बॉलीवुड हमेशा से एक सॉफ्ट टारगेट रहा है. गुजरे कई सालों से फिल्म बनाने वालों को अपनी फिल्मों की रिलीज के वक्त अचानक शुरू होने वाले विरोध का सामना करना पड़ा है.
फिल्ममेकर्स की मजबूरी
एक बार एक डायरेक्टर ने मुझे बताया कि अगर फिल्म की रिलीज के वक्त कोई संगठन इसका विरोध नहीं करता है, तो इसका मतलब यह है कि फिल्म में लोगों की ज्यादा दिलचस्पी नहीं है. गुजरे सालों में कई बार विरोध का सामना कर चुके डायरेक्टर की हंसी उनके शब्दों से अधिक बातें बयान कर रही थीं.
इतिहास के साथ छेड़छाड़ का आरोप
राजपूत करणी सेना के सदस्यों ने संजय लीला भंसाली के साथ मारपीट की. यह हमला भंसाली की पीरियड फिल्म पद्मावती के सेट पर हुआ. फिल्म की शूटिंग जयपुर के जयगढ़ फोर्ट पर चल रही थी.
राजपूत करणी सेना के कई सदस्यों ने फिल्म का विरोध करते हुए निजी सुरक्षा को तोड़ दिया और इसके बाद डायरेक्टर के साथ मारपीट की और सेट पर तोड़फोड़ मचाई.
यह हमला उन अफवाहों के चलते हुआ जिनमें कहा गया था कि पद्मावती और अलाउद्दीन खिलजी के बीच एक रोमांटिक सीन फिल्माया जा रहा है. पद्मावती चित्तौड़ की रानी थीं और अलाउद्दीन खिलजी दिल्ली का सुल्तान था.
करणी सेना के राज्य अध्यक्ष महिपाल मकराना ने कहा, ‘राजस्थान के इतिहास को इस तरह से तोड़-मरोड़कर पेश करने से गुस्सा पैदा होना लाजमी है. राजनी जी ने किले की अन्य महिलाओं के साथ उस वक्त जौहर कर लिया था, जब उन्हें पता चला कि खिलजी किले पर कब्जा करने के लिए आगे बढ़ रहा है.’
विरोध में मारपीट करने का बन रहा ट्रेंड
बॉलीवुड फिल्मों पर पहले हुए हमलों के मुकाबले यह घटना इस लिहाज से अलग है कि इसमें इंडस्ट्री के एक बेहद सम्मानित सदस्य के साथ न केवल मारपीट की गई, बल्कि ऐसा उस वक्त हुआ जबकि फिल्म की अभी शूटिंग ही चल रही थी.
इंडस्ट्री के बाहर के कुछ लोगों ने तो फिल्म की स्क्रिप्ट भी देखी है, लेकिन उनका मानना है कि इसमें ऐसा कुछ नहीं है जिससे धार्मिक या जातिगत भावनाएं आहत होती हों.
हम देख रहे हैं कि विरोध प्रदर्शन करने का तौर-तरीका पुतला फूंकने से आगे बढ़कर मारपीट और हाथापाई के स्तर पर पहुंच गया है. बॉलिवुड भी आंशिक तौर पर इसके लिए जिम्मेदार है. हर बार जब भी कोई फिल्म या एक्टर हमले का शिकार होता है, इंडस्ट्री या तो सिर झुकाकर चलने के लिए मजबूर कर दी जाती है या फिर इंडस्ट्री मूक दर्शक बनी इसे देखती रहती है.
पूरे देश में हो रही ऐसी घटनाएं
1990 के दशक में केवल शिवसेना ही फिल्म इंडस्ट्री को धमकाती थी. मणिरत्नम की 'बॉम्बे' को रिलीज से पहले बाल ठाकरे ने सेंसर कर दिया था. शिवसेना ने दीपा मेहता की 'फायर' को दिखाने वाले थियेटरों पर तोड़फोड़ की. इसकी वजह यह थी कि यह फिल्म ‘भारतीय कल्चर को खराब’ कर रही थी.
भावनाओं की कद्र के नाम पर गुंडागर्दी
समस्या यह है कि अब इस तरह के गुंडे पूरे देश में फैल गए हैं. अजय देवगन को सन ऑफ सरदार की रिलीज से पहले शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की मंजूरी लेनी पड़ी.
लोहे की रॉड लिए बजरंग दल के सदस्यों ने अहमदाबाद में पीके की स्क्रीनिंग कर रहे थियेटरों में तोड़फोड़ की. राजकुमार हिरानी की पीके को लेकर देशभर में विरोध प्रदर्शन हुए क्योंकि इस फिल्म पर आरोप था कि इसमें हिंदुओं के भगवानों और भक्तों का मजाक उड़ाया गया था. आरोप था कि इससे हिंदुओं की भावनाओं को ठेस पहुंची थी.
छह महीने पहले ही करण जौहर ने एक वीडियो जारी कर वादा किया था कि आगे चलकर वह कभी भी किसी पाकिस्तानी कलाकार के साथ काम नहीं करेंगे. जौहर ने शनिवार को भंसाली के सपोर्ट में ट्वीट किया है.
रईस की अवरोध रहित रिलीज के लिए शाहरुख खान ने पिछले महीने राज ठाकरे से मुलाकात की थी. फिल्म मेकर्स ने पाकिस्तानी अभिनेत्री माहिरा खान को किसी भी प्रमोशनल एक्टिविटी में शामिल नहीं किया.
उठ खड़े होने की जरूरत
शुक्रवार को हुआ अटैक बॉलिवुड पर होने वाला पहला हमला नहीं था, न ही यह आखिरी होगा. ऐसे हमलों को रोकने के लिए बॉलिवुड को एकजुट होना पड़ेगा. फिल्म इंडस्ट्री को ऐसी गुंडागर्दी के खिलाफ एकसाथ आकर खड़े होने की जरूरत है.
सेलेब्रिटीज को महज ट्वीट कर हमले का विरोध करने से इतर और भी बहुत कुछ करने की जरूरत है.
इंडस्ट्री को ऐसी घटनाओं के खिलाफ कड़ा रुख अख्तियार करना होगा और सरकार पर दबाव बनाना होगा.