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Review न्यूटन : न्यूटन के इस क्रिया की प्रतिक्रिया सीधे आपके दिल में उतरेगी

इस न्यूटन से आपको प्यार हो जाएगा, आप थिएटर से आकर सबको यही कहेंगे कि जरूर देखें न्यूटन

Abhishek Srivastava

आमतौर पर हिंदी फिल्मों को सोमवार के दिन प्रेस को दिखाने का चलन बॉलीवुड के प्रोडूयसरों में नहीं है. बहुत कम में ऐसी कूवत होती है कि वो अपनी फिल्म प्रेस के सामने रिलीज के हफ्ते भर पहले रख देते हैं.

लेकिन निर्देशक अमित मसुरकर ने ये हिम्मत दिखाई है और ज़ोर का तमाचा मारा है उन फिल्मों पर जिनका अपने ऊपर खुद विश्वास नहीं होता है और अपनी फिल्म प्रेस के सामने शुक्रवार को सुबह सवेरे रखते हैं.


बेहतरीन फिल्म है 'न्यूटन'

अब मेरा इशारा किन फिल्मों की तरफ है ये तो आप जान ही गए होगें. न्यूटन, बॉलीवुड के तथाकथित सितारों की ओर भी इशारा करती है और ये साबित करती है कि अगर फिल्म की कहानी अच्छी हो और ठीक से बनी हो तो दुनिया की कोई भी ताकत इसे आगे बढ़ने से रोक नहीं सकती है. न्यूटन इस साल रिलीज हुई बेहतरीन फिल्मों की श्रेणी में से एक है और आपसे गुज़ारिश है कि इसे ज़रुर देखें. मुमकिन है कि आप जो मसाले एक बॉलीवुड फिल्म में अक्सर देखते हैं वो आपको इस फिल्म में ना मिले लेकिन एक जबर्दस्त कहानी जो आपके दिल को छू जाएगी.

ब्लैक कॉमेडी की बेहतरीन मिसाल 

ये पक्की बात है कि न्यूटन रिलीज के बाद बॉलीवुड की उन चुनिंदा फिल्मों में शामिल हो जाएगी जो ब्लैक कॉमेडी की बेहतरीन मिसाल है. आपको फिल्म देखते वक्त कई सींस में हंसी आएगी लेकिन उस हंसी के पीछे एक विवशता का दर्द भी आपको जल्द ही देखने को भी मिलेगा. न्यूटन ये भी साबित करता है कि अमेरिका और यूरोप की वादियों में चले जाने से फिल्म सफल नहीं होती है. अगर आप दंडकारण्य के नक्सल प्रभावित इलाके में भी चले जायेंगे एक अच्छी कहानी के साथ तो उसमें भी सफल होने का दमखम रहता है.

चुनावी चकल्लस की चुनौती

न्यूटन की कहानी महज एक दिन की है. राजकुमार राव फिल्म में न्यूटन कुमार बने है जो एक सरकारी महकमे में काम करते हैं. न्यूटन एक ईमानदार सरकारी अफ़सर है जो अपने काम को पूरी ईमानदारी और निष्ठा से करने में विश्वास रखता है. जब लोकसभा चुनाव की बारी आती है तो चुनाव के लिए उनकी भी ड्यूटी लगती है. बतौर प्रिसाईडिंग अफ़सर उसको जाना पड़ता है एक ऐसे इलाके में जहां महज 76 वोटर्स हैं और वो जगह घने जंगल के अंदर एक नक्सल प्रभावित इलाके का हिस्सा है.

वहां पर उसकी टीम के सदस्य होते हैं रघुवीर यादव और अंजलि पाटिल. सुरक्षा के लिये वहां पर भारतीय सेना की ओर से तैनात है आत्मा (पंकज त्रिपाठी) अपनी फ़ौज के साथ. शुरु में न्यूटन और आत्मा के बीच बहस होती है कि चुनाव को किस तरीके से करवाया जाए क्योंकि वहां की आबादी में अधिकतर आदिवासी और अनपढ़ हैं. जब चुनाव की प्रक्रिया शुरु हो जाती है तब तरह तरह की बाधाएं आती हैं और ये जानने को मिलता है कि सरकारी व्यवस्था खुद ही इस प्रक्रिया को सफल तरीके से कराने में एक उदासीन रवैया रखती है.

फिल्म में नहीं हो कोई कमी

न्यूटन का नाम उन फिल्मों में शुमार होगा जिसमें एक भी चीज गलत नहीं लगती है. अभिनय से लेकर लोकेशन, बैकग्राउंड स्कोर ये सभी बिल्कुल सही तरीके से फिल्म में फिट बैठ हुए आपको नजर आएंगे. इस फिल्म में किसी के भी अभिनय पर उंगली नहीं उठाई जा सकती है. राजकुमार राव के फिल्मी करियर में न्यूटन शर्तिया एक माइलस्टोन फिल्म मानी जाएगी. जिस सहज रुप से न्यूटन को राजकुमार ने जिया है उसके लिए उनकी जितनी भी तारीफ की जाये वो कम होगी.

एक्टर्स की शानदार एक्टिंग

रघुवीर यादव के दर्शन एक लंबे अरसे के बाद आपको इस फिल्म में होंगे और आपको इस बार भी उनसे कोई शिकायत नहीं होगी. अंजलि पाटिल एक लोकल किरदार में हैं और उनका मैनेरिज्म बताता है कि उस रोल के लिए उनसे बेहतर और कोई नहीं हो सकता था. पंकज त्रिपाठी ने एक बार फिर से जता दिया है कि फिल्म के एक स्तम्भ वो भी हैं.

डायरेक्टर अमित मसुरकर ने किया धमाका

जाहिर सी बात है अगर इस फिल्म का कोई हीरो है तो वो है इसके निर्देशक अमित मसुरकर. अमित ने अपनी शुरुआत टीवी के लिए कॉमेडी शोज लिखकर की थी और देखकर यही लगता है कि उनकी कॉमेडी में अब और धार आ गई है. आने वाले समय में अमित के आगे अगर फिल्मों को निर्देशित करने के मौके बाढ़ की तरह आ जाए तो किसी को आश्चर्य नहीं करना चाहिए. ऐसी फिल्में हमें अक्सर देखने को नहीं मिलती हैं, अगर आती भी है तो डिस्ट्रीब्यूटरों और एक्सीबिटरों का समूह उनके हौसले कुचल देता है.

जरूर देखने जाएं 'न्यूटन'

शुक्र है कि इस फिल्म के साथ ऐसा कुछ नहीं होगा क्योंकि इसका अनुबंध एक बड़े स्टूडियो के साथ पहले ही हो चुका है. ये फिल्म आपको हंसाने के बाद आपके ज़मीर को भी तुरंत झकझोरेगी. आपको सोचने पर विवश करेगी कि हमारे देश में कितनी विडंबनाएं हो सकती हैं. ये फिल्म आपका मनोरंजन करने के साथ साथ आपको सोचने पर भी विवश करेगी.

लेकिन सबसे बड़ी बात जिसके लिए अमित बधाई के पात्र हैं वो है फिल्म की कहानी. चुनाव के संजीदे मुद्दे पर एक हल्की फुल्की फिल्म बनाना जो आपको सोचने पर मजबूर करती है, ये बड़ी बात है. इस शुक्रवार आपका कोई और प्लान नहीं होना चाहिए. जाइए और फौरन देख लीजिए क्योंकि क्या पता बॉलीवुड का कोई बाहुबली इसको सिनेमाहाल से अपने ग्लैमर के बल पर धकेल दे.