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REVIEW सिमरन : साधारण सिमरन में कंगना 'असाधारण' हैं

सिमरन में कंगना ने साबित कर दिया है कि वो बॉलीवुड की फीमेल आमिर खान हैं

Abhishek Srivastava

सिमरन की सबसे बड़ी खूबी ये है कि इसे देखकर लगता है कि ये कहानी आप के पड़ोस में ही चल रही है. सिमरन की कहानी अमेरिका में हुई एक घटना से प्रेरित है और शुक्र है कि निर्देशक हंसल मेंहता ने अपनी फिल्म की सेटिंग अमेरिका में ही रखी है अगर वो यही कहानी भारत के किसी शहर में रखकर कहने की कोशिश करते तो शायद इस तरह की कहानी पर कोई विश्वास नहीं करता. सिमरन में कंगना शुरु से लेकर आखिर तक छाई हुई हैं और उन्होंने इस फिल्म से दिखा दिया है कि वाकई में उनको किसी करन जौहर या ऋतिक की जरुरत नहीं है.

सिर्फ कहानी मिल जाए तो वो चांद तारे तोड़ने का माद्दा रखती हैं. सिमरन को बेहद ही सरल अंदाज़ में पर्दे पर उतारा गया है और यही इसकी सबसे बड़ी जीत है. इस फिल्म में किसी तरह का कोई कांप्लीकेशन नहीं है. और हां बाकी फिल्ममेकर्स को इस फिल्म से सीख लेनी चाहिए कि बैंकग्राउंड स्कोर अगर ना के बराबर भी किसी फिल्म में हो तो भी उसका असर जनता पर होता है. बल्कि मैं ये कहूंगा कि ज्यादा होता है.


प्रफुल्ल पटेल की कहानी

कहानी अमेरिका के अटलांटा में बसे एक गुजराती परिवार के बारे में है. उनकी लड़की प्रफुल्ल पटेल (कंगना) का तलाक हो चुका है और अब वो अपने माता पिता के घर में ही रहती है. जीवन यापन के नाम पर वो एक होटल में हाउसकीपिंग का काम करती है. एक दिन जब वो अपने रिश्ते की हम उम्र कजिन के साथ लास वेगास जाती है तो वहां के कसिनो में उसे जुए की लत लग जाती है.

ढेर सारे पैसे जीतने की खुशी पल भर में आंसुओं में बदल जाती है. लत उसके ऊपर इस क़दर हावी हो चुका है कि और खेलने के लिए वो पैसे उधार लेती है लेकिन वो पैसे भी हार जाती है. उधार लिए हुए पैसे चुकाने के लिए उसे बैंक डकैती का सहारा लेना पड़ता है. लेकिन फिल्म के आखिरी पलो में उसे पता चलता है कि जो पैसे उसने चुकाने के लिये इकठ्ठे किये थे उसके ऊपर भी कोई तीसरा अपना हाथ साफ कर जाता है. अंत में परेशानियां उसको हर तरफ से घेर लेती हैं.

सिर्फ कंगना-कंगना और कंगना

ये फिल्म पूरी तरह से कंगना के कंधों पर घूमती है और उन्होंने बता दिया है कि मौजूदा समय की अभिनेत्रियों में उनका स्तर आमिर खान जैसा ही है - किरदार को पर्दे पर जीने का दमखम रखना. फिल्म को अकेले अपने कंधे पर लेकर चलना बेहद ही जटिल काम है और कंगना का साहस क़ाबिले तारीफ है. सोहम शाह को छोड़कर फिल्म के सभी कलाकार लगभग नए हैं लेकिन सभी की अभिनय प्रतिभा फिल्म में नजर आती है.

हंसल मेहता ने अपने कौशल निर्देशन का परिचय एक बार फिर से दिया है. यह फिल्म कहीं भी किसी तरीके से किसी भी चीज को ओवर्ट तरीके से नहीं कहती है, देखकर यही लगता है कि ऐसी चीज़ों को हम अपनी आम जिंदगी में अक्सर देखते रहते हैं. फिल्म के कुछ एक सींस लुभाने वाले हैं जब कंगना लास वेगास के कसिनो में बार टेंडर से बात करती हैं या फिर फिल्म के शुरु में अपने सुपरवाइजर को जब वो अपने पास नहीं भटकने देती हैं.

ओवर हो गई हैं कंगना

लेकिन फिल्म में ख़ामियां नहीं हैं, ऐसा भी नहीं है. अगर कंगना ने अपने कंधे पर फिल्म को लेकर अकेले चलने का बीड़ा उठाया है तो यह गलत भी है क्योंकि पूरी फिल्म में कंगना की अति हो जाती है और यह बोर करता है. इसकी वजह से और किसी किरदार के बारे में ज्यादा बात नहीं की गई है. भले ही इस फिल्म में जुए और बैंक डकैती की बात की गई है लेकिन इस फिल्म के अंदर में एक कॉमेडी फिल्म की जान बसी हुई है.

क्वीन का हैंगओवर

फिल्म के पहले हाफ तक चीजें अच्छे पेस पर चलती है और देखने में मज़ा आता है लेकिन दूसरे हाफ में सभी कुछ लूप में चलने लगता है क्योंकि कहानी को आगे बढ़ाने की सामग्री तब तक निर्देशक की झोली में खत्म हो चुक होती है. डकैती का एक ही तरीका एक हद के बाद बोर करने लगता है. इस बात में कोई शक नहीं है कि इस फिल्म के ऊपर कंगना की फिल्म क्वीन का हैंगओवर है. अगर स्क्रीनप्ले की बात करे तो ऐसे कई मौके आपको मिलेंगे जब आपको क्वीन की याद आएगी.

लेकिन सच ये भी है कि कंटेंट के मामले में फिल्म क्वीन नहीं है. फिल्म का नाम सिमरन क्यों है ये आपको फिल्म देखकर पता चल जाएगा जो बेहद ही अटपटा लगता है. ये उस कटैगरी की फिल्म है जहां फिल्म में अभिनय उसकी कहानी के ऊपर पूरी तरह से हावी है. कुछ नहीं तो ये फिल्म आप कंगना के लिए ज़रुर देख सकते हैं.