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EXCLUSIVE : अपनी पत्नी के निधन के बाद एक्टिंग में शशि कपूर ने दी थी बेस्ट परफॉर्मेंस

चौंकाने वाली बात है कि शशि कपूर ने अपने अपने फ़िल्मी करियर का सबसे शदार अभिनय उस फिल्म में दिया जब वो अपनी पत्नी के मौत के ग़म में पूरी तरह से डूबे हुए थे

Abhishek Srivastava

शशि कपूर का नाम फिल्म जगत के उन शानदार अभिनेताओं में शुमार है जिनके चाहने वाले तो बहुत थे लेकिन जनता या समीक्षकों का प्यार उन्हें अवार्ड नहीं दिला सका.

एक के बाद एक फिल्मों में अपने शानदार अभिनय से लोगों का ध्यान हर बार आकर्षित करने वाले शशि कपूर की किस्मत में अवार्ड्स की जगह कम ही थी. फ़िल्मफेयर ने उनको महज एक बार दीवार में उनके उत्कृष्ट अभिनय के लिये सम्मानित किया था. लेकिन शशि कपूर उन चुनींदा लोगों की श्रेणी में आते हैं जिनको नेशनल अवार्ड से सम्मानित होने का गौरव मिल चुका है.


सन 1986 में रिलीज हुई निर्देशक रमेश शर्मा की फिल्म नई दिल्ली टाइम्स जितनी ज़बरदस्त फिल्म थी उतनी ही रोमांचक उसके बनने की कहानी भी है. पत्रकारिता की पृष्ठभूमि में इस फिल्म ने बड़े ही शानदार तरीके से अपराध और राजनीति के बीच की सांठगांठ को बड़े ही सहज तरीके से रुपहले पर्दे पर जीवंत किया था. नई दिल्ली टाइम्स की कहानी एक सच्ची कहानी पर आधारित थी जब अस्सी के दशक मे इंडियन एक्सप्रेस के एडिटर अरुण शौरी ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ए आर अंतुले की अपराधिक गतिविधियों को अपने अखबार में छपा था.

इस फिल्म में एक अखबार के एडिटर का रोल निभाने वाले शशि कपूर ने अपने फ़िल्मी करियर का सबसे शानदार अभिनय इस फिल्म के लिए बचा कर रखा था, अगर यह बात कही जाए तो इसमें कहीं से भी अतिशयोक्ति नहीं होनी चाहिए. जरा गौर फरमाइए उन लोगों पर जो इस फिल्म से जुड़े थे - इस फिल्म के स्क्रीनप्ले को गुलज़ार ने लिखा था, कैमरे के पीछे थे सुब्रत मित्र जो सत्यजीत रे की फिल्मों को शूट करते थे, रेनू सलूजा फिल्म की एडिटर थीं और उस ज़माने के मशहूर आर्ट डायरेक्टर नीतिश रॉय ने फिल्म में अपना हुनर दिखाया था. कलाकारों की फ़ेहरिस्त में ओम पुरी, शर्मिला टैगोर और मनोहर सिंह जैसे दिग्गज कलाकारों के नाम शामिल थे.

जब फिल्म के निर्देशक रमेश शर्मा पहली बार शशि कपूर से मुंबई के ताज होटल में मिले थे तो वहीं पर अभिनेता जीतेन्द्र भी अपने मित्रों के साथ दूसरी टेबल पर बैठे थे. जब रमेश शर्मा ने अपनी कहानी की शुरुआत की तभी शशि कपूर अपनी जगह से उठ जीतेंद्र की टेबल के पास चले गए उनको ये बताने के लिए कि उनकी नई फिल्म के निर्देशक रमेश शर्मा है. रमेश के लिये यह बात बेहद चौंकाने वाले थी की शशि कपूर ने फिल्म की हामी कहानी सुने बिना दे दी थी.

कहानी सुनने के बाद जब बात फिल्म के बजट पर आई तो रमेश ने डरते डरते उनको ये बताया कि फिल्म का बजट महज 25 लाख है. यह अचरज की बात थी शशि कपूर के लिए. लेकिन महज १०१ रुपये लेकर शशि कपूर ने वो फिल्म साइन कर ली थी. इस पूरे प्रकरण का उल्लेख लेखक असीम छाबडा ने शशि कपूर के उपर उनकी किताब मे किया है.

जब शशि कपूर के फिल्म की पारितोषिक की बात आई तो उस वक़्त भी फिल्म के निर्माताओं को उनके मार्केट रेट देने में परेशानी आई. फिल्म बनाने वालों की परेशानी जब उन्होंने भाप ली तब उन्होंने कहा की की वह इस फिल्म के लिये महज १ लाख रुपये लेंगे इस शर्त पर की इस बात का खुलासा कोई भी बाहर नहीं करेगा. शशि कपूर नहीं चाहते थे की किसी को यह लगे की उनको काम की दरकार है.

फिल्म की शूटिंग जब 1984 के जुलाई और अगस्त के लिये निश्चित हुई तो शूटिंग के ठीक पहले उनकी पत्नी जेनिफ़र केंडल कि तबीयत ख़राब हो गई थी. शशि कपूर को अपने सारे काम छोड़ कर लंदन अपनी पत्नी के पास जाना पड़ा. वह ठीक हो जाएं - यह नियति को मंज़ूर नहीं था और सितम्बर 1984 में उनका देहांत हो गया. इस हादसे ने शशि कपूर को एक तरह से झकझोर दिया था. ऐसा कहा जाता है की अपनी पत्नी के देहांत के बाद वो एक तरह से टूट गए थे और उसके बाद ही उनका फिल्मों में काम करना लगभग ना के बराबर हो गया था.

अपने प्रोड्यूसर का पैसा बर्बाद ना हो, इसकी पूरी समझ शशि कपूर को थी लिहाज़ा उन्होंने अक्टूबर में फिल्म के शूटिंग के लिये हामी भरी. लेकिन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद दिल्ली में जो भयावह दंगे हुए थे उसकी वजह से फिल्म की शूटिंग को एक बार फिर से आगे बढ़ाना पडा.

इन दोनों प्रकरण की वजह से फिल्म का बजट भी बढ़ चुका था. आखिर में फिल्म की शूटिंग 1985 की शुरुआत में शुरू हुई लेकिन जब फिल्म बन कर पूरी हो गई तो उसके बाद भी इसकी परेशानियां ख़त्म नहीं हुई थीं. कई अदालती उलझनों से इस फिल्म को गुजरना पड़ा था. हद तो तब हो गई जब दूरदर्शन पर इसके प्रसारण को ऐन वक़्त पर रोक दिया था.

यह बड़े ही अफ़सोस की बात थी कि जब फिल्म रिलीज़ हुई तब शशि कपूर के इस असाधारण अभिनय कौशल को इस अद्भुत फिल्म में किसी ने नहीं देखा लेकिन यह शुक्र की बात थी इस फिल्म के लिए सरकार ने इसके निर्देशक रमेश शर्मा और शशि कपूर को उनके उत्कृष्ट अभिनय के लिये राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा. यह चौंकाने वाली बात है कि शशि कपूर ने अपने अपने फ़िल्मी करियर का सबसे शदार अभिनय उस फिल्म में दिया जब वो अपनी पत्नी के मौत के ग़म में पूरी तरह से डूबे हुए थे.