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Interview : मैं इंटरनेट कॉन्टेंट का 'करण जौहर' बन जाऊंगा - तिग्मांशु धूलिया

डायरेक्टर तिग्मांशु धूलिया ने इस इंटरव्यू में अपना दिल खोलकर रख दिया है

Abhishek Srivastava

तिग्मांशु धूलिया का नाम फिल्म जगत के सेंसीबल निर्देशकों की श्रेणी में शुमार होता है. अपनी पहली फिल्म हासिल से कामयाबी बटोरने वाले तिग्मांशु ने आगे चल कर अपने निर्देशन की धार पान सिंह तोमर और साहब बीवी और गैंगस्टर सरीखी फिल्मों में दोबारा दिखाई.

तिग्मांशु की आने वाली फिल्म रागदेश रिलीज हो गई है जो मशहूर रेड फोर्ट ट्रायल पर आधारित है. एक बेबाक बातचीत में तिग्मांशु ने अपनी आने वाली फिल्म के अलावा यह भी बोला की उनको अगर मौका मिले तो पांच सालों में वो वेब सीरीज की दुनिया के करण जौहर बनने वाले हैं. उन्होंन इस बात का भी खुलासा किया की किस तरह से बालीवुड अपनी जड़ें खुद ही खोद रहा है.


Kunal Kapoor, Mohit Marwah and Amit Sadh in 'Raag Desh'

आपको लगता नहीं कि राग देश मशहूर रेड फोर्ट ट्रायल पर आधारित है लेकिन फिल्म का नाम थोड़ा भ्रमित करता है?

ये हो सकता है लेकिन फिल्म का पोस्टर भी तो कुछ कह रहा है. फिल्म के प्रमोशन के दौरान लोगों को बहुत कुछ जानने का मौका मिल जाता है. जब दबंग फिल्म रिलीज हुई थी तब उत्तर भारत को छोड़ कर आधे से अधिक  लोगों को समझ में नहीं आया था कि इसका मतलब क्या होता है और बाहुबली के वक्त भी ऐसा ही हुआ था. राग देश टाईटल ढूंढ़ते वक्त जब मैं रिसर्च कर रहा था तो इस बात का इल्म हुआ कि  अंग्रेजों को देश से भगाने ये आखिरी मौका था.

अगर आई एनए ना बनी होती और फौज में विद्रोह ना हुआ होता तो अंग्रेज विश्व युद्ध के बाद भी हिंदुस्तान पर कुछ साल और राज करते. लेकिन उनको लगा की जो फौज हमारी रक्षा के लिये है और जब वही उनके खिलाफ हो गये है तो देश  छोड़ने में ही भलाई है.फिल्म के टाईटल के लिये जब हम लोग जद्दोजहद कर रहे थे तब मुझ भारतीय शास्त्रीय संगीत का देश राग याद आया और फिर वही से  मैंने फिल्म का नाम लिया.

इस विषय पर फिल्म बननी चाहिये, इसका ख्याल कहां से आपको आया?

इसका आइडिया मुझे नहीं आया था बल्कि राज्य सभा टीवी के सीईओ गुरदीप सप्पल साहब ने मुझे इसका विषय दिया. इसके अलावा उन्होंने मुझे दो तीन और भी विषय दिये थे जिनमें सरदार पटेल और बोस के उपर फिल्में थीं. श्याम बेनेगल पहले ही बोस के उपर फिल्म बना चुके थे और रही बात सरदार की तो केतन मेंहता की सरदार में मैं बतौर सहायक निर्देशक का काम कर चुका था लिहाजा उसमें मेंरी रुचि कम थी.

इस तरह की फिल्म बनाने का मौका मुझे बालीवुड के तौर तरीकों में नहीं मिलता. आपको जानकर आश्चर्य होगा की जब  मैं एनएसडी में पढ़ाई कर रहा था तो हर कालेज की तरह वहा भी एक सहपाठी था जो सनक गया था और कैंपस में ही आवारों की तरह  घूमता था.

अपने सीनियरों से पैसे मांग कर उसका गुजारा चलता था. आजकल वो मुंबई में ही है. एक दिन मैं कोकिलाबेन अस्पताल के रास्ते हो कर जा रहा था तो सिग्नल पर उससे मेरी मुलाकात हो गई. जब खिड़की खोल कर उससे  मैंने हाय-हैलो किया तो उसने मुझसे सिर्फ इतना ही कहा की तिस्शु भाई बोस पर फिल्म बनाओ और उसके कुछ दिनों के बाद मुझे इस फिल्म को बनाने का मौका मिला. ये मुझे बडी अजीब सी बात लगती है.

मधुर और मिलन ने अपनी आने वाली फिल्मों के लिये इमरजेंसी का विषय चुना है, आपकी फिल्म भी कुछ वैसी ही.

मुझे इस बारे में  नहीं पता है. मैंने पान सिंह तोमर बनाई थी अब किसको पता उस वक्त की पान सिंह तोमर कौन है. लेकिन जब ऐसी चीजों के बारे में लोगों को पता चलता है तो यही कहते है कि इस विषय के बारे में पता होना चाहिये. बस चाहत इसी बात की होनी चाहिये की आप ऐसी फिल्म बनाये जो लोगों के जहन में जाकर बस जाये.

आपने बड़े सितारों के साथ काम नहीं किया है, इसकी वजह क्या है? बड़े सितारों के साथ काम करने का मन नहीं करता है.

क्यों नहीं करता है, जरूर करता है. लेकिन मैं उनके पीछे भाग नहीं सकता. उनसे मिलना, कल आना, परसों आना, देखेंगे, आगे करेंगे...ये सारी चीजें मुझसे नहीं हो पायेगी. जब मैं जवान था तब भी मैंने ये चीजें नहीं की और आगे भी चलकर ये सब चीजें नहीं करूँगा. मेरे फिल्म में मुझसे बड़ा कोई और नहीं हो सकता है. अगर ये लोग मेरे टर्म्स और कंडीशन में फिट बैठ रहे है तो ठीक है वरना नहीं. अक्सर देखने में आता है कि फिल्म जगत के जो तथाकथित तीन चार बड़े निर्देशक है उनके तीसरे या चौथे सहायक निर्देशक की फिल्म को करना इन बड़े सितारों को मंजूर है लेकिन ये बात भी सच है कि उनके लिये फिल्म तवज्जह नहीं होती है वो किसी और माजरे की वजह से ऐसी फिल्मों में काम करते है. मेरी विचारधारा उनके साथ मेंल नहीं खाती है.

तो ये कहना ठीक होगा कि जब भी आपने बड़े सितारों के साथ काम किया है आपके अनुभव अच्छे नहीं रहे?

नहीं ऐसी बात नहीं है. सैफ के साथ जब मैंने बुलेट राजा में काम किया था तो बड़ा मजा आया था और कभी किसी बात की दिक्कत सैफ के साथ नहीं हुई थी. सैफ  बड़े ही जहीन इंसान है. मुझे इस बात का पता है कि अगर कोई भी बड़ा सितारा मेरे साथ काम करेगा तो वो खुश ही रहेगा मुझसे. इस बात का यकीन मुझे 100 प्रतिशत है. लेकिन इससे पहले का जो स्ट्रग्ल जो होता है मैं उससे गुजरना नहीं चाहता हूं.

अभी हाल ही में नेटफ्लिक्स ने विश्व युद्ध 2 के बाद जो जापान में टोक्यो ट्रायल हुआ था उसको लेकर एक मिनी सीरीज बनाई थी, क्या आपके फिल्म का कांसेप्ट भी वैसा ही है?

जी हां, कुछ उस तरह का माहौल आपको राग देश में मिलेगा. ये भी द्वितीय विश्व युद्ध के बाद हुआ था. पीरियड वही है, यहाँ भी ट्रायल की बात हो रही है तो एक तरह से परिवेश समान हो जाता है. ये सब कुछ इतिहास में हुआ था. मशहुर हालीवुड फिल्म जजमेंट एट नुरमबर्ग भी ऐसी ही थी.

आजकल हम हालीवुड में देख रहे है कि जो वहा का बेस्ट टैलेंट है वो सिनेमा से निकल कर टीवी और वेब की दुनिया का रुख कर रहा है, क्या आप आने वाले सालों में बालीवुड में भी कुछ ऐसा ही देखते  हैं?

जी हां जोर जरूर पकड़ेगा और उसकी सबसे बडी वजह होगी सिनेमाघरों में टिकट के दर जो बहुत ज्यादा है. हम हालीवुड में कई सालों से देख रहे कि वहा पर ट्रांसफार्मर, स्पाइडरमैंन, द फास्ट एंड द फ्यूरियस, जंगल बुक जैसी  फिल्मेंं राज कर ही है. लेखकों का वहा पर एक समूह है जो इस तरह की फिल्मों से इत्तफाक नहीं रखता है. तो ऐसे लोग जो ड्रामा या थ्रिलर में स्पेजलाईज करते है उन्होंने कहा की टीवी और  वेब के प्लेटफार्म पर हम कांटेंट बनायेंगे.

आपको भी पता है कि वीएफएक्स  फिल्मों में स्क्रिप्ट नाम की चीज नहीं होती है. ब्रिटेन का टीवी हमेंशा से अमेंरिकन टीवी से आगे रहा है लेकिन जब से ये पलायन शुरू हुआ है अमेंरिकन टीवी का स्तर  बढ़ गया है. हर हफ्ते बालीवुड की कोई ना कोई फिल्म आ जाती है जिसकी वजह से हमारा रेवेन्यू भी घट रहा है.

आगे यही होगा की सिर्फ बड़ी फिल्में सिनेमाघरो में देखने को मिलेंगी और बाकी के कांटेंट के लिये आपको टीवी या वेब की शरण में जाना पड़ेगा. लेकिन इसको लेकर यही परेशानी है कि टीवी और  वेब पर चीजों को बनाने के लिये हमारे पास टैलेंट नहीं है. जिस तरह के शोज हम नेटफ्लिक्स और  अमेंज़न पर देख रहे है उसको मैंच कर पाना मुश्किल होगा. आगे क्या होगा कि वही लोग अपना स्क्रिप्ट हमेंं देंगे और कहेंगे की इसको भारतीय परिवेश में ढाल लीजिये.

क्या लगता है, आप खुद को पांच साल के बाद कहां देखते हैं?

मैं वेब की इस दुनिया पर राज करूंगा अगर मुझे मौका मिल जाये तो. मैं इस दुनिया का करण जौहर बन जाऊंगा.

तो इसका मतलब ये है कि आप ऐसे किसी प्रोजेक्ट पर काम करे हैं?

जी हां मैंने अपना इंटरेस्ट दिखाया है. चीजें तभी शुरू होती है जब दोनों पार्टियाँ कागज पर साईन कर ले, परेशानी इसी बात की है की सभी के सोचने का तरीका बेहद ही गलत है. जब मैं वेब पर जाऊँगा तो उस वक्त मेरे दर्शक सिर्फ हिंदुस्तान के  थोड़े ही होते है. पुरी दुनिया आपकी स्टेज बन जाती है. नारकोस तो आपने देखा ही होगा. अंग्रेजी भाषा ना होने बावजूद पुरी दुनिया ने उसे सब टाईटल के सहारे देखा. हमें भी ऐसी ही चीजें बनानी चाहिये जो दुनिया देख सके.

कुछ सालों के बाद टैलेंट डिंमाड में होगी. ऐसा नहीं है कि हम उसे कर नहीं पायेंगे सिर्फ सप्लाई कम रहेगा. इसकी वजह यही है कि इस तरह के टैलेंट को कभी भी हमने अपने देश में पनपने  नहीं दिया है. आप लड़ने के लिये अभी तैयार नहीं हो. दुनिया हमारी सिनेमा पर  हंसती है. जब वो लोग ला ला लैंड बनाते है तो धूम मच जाती है और हम यहाँ पर सौ सालों से वही चीज कर रहे है लेकिन फिर भी उस तरह की चीज नहीं बना पाते है. हम पचास के दशक में बनी सिंगिंग इन द रेन को आज नहीं बना सकते है. हमारे लोग ना धंधा करना जानते है और ना ही अच्छा काम, आखिर में तो सबको मरना ही पडेगा.

बुलेट राजा के दौरान क्या गलती हो गई थी?

देखो यार मैं विजय आनंद और राज खोसला साहब का बहुत बड़ा फैन हूं. इन दोनों ने तरह तरह की फिल्मेंं बनाई है. मेंरा भी मन था कि कुछ उसी तरह की फिल्म बनाऊँ जहाँ पर सभी मसाले होंगे. लेकिन बुलेट राजा के प्रेजेंटेशन में गड़बड़ी हो गई थी. परेशानी इस बात की हो गई की वो फिल्म मेरे इमेंज के खिलाफ चली गयी थी. अगर उस फिल्म में किसी और निर्देशक का नाम होता तो उस फिल्म को उतनी  गालियाँ नहीं पड़ती.

आपने  शेखर कपूर के साथ फिल्म  बैंडिट क्वीन और मणिरत्नम के साथ दिल से में काम किया था, क्या आप आज भी इन लोगों के संपर्क में हैं और मिस करते है?

देखिये इनको मैं मिस तो नहीं करता हूं लेकिन इनके काम का इंतजार मुझे हमेंशा से रहता है. शेखर जी से अक्सर मुलाकात हो जाती है. आजकल तो वो मुंबई से काफी समय के लिये बाहर गये है. जब भी वो मुंबई में रहते है तो अक्सर बिन बुलाये मेरे दफ्तर में आ जाते है. मनी सर से मिले काफी समय हो गया है. पिछली बार मैं उनसे  मुंबई में एक मास्टर क्लास के दौरान उनसे मिला था.

अनुराग कश्यप की फिल्म गैंग्स आफ वासेपुर में आपके अभिनय की भरपूर तारीफ हुई थी आप और फिल्मों में अभिनय क्यों नहीं करते?

फिल्मो में अभिनय करने के पीछे मेरे कुछ उसूल हैं और मैं उन पर चलता हूं. फिल्मों में मेरे ऊपर कोई हाथ नहीं उठा सकता है. मुझे फिल्मों में कोई मार नहीं सकता है. आप मुझे गोली से मार दीजिये मुझे कोई परेशानी नहीं है, लेकिन हाथ मेरे ऊपर कोई भी नहीं उठा सकता है. गैंग्स आफ वासेपुर में मेरी मौत गोली लगने की वजह से हुई थी. मैं फिल्मों में झांपड़ घूंसा नहीं खा सकता हूं. यही सब है और कुछ  नहीं. अगर फिल्म का रोल पसंद आ गया तो बिना पैसे के भी कर सकता हूं.

आनंद एल राय की फिल्म में काम करने वाले हैं जिसमें आप शाहरुख के पिता की भूमिका निभायेंगे, आपने पैसे के लिये इस रोल को अपनी हामी दी थी?

आनंद ने मुझसे बहुत पहले बोल दिया था इस रोल को करने के लिये. दरअसल इस फिल्म में बैलेंस है. 60 प्रतिशत दोस्ती के नाते और 40 प्रतिशत पैसे के लिये ये फिल्म मैंने की.

चलिये आखिर में आपसे पूछना पड़ेगा कि इरफान खान के साथ फिलहाल कुछ पक रहा है या नहीं?

मैं और इरफान एक आइडिया पर काम कर रहे है. परेशानी इसी बात की है कि मैं अब इरफान के साथ कोई भी फिल्म नहीं कर सकता हु. अब हम दोनों का  कांबीनेशन अपने आप में एक फ्रेंचाईजी बन चुका है जिसे मैं बिगाड़ना नहीं चाहता  हूं. उसे भी कर दिखाने का मौका मिलना चाहिये और मुझे भी.