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FILM REVIEW : अच्छे कॉन्टेंट से बगावत कर गई टाइगर की 'बागी 2'

पढ़ें टाइगर श्रॉफ और दिशा पटानी की फिल्म 'बागी 2' का ये रिव्यू

Abhishek Srivastava

'बागी 2' के क्लाइमेक्स में एक सीन है जब मनोज बाजपेयी टाइगर श्रॉफ को गोली मार देते हैं और फिर उसकी पिटाई करते हैं. शायद मेरी समझ से फिल्म का ये सबसे बड़ा कॉमेडी सीन है जिसको देखकर मैंने ठहाके लगाए. बहरहाल 'बागी 2' एक एक्शन फिल्म है और पहली बागी की परंपरा को ही आगे बढ़ाती है. इस फिल्म से एक बात साबित हो जाती है कि अब टाइगर श्रॉफ भी सलमान खान की तरह हो गए हैं. समीक्षक उनकी फिल्मों को कितनी भी गाली दे दें या फिर लतिया दें, टाइगर की फिल्मों के कलेक्शन पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है. अगर आपको टाइगर श्रॉफ की कलाबाजियां और एक्शन पसंद है तो 'बागी 2' को आप मिस नहीं कर सकते हैं. एक्शन के अलावा इस फिल्म में कुछ भी नहीं है. देखकर अच्छा लगता है की इस फिल्म में कहानी को कहने के लिए एक्शन के साथ-साथ हल्के फुल्के सस्पेंस का सहारा लिया गया है. एक मसाला फिल्म के लिए ये कोशिश काबिल-ए-तारीफ है लेकिन यहां कहना पड़ेगा - बेहद शुक्रिया आपका. कहानी भी ऐसी की बीच में ही कही दम तोड़ देती है.

कहानी एक कमांडो की है जो एक बच्ची को ढूंढने के मिशन पर निकलता है  


कहानी रणवीर सिंह (टाइगर श्रॉफ) की है जो भारतीय सेना का एक जांबाज कमांडो है. किसी वक्त पर नेहा (दिशा पटानी) के साथ उसको प्रेम था लेकिन अब नेहा की कहीं और शादी हो चुकी है. लेकिन चार साल के बाद जब रणवीर को नेहा का फोन कॉल आता है तब वह उससे तुरंत मिलने के लिए सेना से सात दिन की छुट्टी लेकर फौरन उससे मिलने चला जाता है. वहां पर उसको पता चलता है की नेहा की बच्ची को कुछ लोगों ने अगुवा कर लिया है और उसकी लाख कोशिशों के बावजूद उसका सुराग उसे मिल नहीं पाता है. नेहा रणवीर से अपनी बच्ची को वापस लाने की गुहार करती है. इसके बाद गोवा में बच्ची को ढूंढने के लिए रणवीर का मिशन शुरू हो जाता है. उसके इस मिशन में उसका सामना पुलिस फोर्स के दो बड़े अफसर मनोज बाजपेयी और रणदीप हुड्डा से होता है. नेहा की जान भी चली जाती है. बच्ची को ढूंढने की इस कोशिश में रणवीर के सामने कई रोड़े और उलझने आती हैं. लेकिन अंत में रणवीर अपने मिशन में कामयाब होता है और गुत्थियां सुलझ जाती है.

टाइगर, मनोज और रणदीप को देखने में मजा आता है 

कहने की जरुरत नहीं कि निर्देशक अहमद खान का फोकस इस फिल्म में बिलकुल साफ दिखाई देता है. एक्शन जितना परोस सकते हो परोस दो, अगर इसके साथ कुछ कहानी हुई तो वो दर्शकों के लिए बोनस समान ही होगा. लेकिन यहां पर मैं इस बात को जरूर कहूंगा कि जो एक्शन का लेवल हमने पहले बागी में देखा था उसके दीदार इस फिल्म में आपको नजर नहीं होंगे. अगर पहले बागी के एक्शन में सुर ताल लय और एक कमाल की कोरियोग्राफी थी तो वहीं इस फिल्म के एक्शन में मारधाड़ गोलीबारी और बमबाजी ज्यादा नजर आती है. टाइगर श्रॉफ से जिस बात की उम्मीद थी वो उसपर पूरी तरह से खरे उतरे हैं. इस बात में कोई शक नहीं है की मौजूदा एक्टर्स की जमात में उनके जितना शानदार एक्शन और कोई नहीं कर सकता है और उन्होंने एक्शन को एक अलग लेवल पर पहुंचा दिया है. ये भी सच है कि इस तरह की फिल्मों में किसी और चीज की उम्मीद रखना मसलन अभिनय या ड्रामा, बेईमानी ही होगी. फिल्म मेकर्स की नियत बेहद साफ है इस मामले में. अलबत्ता जब पर्दे पर मनोज बाजपेयी या रणदीप हुड्डा आते हैं तो अनायास एक उम्मीद बंध जाती है लेकिन वह कुछ पलों के लिए ही होती है. मनोज बाजपेयी, रणदीप हुड्डा और दीपक डोबरियाल का काम काम सधा हुआ है. हुड्डा के किरदार में कॉमिक टच है जिसे उन्होंने बखूबी अंजाम दिया है. लकिन ये भी सच है कि मनोज, रणदीप और दीपक को इस बात का इल्म था कि वो एक एक्शन फिल्म में काम कर रहे हैं. दिशा पटानी फिल्म में इंटरवल तक नजर आती हैं लेकिन इस तरह की फिल्म में भी उन्होंने अपना काम ईमानदारी से किया है. प्रतीक बब्बर एक चरसी के रोल में हैं और उन्होंने दिखाया है कि ओवरएक्टिंग क्या होती है.

एक दो तीन गाने का बेरहमी से कत्ल किया गया है 

'बागी 2' में कुछ चीजे हैं जिसकी वजह से आपको झल्लाहट जरूर होगी. फिल्म की शुरुआत चौथे गियर पर ही हो जाती है जब दो गुंडे दिशा पटानी की बच्ची को अगवा कर लेते हैं. लेकिन उसके बाद टाइगर का जब मिशन शुरू होता है तब बीच-बीच में उन दोनो की प्रेम गाथा फ्लैशबैक में आती रहती हैं जो मजा चौपट कर देती है. अगर उनके बीच के फिल्माए गए गाने अच्छे होते तो इसमें कुछ मजा हो सकता था लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं है. जैकलीन फर्नांडीज पर फिल्माया गया 'एक दो तीन'' गाने के वक्त यह झल्लाहट अपने चरम सीमा पर पहुंच जाती है. आपके सामने लगभग साढ़े चार मिनट तक शानदार गाने के ऊपर छुरियां चलती हैं और आप कुछ नहीं कर सकते हैं. लगभग ढाई घंटे की इस फिल्म में काटछांट करके इसे एक स्लीक फिल्म का रूप दिया जा सकता था लेकिन हिंदी फिल्में गानें, लव सीक्वेंसेस और सीन को खींचने की पहल से उबर थोड़े ही पाई है.

अहमद खान का निर्देशन कहां है फिल्म में?

अहमद खान एक जाने माने कोरियोग्राफर हैं और दस साल पहले उन्होंने जिन दो फिल्मों का निर्देशन किया था टिकट खिडकी पर उसका हश्र बुरा ही रहा था. बागी को एक अच्छा सिनेमा कही से भी नहीं कहा जा सकता. वह तो शुक्र है की फिल्म में टाइगर श्रॉफ है और इसका जाॅनर एक्शन है लिहाजा अहमद खान को उनकी पहली हिट फिल्म मिल जाएगी. टाइगर जब अकेले पच्चीस गुंडों से भिड़ जाते हैं विश्वसनीय लगता है और शायद यही फिल्म में अकेली चीज है जो वास्तविकता के करीब है. बागी की नीयत साफ है और इसके लिए इसकी तारीफ करनी पड़ेगी. एक्शन फिल्मों का शौक अगर आप रखते हैं तो जाइए देखकर आइए की टाइगर अकेले चार गुंडों के पैर खड़े खड़े कैसे तोड़ते हैं या फिर एक हेलीकॉप्टर के अंदर छलांग लगाकर कैसे उसको नेस्तनाबूद करते हैं. इसके अलावा अगर आप और किसी चीज की उम्मीद इस फिल्म से रखते हैं तो इसके जिम्मेदार आपके अलावा और कोई नहीं हो सकता है.