैसे पलटकर रख दी है बॉलीवुड में फिल्मों के बिजनेस की बाजी बता रही हैं भारती दुबे

Bharti Dubey

मर्दों के दबदबे की दुनिया रही हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री का मिजाज बदल रहा है. एक तो अभिनेत्रियों को फिल्मों में ज्यादा बड़ी और दमदार भूमिकाएं मिल रही हैं, दूसरे कुछ अभिनेत्रियां प्रोड्यूसर बनकर अपनी फिल्मों से नई लकीर खींच रही हैं, उनकी फिल्में इंडस्ट्री के बंधे-बंधाए फार्मूले से बहुत हटकर हैं.

मिसाल के लिए पूर्व मिस वर्ल्ड और विश्व-अभिनेत्री(ग्लोबल एक्ट्रेस) प्रियंका चोपड़ा की बात करें तो वो प्रोड्यूसर बनकर आसान और सुरक्षित रास्ता चुनते हुए हिन्दी फिल्में बना सकती थीं. लेकिन प्रियंका का ध्यान क्षेत्रीय भाषा की फिल्मों पर है. प्रियंका के मराठी प्रोडक्शन वेंटिलेटर को इस साल नेशनल अवार्ड मिला, इस फिल्म में एक्टर से डायरेक्टर बने आशुतोष गोवारिकर मुख्य भूमिका में हैं.


प्रियंका ने मराठी फिल्म वेंटिलेटर को दमदार सहारा दिया, फिल्म में उन्होंने एक छोटी-सी भूमिका की, इस फिल्म के लिए एक प्रोमोशनल साॉन्ग भी गाया. ऐसा लगता है, प्रियंका हिन्दी फिल्म बनाने के बारे में जब तक पक्का फैसला नहीं ले लेतीं, वे क्षेत्रीय भाषा की फिल्म बनाने की राह पर चलती रहेंगी. पंजाबी और भोजपुरी में फिल्म बनाने के अतिरिक्त उन्होंने बच्चों के लिए एक फिल्म पहुना और एक डाक्यूमेंट्री गिरी राइजिंग भी बनाई है. प्रियंका हिन्दी फिल्म बनाने की हड़बड़ी में नहीं दिखतीं.

यशराज बैनर की कलाकार अनुष्का शर्मा चाहतीं तो मुख्यधारा की फिल्में बना सकती थीं लेकिन उन्होंने बतौर प्रोड्यूसर अपनी पारी की शुरुआत एक रोड-मूवी एनएच10 से की. अपने भाई कर्नेश शर्मा के साथ को-प्रोडक्शन में फिल्म बना रही अनुष्का ने यह फिल्म फिल्लौरी के साथ की. फिल्लौरी बाक्स ऑफिस पर खास कामयाब नहीं रही लेकिन इससे अनुष्का की राह रुकी नहीं. वो अपनी अगली फिल्म ‘परी’बनाने में जुट गई हैं.

रुस्तम, टॉयलेट एक प्रेम कथा और पैडमैन जैसी फिल्मों की को-प्रड्यूसर प्रेरणा अरोड़ा का नाम फिल्मी दुनिया में पिछले एक साल में तेजी से सामने आया है और उन्होंने अपनी समझबूझ के दम पर अलग टेस्ट की फिल्में देकर अपने इरादे जाहिर कर दिए हैं. नॉन फिल्मी बैकग्राउंड से आने वाली प्रेरणा अरोड़ा बॉलीवुड की सबसे तेजी से आगे बढ़ती निर्माताओं में से एक हैं.

प्रड्यूसर रिहा कपूर और उनकी बहन अभिनेत्री सोनम कपूर को फिल्में बनाते अब छह साल हो रहे हैं. हालांकि उन्हें अपने घर ही में पिता अनिल कपूर और भाई हर्षवर्धन के रुप में फिल्मों के लिए दो अभिनेता हासिल हैं लेकिन घर के बाहर से अपनी फिल्मों के लिए अभिनेता चुनने में दोनों को कोई हिचकिचाहट नहीं. दोनों की एक बड़ी कामयाबी रही फिल्म खूबसूरत के लिए बतौर अभिनेता पाकिस्तानी एक्टर फवाद खान को चुनना. अनिल कपूर बताते हैं " इस सब की शुरुआत आयशा से हुई.

रिहा तब 21 साल की थीं. कांट्रैक्ट और पैसे के अतिरिक्त बाकी सारा कुछ दोनों ने अपने बूते संभाला और‘खूबसूरत’को पर्दे पर उतारा. पूरी कास्टिंग रिहा ने की थी- शशांक घोष के साथ उसकी जुगलबंदी कमाल की थी. और फिर फवाद की उसने जिस तरह से मार्केंटिंग की वह भी बहुत असरदार था. उसने फवाद को बिल्कुल सही अंदाज में पेश किया और इसी वजह से फवाद को लेकर दर्शकों में आकर्षण पैदा हुआ.

फिल्म का पूरा लुक और किरदारों को लेकर सोच रिहा के दिमाग की उपज थी और डिज्नी पर इस बात का अच्छा असर पड़ा. खूबसूरत ने दोनों को लड़कियों की पसंद की फिल्म बनाने वाले प्रोड्यूसर के रुप में स्थापित किया. कुछ और प्रोड्यूसर भी महिला किरदारों की प्रधानता वाली गंभीर फिल्में बना रहे हैं लेकिन ‘लड़कियों की पसंद’ की फिल्म बनाने की राह इन्हीं दोनों ने चुनीं. इन फिल्मों में लड़कियों की समस्याओं का जिक्र रहता है और ये फिल्में आपका मनोरंजन भी करती हैं. हृषिकेश मुखर्जी की गुड्डी को छोड़ दें तो मुझे नहीं लगता कि किसी और ने लड़कियों के मसले पर फिल्म बनाई है.."

अनिल कहते हैं कि महिलाएं हमेशा ही रचनात्मक कर्मों से जुड़े उद्योग का हिस्सा रही हैं लेकिन पहले के वक्त में उन्हें अपना उचित श्रेय नहीं मिला करता था. बीते दशक में नजरिया बदला है और यह देखकर अच्छा लगता है. महिलाएं बड़े कारगर तरीके से फिल्म इंडस्ट्री पर अपनी छाप छोड़ रही हैं. बतौर एक्टर वे नये तर्ज की भूमिका निभा रही हैं, बतौर फिल्म प्रोड्यूसर ऑल फीमेल कास्ट के रुझान जता रही हैं और निर्देशक के रुप में फिल्म की पटकथा को अपनी दृष्टि और सौन्दर्य-बोध से बेहतर बना रही हैं.

पूरा फिल्म-उद्योग पहले की तुलना में बेहतर हो रहा है, बदल रहा है. बतौर पैरेन्टस् मैंने और सुनीता ने पालन-पोषण में हमेशा ध्यान रखा कि हमारे बच्चे अपने पर विश्वास करने वाले बनें और वही करें जो करना उन्हें अच्छा लगता है, इस बात की परवाह ना करें कि वे स्त्री हैं या पुरुष या फिर समाज किसी बात को लेकर क्या सोचता है. और आज हम पूरे गर्व से कह सकते हैं हमने कुछ अच्छा किया है क्योंकि सोनम और रिहा को अपने सपनों और इरादों को पूरा करते देखने से ज्यादा खुशी हमें और किसी बात की नहीं....यही जज्बा है जो उन्हें सबके लिए प्रेरणा का स्रोत और नौजवानों के लिए एक मिसाल बनाता है. निश्चित ही यह सिने-दुनिया का क्रांतिकारी दौर है.

रिहा अपनी तीसरी फिल्म वीरे दी वेडिंग को लेकर एक बार फिर चर्चा में हैं. दोनों बहनों(रिहा और सोनम) ने यह फिल्म अपने दम पर बनाई है जिसमें फिल्म के लिए रकम जुटाना भी शामिल है. दोनों ने ‘रिहसन’ की शुरुआत की है जो एक अफर्डेबल ब्रांड है और “इसकी अपील बाहर के देशों में भी है. रिहसन ने पाकिस्तान, बांग्लादेश सहित विदेशों में रह रहे एशियाई लोगों और भारतीयों का ध्यान अपनी तरफ खींचा है.’’

अनुराग कश्यप की देखरेख में फिल्मों के हुनर सीखने वाली अशी दुआ की बनाई अबतक दो फिल्में आ चुकी हैं. उन्होंने अपनी पहली फिल्म बाम्बे टॉकिज के नाम से बनाई जिसमें भारतीय सिनेमा का सौ साल पूरा होना दिखाया गया था. चार फिल्म-निर्माताओं ने उनके लिए चार छोटी फिल्में शूट की हैं. अशी चाहतीं तो बड़ी फिल्म बना सकती थीं क्योंकि सभी बड़े डायरेक्टर उनके साथ काम करने को राजी हैं लेकिन अशी ने कालाकांडी बनाने की सोची जो सेंसर बोर्ड की वजह से कुछ लटक गई. लेकिन सब्र रखना काम आया, फिल्म इस साल(2018) जनवरी में रिलीज होने वाली है.

लारा दत्ता और प्रीति जिंटा जैसी अभिनेत्रियों ने भी फिल्में प्रोड्यूस की हैं. प्रीति जिंटा की बनाई फिल्म इश्क इन पेरिस की रिलीज में कुछ रुकावट आ रही है लेकिन इरोस इंटरनेशनल के साथ बनाई लारा दत्ता की फिल्म दिल्ली चलो ने खूब प्रशंसा बटोरी है. दीया मिर्जा और शिल्पा शेट्टी के भी प्रोडक्शन हाऊस हैं लेकिन इनका फिल्म-प्रोडक्शन कुछ धीमा है.

वरिष्ठ पत्रकार भारती प्रधान का कहना है कि इस बात के लिए प्रशंसा करनी होगी मेकअप-रुम की आराम की जिंदगी को छोड़ ये अभिनेत्रियां अपना पैसा या फिर साख अपने पसंद के विषय पर लगा रही हैं. हर एक्टर की जिंदगी में एक वक्त आता है जब वह कुछ ऐसा करना चाहता है जिसकी पेशकश प्रोड्यूसर नहीं कर रहे. इसलिए, बतौर प्रोड्यूसर इन अभिनेत्रियों का कदम रखना और अपनी मनपसंद फिल्में प्रोड्यूस करना बहुत अच्छा है और शायद इससे इन अभिनेत्रियों के लिए पैसा कमाने का एक और विकल्प भी पैदा हो रहा है. ये अभिनेत्रियां अभी जोखिम उठा सकती हैं क्योंकि एकता कपूर को अपवाद मानें तो इन सबका एक्टिंग करिअर अभी पटरी पर है और प्रोडक्शन की राह पर नाकामी मिलती है तो सहारे के लिए अभिनय का करिअर इन अभिनेत्रियों के पास है.

फिर यह भी याद रखने की बात है कि ये अभिनेत्रियां सीमित बजट की मनोरंजक फिल्में बना रही हैं और फिल्म सिनेमाघरों में खास कमाई नहीं कर पाती तब भी उन्हें अपने निवेश पर रिटर्न की एक तरह से गारंटी है क्योंकि उन्होंने रकम निकालने के लिए अलग से तरीके निकाल रखे हैं. उनमें से कोई भी अभिनेत्री अपनी जमा-पूंजी को दांव पर नहीं लगा रही.

बहरहाल, ये सभी अभिनेत्रियां सोच-समझ की बहुत धनी हैं. सो, यह बात बिल्कुल तर्कसंगत जान पड़ती है कि उन्हें सारी जिंदगी गुड़िया बने रहना मंजूर नहीं, वे प्रोड्यूसर का ओहदा संभालकर अपनी मर्जी की फिल्में रजतपट पर उतारना चाहेंगी.’’

वो जिन्होंने1990 में खींची थी नई लकीर

सोनम कपूर और उनके बाकी हमजोलियों के फिल्म-प्रोडक्शन के क्षेत्र में उतरने के बहुत पहले इस राह पर अभिनेत्री से निर्देशक बनी पूजा भट्ट चलीं और राह बनाई. अपने पिता के बैनर तले सिमटे रहने की जगह उन्होंने बोल्ड और सेक्सुअलिटी का उत्सव मनाने वाली फिल्मों को निर्देशित और प्रोड्यूस किया. पूजा भट्ट ने 12 फिल्में का प्रोडक्शन किया जिसमें किन्नर की जिंदगी पर बनी फिल्म तमन्ना को अवार्ड हासिल हुए.

एकता कपूर ने रचा इतिहास

एकता कपूर को टेलीविजन की महारानी कहा जाता है लेकिन उन्होंने लीक से हटकर फिल्में बनाई हैं. उनकी ए-लिस्टर फिल्में भी गैर-परंपरागत और अलग मिजाज की कही जायेंगी. यह एकता कपूर के दिमाग का ही कमाल है जो उन्होंने डर्टी पिक्चर में सिल्क स्मिता की भूमिका के लिए विद्या बालन का नाम सोचा. नसीरुद्दीन शाह को इस फिल्म में एक बुढाते सुपरस्टार की भूमिका निभाने के लिए तैयार करना भी कोई कम कमाल की बात नहीं थी. एकता कपूर देश में जारी नैतिक पहरेदारी पर सवाल उठाने वाले विषय चुनती हैं. इसमें केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड पर भी सवाल उठाना शामिल है. वे इन बातों के बावजूद जोखिम उठाने से घबराती नहीं. उन्होंने लिपिस्टिक अंडर माय बुर्का जैसी फिल्म का समर्थन किया जबकि इस फिल्म के भारत में रिलीज होने के आसार बहुत कम थे.

एकता कपूर ने अब डिजिटल फार्मेट में कदम रखा है और कई तरह की चीजें लेकर आ रही हैं. इनमें जहां एक तरफ पहले से ज्यादा बोल्ड रागिनी एमएमएस है तो फिर दूसरी तरफ नेताजी सुभाष चंद्र बोस पर आधारित धारावाहिक भी.

भारती का कहना है कि एकता ने लगातार साहस दिखाया है. आप देखें कि उन्होंने वेबसीरिज के रुप में क्या चीजें सामने रखी हैं. इसमें एक तरफ आपको रोमी और जुगल जैसे किशोर के बीच पनपते समलैंगिक संबंधों की कहानी मिलेगी तो दूसरी तरफ सुभाष चंद्र बोस पर गहन-गंभीर शोध कर बनाई कथा भी. कथा रचने के किसी मोर्चे पर कोई और पहुंचे, इसके पहले ही वहां एकता कपूर पहुंच चुकी होती हैं. उन्होंने अपने मेलोड्रामाई पारिवारिक धारावाहिक के जरिए भारतीय टेलीविजन पर राज किया है.

फिल्म, टेलीविजन और वेब माध्यमों पर नये अवसर तलाशने का साहस दिखाया है और इन माध्यमों के मिजाज के हिसाब से चीजें बनाई हैं. एकता कपूर के मन में यह बात बिल्कुल स्पष्ट है कि वेब-माध्यम इंडिविजुअल कंज्यूमर(व्यैक्तिक उपभोक्ता) के लिए है और टेलीविजन एक ऐसा माध्यम जिसे पूरा परिवार साथ बैठकर देखता है इसलिए दोनों के लिए एक सी चीजें नहीं बनाई जा सकतीं. जिन फिल्मों की उन्होंने मदद की है, उसमें भी उन्होंने जोखिम उठाया है.

आखिर एलएसडी जैसी फिल्म का मददगार होने की बात कौन सोच सकता था? यही बात लिपिस्टिक अंडर माय बुर्का या फिर डर्टी पिक्चर जैसी फिल्मों के बारे में भी कही जा सकती है. इस वजह से मैं एकता कपूर को मनोरंजन-उद्योग में सक्रिय सबसे साहसी महिला मानती हूं. वह सिर्फ कहानी के विषय के साथ ही नहीं उसके माध्यम के साथ भी लगातार प्रयोग करती हैं.