view all

मैं इंदिरा गांधी की जासूसी करूंगी: तापसी पन्नू

फ़र्स्टपोस्ट हिंदी की संवादाता रूना आशीष ने तापसी पन्नू से उनकी आने वाली फिल्म ‘नाम शबाना’ के बारे में बातचीत की

Runa Ashish

फ़र्स्टपोस्ट हिंदी की संवादाता रूना आशीष ने तापसी पन्नू से उनकी आने वाली फिल्म ‘नाम शबाना’ के बारे में बातचीत की. इस फिल्म में वो एक महिला जासूस का किरदार निभा रही हैं.

अभिनेत्री तापसी पन्नू का कहना है कि मुझे असल जिंदगी में अगर किसी की जासूसी करने को कहा जाए और मैं भूतकाल में जा पाऊं तो मैं पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की जासूसी करना चाहूंगी. उनकी जिंदगी में इतने उतार-चढ़ाव रहे हैं कि मैं उनके बारे में जानना चाहूंगी. अगर मैं 1970 की अदृश्य इंसान बन पाती तो मैं इंदिरा गांधी के आसपास घूमती रहती.


‘रनिंग शादी’ के बाद तापसी पन्नू की अगली फिल्म ‘नाम शबाना’ आ रही है. इसमें तापसी पन्नू ने एक महिला जासूस शबाना का किरदार निभाया है.

तापसी का कहना है कि इतिहास में जितना ज्यादा इंदिरा गांधी के बारे में जानना चाहूंगी उतना किसी और के बारे में नहीं. इंदिरा हर दो साल में नई शख्स हो जाती थीं. चाहे जब वे राजनीति में आई हों या उनका शासनकाल हो या आपातकाल हो या उनकी शादीशुदा जिंदगी हो.

तो क्या आप इंदिरा गांधी के जीवन पर बनी फिल्म में भी काम करना चाहेंगी क्योंकि विद्या बालन भी इंदिरा गांधी का रोल करना चाहेंगी.

कौन नहीं चाहेगा. वैसे भी इंदिरा जी पर एक नहीं फिल्मों की पूरी सीरीज

बनानी पड़ेंगी. उनकी जिंदगी के हर पहलू को जानने के लिए एक फिल्म से

काम नहीं चलेगा. जो भी ये फिल्म लिखेगा उसके लिए भी उतनी ही मुश्किल

होगी क्योंकि बहुत सारी जानकारियों को एक साथ जुटाकर लिखना आसान नहीं होगा.

आपने असल जिंदगी में कभी किसी की जासूसी की है. किसी लड़के की या चॉकलेट या आइसक्रीम के लिए डिब्बों की?

नहीं, मैंने कभी नहीं की. मुझे चॉकलेट और आइसक्रीम पसंद नहीं है. जहां

तक लड़कों की बात है तो मैंने किसी का पीछा नहीं किया है ओर मुझे यह नहीं पता कि किसी ने मेरा पीछा किया हो. फिर मैं इतना समय किसी पर

खराब नहीं कर सकती थी कि कौन लड़का है कैसे उसके बारे में पता लगाऊं. मैं

इतनी प्लानिंग नहीं कर सकती हूं.

‘नाम शबाना’ के बारे में कुछ बताइए?

यह फिल्म ‘बेबी जासूस’ से पहले की कहानी पर आधारित है. जहां पर मेरे रोल के बारे में दिखाया गया है वहां मैं कैसे किसी सीक्रेट प्लैन का हिस्सा बन सकती हूं. इस फिल्म में यह भी दिखाया गया है कि कैसे कोई जासूस चुना जाता है. उसकी ट्रैनिंग होती है और कैसे किसी मिशन पर जाता है. इसमें लड़की होने के नाते कुछ इमोशंस भी डाले गए हैं.

महिला जासूसों के बारे में भी इस फिल्म से बहुत कुछ सीखा और समझा. वैसे हमारे देश में महिला जासूसों पर फिल्में ना के बराबर बनी है. वैसे भी मोसाद (इजरायल की जासूसी संस्था) जो बहुत जानी मानी जासूसी संस्था है, उनका भी मानना है कि महिलाएं बेहतरीन जासूस बनती हैं. महिलाओं की सिक्स्थ सेंस उनकी इसमें मदद करती हैं. वे बहुत कुछ आसानी से समझ जाती हैं.

आपको अपने सिक्स्थ सेंस पर कितना भरोसा है.

बिल्कुल भी नहीं. मुझे किसी भी तरह से अपने सिक्स्थ सेंस पर भरोसा नहीं

है. मुझे जो जैसा कहता है मैं भरोसा कर लेती हूं. मुझे कोई भी आसानी से

बेवकूफ बना सकता है.

इसीलिए मैं जब ये फिल्म कर रही थी को मुझे बहुत दिक्कत आई थी क्योंकि मैं तो बिल्कुल ऐसी नहीं हूं ना. शबाना बिल्कुल भी एक्प्रेसिव नहीं है और मैं बहुत ज्यादा एक्प्रेसिव हूं.

और क्या समझा आपने महिला जासूसों के बारे में?

वैसे इस फिल्म के दौरान मैंने महिला जासूसों के बारे में बहुत कुछ जाना

और समझा. जैसे कि उनका काम बहुत जोखिम वाला भी है. ये सिर्फ लैदर की जैकेट और ट्राउजर्स पहनना ही नहीं है. ये बहुत ग्लैमराइज रोल हो जाता है.

मैंने फिजिकल ट्रेनिंग तो किया था लेकिन यहां बहुत कुछ समझना भी पड़ा. मैंने

जासूसों के बारे में बहुत कुछ पढ़ा है. चाहे वो ईरान के जासूसों के बारे में हो या सीआईए के बारे में या फिर अपने ही देश के जासूसों के बारे में ही क्यों ना हों.

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान इनायत खान और नैंसी विक नामक दो महिला जासूस जर्मनी के खिलाफ जासूसी कर रही थीं. फिर समझने की कोशिश की कि ऐसा क्या था इनमें जो वो जासूस बनने के लिए चुनी गईं. सिर्फ महिला होना या फिर कुछ और भी था.  वैसे भी जर्मनी में जाने वाले समूह में ये आखिरी लोग थीं जिन्हें भेजा गया. तो फिर ऐसा क्या था इनमें कि बाकी के लोग तो पकड़े गए लेकिन ये

महिलाएं आखिरी तक नहीं पकड़ी गईं.

मैंने इंटरनेट पर अपने देश की महिला जासूसों के बारे में भी पढ़ा. यूं तो मुझे बहुत कम जानकारी मिली लेकिन कुछ महिलाओं के बारे में मुझे जानने को मिला और उनके वास्तविक घटनाओं के बारे में जाना.