श्याम बेनेगल की फिल्म नेताजी ‘सुभाषचंद्र बोस: द फॉरगॉटन हीरो’ याद है आपको?
यह फिल्म बनने के पांच साल पहले ‘फॉरगॉटन आर्मी’ नाम की एक डॉक्युमेंटरी बनी. इस डाक्युमेंटरी का निर्देशन किया था कबीर खान ने.
इस डाक्युमेंटरी में आजाद हिन्द फौज में शामिल रहे 86 साल के दो बुजुर्गों की नजर से ‘चलो दिल्ली’ मार्च के सफर का बयान किया गया है.
डॉक्युमेंटरी मार्च की कहानी कहती हुई आपको सिंगापुर, मलेशिया, थाईलैंड, बर्मा (अब म्यांमार) होते हुए भारत की सीमा तक ले आती है.
डिजिटल दुनिया में नया कदम
कबीर खान अब फिल्म-निर्माण की डिजिटल दुनिया में अपना शुरुआती कदम रखने जा रहे हैं.
‘एमेजॉन’ के साथ बन रही एक वेब सीरीज के लिए उन्होंने अपनी डाक्युमेंटरी का बुनियादी सामग्री के तौर पर इस्तेमाल किया है. फिलहाल इस वेब सीरीज का नाम भी फॉरगॉटन आर्मी ही रखा गया है.
फ़र्स्टपोस्ट के साथ अपनी एक खास बातचीत में कबीर खान ने आजाद हिन्द फौज के बारे में अपनी राय रखते हुए कहा, 'मुझे नहीं लगता कि नेताजी और आजाद हिन्द फौज की कोशिशों को इतिहास की समानान्तर ‘कथा’ का नाम दिया जा सकता है.'
उन्होंने कहा, 'हां मैं अपनी वेब सीरीज के जरिए भारत की आजादी के आंदोलन में उनके योगदान को एक खास नजरिए से पेश जरुर कर रहा हूं.'
'आप उनकी फिलॉस्फी को लेकर कोई फैसला सुना सकते हैं, उनके तौर-तरीकों को लेकर भी अपना निर्णय ले सकते हैं लेकिन पहले यह तो साफ हो जाय कि दरअसल वे लोग कर क्या रहे थे.'
बेनेगल की फिल्म का अलग था मिजाज
कबीर खान ने ध्यान दिलाया कि श्याम बेनेगल की फिल्म ‘नेताजी’ के जीवन पर आधारित एक ‘बायोपिक’ थी.
लेकिन एमेजॉन के लिए बनाई जा रही उनकी ओरिजनल सीरीज में फोकस नेताजी पर नहीं बल्कि आजाद हिंद फौज के सैनिकों पर होगा.'
अगर कहानी आजाद हिन्द फौज की है तो जाहिर है, उसमें नेताजी की मौजूदगी मुखर ढंग से आएगी लेकिन मेरी कथा का मुख्य जोर नेताजी पर नहीं है.
इसी वजह से मैंने उनके अचानक ‘गायब’ हो जाने को लेकर कायम रहस्य पर अपनी कहानी में ध्यान नहीं दिया.
बेहतरीन है कोशिश
हालांकि मैंने 1942 से 1947 के बीच के वक्त की एक अलग कथा-रेखा बुनने की कोशिश की है. इस वक्त आजाद हिन्द फौज का जौहर अपने उरुज पर था.'
इतिहास के पन्ने के हाशिए पर कर दिए गए इन अहम प्रसंगों से वक्त के गर्द-गुब्बार झाड़कर लोगों के सामने लाने का यह काम बेशक कबीर खान के लिए खुली हवा में सांस लेने जैसा अनुभव साबित हुआ है.
लेकिन ऐसा करने के पीछे उनका मुख्य मकसद इतिहास की बातों को एक संदर्भ देना भर है.
वे सामाजिक-आर्थिक परिवेश की रचना को अपने कला-कर्म का महत्वपूर्ण हिस्सा मानते हैं और यह बात उनकी आने वाली फिल्म ट्यूबलाइट पर भी लागू होती है.
ट्यूबलाइट में नया अंदाज
ट्यूबलाइट के बारे में एक ताजादम नई बात यह है कि फिल्म में भारत बनाम पाकिस्तान की चलताऊ कथाभूमि की जगह 1962 के भारत-चीन युद्ध का पृष्ठभूमि के रुप में इस्तेमाल किया गया है.
हालांकि कबीर ने एक था टाइगर, बजरंगी भाईजान और फैंटम जैसी फिल्में बनायी हैं जो भारत बनाम पाकिस्तान का कथानक लेकर चलती हैं.
लेकिन कबीर का कहना है कि ट्यूबलाइट में एक अलग कथा-विन्यास को पिरोने की जरुरत थी.
वे बताते हैं, 'फिल्म में युद्ध एक पृष्ठभूमि के तौर पर ही आया है. युद्ध तो इस फिल्म में कथा-विन्यास का हिस्सा भी नहीं है.'
इसलिए ट्यूबलाइट दरअसल किसी युद्ध की कथा कहने वाली फिल्म नहीं है.कहानी में युद्धस्थल के दृश्य न के बराबर हैं.
'हम इसमें यह नहीं तलाश रहे कि जंग क्यों हुई, कैसे हुई. फिल्म में बस एक ही किरदार ऐसा है जो जंग पर जाता है.'
आखिरी बार सलमान के साथ कबीर?
शायद यहां कबीर ट्यूबलाइट के उस किरदार का जिक्र कर रहे हैं जिसे सलमान खान ने निभाया है.
ट्यूबलाइट का निर्माण तीसरा मौका है जब सलमान खान कबीर के साथ काम कर रहे हैं.
कुछ ऐसी भी खबरें आई हैं जिनमें कहा गया है कि कला-कर्म की इस साझेदारी पर अब विराम लग गया है क्योंकि दोनों अपनी-अपनी रचनात्मक दुनिया में अलग-अलग राहों पर निकल पड़े हैं.
कबीर इस बात से इनकार करते हैं कि उन्होंने हृतिक रोशन को अपनी नई फिल्म के लिए साईन किया है. वे जोर देकर कहते हैं कि मेरा सारा ध्यान अभी अपनी वेब सीरीज पर है.
कहां बिजी हैं सलमान?
दूसरी तरफ सलमान खान टाइगर जिन्दा है की शूटिंग में व्यस्त हैं. यह एक था टाइगर की सीक्वल है.
एक था टाइगर के निर्देशन का जिम्मा कबीर खान ने खुद नहीं संभाला था. वे कहते हैं- 'मुझे लगता है कि एक था टाइगर के निर्माता के रुप में मैं असफल रहा. मेरा मानना है कि अच्छी फिल्म वही है जिसमें मैं ऐसा संतुलन साध सकूं कि कला की गुणवत्ता भी कायम रहे.
साथ ही फिल्म की कही-अनकही के बीच से दर्शकों के लिए मायने निकाल पाने के भी मौके हों.
उन्होंने कहा, 'बजरंगी भाईजान ने मेरे लिए यही किया और ठीक इसी कारण मुझे एक था टाइगर फिल्म का निर्देशन ना करने का कोई पछतावा नहीं क्योंकि सलमान के साथ मेरे कामकाजी रिश्ते इसी फिल्म से शुरु हुए.'
सलमान से बेहतर कौन!
सलमान खान के लिए कबीर के मन में बड़ी इज्जत है. अगर सलमान ने जोर नहीं लगाया होता तो शायद कबीर का सपना साकार नहीं होता.
वे बताते हैं, 'सुपरस्टार होने के बावजूद सलमान खान में गजब की विनम्रता है. जब आप उनके साथ काम कर रहे होते हैं तो आपको कभी नहीं लगता कि सारा कुछ उन्हीं के इशारों पर करना होगा.'
लेकिन अगर ‘टाइगर जिन्दा है’ फिल्म मैंने उनके साथ बनायी होती तो इसका मतलब होता कि मैं एक कामयाब फ्रेंचाइजी पर दांव लगा रहा हूं.
'मैं अभी इस यह कह पाने की स्थिति में नहीं हूं कि मेरे सारे कला-कौशल का बॉलीवुडीकरण हो गया है.'
वेब सीरीज प्रेम की क्या है वजह?
इसी वजह ने कबीर को वेबसीरिज बनाने की तरफ खींचा. हिन्दी की ज्यादातर मसाला फिल्मों को हर दर्शक-वर्ग तक पहुंचाने की कोशिश की जाती है.
लेकिन कबीर को इस बात की खास फिक्र नहीं कि उनकी बनायी फिल्म समाज के हर तबके तक पहुंच रही है या नहीं.
कबीर अपनी बात समझाते हुए कहते हैं 'मिसाल के तौर आजाद हिन्द फौज और जापानियों से इसके जुड़ाव की कहानी कहते हुए मुझे यह बताने की जरुरत नहीं कि जापानी भाषा का हिन्दुस्तान से कोई रिश्ता रहा है.
'ताकि वे आसानी से संवाद को हिन्दी में परोस सकें. जापानी लोग फिल्म में जापानी भाषा में ही बोलेंगे और यह बात एक फिल्म-निर्माता के रुप में सचमुच मेरे लिए बड़े राहत की है.'
क्या है कबीर खान की खासियत?
कबीर खान के कला-कर्म की एक खास विशेषता है गीतों का बैकग्राउंड के रुप में उपयोग. गीत उनकी फिल्म में कहानी को आगे बढ़ाने का काम करते है.
यह हिन्दी फिल्मों में प्रचलित नाच-गाने से तनिक अलग है. कबीर बताते हैं बजरंगी भाईजान में एक गाना था ‘कुकड़ूकू’.
वैसे तो यह बच्चों की मौज-मस्ती को ध्यान में रखकर ठेठ बॉलीवुड अंदाज में फिल्माया गाना जान पड़ता है.
लेकिन दरअसल यह फिल्म का सबसे ज्यादा राजनीतिक मिजाज वाला गाना है. मुर्गा इस गीत में एक रुपक की तरह है और ढाबा है हमारा पूरा देश.
कबीर इस अफवाह को भी खारिज करते हैं कि ट्यूबलाइट में सिर्फ तीन गाने हैं.
वे बताते हैं कि फिल्म में और भी गाने हैं और सभी गाने फिल्म की कहानी को आगे बढ़ाने का काम करते हैं.
एक साथ दोनों खान?
कबीर यह भी बताते हैं कि शाहरुख खान भले इस फिल्म में एक मेहमान(कैमियो) की भूमिका में हैं लेकिन उनका किरदार भी फिल्म की कथा से बड़ी मजबूती से जुड़ा है.
इस भूमिका का इस्तेमाल किसी बहाने के रुप में नहीं किया जा रहा ताकि नौ साल बाद पर्दे पर दोनों ‘खान’ को एक साथ दिखाया जा सके.
'अगर आप फिल्म देखेंगे तो आपको खुद ही महसूस होगा कि भूमिका किसी सुपरस्टार परफार्मेंस की मांग करती है.
कहानी के प्लॉट में यह भूमिका बड़ी अहम है और इस भूमिका के होने से पूरा प्लॉट बदल जाता है, शाहरुख इस भूमिका के लिए एकदम माकूल बैठते हैं.'
क्या चाहता है कबीर खान का दिल?
कबीर की दिली ख्वाहिश अब आमिर खान के साथ काम करने की है. ट्यूबलाइट स्वर्गीय अभिनेता ओमपुरी की आखिरी फिल्म होगी.
कबीर को इस बात का मलाल है तो खुशी भी. वे बताते हैं, 'मैंने अपनी पहली फिल्म काबुल की एक भूमिका को लेकर ओमपुरी से संपर्क किया था. तब वे व्यस्त थे और हमारे साथ सफर पर नहीं जा सके.'
उसी वक्त से मैं उनके संपर्क में था और आखिरकार उन्होंने बजरंगी भाईजान में एक छोटी सी भूमिका करने की बात मान ली.
उस वक्त उन्होंने मुझसे कहा कि अपनी अगली फिल्म में कोई बड़ी भूमिका देना. सुबह-सबेरे होने वाली शूटिंग के वक्त वे अपनी पंजाबियत का भरपूर परिचय देते हुए हमें रोज गले लगाते थे.