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REVIEW TUBELIGHT : उम्मीद के मुताबिक 'रोशनी' नहीं कर पाई सलमान की ट्यूबलाइट

सलमान ने दिया उम्मीद से दोगुना लेकिन कबीर खान फेल हो गए

Abhishek Srivastava

क्या आपको यकीन है? जी हां, इस बात को निर्देशक कबीर खान ने हमसे बार-बार पूछा जब ट्यूबलाइट का प्रमोशन चल रहा था लेकिन जब हमने कबीर खान की ये फिल्म देख ली है तो अब इसका जवाब देने की बारी आ गई है.

इसका जवाब यही है कि यकीन तो बिल्कुल था लेकिन आप यकीन पर खरे नहीं उतरे.


बस सलमान 'और कुछ नहीं'

ट्यूबलाइट पूरी तरह से सलमान खान की फिल्म है जहां दर्शक और उनके चाहने वाले सलमान के एक नये अभिनय अंदाज से रूबरू होंगे लेकिन ये फिल्म एक अनुभव इसलिये नहीं बन पायेगी क्योंकि फिल्म सिर्फ सलमान के इर्द-गिर्द ही घूमती है.

सिर्फ सलमान को प्रमोट करने की कोशिश

कई मंझे हुये किरदारों के फिल्म में होने के बावजूद उनको पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया गया है. जिसका बुरा असर फिल्म की कहानी पर पड़ता है. ये फिल्म सलमान खान के एक्टिंग शेड्स को शो केस करने की महज एक कोशिश है.

भारत-चीन युद्ध की कहानी

फिल्म की कहानी की पृष्ठभूमि सन 1962 के भारत-चीन युद्ध की है. एक पहाड़ी इलाके के छोटे से कस्बे में दो भाई - लक्ष्मण सिंह बिष्ट और भरत सिंह बिष्ट साथ रहते हैं.

जिनका एक दूसरे के लिये प्यार कूट-कूट कर भरा है. दोनों ही भारतीय सेना के कुमाऊं रेजीमेंट में काम करना चाहते हैं. भरत यानि सोहेल खान की नैया तो पार हो जाती है लेकिन लक्ष्मण को उसकी मंदबुद्धि की वजह से मौका नहीं मिल पाता.

भरत अपनी रेजीमेंट के बॉस के सामने हाथ पैर जोड़कर कैसे भी लक्ष्मण को सेना का हिस्सा बना लेता है. जब चीन से युद्ध का ऐलान होता है तब मोर्चे पर भरत का जाना पड़ता है.

लड़ाई में चीन की सेना उसे युद्धबंदी बना लेती है. उसके बाद यही कहानी है कि कैसे लक्ष्मण खुद पर यकीन करके भरत को अपने पास ले आता है?

'बजरंगी भाईजान' जितनी मजेदार नहीं

अगर कोई कमर्शियल फिल्ममेकर अपनी फिल्म लेकर आता है तो उम्मीद इसी बात की रहती है कि उस फिल्म में मनोरंजन के सारे तड़के देखने को मिलेंगे. इस मामले मे कबीर खान अपनी पिछली फिल्म बजरंगी भाईजान में शत प्रतिशत नम्बर लेकर आए थे लेकिन इस बार ट्यूबलाइट में वो अपना पिछला रिजल्ट दोहरा नहीं पाये.

नतीजा ये है कि एक फील गुड फिल्म बनाने के चक्कर में कबीर से कई चीजें छूट गईं. सलमान खान की अपनी हर फिल्म में कुछ नया कर दिखाने की कोशिश बेहद ही सराहनीय है लेकिन जनता उनसे एक अच्छी कहानी की भी उम्मीद रखती है.

घिसट-घिसट कर चलती है स्टोरी

ट्यूबलाइट के शुरु में ही चीजों को स्थापित कर दिया गया है और उसके बाद पूरी फिल्म में एक ही बात को ही आगे घसीटा गया है कि सलमान खान का यकीन कैसे रंग लाएगा.

एक दर्शक के नजरिये से आपको पहले से पता चल ही जाता है कि इसका 'दी एंड' कैसे होने वाला है, लिहाजा थोड़ी देर के बाद आपका मन फिल्म से उचट जाता है.

एक्सपेरिमेंट हुआ फेल

कबीर खान की इस बात के लिए तारीफ की जानी चाहिए कि उन्होंने कुछ अलग कहने की कोशिश की है भले ही वो इस प्रयोग में नाकाम साबित हुए हों.

'रंगभेद' पर की चोट

कबीर खान ने ट्यूबलाइट के जरिये ये दिखाने की अच्छी कोशिश की है कि भारत के ही सुदूर प्रांतों में रहने वाले लोगों को खुद एक हिंदुस्तानी साबित करने के लिए कैसे संघर्ष करना पड़ता है? इसके लिए उनकी तारीफ करनी चाहिए.

सलमान ने दिया उम्मीद से 'दोगुना'

एक्टिंग की बात करें तो सलमान खान उम्मीद से दोगुने खरे उतरे हैं. एक मंदबुद्धि शख्स के रूप में उनके अभिनय का अंदाजा पहली बार देखने को मिलेगा और इस बात को देखकर बेहद खुशी होती है कि वो अब अपने कंफर्ट जोन से बाहर निकलने की पूरी कोशिश कर रहे हैं.

बाल कलाकार मातिन रे तंगु को देखने में अच्छा लगता है और अपनी भूमिका में वो पूरी तरह से फिट नजर आते हैं. कुछ ये ही हाल चीन की अभिनेत्री जूजू का है.

ओम पुरी, बिजेंद्र काला, मोहम्मद जीशान अयूब और यशपाल शर्मा मंझे हुये कलाकार हैं लेकिन पूरी फिल्म में एक भी ऐसा सीन नहीं है जहां पर इनकी प्रतिभा खुलकर सामने आई हो.

एक्टिंग सोहेल के बस की बात नहीं

भरत के रोल मे सोहेल खान हैं लेकिन इस बार भी अभिनय की बारीकियां उनके रास्ते का रोड़ा बन गई हैं. सलमान के साथ इमोशनल सीन्स में वो अपनी तरफ से इंटेसिटी पैदा नहीं कर पाये हैं. कंपोजर प्रीतम भी इस बार अपने सुर ताल का जादू छेड़ने में नाकामयाब रहे हैं.

'लिटिल बॉय' की कॉपी कर बना दी 'ट्यूबलाइट'

ट्यूबलाइट हॉलीवुड की फिल्म लिटिल बॉय पर आधारित है और अगर कबीर की मानें तो उन्होंने मूल कहानी के कुछ तत्वों को लेकर एक अलग कहानी का ताना बाना बुना है लेकिन जिस किसी ने भी मूल फिल्म देखी है उसको ट्यूबलाइट देखकर यही लगेगा कि कबीर ने थोड़ा नही बल्कि मूल फिल्म का एक बड़ा हिस्सा अपनी फिल्म में उठा लिया है.

ये फिल्म महज अपने सबजेक्ट के बलबूते आपको फील गुड का एहसास कराएगी. मुझे तो अभी तक इस बात पर यकीन नहीं हो रहा है कि सलमान का यकीन सोहेल को वापस कैसे लेकर आया?

ये तो दूसरे सैनिक को खुद के जूते देने की बात थी जिसकी वजह से गलतफहमी पैदा हुई और उसी वजह से सोहेल की जान बची.

शाहरुख का शानदार कैमियो

शाहरुख खान के रोल के बारे में ज्यादा कुछ कहना मुनासिब नहीं होगा. इतना जरुर कहूंगा कि फिल्म के पहले हाफ में उनके दीदार होते हैं और उनका काम शानदार है. और हां.. क्या तुमको यकीन है...ये शब्द शाहरुख खान के ही है फिल्म में फिर भी कबीर खान की ये फिल्म निराश करती है.