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जब हैरी मेट सेजल : इम्तियाज अली, काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ती

जब हैरी मेट सेजल देखकर लगता है कि इम्तियाज अली ने ये फिल्म सुपरस्टार शाहरुख खान के प्रेशर में डायरेक्ट की है. उन्होंने अपने करियर के साथ ये सबसे बड़ा खिलवाड़ किया है

Abhishek Srivastava

भारतीय संस्कृति के अलावा बाकी देशों की संस्कृति में सातवें नंबर का बड़ा ही महत्व है. अगर ओल्ड टेस्टामेट में दुनिया को सात दिनों में बनाने की बात कही गई है तो वहीं दूसरी ओर कुरान शरीफ में भी 7 जन्नत होने की बात कही गई है.

भारतीय संस्कृति में इसे सप्त कहा गया है - सप्तऋषियों से लेकर सप्तलोक तक की बात का उल्लेख इसमें है. लेकिन नंबर सात अगर किसी को नहीं भाया तो वो इस हफ्ते रिलीज हुई फिल्म जब हैरी मेट सेजल के निर्देशक इम्तियाज अली हैं. उनके करियर की सातवीं फिल्म और अब तक की सबसे बड़ी फिल्म बॉक्स ऑफिस पर इस कदर धूल चाटने को मजबूर हो जायेगी, इसकी कल्पना इम्तियाज ने सपने में भी नहीं की होगी.


इस फिल्म में कोई कहानी नहीं है, इम्तियाज का जादू ग़ायब है, इम्तियाज के करियर की अब तक की सबसे बकवास फिल्म, सुपरस्टारडम के सामने झुके इम्तियाज.

अख़बारों और सोशल मीडिया में जब इस तरह के हेडलाईन इम्तियाज ने पढ़े होंगे तो उन्हे सच्चाई का बोध हो गया होगा. फिल्म के रिलीज के बाद आलम ये होता है कि फिल्म से जुड़े जो लोग सोशल मीडिया ट्रैक करते हैं वो इसी कयास में रहते हैं कि फिल्म से जुड़ी हर अच्छी खबर को तुरंत रिट्वीट करें, अगर फिल्म के निर्माता रेड चीलीज एंटरटेनमेट की बात करें तो शुक्रवार के दिन उनके ऊपर काम का ज्यादा बोझ नहीं था क्योंकि फिल्म को लेकर पॉजीटिव रिव्यू ग़ायब थे.

जब हैरी मेट सेजल इम्तियाज के फिल्म करियर की सबसे बकवास और बोझिल फिल्म है अब इस बात को कहने में किसी को झिझक नहीं होनी चाहिये. सोचने की बात ये है कि एक थिंकिंग निर्देशक जिन्हें कुछ दिनों पहले तक सुपरस्टार शाहरुख खान ने खुद आज के जमाने का यश चोपड़ा कहा था ने ऐसी क्या ग़लती कर दी जिसकी वजह से लोग उनकी इस नई फिल्म को सरे से नकार दिया. इम्तियाज की इस नाकामी के पीछे उनके खुद का फार्मूला छिपा हुआ है. वो फार्मूला जिसे उन्होंने अपनी दूसरी फिल्म में ढूंढ निकाला था और जिसके बल पर उनका करियर बुलंदियों तक पहुंच गया.

उनकी फ़िल्मों में जर्नी, इश्क और उसको पाने की तड़प सर्वोपरी रहते हैं. चाहे वो हाइवे हो या फिर लव आजकल या राकस्टार या फिर तमाशा - इन सभी फिल्मों में उन्होंने इसे खूब अच्छी तह से भुनाया. लेकिन वो कहते हैं ना की काठ की हांडी बार बार नहीं चढ़ती - जब हैरी मेट सेजल में इसी फार्मूले ने उनको दगा दे दिया. इतना भरोसा उनको इसके ऊपर हो गया था कि वो भूल गये थे की उनको एक कहानी भी कहनी होती है फिल्म में. यूरोप की सैर और एक सुपरस्टार का फिल्म में होना ही सब कुछ नहीं होता है.

जब हैरी मेट सेजल को देखकर लगता है कि इम्तियाज ने अपने फिल्मी क्राफ्ट के साथ किसी तरह का समझौता कर लिया है. कह सकते हैं कि ये समझौता उनकी इस फिल्म में शाहरुख खान की वजह से हुआ हो. कुछ वैसा ही जो हमने अनुराग कश्यप के साथ रणबीर कपूर अभिनीत बॉंबे वेलवेट और विकास बहल की आलिया भट्ट और शाहिद कपूर स्टारर शानदार में देखा था.

इम्तियाज की फिल्मों को देखकर लगता है कि उनका दिल का मिज़ाज सुफियाना है और प्यार की गहराईयों से वो अच्छी तरह से वाक़िफ़ हैं. उनकी पहली फिल्म सोचा ना था आज तक उनकी सबसे सबसे मासूम फिल्म मानी जाती है जिसके फैन खुद शाहरुख खान हैं. अपनी दूसरी फिल्म जब वी मेट में उन्होंने दिखा दिया कि फिल्म जगत में एक नये निर्देशक का पदार्पण हो चुका है.

लव आज कल हाइवे और राकस्टार ने उनकी इस साख को और मजबूत किया लेकिन परेशानी इसी बात की थी कि अपनी हर फिल्म का ढर्रा एक ही बिंदु पर केंद्रित रखते थे. तमाशा के फ्लॉप होने के बाद उनको सीख मिल जानी चाहिये थी दर्शक वर्ग कुछ और चाहता है लेकिन उन्होंने शायद जनता की आवाज़ अनसुनी कर दी.

अब नतीजा उनके सामने है. ऐसी नहीं है कि असफलता का स्वाद उन्होंने पहली बार चखा है. उनकी फिल्में पहली भी पिटी हैं लेकिन उन फ्लॉप फिल्मों को भी दर्शकों के एक वर्ग ने पूरी तरह से सराहा था चाहे वो तमाशा हो या फिर लव आजकल. लेकिन जब हैरी मेट सेजल की बात ही अलग है - किसी के पास भी इस फिल्म के लिये अच्छे शब्द नहीं है.

इम्तियाज अली को एक सुपरस्टार और एक शानदार अभिनेत्री अपनी फिल्म में मिलने के बाद खुद पर पूरी तरह से से भरोसा हो गया था. लेकिन इस भरोसे के पीछे वो भूल गये की एक कहानी भी उनको ढूंढ कर लानी पड़ेगी.

फिल्म देखकर साफ झलकता है कि इस फिल्म को शाहरुख खान ने निर्देशित करवाया होगा और इम्तियाज ने महज खानापूर्ति की होगी अपने सुपरस्टार अभिनेता के लिये. अली की इस फिल्म में एक भी मोमेट नहीं है जहां पर उनकी ट्रेडमार्क छाप दिखाई दे. इसमें दो राय नहीं की दर्शक इम्तियाज के उसी सफर पर चल चल कर बोर हो गया है और अब वक्त है की कुछ नये की तलाश की जाये क्योंकि बॉलीवुड की दुनिया थोड़ी बेरहम है जहां दूसरा मौका बमुश्किल से मिलता है.

इस फिल्म को देखकर ये भी लगता है कि इम्तियाज अपनी जड़ों को भूल गये थे. सेजल के किरदार का खुद को बार-बार स्वार्थी बताना और अंगूठी मिलने के बाद अचानक हैरी को बोलना की वो उसे पैक करके हिंदुस्तान ले जाना चाहेंगी - ये बेहद ही अटपटा लगता है.

या फिर पंजाब के सीपीया टेंटेड सीन्स शाहरुख जब याद करते हैं तो लगता है कि पंजाब का पुराना दर्द हैरी के अंदर छुपा हुआ है, लेकिन ऐसा तो कुछ भी नहीं है - ये सभी चीजें बेहद बेतुके लगती हैं. जरुरत है कि इम्तियाज खुद की विवेचना करें और समझने की कोशिश करें कि क्या ग़लतियां उनसे इस बार हुई हैं क्योंकि इस फिल्म को वो अपनी निर्देशित फिल्मों की श्रेणी से दूर रखना चाहेंगे.