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किसी पर सोशल मीडिया में आरोप लगाने बजाये कोर्ट या पुलिस के पास जाएं- स्वरा भास्कर

इस फिल्म के निर्देशक अविनाश जी ने ये स्क्रिप्ट लिखी थी, तो फिल्म का नाम 'अनारकली आरावाली' रखा था.

Runa Ashish

अभिनेत्री स्वरा भास्कर जल्द ही अपनी नई फिल्म अनारकली ऑफ आरा के जरिए सिनेमा के पर्दे पर उतरने वाली हैं. फिल्म में स्वरा एक नाचने-गाने वाली आर्टिस्ट का किरदार निभा रहीं हैं. फिल्म में उनका बहुत ही बोल्ड किरदार  है. उनकी आने वाली फिल्म और उससे जुड़े अन्य मुद्दे पर उनसे बातचीत की रूना आशीष ने:

फ.पो-  टीवीएफ- द वायरल फीवर के सीईओ अरूनभ कुमार पर लगे आरोपों के संदर्भ में आपका क्या कहना है.


स्वरा-  टीवीएफ-द वायरल फीवर के सीईओ अरूनभ कुमार के खिलाफ अगर किसी महिला ने इतनी हिम्मत की है कि वो किसी पर ऐसे आरोप लगा रही हैं तो

उन्हें इतनी हिम्मत भी करनी चाहिए कि वो कोर्ट में जाएं. क्योंकि किसी भी तरीके से सोशल मीडिया और ट्विटर कोर्ट का काम नहीं कर सकते हैं.

फ.पो- आपको ये पूरी सोशल नेटवर्किंग पर विचारों का आदान-प्रदान कैसा लगता है.

स्वरा-  मुझे ये दोधारी तलवार लगने लगी है. एक तरफ इसे विचारों की अभिव्यक्ति का साधन मान लें तो दूसरी तरफ इसे कुछ लोग सड़क का नया रूप मानने लगे हैं. आप पहले लड़की को सड़क पर छेड़ रहे थे अब आपने ट्विटर पर छेड़ना और परेशान करने का काम शुरु कर दिया. इसमें तो आपका न नाम आता है न चेहरा आता है. अगर आप अपना नाम छुपा ले तो आपके लिए बड़ा ही आरामदायक हो गया है ये सब.

फ.पो- आप हमेशा ज्वलंत मुद्दों पर बोलती रहीं है जब किसी स्टार या किसी फिल्म की कहानी पर हमला किया जाता है तो क्या कहेंगी.

स्वरा-  आजकल हम एक ऐसे समय में रह रहे हैं जहां एक गुट को ये लगने लगा है कि उनकी जो पेरेंट पार्टी है, अगर वो सत्ता में हैं तो वो कुछ भी कर सकते हैं. वैसे भी सेंट्रल गवर्मेंट से ऐसा कोई भी पुख्ता मेसेज नहीं आया है.

दिल्ली में भी रामजस कॉलेज मे जो कुछ हुआ है. वो एबीवीपी के कुछ लोगों की पिछले कुछ समय से खुली हिम्मत का नतीजा है. एक तरह से गुंडई आ गई है उनमें. अब शायद सरकार उन्हीं लोगों की है या पेरेंट पार्टी की सरकार है इसलिए. अचानक से 2014 की मई के बाद एक के बाद एक गौरक्षक पैदा हो गए हैं. क्या इसके पहले गाय हमारी माता नहीं थीं. एक व्यक्ति के घर के अंदर फ्रिज मे मांस मिल गया इसलिए उसकी जान ही ले ली आपने.

फ.पो- आप कभी किसी की बायोपिक करना चाहेंगी.

स्वरा- हां, मैं इंदिरा गांधी की बायोपिक करना चाहूंगी लेकिन मुझे नहीं पता है कि आज के इस माहौल में ये कहां तक संभव हो सकता है. क्योंकि, मैं ऐसी कोई बायोपिक नहीं करना चाहती जिसमें कोई सेट तोड़ दे या हंगामा कर दे. वैसे अगर ऐसा बीजेपी की सरकार में होगा तो वो लोग तो खुश ही होंगे.

फ.पो- तो लगता है आपकी और बीजेपी की आयडियोलॉजी से मेल नहीं खाती हैं.

स्वरा-  देखिए, बीजेपी मीडिया में जो भी कुछ बोले लेकिन जब वो सड़कों पर कैंपेनिंग के लिए उतरते हैं तो उनका एक ही एजेंडा होता है नफरत का एजेंडा. मुझे देश की एक नागरिक होने के नाते अपने आस-पास जो हो रहा है उस पर अपने विचार रखने की आजादी है. मैं वोट देती हूं इस देश में. मैं बीजेपी की

समीक्षा कर रही हूं या मैं उनके विचार से सहमत नहीं हूं इसका मतलब ये भी

नहीं है कि मैं किसी और पार्टी की समर्थक हूं.

फ.पो- लेकिन देश के लोगों का मूड तो कुछ और ही है, मणिपुर मे पहली बार बीजेपी या गोवा में मनोहर पर्रिकर को केंद्र से जाना पड़ता है उत्तर-प्रदेश में तो

बहुमत आया और अभी मुख्यमंत्री घोषित करना बाकी है, लोग तो उन्हें बहुत

पसंद कर रहे हैं.

स्वरा- लोग तो हिटलर को बहुत पसंद करते थे वो भी भी चुन कर आया था 1932 में जब उसने चुनाव लड़ा था. दुनिया में नफरत की राजनीति इसीलिए चल रही है ना क्योंकि उसे सपोर्ट मिलता है. नफरत की राजनीति से तो ट्रंप भी जीत कर आया है ना. मुझे तो लगता है कि आजकल नफरत का ही दौर है.

फ.पो- आप ऐक्टिंग की दुनिया में कैसे पहुंच गई नहीं लगता है कि आप गलत जगह है आपको शायद राजनीति या समीक्षा जैसे काम करने चाहिए हैं.

स्वरा- शायद मैं जिस परवरिश से हूं ऐसा उस वजह से है. मेरी परवरिश प्रगतिवादी विचारधारा में हुई है. मैं जब जवाहर लाल यूनिवर्सिटी– जेएनयू में थी

तो इप्टा यानी इंडियन पीपल्स थिएटर एसोसिएशन का एक भाग जेएनयू- इप्टा हुआ करता था और मैं उसका भाग हुआ करती थी.

दिल्ली के थिएटर के बहुत ही जाने-माने निर्देशक हैं एनके शर्मा उनके ऐक्ट-वन ग्रूप में भी थी. तो मुझे लगता है कि कला सिर्फ एंटरटेनमेंट नहीं होती है.

ये तो कला को लेकर बहुत ही तंग नजरिया हो गया है. मुझे लगता है कि कला

में बदलाव की क्षमता होती है.

ट्रेलर लॉन्च पर फिल्मी अंदाज में पहुंची पूरी टीम

ट्रेलर लॉन्च पर फिल्मी अंदाज में पहुंची पूरी टीम

फ.पो- आपकी फिल्म अनारकली ऑफ आरा का ये नाम क्यों रखा गया.

स्वरा-  इस फिल्म के निर्देशक अविनाश जी ने ये स्क्रिप्ट लिखी थी, तो फिल्म का नाम 'अनारकली आरावाली' रखा था. लेकिन, हमें कुछ ऐसे उच्चारण भी सुनने मिले जिसमें अनारकली आरा-वाली की जगह लोग अरावली (पर्वतश्रृंखला) कह कर पुकार रहे थे. फिर हमें लगा कि फिल्म में नाम को लेकर हम कोई असमंजस नहीं रख सकते हैं.

फिर ना चाहते हुए भी मैंने 'अनारकली ऑफ आरा' के लिए हां बोल दिया. आरा

बिहार की राजधानी पटना के पास का एक कस्बा है जो ऐतिहासिक और सांस्कृतिक तौर पर से बहुत महत्व वाली जगह है. 1857 में जो देश का पहला स्वतंत्रता संग्राम था उसके स्वतंत्रता सेनानी वीर कुंवर सिंह वहीं के थे.

पहले जो भोजपुर राज्य हुआ करता था आरा उसकी राजनैतिक और सांस्कृतिक राजधानी हुआ करती थी. ये फिल्म वहां की जो स्ट्रीट सिंगर रही हैं और उन स्ट्रीट सिंगर के जीवन की कहानी है जो मैं कर रही हूं. इस फिल्म में आप पहली बार मुझे बहुत ही ग्लैमरस रूप मे देखेंगे.