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'मेरी पर्सनल और प्रोफेशनल जिंदगी उतार-चढ़ाव से भरी रही है'

सैफ ने कंगना मामले पर कहा, उन्होंने मुश्किलों के बीच जो उपलब्धि हासिल की है मैं उसकी इज्जत करता हूं

Lakshmi Govindrajan Javeri

अभिनेता सैफ अली खान के लिए ये हफ्ता जश्न जैसा रहा. पिछले हफ्ते जैसे ही कालकांडी का टीजर रिलीज हुआ, वैसे ही यह खबर आई कि वह नेट फ्लिक्स की पहली मौलिक भारतीय सीरीज सैक्रेड गेम्स की सुर्खियां बन गए हैं. मुंबई की इस प्रसिद्ध और रहस्यमयी दुनिया में अलग किस्म के दो प्रोजेक्ट्स और प्लेटफॉर्म्स पर सैफ अली खान एक साथ खास किरदारों को अंजाम दे रहे थे.

यह बात इसलिए अहम है कि ये अदाकार पिछले दो साल से बॉक्स ऑफिस पर मुश्किल दौर से गुजर रहा था. लेकिन लगता है कि नवाबी रुतबे के साथ साथ मुख्यधारा और आजाद किस्म की भूमिकाओं के बीच संतुलन बना कर चलने वाले सैफ का यह ताजा पेशेवर चयन अभिनेता के रूप में उनकी कद्दावर शख्सियत को दोबारा स्थापित कर सकेगा.


रविवार को न्यूयॉर्क (वास्तव में न्यू जर्सी) से टेलीकास्ट होने वाले आईफा के 18 वें समारोह को करण जौहर और सैफ ने साझा रूप से होस्ट किया. टेलीविजन के चमकदार लेंसों के बीच सैफ का मामूली सा हंसी मजाक बाद में चर्चा का कारण बन गया. खास कर कंगना के भाई भतीजावाद की बहस को लेकर.

अपनी उदारवादी सोच और खुले खयालों के लिए लोकप्रियता और सम्मान हासिल करने वाले सैफ इस बेमानी हंसी मजाक के साथ खुद अपनी ही शख्सियत से अनजान जैसे दिख रहे थे. लेकिन दूसरी तरफ, इस साल वह जिस तरह के काम कर रहे हैं, वह उनके खुद अपनी सलाहियत को तौलने और पेशेवराना काबिलियत का दस्तावेज है. एक बेबाक और एक्सक्लूसिव बातचीत में सैफ ने अपने स्वभाव के मुताबिक हर उस सवाल का जवाब दिया, जो उनसे पूछा गया. पेश हैं बातचीत के खास अंश —

पुरस्कार समारोह हॉस्ट करने पर

मैंने कई अवार्ड शो’ज को एंकर किया है. ऐसे समारोह जिनमें ह्यूमर, मजाक होते हैं, हंसना हंसाना जिसका एक हिस्सा होता है. लेकिन इस बार जिस शो को

लेकर बहस छिड़ गई है, उसके लिए मैं खुद कुबूल करता हूं कि मैं अपना बेहतरीन परफॉरमेंस नहीं दे सका.

दरअसल, हमने एक खराब स्क्रिप्ट को बेहतर बनाने की कोशिश की. लेकिन अब मैं महसूस करता हूं कि कुछ चुटकुले या तंज तो मजाक या हंसने जैसे थे ही नहीं. शो के बाद मैं बहुत डिस्टर्ब हो गया. मेरे खयाल से मैं और करण जो समारोह होस्ट कर रहे थे, उसमें ह्यूमर लेवल और बेहतर होना चाहिए था. मैंने जो काम अब तक किया है या जो फिलहाल कर रहा हूं (कालकांडी, शेफबाजार और अब नेटफ्लिक्स का सैक्रेड गेम्स), उसे देखते हुए इस शो की एंकरिंग उस लेवल की नहीं थी.

दरअसल, हर चैनल का अपना अवार्ड शो होता है. इसका क्या मतलब हुआ? यही कि यह महज टीवी शो है. जहां फिल्म और टेलीविजन के सितारे जुटते हैं, नाचते-गाते हैं और मनोरंजन करते हैं. बजाय इसके कि खूबसूरत भड़कीली ड्रेस पहन कर बैठे रहें और चलते वक्त 'धन्यवाद' का भाषण पिला कर चलते बनें. कई बार मैं सोचता हूं कि हम सब ये क्यों करते हैं?

अगर आपके सामने पैसों की मजबूरी नहीं है, और आप यह भी जानते-समझते हैं कि आपका इस जगह क्या इस्तेमाल हो रहा है, क्या मिल रहा है, तो आप इसे दिल से अपनाते हैं, इसमें शामिल होते हैं; लेकिन यहां स्मार्ट बने रहना और हंसना-हंसाना आपकी फितरत में शामिल होना चाहिए क्योंकि आप इसका हिस्सा हैं. फिर आप ज्यादा पैसों की मांग करिए. या फिर, आप इस घनचक्कर से इसलिए दूर रहिए, कि आपको पता है कि आपकी अपनी पसंद क्या है, और आप अपने चयन को लेकर ईमानदार हैं.

मुद्दा बनाने को लेकर

मेरी निजी और पेशेवर जिंदगी अलग-अलग रंग-रूप और उतार-चढ़ाव से भरी रही है. लेकिन बेहतर बनने के लिए मैं हमेशा कड़ी मेहनत करता रहा. वीकेंड के अवार्ड शो में मेरे काम ने वास्तव में मेरी जिम्मेदारियों को कई मायनों में बढ़ा दिया है, कि मैं अपने ऊपर कुछ पाबंदियां महसूस करूं और कंटेंट हमेशा अच्छा ही पेश करूं.

लेकिन ऐसे फैसले रातों रात नहीं लिए जा सकते. बल्कि ऐसा पढ़ने, सोचने, अपना जायजा खुद लेने और चीजों को बड़े कैनवस पर समझने से होता है, जो मैंने धीरे-धीरे सीखा है. हां, मैंने अपने करियर में गलतियां की हैं, और शायद आगे भी करता रहूंगा. लेकिन इस साल बेशक मैंने अपने जीवन और अपने काम को लेकर एकबेहतर नजरिया तलाश किया है.

यह उस मुश्किल का उलटा है जो दरमियानी जिंदगी का मुश्किल होता है. बल्कि, यह जिंदगी के बीच का हल है, इरादा है. मुझे नहीं मालूम कि मैं जो रोशनी अपने भीतर महसूस कर रहा हूं उसे बरकरार रख पाऊंगा या नहीं. क्योंकि मैं महज इंसान हूं. लेकिन मैं जानता हूं कि मैं आज किस मकाम पर हूं.

कंगना और भाई भतीजावाद पर

कंगना ने मुश्किलों के बीच जो उपलब्धि हासिल की है मैं उसकी जबर्दस्त इज्जत करता हूं. हम एक दूसरे की तारीफ वाले समाज में रहते हैं. वह भी स्वीकार करती है कि महान माता-पिता के बावजूद मुंबई में मेरा शुरुआती जीवन भी उथल पुथल भरा रहा. मैं समझ सकता हूं कि भाई-भतीजावाद को लेकर कंगना के कहने का क्या मतलब है. हालांकि, मेरे खयाल उससे थोड़ा अलग हैं. लोग जानते हैं कि अपने माता पिता की वजह से मैं क्या था. लेकिन उसकी वजह से मेरे लिए सब कुछ बेहद आसान हो जाता, यह मुमकिन नहीं था, न ऐसा हुआ.

जरा उन फिल्मों की भीड़ की तरफ नजर डालिए जिनमें मैंने किरदार निभाए हैं. इनमें कई के अंजाम मेरे लिए तो बेहद खौफनाक ही रहे. और आप यह भी पाएंगे कि यह दौर कोई छोटा मोटा नहीं बल्कि लंबे वक्त तक चला. मेरे बारे में ऐसा माना जाता है कि मैं भी उन लोगों में शामिल था जिन्हें खास जिंदगी हासिल होती है.

पलने-बढ़ने और जीने के लिए खास माहौल मिला. हो सकता है यह सच हो; लेकिन यह सिक्के का एक ही रुख है. इसका दूसरा सच यह भी है कि पटौदी या भोपाल में पल कर बड़ा होना वैसा नहीं है, जैसी लोग कल्पना करते हैं.

मैं मानता हूं कि इस मामले में हमारी खास हैसियत थी कि हम किसी प्रोड्यूसर से मिल सकें, जो बेशक हैसियत के फायदे वाली स्थिति है. लेकिन सच यह है कि किसी जगह पर आपकी पारिवारिक हैसियत नहीं बल्कि आपकी सलाहियत और काबिलियत ही किसी मकाम पर आपको बरकरार रख सकती है. कई दूसरे स्टार सन हैं जो अभिनेता हैं, निर्देशक हैं, लेकिन लोगों की उनमें जरा भी दिलचस्पी नहीं है. क्योंकि उनमें योग्यता नहीं है, सलाहियत नहीं है.

भाई-भतीजावाद और वंशक्रम में भ्रमित हो जाना आसान है. हो सकता है कि पारिवारिक जीन्स में ऐसा कुछ हो, जो राज कपूर के उत्तराधिकारियों को अभिनेता और पटौदी केउत्तराधिकारियों को क्रिकेटर बना सकता हो. मेरे खयाल से, दरअसल यह सारा खेल यूजेनिक्स और जेनेटिक्स का है जो अपनी भूमिका निभाता है.

कालकांडी पर एक नजर

भारत में युवा अपनी पसंद का काम करना चाहते हैं. इसकी वजह अलग अलग हो सकती हैं. तो हर बच्चा, जिनमें मेरा बच्चा भी शामिल है, वह सिक्स पैक चाहता है, शरीर बनाना चाहता है, और बॉलीवुड ज्वाइन करना चाहता है. यह महत्वाकांक्षा एक सवाल खड़े करने वाली है. इसलिए मैं चाहता हूं कि मेरे बच्चे भी कानून, चिकित्सा या अन्य किसी क्षेत्र में करियर के बारे में सोचें.

जो भी हो, यह मामला खास हक के साथ पलने-जीने बनाम गलत ढंग से जीने का मामला है. फिर कहूंगा,भाई-भतीजावाद को गुटबाजी से भी भ्रमित नहीं करना चाहिए. कंगना जो कुछ कह रही हैं, शायद उसका मतलब यह है कि लोग अपने लोगों को ही आगे बढ़ाते हैं.

यह बात बेशक डिस्टर्ब करने वाली हो सकती है, लेकिन यह बात उससे बहुत अलग भी नहीं है जिसे हम स्टूडियो सिस्टम कहते हैं और जहां लोग अपनों अपनों को ही आगे बढ़ाते हैं. वास्तव में यह एक व्यवसाय है.

भाई-भतीजावाद तो यह है कि ट्रम्प किसी काम के लिए उस काम की योग्यता रखने वाले व्यक्ति के बजाय उस जगह पर अपने पुत्र को नियुक्त कर दें. भारत में आज ढेरों ऐसे मामले सामने आते हैं, जहां गैरबराबरी के अवसर होते हैं.

ऐसे में यह हैरत की बात नहीं कि लोग हमें विशेष अधिकारों के साथ जीने वाला व्यक्ति कहते हैं, मानते हैं. बॉलीवुड एक ऐसा क्रूर बाजार है जिसे भाई -भतीजावाद बढ़ावा देकर चरम पर पहुंचा सकता है.

बहरहाल, जहां तक आइफा का सवाल है, मेरे लिए आइफा में जाना एक मजाक की तरह है. लेकिन अब मैं सोचता हूं कि अगर हमें इस मौजू पर ज्यादा सोचने का मौका दिया गया होता तो शायद हम इस भाई-भतीजावाद को ज्यादा बेहतर ढंग से खत्म करते.

उनके बच्चों में मीडिया की दिलचस्पी

तैमूर के बारे में लिखा जाता है कि वह शरारती है. यह तब से ही शुरू हो गया था, जब उसका जन्म भी नहीं हुआ था. और अब जबकि वह बढ़ रहा है, तो अभिभावक के रूप में हमारे लिए सचमुच यह मुश्किल साबित हो रहा है कि हम उसकी पहचान एक जिम्मेदारी के दर्जे से कराएं और उससे कहें, 'नहीं, तुम

कुछ नहीं हो. तुम्हारी उपलब्धि कुछ भी नहीं है, जब तक कि तुम इसे खुद न हासिल करो.' यहां तक कि, वह जब 18 का होगा, प्रेस खुद ही उसे लॉन्च करेगा, तो भाई-भतीजावाद कहां से शुरू हुआ? प्रोड्यूसर मौकापरस्त होते हैं, कहेंगे 'ठीक है, हमें इसकी मार्केटिंग करने दो.'

घरेलू शख्स के रूप में

सारा जल्द ही बॉलीवुड में कदम रखने वाली है. यह फैसला उसका अपना है. उसके पिता एक अभिनेता हैं. उसकी दादी भी एक अभिनेत्री थीं. उसकी मां एक अभिनेत्री थीं, यानी घर का हर शख्स अभिनय के क्षेत्र से जुड़ा है. मैं यकीन के साथ समझ सकता हूं कि वह ऐसा क्यों करना चाहती है. मैं जानता हूं कि यह एक लुभावना काम है. फिर भी, मैं चिंतित हूं क्योंकि सबसे बड़ी बात यह है कि यह काम असुरक्षा से भरा हुआ है.

अभिभावक के रूप में, अपने बच्चों के लिए फिक्रमंद होना लाजिमी है. मैं उम्मीद करता हूं कि महज 'ग्लैमर' मेरे परिवार के किसी सदस्य को आकर्षित

नहीं करेगा, क्योंकि हकीकत में यह खोखला है. सारा के फिल्मों में डेब्यू के अलावा भी परिवार में बहुत कुछ हो रहा है. मैं उस वक्त बहुत बेफिक्र और सहज महसूस करता हूं जब नन्हा तैमूर मेरे पास होता है.

हम सच में अपने परिवार के साथ जीस्टाड, स्विट्जरलैंड में छुट्टियों के बारे में सोच रहे हैं. सारा और इब्राहीम उस वक्त न्यूयॉर्क में थे, जब मैं आइफा के लिए वहां मौजूद था. मैं बहुत खुश था. हमें कुछ वक्त साथ साथ बिताने का मौका मिला.

पिता के रूप में आज मैं यकीनन ज्यादा सहज और शांत महसूस करता हूं. हालांकि, रोमांच कहीं से कम नहीं हुआ है. सारा और इब्राहीम के समय, मैं खुद बहुच युवा था. तब मैं खुद अपनी महत्वाकांक्षाओं और करियर को जी रहा था. और तब मेरे बच्चे भी थे. लेकिन मैं सोचता हूं कि मैं अब भी वही इंसान हूं.

हालांकि, मेरी जिंदगी सरल और आसान हो गई है. मैं कम काम करना चाहता हूं, ताकि यह दौर मैं अपने लिए बचा कर उसे बढ़ा सकूं. ऐसा मुझे एक बढ़िया मौका हासिल हुआ है कि तैमूर के खिलौनों और किताबों के साथ मैं अपने बचपन को फिर से महसूस कर सकूं और तमाम चीजें फिर से सीख सकूं. वरना तो हम कुछ दायरों में सिकुड़ने लगते हैं. कुल मिला कर परिवार और काम के बीच मुकम्मल होने और महफूज होने का अहसास होता है.

यह कुछ वैसा है जैसा हाल में पूजा बेदी ने एक अखबार में लिखा है. और जो मुझे समझ में आता है: लोग घर पर रहते हुए ज्यादा प्रयास नहीं करते. लोग घर से बाहर निकल कर ही प्रयास करते हैं. तो मैं ज्यादा से ज्यादा प्रयास करना चाहता हूं और इसके लिए हमेशा तैयार रहना चाहता हूं.

अपने काम को फिर से सीखना

कालकांडी और कुछ अन्य काम जैसे शेफ और बाजार, जिसने संभवत: मेरे भीतर इस इच्छा की लौ जलाई कि मैं अपने काम और शिल्प को कड़ी मेहनत करके और ज्यादा पैना करूं, और ज्यादा बेहतर बनाऊं.

जब आप ऐसे बेहतरीन अभिनेता और अभिनेत्रियों के साथ काम करते हैं, जो स्वतंत्र, बेबाक और नैसर्गिक हैं, तो वे आपको सिर्फ बेहतरीन करने के लिए प्रेरणा देते हैं. मैं सोच रहा था कि कालकांडी की इस भूमिका की तह तक कैसे पहुंचा जाए, कैसे इसे महज चलताऊ जैसा न छोड़ कर, इसे कैसे विश्वसनीय बनाया जाए. मैंने इसके लिए बहुत सी किताबें खरीदीं ताकि मैं अभिनय और तकनीक जैसी चीजों के बारे में पढ़ सकूं.

इसमें ज्यादातर तो एकेडेमिक और होमवर्क पर आधारित मैटीरियल थे, लेकिन तैयारी के लिए यह सब बेहद जरूरी था. यह उन बेहतरीन फिल्मों में से एक है, जिनमें मैंने काम किया है. दीपक डोबरियाल और विजय राज बेशक रॉबर्ट डी नीरो और अल पचीनो जैसे हैं.

मैंने जैसा अभिनय इस फिल्म में किया है, वैसा मैंने किसी फिल्म में नहीं देखा. मैं इस अनुभव के लिए सिर्फ उन्हें धन्यवाद देना चाहता हूं. अक्षत वर्मा, (लेखक /निर्देशक) ने मुंबई की आत्मा को पर्दे पर उतार देने के लिए लाजवाब काम किया है. यह इस शहर की पहेलीनुमा दुनिया और उसकी जवाबी तहजीब को बेहद काबिलियत के साथ हाईलाइट करती है और इसके लिए जश्न मनाने की जरूरत है. एक ही फिल्म में मेरी और विजय राज की मौजूदगी कैसे हुई? हम में से किसी एक को आइटम होना था. किसी एक को चुटकुला होना था. लेकिन मुंबई हम दोनों के लिए थी. तो ऐसा ही फिल्म में हुआ.

सैक्रेड गेम्स पर

सैक्रेड गेम्स ऐसे समय पर आई जब मैं वेब प्लेटफॉर्म के लिए कुछ प्रोड्यूस करना चाहता था. मैंने सोचा था कि एक पुलिस/माफिया की कहानी सचमुच अच्छी साबित होगी और फैंटम (फिल्म्स) के जरिए वो हासिल हो गया.

बिना किसी सेंसरशिप और बिना किसी नियंत्रण के आप इस मंच पर भी उसी तरह क्रिएटिव होते हैं. और इसीलिए यह बहुत रोमांचक हो जाता है! विक्रम, आदित्य, और फैंटम के साथ काम करना एक असाधारण अनुभव होने जा रहा है. मैं इस बात से बेहद खुश हूं कि ये किताब पर आधारित है. मैंने स्क्रिप्ट पढ़ी है और मेरी ख्वाहिश है कि इस खास किताब को भी जरूर पढ़ूं.