विनोद खन्ना को आज बॉलीवुड में उनके योगदान के लिए दादा साहब फाल्के अवॉर्ड दिए जाने का ऐलान किया गया.
विनोद खन्ना भले ही अब इस दुनिया में नहीं है लेकिन उनका जीवन और उनकी फिल्मों के लोग हमेशा फैन रहेंगे. दादा साहब फाल्के अवॉर्ड के वो असली हकदार थे और उन्होंने कैसे इस स्टारडम को कमाया, हम आपके लिए लेकर आए हैं उन्हीं की जिंदगी के कुछ अनसुने किस्से.
विनोद खन्ना की जिंदगी के बारे में अगर ये कहा जाए कि वो कई परतों में लिपटी थी तो ये शायद गलत नहीं होगा. ये उनके लिए तो बिल्कुल सटीक होगा जो अस्सी के दशक में पैदा हुए थे क्योंकि उनको विनोद खन्ना का सही स्टारडम देखने का मौका मिल नहीं पाया. ये एक ऐसे स्टार के लिए उपलब्धि मानी जाएगी जो लोगों के बीच मशहूर था एक ऐसे व्यक्ति के रूप में जिसकी कमज़ोरी वो सभी चीज़ें थी जिनको लेकर समाज का रवैया थोड़ा अलग रहता है.
मुझे है सेक्स की जरूरत
"जी हां मैं एक कुंवारा हूं और जब बात औरतों की होती है तो मेरा रवैया किसी संत की तरह नहीं होता है. मुझे भी सेक्स की जरुरत होती है बाकी लोगो की तरह. औरतों के बिना हमारा वजूद नहीं है. सेक्स के बिना हम यहां नहीं रहते तो लोगों को इस बात पर आपत्ति क्यों होती है जब मैं औरतों के साथ होता हूं?" यह बात विनोद खन्ना ने 1992 में न्यूज़ ट्रैक को इंटरव्यू में कही थी. यह उस वक़्त की बात थी जब विनोद खन्ना भगवान रजनीश के आगोश से बाहर निकल चुके थे और अपना खोया हुआ स्टारडम पाने की कोशिश कर रहे थे.
बॉलीवुड में खड़ा किया कॉम्पिटीशन
विनोद खन्ना पूरी तरह से सुपरस्टार मैटेरियल थे और उन्होंने अपने समकालीन अभिनेताओं की रातों की नींद हराम कर दी थी. अमिताभ बच्चन के स्टारडम को सबसे ज्यादा किसी से नुकसान हुआ था तो वो विनोद खन्ना ही थे. लेकिन विनोद ने अपने करियर के शिखर पर पहुंच कर इन सभी का त्याग कर दिया था. उन्होंने यह सब कुछ अपने करियर के एक शानदार फेज में पहुंच कर क्यों ठुकरा दिया था इसकी वजह की जानकारी कम है लेकिन अगर आप उस ज़माने के पीरीओडिकल और फिल्म मैगज़ीन को पढ़ें तो इसके बारे में कुछ चीज़ें निकल कर सामने आती है. ये भी आश्चर्य की बात है कि अमिताभ बच्चन, धर्मेंद्र, शत्रुघ्न सिन्हा से लेकर ऋषि कपूर के बारे में आपको किताबें मिल जाएंगी लेकिन अगर आपको विनोद खन्ना के बारे में कुछ जानना है तो शायद आपके सामने एक दीवार खड़ी मिलेगी. जो इंटरव्यू उन्होंने न्यूज़ ट्रैक को दिया था उसको देखने के बाद उनके जीवन के कई पहलुओं के बारे में जानकारी मिलती है. ये इंटरव्यू तब लिया गया था जब उन्होंने कविता दफ्तरी से दूसरी शादी रचाई थी.
ओशो से हुए थे प्रभावित
ये बात थी सन 1979 की जब विनोद का मन फिल्मों से उखड़ने लगा था. कुछ समय पहले उनको फिल्म निर्देशक महेश भट्ट ने पुणे में रजनीश से मिलाया था. जब मिलने का सिलसिला शुरू हो गया तो उसके बाद उनके ऊपर रजनीश के प्रवचनों का भी असर पड़ना शुरू हो गया. हालात ऐसे आ गए की विनोद खन्ना अपने शूटिंग लोकेशंस पर रुद्राक्ष की माला पहन कर आने लगे और उनके कपड़ों का रंग भगवा हो गया था. जब फिल्म की शूटिंग शुरू होती थी उसके ठीक पहले वो अपना चोगा बदलते थे.
जीवन का सत्य जानने के लिए त्याग दिया स्टारडम
शनिवार और रविवार के दिन वो नियमित रूप से पुणे जाने लगे. विनोद के अंदर इस नई तब्दीली का देखकर निर्माताओं की जमात में एक सुगबुगाहट फैल गई. जब पानी सर के ऊपर से गुजरने लगा तब तब आनन फानन में मुंबई के एक पांच सितारा होटल में विनोद खन्ना ने अपनी प्रेस कांफ्रेंस बुलवा ली. इस प्रेस कांफ्रेंस में विनोद को सवालों के बौछार नहीं झेलनी पड़ी क्योंकि वो अकेले बोलने वाले थे. अपने दो मिनट के स्पीच में उन्होंने अपने मन की बात कह डाली. उन्होंने इस बात पर मुहर लगा दी कि वो इंडस्ट्री से संन्यास लेने वाले हैं. उनके इस प्रेस कांफ्रेंस में उनका पूरा परिवार उनके साथ था.
संन्यासी बनकर अमेरिका तक जा पहुंचे
"उस वक़्त मैंने ध्यान लगाना शुरू कर दिया था. मेरे दिमाग में जीवन को लेकर कई सवाल आते थे और ये सभी सवाल मुझे बेहद परेशान करते थे. उसके पहले मेरे परिवार में दो तीन लोगों की मौत हो चुकी थी और वो सभी जवान थे. मेरे पास इन सवालों का कोई उत्तर नहीं था. मैं सोचता था कि एक दिन मैं भी ऐसे ही मर जाऊंगा बिना जीवन के सत्य को जाने" विनोद ने यह बात अपने न्यूज ट्रैक के इंटरव्यू में कही थी. इसके तुरंत बाद विनोद खन्ना ने ओशो के आश्रम का रुख कर लिया लेकिन कुछ समय के बाद जब रजनीश अमेरिका चले गए तो विनोद भी उनके पीछे पीछे हो लिए. वहां पर उनको आश्रम के बगीचे को बनाये रखने का काम दिया गया था.
लोग उड़ाने लगे थे मजाक
उसी साक्षात्कार में विनोद ने यह भी बोला था कि आश्रम जाने के पहले लोगों ने उनका मज़ाक उड़ाना शुरू कर दिया था. मेरे खुद के दोस्तों ने मीडिया में ये फैलाना शुरू कर दिया था कि मैं पागल हो चुका हुं और मुझे मानसिक उपचार की जरुरत है. जब विनोद ने ओशो आश्रम ज्वाइन करने का मन बनाया था तब भी वह दिन में 15 घंटे तक काम किया करते थे. काम की इस रफ़्तार ने उनको ये सोचने पर मजबूर कर दिया था वो ऐसा क्यों कर रहे हैं. उसी इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि जब तक आप काम करते रहते हैं तब तक आप फिल्म जगत के दुलारे रहते हैं लेकिन जब आप खुद की मर्ज़ी से काम करना शूरु कर देते हैं तब लोगों का नज़रिया बदल जाता है.
दरियादिल इंसान थे विनोद खन्ना
एफटीआईआईटी से पढ़ी निर्देशिका अरुणा राजे का विनोद खन्ना से पुराना सम्बन्ध था और उनके निर्देशन में विनोद खन्ना ने दो फिल्में की थीं. अरुणा राजे ने अपनी किताब फ़्रीडम में विनोद के कुछ पहलुओं पर रोशनी डाली है जिसकी जानकारी कम लोगों को है. अपनी किताब में उन्होंने एक क़िस्से का बखान किया है जो फिल्म रिहाई की शूटिंग के दौरान हुआ था. फिल्म ख़त्म होते होते फिल्म का बजट भी लगभग ख़त्म हो चुका था. अरुणा ने अपनी फिल्म के लिए ओवरसीज के कुछ डिस्ट्रीब्यूटर्स से उधार लेने के अलावा एनएफडीसी से दस लाख रूपये भी लिए थे. नौबत यहां तक आ पहुंची कि फिल्म के पहले प्रिंट को निकलने के लिए पैसे बिल्कुल भी नहीं थे.
नहीं थी मोहमाया में ज्यादा आसक्ति
फिल्म की डबिंग के दौरान जब विनोद को पता चला की माजरा क्या है तो बिना कुछ कहे वो अपनी गाड़ी के अंदर गए और कुछ समय के बाद अरुणा के हाथों में तीस हज़ार रुपये रख दिए और कहा कि जब उनके पास पैसे आ जाएं तब दे देना. उसी फिल्म की शूटिंग के दौरान अरुणा ने एक और किस्सा अपनी किताब में साझा किया है. जब रिहाई की शूटिंग अहमदाबाद के पास वडनगर में चल रही थी तब बजट के अभाव में फिल्म की पूरी यूनिट को काफी तंगी में काम करना पड़ता था. विनोद को जब यह बात समझ में आ गई तब उन्होंने पूरी टीम के साथ शूटिंग शेड्यूल उन्हीं के होटल में गुजारी जो बेहद ही सस्ता होटल था.
अहमदाबाद एयरपोर्ट से वडनगर आते वक़्त वो खुद ही अपना सामान लेकर आते थे और जब शूटिंग के दौरान उनकी जरुरत नहीं होती थी तब उनका ज्यादातर समय एक खटिया पर बीतता था. अगर अंग्रेजी का एक शब्द उधार ले तो विनोद खन्ना एक अलग फैब्रिक से बने थे. दुनिया की मोह माया में उनका ज्यादा विश्वास नहीं था. क्या मालूम शायद इसी वजह से उस ज़माने के सितारों को बड़ी राहत मिली होगी जब उन्होंने ओशो आश्रम का रुख किया था.