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Confession : बॉलीवुड में भी जल्दी होने वाले हैं कास्टिंग काउच पर खुलासे - विद्या बालन

विद्या बालन की फिल्म तुम्हारी सुलु की रिलीज से पहले पढ़िए उनका सबसे बेबाक इंटरव्यू

Abhishek Srivastava

विद्या की जल्द ही तुम्हारी सुलु रिलीज़ होने वाली है और यह उनकी ऐसी दूसरी फिल्म है जिसमें उन्होंने रेडियो अनाउंसर का किरदार निभाया है. पेश है विद्या बालन का सबसे बेबाक इंटरव्यू

क्या मेहनत करनी पड़ी आपको किरदार के अंदर घुसने के लिए?


जहां तक आवाज़ बदलने या मॉडुलेशन बदलने का सवाल है?  बिल्कुल भी नहीं. मैंने जब मुन्ना भाई की थी तब उस दौरान मैंने काफी मेहनत की थी और उस दरम्यान रेडियो काफी नई चीज़ भी थी इस देश में. मुझे याद है कि मैं कई रेडियो स्टेशन जाकर वहां के आरजे को ध्यान से पढ़ती थी. वो किस तरह से लोगों से बात करते हैं या फिर अपने कंसोल को किस तरह से कंट्रोल करते हैं. मैं उनसे पूछती थी कि अगर आपका दिन बुरा बीत रहा हो तो आप किसी श्रोता से किस तरीके से बात करेंगे.

अगर अभी की बात करें तो आजकल के आरजे काफी ट्रांसपेरेंट हो गए हैं. आजकल वो अपने श्रोताओं से कई बातों को शेयर करते हैं. कहने का सार यह है कि आजकल वो ज्यादा कम्युनिकेटिव बन गए हैं. तुम्हारी सुलु के लिए मैं रेडियो के एक लेट नाइट शो के दो छोटे कैप्सूल सुनती थी और उससे मुझे काफी आइडिया मिला. रही बात डिक्शन की तो फिल्म के सह लेखक विजय मौर्य हैं उन्होंने इसके लिए मेरी मदद की. फिल्म के निर्देशक सुरेश को आवाज़ के लिए शुद्ध हिंदी की बजाय थोड़ी ठेठ हिंदी वाली भाषा चाहिए थी.

विद्या, निजी ज़िन्दगी में आपने कभी किसी फ़ोन-इन प्रोग्राम के लिए फ़ोन लगाया है

नहीं, कभी नहीं. आमतौर पर मैं रेडियो बहुत ही कम सुनती हूं. शायद शर्मिंदगी होती है. जब मैं कॉलेज में थी तो रेडियो उन दिनों उतने उफान पर नहीं था. मेरे कॉलेज से निकलने के बाद रेडियो का स्वरूप काफी बड़ा गया था. उस वक़्त महज एक या दो स्टेशन हुआ करते थे जिसका आगे चलकर काफी वृह्द् रूप से विस्तार हुआ. रेडियो के किसी शो के लिए मैंने कॉल किया हो ऐसा मुझे याद नहीं आता है. मुझे याद है की बचपन मे मेरे लिए रेडियो का सबसे पसंदीदा मौका वो होता था जब एनाउंसर फरमाइशी श्रोता के नाम पढ़ते थे. बरेली से कानपुर से लेकर पता नहीं देश के किस कोने से श्रोता गाने के लिए अपनी फरमाइश भेजते थे. मेरी माँ बिनाका गीत माला अक्सर सुना करती थीं. मुझे अभी तक याद है कि मेरे दोस्त की मां रेडियो अक्सर सुना करती थीं. वो अपने किचन में खाखरा बनती थीं और साथ में एक कोने मे उनका रेडियो बजता रहता था. गाने के साथ वो भी गुनगुनाती थी.

आपने कभी नाइट बेस्ड शो रेडियो पर सुना है

जी हां बिल्कुल सुना है. मुझे याद है की जब मैंने पहली बार इस तरह का शो सुना था तब मैं पूरी तरह से अवाक हो गई थी. आपको ऐसा लगता है की रेडियो वाला एनाउंसर आपके बिल्कुल बगल में बैठा है और आपके कान में कुछ कह रहा है.  रेडियो का वो कंटेंट भले ही अपने नेचर में सेक्सुअल ना लगे लेकिन जो आरजे की आवाज़ और सांसों की जो रफ़्तार होती है वो सेक्सुअल लग सकता है. लेकिन इनमें से कुछ शरारत वाले भी होते हैं जो एसेक्सुअल चीज़ों को सेक्सुअल बना देते हैं. वो शब्दों के साथ खेलते हैं. तो जी हां मैंने ऐसे प्रोग्राम कई बार सुने हैं जब मैं अपनी कार में सफर कर रही होती हूं. जब आप रात में रेडियो स्टेशन बदलते हैं तब ऐसी आवाज़ अक्सर सुनने को मिल जाती है.

क्या किसी ने आपको ऐसे शोज के बारे में बताया था या फिर आपने खुद ही ढूंढा इस तरह के शोज को

नहीं नहीं, किसी ने मुझे इसके बारे में नहीं बताया था. इसकी खोज तो स्टेशन बदलने से हो जाती है. मुझे नहीं लगता है की कोई भी आपको यह कहेगा कि मैं इस तरह का शो रेडियो पर सुनता हूं. अगर सुनते भी होंगे तो इसका जिक्र शायद वो बाकी लोग के सामने ना करें.

इसका मतलब यह हुआ कि आपने मुन्ना भाई के लिए ज्यादा मेहनत की थी 

हा हा हा हा. जी हां मुझे ऐसा लगता है. खैर अब तो मैं बड़ी हो गई हूं इसलिए यह काम मेरे लिए आसान हो गया था.

तुम्हारी सुलु के प्रोमो की बात करें तो ह्रषिकेश मुखर्जी और बासु चटर्जी की फिल्मों की खुश्बू आती है. कितनी सच्चाई है इसमें

जब सुरेश ने मुझे इस फिल्म की स्क्रिप्ट सुनाई थी तब मुझे भी एहसास हुआ था की उनकी फिल्मों में जो सिम्प्लिसिटी होती थी वो तुम्हारी सुलु में है. इस फिल्म में किस भी तरह का जीवन का कोई भी कॉम्प्लेक्स प्रॉब्लम नहीं दिखाया गया है. जीने मरने वाली बात नहीं है. मिडिल क्लास परिवार में जो कुछ भी होता है वही दिखाया गया है. फिल्म के किरदारों को देखकर लगता है की आप उनको जानते हैं. जब सुरेश ने मुझे स्क्रिप्ट सुनाई थी तब फिल्म के सभी किरदार मेरे सामने खड़े हो गए थे और उसी वक़्त मैंने फिल्म को देख लिया था अपने दिमाग में.

यह फिल्म आपको किस तरह से मिली थी

इसका पूरा श्रेय मेरे ब्रदर इन लॉ केदार को जाता है. उसने मुझे ऐसे ही बताया था की वो सुरेश के साथ एक एड फिल्म के लिए काम रहे हैं. सुरेश उनके फर्म के लिए एक एड फिल्म बना रहा था. उसने मुझे यह भी बताया की उसका काम काफी शानदार है और वो मुझे एक फिल्म का आइडिया पिच करना करना चाहता है. मुझे केदार के क्रिएटिव इंस्टिंक्ट पर हमेशा से भरोसा रहा है और यह ऐसा पहली बार भी हो रहा था की केदार ने किसी का नाम मुझे सुझाया था. मिलने के बाद सुरेश ने मुझे जो स्क्रिप्ट सुनाई थी वो मुझे पसंद नहीं आई और मैंने उसको कुछ परिवर्तन करने के लिए बोला था. कुछ दिनों के बाद जब सुरेश वापस आया तब उसने मुझे यह कहा कि उसने पहली वाली स्क्रिप्ट को ख़ारिज कर दिया है लेकिन उसके पास एक और स्क्रिप्ट है और इस बार वो उसे सुनाना चाहता है. दूसरी बार उसने जो मुझे स्क्रिप्ट सुनाई थी वो तुम्हारी सुलु की थी. उस दफा पहली बार में ही मुझे कहानी पसंद आ गई थी.

विद्या अगर हम पीछे की बात करें तो हमारी अधूरी कहानी, कहानी 2, बॉबी जासूस से लेकर बेग़म जान तक, इन सारी फिल्मों को दर्शकों ने नकार दिया था. कह सकते हैं कि इन फिल्मों को साइन करने का निर्णय गलत था?

 मैं अपने निर्णय पर सवाल नहीं लगाती हूं. उस वक़्त जो मुझे सही लगा था मैंने वही किया था. पीछे देखने पर आपको ये लग सकता है की मैंने इस चीज़ पर ध्यान नहीं दिया था या फिर मुझे साइन करने के पहले थोड़ा वक़्त और लेना चाहिए था...ऐसी बातें आपके ज़ेहन में आ सकती है या फिर उस वक़्त मुझे कहना चाहिए था कि यह चीज़ थोड़ी अलग तरीके से होनी चाहिए. मैं अपनी हर फिल्म के लिए अपना 100 प्रतिशत योगदान देती हूं जो बाद में किसी बाहर वाले को आगे चल कर लग सकता है की कही ना कही फैसला लेने में ग़लती हो गई है. किसी फिल्म को साइन करने के वक़्त कौन सी चीज़ें मुझे मार्ग दिखती है इसका पता मुझे नहीं रहता है. मैं कोई लेखक या निर्देशक नहीं हूं इसलिए जो भी अच्छी चीज़ मेरे सामने आती है उसमे से मैं चीज़ें चुन लेती हूं. ऐसा हो जाता है की कई बार मुझे परेशानियां नहीं नज़र आती हैं या फिर वो नज़र भी आती हैं तो इसी बात की आशा रहती है कि आगे चलकर वो खुद ब खुद ठीक हो जाएंगी. लेकिन यह सब कहने के बाद मैं इस बात को ज़रूर कहूंगी कि इतने सालों में मैंने यही जाना है कि फिल्म के साथ क्या गलत हो गया था और उसकी वजह क्या थी, यह बताना बेहद ही मुश्किल काम है.

ऐसा भी हुआ था कि ये सारी फिल्में एक के बाद एक करके आई थी. इसकी वजह से आपको परेशानी हुई थी?

जी हां शुरू में बिल्कुल हुई थी. जब घनचक्कर फ़्लॉप हुई थी तो मुझे यही लगा था की चलो कोई बात नहीं सिर्फ एक फिल्म ही मेरी नहीं चली है. उसके बाद तो एक तरह से तांता लग गया था बॉबी जासूस, कहानी 2, बेग़म जान. जब हमारी अधूरी कहानी रिलीज़ हुई थी तब मुझे लगा की मेरे साथ क्या हो रहा है. मुझे लगा कि मैं बर्बाद हो गई हूं. उसी वक़्त मैंने खुद को अपनी फिल्मों से थोड़ा अलग रखना शुरू कर दिया और मन ही मन में कहती थी कि मैं चीज़ों को सिर्फ एक हद तक ही कर सकती हूं क्योंकि फिल्मों को बनाना एक सहयोग की प्रक्रिया है. या तो मैं फिल्म के हर डिपार्टमेंट में अपना दखल देना शुरू कर दूं या फिर सिर्फ अपने काम पर ध्यान दूं. मेरा बाकी चीजों पर वश नहीं है. ऐसे कई लोग हैं जो बाकी चीज़ें भी संभाल सकते हैं लेकिन मेरी रूचि सिर्फ एक्टिंग में है.

तो उस बुरे दौर में किन चीजों ने आपको प्रेरित किया था

देखिए मैं एक मूलत आशावादी किस्म की इंसान हूं. ये कमाल की बात है कि आप इस बात की आशा हमेशा करते हैं कि आपकी हर फिल्म चले. मुझे इस बात का पता नहीं है की मैं यथार्थ में हूं या फिर बेवकूफ़ों जैसे आशावादी हूं. लेकिन जब मैं अपने फिल्म के सेट पर होती हूं तो यह कतई नहीं सोचती हूं की यह फिल्म चलेगी या नहीं चलेगी या फिर मेरी पिछली फिल्म नहीं चली थी. इस सोच का मुझे काफी फायदा मिला है.

क्या ये कहना ठीक होगा की विद्या ने फिल्म जगत में अब ऐसा एक मुकाम बना लिया है कि हिट या फ़्लॉप उनको अब परेशान नहीं करती हैं? 

जी हां मैं ऐसा सोचती हूं. मैं उनके बारे में सोचती हूं लेकिन अब यह चीज़ें मुझे परेशान नहीं करती. मैं तो हमेशा यही सोचूंगी की मेरी हर फिल्म कामयाब हो और मेरा काम सभी को पसंद आए. लेकिन आप सही कह रहे हैं अब यह चीज़ें मुझे परेशान नहीं करती हैं. इसकी एक वजह यह भी है की बॉक्स ऑफ़िस का गणित मुझे समझ में नहीं आता है.

किस फिल्म के ना चलने का आपको बेहद अफ़सोस हुआ था?

जब कहानी 2 नहीं चली थी तब मुझे बेहद अफ़सोस हुआ था.

क्या वो दिन कभी आएगा जब आप अपने पति की फिल्म में काम करते हुए नजर आएंगी?

अगर मेरा बस चले तो कभी नहीं. मुझे लगता है कि अगर हम साथ काम ना करें तो यह शादी शादीशुदा जीवन के लिए काफी स्वास्थवर्धक होगा और यह सोच हम दोनों की है. हमने शादी के बाद ही यह फैसला लिया था की जहां तक हो सके हम एक साथ काम करने से पूरी तरह से बचने की कोशिश करेंगे. क्या मालूम ऐसी कोई नौबत आ जाए कि मैंने किसी फिल्म के लिए अपनी हामी दे दी हो और निर्देशक इनके पास पहुंच जाए फिल्म को प्रड्यूस करने के लिए. ऐसे मौक़ों में कोई कुछ नहीं कर सकता है. मुझे लगता है कि एक साथ काम करने से आपके निर्णय और विवेक पर थोड़ी बहुत परत जम सकती है.

विद्या 12 साल हो गए हैं, लगता नहीं आपकी एक फिल्म किसी खान के साथ आ जानी चाहिए थी. 

सच तो ये है कि मुझे आजतक किसी भी खान के साथ कोई भी फिल्म ऑफर नहीं की गई है. यहां तक की द डर्टी पिक्चर और कहानी के पहले भी किसी तरह का कोई ऑफर मुझे नहीं मिला था. उस दौरान जब यह फिल्में आई थीं तब शायद लोगों को लगा कि मैं सिर्फ महिला प्रधान फिल्में ही करती हूं. लेकिन मैं वही बात कह रही हूं कि इन फिल्मों के पहले भी मुझे उनके साथ काम करने का कोई ऑफर नहीं मिला था. सलमान और आमिर के साथ तो कभी भी नहीं अलबत्ता आमिर के साथ मैंने एक फिल्म का स्क्रीन टेस्ट दिया था. वो परिणीता के तुरंत बाद हुआ था और विशाल भारद्वाज उसका निर्देशन करने वाले थे. लेकिन यह बात भी सही है की मैं स्क्रीन टेस्ट में फेल हो गई थी. मुझे उनके साथ काम नहीं करने का कोई मलाल नहीं है क्योंकि मेरे करियर की दिशा अलग तरह की है.

विद्या आजकल पूरी दुनिया में हॉलीवुड के चर्चे हो रहे है की किस तरह से वहां के मशहूर प्रोड्यूसर हार्वे वाईंस्टाइन ने अभिनेत्रियों का शोषण किया. अब तो केवन स्पेसी और डस्टिन हॉफमैंन जैसे नाम चीन लोगों के नाम भी बहार निकल रहे है. आपको क्या लगता है बॉलीवुड में ऐसा कभी हो सकता है

देखिए सबसे पहले मैं आपको ये बता दूं की यह हर सेक्टर में होता है. औरतों के लिए ये बड़ा ही मुश्किल होता है की वो इसके बारे में बात करें. अंत में उंगली उन्हीं पर जा टिकती है. सारा ठीकरा उनके ही माथे फोड़ा जाता है की आपने ही उकसाया होगा. लोगों की इसी मानसिकता की वजह से वह औरतें जो बेचारी रेप का भी शिकार होती हैं वो भी चुप रहती हैं. अब जब लोग इसके बारे में बोलने लगे हैं तो ये बेहद ही अच्छी मुहिम और शुरुआत है.

#MeToo कैंपेन का शोर हिंदुस्तान में भी देखा गया था लेकिन मेरी समझ से उसका रिजल्ट शून्य ही कहा जायेगा क्योंकि किसी का भी नाम निकल कर बाहर नहीं आया.

ज़रा आप हॉलीवुड की अभिनेत्रियों की कमाई का अंदाजा लगाइये. वो अपने एक फिल्म से 20 मिलियन डॉलर कमा लेती हैं. वो बेहद ही शक्तिशाली हैं लेकिन फिर भी उनको यहां तक आने में सालों लग गये. उसके बाद भी लोग उनको आदर भाव की नज़र से देखते हैं. सेक्सुअल हरासमेंट एक ऐसी चीज़ है जिसके बारे में बोलना काफी कठिन काम है. बोलने के पहले कई रोड़े आपके सामने आते हैं. यह एक शुरुआत है जिसका मैं स्वागत करती हूं.

आपको क्या लगता है कितने सालों में लोगों के नाम बाहर आने शुरू हो जाएंगे?

आपको जानकर आश्चर्य होगा की यह जल्द ही होने वाला है. यह जल्दी होगा और कल भी हो सकता है.

क्या आपको इस तरह की परिस्थिति से कभी दो चार होना पड़ा है?

मैंने फिल्म जगत में आने के पहले कास्टिंग काउच इत्यादि के बारे में सुना था. लेकिन मेरा बैकग्राउंड एक गैर फिल्मी बैकग्राउंड है इसलिए मुझे हमेशा से इस बात का डर बना रहता था की कोई कुछ कह देगा जिसकी वजह से मेरी आंखों में आंसू आ जाएंगे और इसलिए पहले दिन से ही मैंने हमेशा से एक गैप बना कर रखा है.  यह एक तरह का मेरा डिफेंस मैंकेनिज्म था.

काम ख़त्म करो और सीधे घर वापस जाओ और किसी को कुछ कहने का मौका मत दो. आप सेट पर मस्ती कीजिए लेकिन दोस्ती सेट के आगे मत बढ़ने दीजिए. मैं इस बात को गर्व के साथ कह सकती हूं की मैं अगर किसी के साथ कॉफी पीने भी गई हूं तो अपनी मर्ज़ी से गई हूं. जहां कहीं भी मुझे किसी तरह की कोई असुविधाजनक वाइब की भनक लगी मैं वह से तुरंत निकल जाती हूं. किसी के चेहरे पर यह नहीं लिखा होता है कि वो दानव है.