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Sanju Review: इस बार जादू रणबीर कपूर का चला है न कि राजकुमार हिरानी का

किसी नेगेटिव किरदार के ऊपर बायोपिक बनाना बॉलीवुड में कोई आसान काम नहीं है

Abhishek Srivastava

‘संजू’ को महज एक फिल्म की नजर से देखें तो ये एक उम्दा फिल्म है जो अपने दो घंटे और चालीस मिनट की अवधि में आपको अपने सीट से बांध कर रखेगी. रणबीर कपूर के अभिनय में आप किसी भी तरह की कमी नहीं निकाल सकते हैं, राजकुमार हिरानी ने एक बार फिर से बता दिया है कि देश के सबसे उम्दा निर्देशक वो क्यों हैं और विक्की कौशल से फिल्म जगत क्यों आगे चल कर उम्मीदें बांध सकता है-इन सबका का जवाब ‘संजू’ में मिलता है. लेकिन एक बात को लेकर परेशानी भी है. अपने तमाम इंटरव्यू में राजकुमार हिरानी और रणबीर कपूर इस बात को कहना नहीं भूले थे कि संजू एक प्रोपेगैंडा फिल्म नहीं है. हकीकत यही है कि ‘संजू’ एक प्रोपेगैंडा फिल्म है. इस फिल्म के जरिए राजकुमार हिरानी ने संजय दत्त के बारे में वो सभी गलतफहमियां दूर करने की कोशिश की हैं जो शायद उनको लगा था कि आम जनता के जेहन में हैं और कहानी लिखने की इस कोशिश में उन्होंने आखिर में संजय दत्त को एक आम इंसान से हीरो बना दिया है. जो चीजें पहले से ही पब्लिक और सरकारी रिकॉर्ड में हैं जरूरी नहीं कि उनको एक बार फिर से जनता के सामने लाया जाए ताकि जनता को उसके बारे में ठीक से जानकारी हो. उन्होंने अपनी इस फिल्म के जरिए मीडिया पर एक तरह से गोली भी तानी है और संजय के हर गुनाह के वजह के पीछे का ठीकरा मीडिया के सर पर फोड़ दिया है. अगर ये बायोपिक के बदले एक काल्पनिक कहानी होती तो शायद ऐसी फिल्म होती जिसमें आप कुछ भी बदलना पसंद नहीं करते लेकिन अफसोस इस बात का है कि ये कहानी हिंदी फिल्मों के एक चहेते अभिनेता के ऊपर है.

संजू फिल्म का वास्ता संजय दत्त के जीवन के दो पहलूओं से ही है


‘संजू’ के बारे में एक भ्रम हम पहले से ही हटा देते हैं. ये फिल्म संजय दत्त के जीवन के सिर्फ दो मोड़ को कवर करती है- पहला उनकी जिंदगी का वो फेज जब वो ड्रग्स की आगोश में पूरी तरह से घिर गए थे और दूसरा वो जब वो 1993 के मुंबई बम धमाकों की साजिश में शामिल होने की वजह से गिरफ्तार हो गए थे. उनकी जिंदगी के किसी और पहलू को इस फिल्म में शामिल नहीं किया गया है. कहानी शुरू होती है संजू (रनबीर कपूर) के उस फेज में जब वो बेल पर हैं और एक महीने बाद येरवडा जेल जाने वाले हैं. वो चाहते हैं कि कोई लेखक उनके ऊपर किताब लिखे और उनकी जिंदगी से जुड़े मिथ को तोड़े. इस सिलसिले में उनका मिलना होता है विन्नी (अनुष्का शर्मा) से. विन्नी शुरू में अपनी हामी नहीं देती है लेकिन संजू की कुछ बातों को सुनकर उसे भी लगता है कि संजय के ऊपर किताब लिखनी चाहिए. संजू की कहानी की शुरुआत उनके उन दिनों से होती है जब वो अपने मित्र की वजह से ड्रग्स के चंगुल में फंस गए थे. ये वही दिन थे जब संजू अपनी पहली फिल्म रॉकी की शूटिंग में व्यस्त थे और साथ ही साथ उनकी मां नरगिस (मनीषा कोईराला) कैंसर की चंगुल में फंस चुकी थी. फिल्म का पहला हाफ उनके ड्रग्स में घुसने और उससे बहार निकलने की दास्तान को बयां करता है. फिल्म का दूसरा हाफ उनके मुंबई बम धमाकों में शामिल होने की  बात करता है. यहां भी पैटर्न वही है-किन हालात में वो इसमें शामिल हुए थे और किस तरह से वो इस बात का प्रमाण दे पाए कि वो आतंकवादी नहीं हैं.

रणबीर ने अभिनय के नए मिसाल दिए हैं संजू में

अगर सिर्फ अभिनय की बात करें तो रणबीर कपूर ने एक बार फिर से बता दिया है कि मौजूदा दौर के अभिनेताओं की जमात में उनका कद इतना ऊंचा क्यों है? फिल्म शुरू होने के कुछ समय के बाद आप रणबीर कपूर को ही संजय दत्त समझने लगते हैं. और एक एक्टर के लिए इससे बड़ी बात और क्या हो सकती है. संजू के उम्र के अलग-अलग पड़ाव को उन्होंने शानदार तरीके से फिल्म में एक बार फिर से जीवित किया है. चाहे वो उनके बोलने का लहजा हो या फिर शरीर की चाल ढाल-इन सभी पर उन्होंने महारत हासिल की है. रणबीर के उम्दा परफॉर्मेंसेज में संजू का नाम आने वाले समय में लिया जाएगा. इसके अलावा फिल्म में और कोई आपका ध्यान आपकी ओर खीचेंगा तो वो होंगे विक्की कौशल. संजय दत्त के गुजराती दोस्त की भूमिका में विक्की कौशल ने पूरी तरह से जान डाल दी है. उनके अभिनय में किसी तरह का बनावटीपन नहीं नजर आता है. वाकई में लगता है कि संजय दत्त का जिगरी दोस्त कुछ वैसा ही रहा होगा जो आप परदे पर देखते हैं. सुनील दत्त की भूमिका में परेश रावल पूरी तरह से जचे हैं. अनुष्का शर्मा की उपस्थिति फिल्म में ज्यादा समय के लिए नहीं है लेकिन अपने छोटे रोल में वो जान डाल देती हैं. कुछ वैसा ही हाल सोनम और बोमन ईरानी का है जिनको देखने में मजा आता है.

ये फिल्म हिरानी से ज्यादा कपूर की फिल्म है

‘संजू’ राजकुमार हिरानी से ज्यादा रणबीर कपूर की फिल्म है. फिल्म के हर सीन में उनकी छाप नजर आती है. कभी-कभी ऐसा भी लगता है कि रणबीर कपूर और भी उड़ सकते थे लेकिन हिरानी ने उनको मौका नहीं दिया. इस फिल्म में ऐसा कुछ खास नहीं है जिसे आप नहीं जानते हैं खासकर बम धमाकों में उनके शामिल होने की कहानी. कुछ अलग जानने को मिलता है उनके ड्रग्स वाले फेज के बारे में. हिरानी ने अपनी इस फिल्म का अंडर टोन कुछ ऐसा रखा है कि जिससे संजय दत्त का किरदार एक डार्क हॉर्स नजर आए जो तमाम जीवन की उलझनों के बीच में फंस कर भी एक विजेता बनकर बाहर निकलता है. संजय दत्त के किरदार को लेकर राजकुमार हिरानी का टोन शुरू से ही सहानुभूति वाला रहा है. देखकर लगता है कि उन्होंने संजय दत्त के बारे में अपनी राय पहले से ही बना ली थी. संजय दत्त की पर्सनल लाइफ कैसी थी इसको बताने की कोशिश नहीं की गई है और शायद यही वजह है कि उनकी पहली दो पत्नियों और उनकी बेटी त्रिशाला के बारे में फिल्म कुछ भी नहीं बताती है. संजय गुप्ता और नितिन मनमोहन जैसे किरदार भी इस फिल्म से गायब हैं. बाकी की फिल्म इंडस्ट्री और अंडर वर्ल्ड की मौजूदगी इस फिल्म में न के बराबर है. जबकि ये दोनों ही संजय दत्त के जीवन का अहम हिस्सा रहे हैं.

हिरानी इस बार गच्चा खा गए हैं

किसी नेगेटिव किरदार के ऊपर बायोपिक बनाना बॉलीवुड में कोई आसान काम नहीं है. इसके पहले अजहर, हसीना पार्कर, डैडी, ओमेर्टा और वीरप्पन का हश्र क्या हुआ था ये सभी को पता है. गनीमत है कि इस फिल्म में रणबीर कपूर हैं जो मात्र अपने अभिनय की वजह से आपका ध्यान कई चीजों से अपनी ओर खींच लेते हैं लिहाजा आप खामियों पर ध्यान नहीं देते हैं. ‘संजू’ की कहानी मूलत: एक बाप-बेटे और दो दोस्तों के बीच की कहानी है. लेकिन सच्चाई ये भी है कि असली संजू इन दोनों रिश्तों से कहीं अलग है. हीरानी यहीं पर मात खा गए हैं और उन्होंने असली संजू की कहानी के ऊपर उनके रिश्तों को वरीयता दे दी है. ‘संजू’ एक शानदार फिल्म है इसमें कोई शक नहीं है लेकिन राजकुमार हिरानी इस बार गच्चा खा गए हैं. उनको रणबीर कपूर ने बचा लिया है. जाकर देखिए कि मौजूदा दौर के सबसे शानदार कलाकार की अभिनय में कितनी गहराई है.