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25 साल: फिल्मों के सफर पर हमको बहुत दूर ले जाएंगे शाहरुख

शाहरुख खान के करियर को बॉलीवुड में पूरे हुए 25 साल लेकिन अभी तो पार्टी शुरू हुई है...

Abhishek Srivastava

शाहरुख खान से एक बार उनके किसी प्रेस कांफ्रेंस के दौरान एक संवाददाता ने पूछा था कि वो दिल्ली से मुंबई जब पहली बार आए थे तो वो अनुभव कैसा था?

शाहरुख ने इसका जवाब इस संवाददाता को दे दिया तो उन्होंने शाहरुख से आगे पूछ ही लिया कि ये ही जवाब आपने एक अलग इंटरव्यू में कुछ और बताया था.


शाहरुख तपाक से बोले, लोग मुझसे ये ही उम्मीद करते हैं कि मैं हर बार कुछ अलग तरह का जवाब दूं.

इस वजह से दिल्ली से मुंबई के सफर की कहानी उन्होंने उसी वक्त अपने मन मे बना कर बता दी. हकीकत कुछ भी हो, शाहरुख खान का दिल्ली से मुंबई का सफर जैसा भी रहा हो, आज 25 साल के बाद हम सिर्फ उनका शुक्रिया अदा कर सकते हैं कि उन्होंने वो सफर चाहे जैसे भी किया हो लेकिन शुक्र है कि वो मायानगरी तो आए.

शाहरुख खान ने 25 सालों का अपना फिल्मी सफर पूरा कर लिया है और इस सफर में सफलता के झंडे गाड़ने के अलावा, उन्होने बॉक्स आफिस की परिभाषा बदली, करोड़ों दिलों को छुआ और युवाओं के रोल मॉडल की भूमिका बखूबी अदा की.

ये महज इत्तेफ़ाक की बाद है कि फिल्म जगत के इस चांद ने ईद के मुबारक दिन अपने फिल्मी सफर के 25 साल पूरे किये.

शाहरुख खान का फिल्मी सफर या फिर उनका जीवन किसी के लिये भी प्रेरणा स्रोत हो सकता है. टेलीविजन से अपने अभिनय के सफर की शुरुआत करने वाले दिल्ली के इस दुबले पतले लड़के ने शायद खुद भी नहीं सोचा होगा कि एक समय में वो फिल्म जगत पर राज करेगा.

शायद शाहरुख खान ने फिल्मों के गुण बचपन में ही सीख लिये थे जब उनके पिता एनएसडी कैंटीन के संचालक थे. स्कूल छूटने के बाद शाहरुख अपने पिता का हाथ बंटाने के लिये अक्सर कैंटीन जाया करते थे और बदले में उनको मिलता था उस वक्त अभिनय की बारिकियों को सीखने वाले विद्यार्थियों की कंपनी और उनका प्यार, जब वो उनकी गोद में बैठते थे.

राज बब्बर, रोहिणी हटंगणी और नसीरुद्दीन शाह कुछ ऐसे नाम हैं जिनसे उनकी मुलाकात बचपन के वक्त ही हो गई थी.

25 जून 1992 को जब दीवाना सिनेमाघरों में रिलीज हुई थी तब किसी को इस बात का इल्म नहीं था कि फिल्म में ऋषि कपूर के बाद सेकेंड लीड में काम करने वाला अभिनेता शाहरुख खान आगे चलकर सफलता की परिभाषा बदलने वाला है.

कई मायनों में शाहरुख खान को ऋषि कपूर का शुक्रिया भी अदा करना चाहिये क्योंकि जब यश चोपड़ा डर बनाने की सोच रहे थे तब शाहरुख खान के किरदार को आमिर और सलमान सरीखे लोगों ने सिरे से मना कर दिया था.

तब उस वक्त ऋषि कपूर ने यश चोपड़ा को कहा था कि वो शाहरुख खान से एक बार मिल लें और उसके बाद का सफर उनका कैसा रहा ये तो पुरी दुनिया जानती है.

अगर दुनिया कम जानती है या फिर नहीं जानती तो वो है शाहरुख खान के शुरुआती दिन जब फिल्म जगत में उन्होंने अपना पदार्पण किया था.

शाहरुख खान ने खुद ही बड़े इमोशनल भाव से इस साल के शुरु में अपनी फिल्मी दुनिया की शुरुआत के बारे मे बताया था जब वो समर खान की बुक 25 ईयर्स ऑफ ए लाइफ का विमोचन कर रहे थे, जिसे समर खान ने शाहरुख की जिंदगी पर लिखा है.

शाहरुख खान जब मुंबई पहली बार टीवी की दुनिया में काम करने के लिये आए थे तब निर्देशक कुंदन शाह और अजीज़ मिर्जा ने उनको संभाला था. यह उन दिनों की बात है जब फौजी की सफलता के बाद उनको सर्कस में काम करने का मौका मिला था.

रहने के लिये दोनों ने अपने ऑफिस के दरवाज़े उनके लिये खोल दिये थे जहां शाहरुख को सुबह 9 बजे जगा दिया जाता था क्योंकि ऑफिस का काम शुरु हो जाता था.  शादी के बाद भी जब उनका खुद का घर नहीं था तब अजीज़ मिर्जा ने अपना घर दिया उनको रहने के लिये.

बाद में जब शाहरुख खान एक अलग घर में शिफ्ट हुये. तब उनके पास इतने पैसे नहीं थे कि वो किराया भी दे सकें, उस वक्त फिल्ममेकर राजीव मेहरा ने किराये के पैसे देकर उनकी मदद की थी.

आगे चलकर शाहरुख ने राजीव की फिल्म चमत्कार में काम किया. शाहरुख ने ये सब कुछ बताया और माना कि उनका स्टारडम उन शुरुआती लोगों के मदद के बिना कुछ भी नहीं है और मुंबई में यही लोग उनका परिवार हैं.

सफलता के शिखर पर पहुंचकर उन लोगों को धन्यवाद देना जो किसी वक्त में उनके काम आए थे ये बिरलों के ही बस की बात होती है.

बहुत कम लोगों को पता है कि जब शाहरुख खान को फिल्म बाजीगर के लिये सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्म फेयर अवार्ड मिला था तो उस समारोह खत्म होने तुरंत बाद भिंडी बाजार गये थे फिल्म के निर्देशक अब्बास और मस्तान को शुक्रिया कहने के लिये.

फिल्मों में शुरुआत करने के महज दो सालों के बाद अगर किसी अभिनेता को समीक्षकों और बॉक्स ऑफिस पंडितों का प्यार एक साथ मिल जाये तो दुनिया में उससे अच्छी चीज नहीं हो सकती.

शाहरुख खान ने ये कारनामा कर दिखाया था 1994 में जब उनकी बाजीगर और कभी हां कभी ना, दोनों फिल्मों के लिये बेस्ट एक्टर का अवार्ड मिला. ये शाहरुख खान का ही कमाल है कि जब हिंदी फ़िल्मों अपने मुनाफ़े के लिये हिंदुस्तान तक ही सीमित होती थी तब उन्होंने विदेशों मे भी फिल्मों के कमाने के दरवाज़े खोल दिये.

हिंदी फिल्मों के निर्माताओं के लिये आजकल विदेशों का मार्केट कुछ इस तरह बन चुका है कि अगर उनकी फिल्में हिंदुस्तान में व्यापार नही कर पाती हैं तो विदेशों मे कमा कर अपना मुनाफा पूरा कर लेती हैं.

शाहरुख खान से मुझे कई बार मिलने का मौका मिला है और एक चीज जो उनको बाकी अभिनेताओं से अलग करती है वो है सभी को महत्व देने की उनकी आदत.

नाम से वो लोगों को पुकारते हैं और जब बतौर व्यक्ति बात करते हैं तो उनको समय का ख्याल नहीं होता है यानी वो कुछ भी चीज अधपकी नहीं छोड़ते. ऐसा कुछ जरुर कर देते हैं कि सामने वाले को वो हमेशा याद रहें.

मुझे याद है जब 2007 में मेरा लंदन जाना हुआ था शाहरुख खान के साथ उनकी फिल्म ओम शांति ओम के प्रीमियर के सिलसिले में, जो वहां के प्रसिद्ध लेस्टर स्कावयर सिनेमा हाल में हुआ था.

प्रीमियर के बाद जब कॉपी फाइल करने की बात आई तो लंदन में नवंबर की कड़क सर्दी ने कॉफी की याद दिलाई. कॉफी लेने के दौरान होटल की लाबी में शाहरुख खान से मुलाकात हुई और हाल चाल पूछने के बाद उन्होने यही कहा कि काम तो हमेशा चलता रहता कभी रुक कर दम भी तो ले लो.

उनकी जिद की वजह से मुझे उनके प्राइवेट पार्टी में जाने का मौका मिला जहां सुपरस्टार शाहरुख नहीं बल्कि आम शाहरुख के दर्शन हुये.

सही मायनों में शाहरुख का गोल्डन पीरियड उनके 25 साल के बाद शुरु हुआ है. डीयर जिंदगी, रईस, जब हैरी मेट सेजल कुछ ऐसी फिल्में हैं जिनके बारे में कुछ सालों पहले तक हम महज सोच सकते थे. इसलिये क्योंकि शाहरुख का स्टारडम उनको प्रयोग करने से रोक रहा था.

लेकिन लगता है कि उनकी बेड़ियां अब खुल चुकी हैं. एक ऐसा शख्स जो जिंदगी की परिभाषा के काफी करीब नजर आता है. जरा गौर फरमाईये उन चीजों पर जो आप कुछ सालों पहले तक उम्मीद तक नहीं कर सकते थे लेकिन ये सब कुछ हो रहा है.

सलमान खान की होम प्रोडक्शन में काम करना, अक्षय कुमार की फिल्म के सामने अपनी फिल्म को पीछे कर लेना, टेड टॉक्स का हिस्सा बनना - ये सब कुछ उनकी महानता और समझ बूझ की ही एक कड़ी है जहां ईर्ष्या और द्वेष की कोई जगह नहीं है.