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Exclusive : मैं अपने रोल्स को मजाक में नहीं लेता - परेश रावल

परेश रावल ने अपने रोल्स से लेकर ऋषि और रणबीर कपूर से लेकर मोदी की नोटबंदी जैसे हर विषय पर खुलकर बात की है

Abhishek Srivastava

परेश रावल आजकल सांसद के रुप में राजनीति की पारी खेलने में व्यस्त है लेकिन समय मिलते ही अपने पहले प्यार सिनेमा की ओर लौट आते हैं. आने वाले समय में उनकी कॉमेडी फिल्म पटेल की पंजाबी शादी के जल्द ही दीदार होने वाले हैं. सोशल मीडिया पर वो इतनी बेबाक राय क्यों रखते हैं से लेकर रणबीर कपूर उनको नसीरुद्दीन शान की याद क्यों दिलाते हैं, इन सब पर उन्होंने फर्स्टपोस्ट हिंदी से एक खास बातचीत की.

परेश जी, ज्यादा मज़ा आजकल कहा आ रहा है आपको - फिल्म के सेट पर या संसद भवन के अंदर?


जाहिर सी बात है मूल रुप से तो मैं अभिनेता हूं इसलिए फिल्म के सेट पर ही ज्यादा मज़ा मुझे आएगा. संसद में आजकल अलग तरीके से आ रहा है क्योंकि वहां का अनुभव मुझे एक अभिनेता के तौर पर समृद्ध करता है. वहां का अनुभव मेरी आंखों को और खोलता है. वहां जाने पर दुनियादारी आपको समझ में आ जाती है क्योंकि आप बात समझने लगते हैं. एक बात उठती है तो अलग अलग पार्टी के लोगों का उसके ऊपर क्या विचार होता है ये सुनने को मिलता है जिससे सोच और समृद्ध होती है.

आपको देखकर ये लगता है कि आप थोड़े रिजर्व किस्म के इंसान हैं. आप लोगों से मिलना जुलना ज्यादा पसंद नहीं करते हैं और ये बिल्कुल तय है कि मीडिया से मिलना तो बिल्कुल भी नहीं पसंद है आपको?

देखिए अगर मैं मीडिया के सामने आता हूं तो मेरे पास कहने के लिए कुछ होना चाहिए. बार-बार आउंगा तो जनता भी एक वक्त बोलेगी कि हटो यार ये तो फिर से आ गया है, इसको हटा कर किसी दूसरे को लेकर आओ. मैं मीडिया से शर्माता नहीं हूं. मेरे पास कुछ कहने के लिए नहीं होता है जिसके लिए मैं मीडिया के पास आऊं और इसी वजह से मैं मीडिया से दूर रहता हूं. दूसरी बात ये है कि जो मेरे दोस्त और करीबी हैं वो मुझे जानते हैं कि मैं घमंडी ज़रा भी नहीं हूं और इस बात को मैं दावे के साथ कह सकता हूं. रही बात बाहर के लोगों के मेरे बारे में पर्सेप्सन की तो आप उसे कभी नहीं खत्म कर सकते हैं. पर्सेप्सन कभी भी खत्म ना होने वाली चीज है क्योंकि आप इसे छूकर महसूस नहीं कर सकते हैं. आप सभी को खुश नहीं कर सकते और कभी-कभी हमारा मूड भी होता है जो कभी ऊपर नीचे हो जाता है.

आपने अब तक जो भी रोल किए हैं सभी में एक तरह से महारथ हासिल की है. चाहे वो विलेन के किरदार हो या फिर कॉमेडी के रोल हों. अब ये बड़ी बात है कि हर तरफ के रोल पर आप महारथ हासिल कर लेते हैं, ये सब कुछ आप कैसे कर लेते हैं.

इसकी वजह ये है कि मैं किसी भी स्कूल में नहीं गया हूं और अभिनय को लेकर मैंने कहीं से फार्मल ट्रेनिंग नहीं ली है. लोगों को देखकर, खुद को तोड़ मरोड़कर अपना रास्ता मैंने बनाया है. किसी अन्य अभिनेता के अभिनय को मैंने अपना मापदंड कभी नहीं बनाया है. मैं अपने स्क्रिप्ट के साथ हमेशा ईमानदारी बरती है. महज कुछ हंसी के लिए या फिर लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए मैं अपने कैरेक्टर की बलि कभी भी चढ़ने नहीं दूंगा.  ये मेरे लिए एक आदर्श परिस्थिति होगी लेकिन ऐसा बॉलीवुड में अक्सर होता नहीं है. बॉलीवुड की डिमांड हमेशा से कुछ अलग ही रहती है. अगर मुझे किसी विलेन का रोल आफर होगा तो मैं उसके ऐसे निभाने की कोशिश करुंगा कि वो किरदार आपने अपने घर के बगल के बस स्टैंड पर देखा है या किसी मोड़ पर मिले हैं लेकिन वो किरदार जिनसे आप खुद को जोड़ नहीं सकते हैं या फिर जिनको आप पचा नहीं सकते हैं उसको मैं कैसे कर पाउंगा.

अगर मैं खुद उसको एंजाय नहीं कर पा रहा हूं तो दर्शक उसे कैसे एंजाय करेंगे और इसलिए मैं उसको थोड़ा मजेदार बन कर निकल जाता हूं और ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हमारे फिल्मों की डिमांड ऐसी होती है. डकैत, सर या कब्ज़ा में आपने मेरे जो किरदार देखे थे वो सभी विश्वसनीय थे. कब्ज़ा का किरदार मैंने अपने ही गली के पड़ोस में रहने वाले रथीलाल के ऊपर बनाया था. जब बॉलीवुड मुझे कोई बेवकूफ़ किस्म का विलेन का रोल मेरे पास लेकर आता है तो मुझे समझ में नहीं आता है कि मैं उसे कैसे करुं. आजकल कोई भी ऐसे विलेन से डरता नहीं है. आप उसके चेहरे का हुलिया बदल दिजिये, किसी भी तरह की छुरी दे दिजिये या फिर ए के 47 बंदूक दे दीजिए, जनता को डर नहीं लगेगा. बेहूदा भद्दे लगते हैं हम. अगर आखिर में बेहूदा ही दिखना है तो उसी रोल को थोड़ा मनोरंजक बना दीजिए ताकि लोग उसे पसंद तो करें. मेरी कोशिश यही रहती है.

क्या पटेल की पंजाबी शादी का प्लॉट टू स्टेट से मिलता जुलता है?

नहीं नहीं ऐसा बिल्कुल भी नहीं है. आप चेतन भगत की किताब के ऊपर बनी फिल्म की बात कर रहे हैं ना. ये वाकई में एक मजेदार फिल्म है और किसी का भी इसमें कैरिकेचर नहीं किया गया है. जब संजय छैल ने ये फिल्म लिखी थी तो उस पैटर्न पर ये फिल्म जा ही नहीं सकती थी क्योंकि फिल्म के निर्देशक भी वही थे. हम सभी इस बात को लेकर सचेत थे की गुजराती या पंजाबी किरदार को कार्टून नहीं बनाना है.

आपने लगभग 25 साल पहले ऋषि कपूर के साथ फिल्म दामिनी में काम किया था और अब इस फिल्म में. कभी आपको सेट पर लगा कि वाकई में इतने साल गुज़र गए हैं.

बिल्कुल भी नहीं. कपूर खानदान के लोग बड़े ही कमाल के होते है. भले लोग हैं और अपनी सारी बात दिल से निकालते हैं. मुझे कभी भी इस बात का एहसास नहीं हुआ की मैं उनके साथ इतने सालों के बाद काम कर रहा हूं. मैं उनसे बीच बीच में मिलता रहता था और इसी बीच पूछता भी था कि सर आप अगली बार कब अपनी फिल्म का निर्देशन कर रहे हैं. उनकी पहली निर्देशित फिल्म आ अब लौट चले में मैं भी था. उनके अभिनय का अंदाज़ बेहद ही सहज है और ऐसे बेहद ही कम कलाकार है बॉलीवुड में.

आपने उनकी आत्मकथा पढ़ी?

जी हां पढ़ी है मैंने. बिल्कुल हर बात दिल से निकली हुई लगती है. जो बातें उन्होने अमित जी के बारे में लिखी हैं उसे भी पढ़कर यही लगता है कि वो उनका भला चाहते हैं और नुकसान नहीं. ऋषि जी के बारे में कभी कोई सोच भी नहीं सकता कि उनके अंदर किसी की ओर द्वेष हो सकता है. बिल्कुल स्ट्रेट फ्राम द हार्ट वाला बंदा है.

ऋषि जी ने अपनी किताब में साफ लिख दिया है कि वो अब निर्देशन नहीं करेंगे चूंकि आप उनके निर्देशन में काम कर चुके हैं तो आपको क्या लगता है करना चाहिए या नहीं.

बिल्कुल करना चाहिए. इतने सालों को तजुर्बा है उनके पास तो ये भी जरूरी बनता है कि अपने ज्ञान को वो नई पीढ़ी के बीच बांटे. मैंने उनको कई बार कहा है कि आप कोई छोटी फिल्म ही बना दीजिए. लेकिन मुझे ये लगता है कि अभिनय में ही उनको नये नये रोल आफर किए जा रहे हैं. कपूर एंड संस में क्या कमाल का काम उन्होने किया था. ये भी है कि अगर आप निर्देशन शुरु कर देते हैं तो आपको पांच छह महीने के लिए बाकी दुकान बंद करनी पड़ेगी.

आप रणबीर के साथ भी काम रहे हैं. दोनों में कोई समानता है क्या?

दोनों अपने काम को बेहद ही सरल ढंग से करते हैं. मज़े की बात ये है कि जब वो अपने रोल की तैयारी करते हैं तो ये बात किसी को पता नहीं होती है. बड़ी ही आसानी से अपने इमोशंस को रणबीर अपनी फिल्मों में निकालते हैं. वो एकदम अलग किस्म का अभिनेता हैं. ऐसा कहते हैं कि अभिनेता की पहचान उसके रोल्स से होती है और आप उसकी फिल्मों की च्वाइस देख लीजिए. किसी की मजाल है जो उसके बगल में खड़ा हो सकता है. जब मैं दत्त बायोपिक की शूटिंग कर रहा था तो मुझे एक बात का अनुभव 25 सालों के बाद हुआ. 25 साल पहले जब में नसीर साहब के साथ फिल्म सर में काम रहा था तो उस वक्त मुझे ऐसा महसूस हुआ कि मेरे सामने एक ऐसा अभिनेता है जिसके अभिनय एक मैं आटोमेंटिक रियेक्ट करना शुरु कर देता था. 25 सालों के बाद वही फीलिंग मुझे रणबीर के साथ काम करते हुये महसूस हुआ. ये कुछ और ही था.

क्या आपको लगता है कि फिलहाल के जो नये कलाकार है उनमें से किसी ने आपकी जगह ले ली है या फिर किसी को देख कर ये फीलिंग आती है कि वो अभिनेता विभिन्न तरह के रोल कर सकता है.

एक तो राजकुमार राव है. क्या कमाल का अभिनेता है. रणबीर कपूर का अपना अलग ही अंदाज़ है. इसके अलावा नवाजुद्दीन, इरफान ये सभी कमाल का काम रहे हैं. आप ये भी देखिए की भगवान भी उनका साथ दे रहा है कि उन्होंने बिल्कुल सही वक्त पर फिल्म जगत में अपनी एंट्री ली है. वो ऐसे वक्त पर आगे बढ़ रहे हैं जब फिल्म जगत का पूरा हुलिया बदल रहा है. राजीव खंडेलवाल भी कमाल के अभिनेता हैं. बेहतरीन अभिनेता हैं लेकिन उनकी बदकिस्मती हैं कि उनकी फिल्में नहीं चलती हैं. उससे थोड़ी तकलीफ़ हो जाती है.

आप निर्देशन कब करने वाले हैं?

मैंने इसकी वजह आपको पहले ही बता दी है कि जब अच्छे रोल मिल रहे हैं तो कोई अपनी एक्टिंग की दुकान क्यों बंद करे. दूसरी बात ये है कि मैं बड़ा ही बेचैन किस्म का इंसान हूं. थोड़ा हायपर हूं. मुझे टेंशन जल्दी हो जाता है. मैं ड्रामा डायरेक्ट कर सकता हूं लेकिन फिल्म का निर्देशन करना मेरे बस की बात नहीं है. सच कह रहा हूं मैं. अगर मुझे कोई सहायक निर्देशक भी बना दे तो मुझे पता है कि कुछ दिनों के बाद मुझे मार कर निकाल दिया जाएगा.

महेश भट्ट और प्रियदर्शन के साथ काम करना मिस करते हैं आप?

हां यार. भट्ट साहब आजकल फिल्में नहीं बनाते हैं और ये आज के जेनरेशन के लिए दुर्भाग्यपूर्ण बात है. कमाल के वो निर्देशक थे. उनको पता था कि कब किसको क्या कहना है, किस तरह से कहना है और कैसे कहना है. उनको पता था कि किसी अभिनेता के दिल और दिमाग का ताला कैसे खोला जाता है. रही बात प्रियदर्शन के बारे में तो उनकी ख़ासियत ये थी कि अगर आप किसी इमोशन में फंस जाते थे तो वो कोई ऐसी बात बता देते थे जिसकी वजह से परेशानी पल भर में दूर हो जाती थी. वो अपने एक्टरो से बेहद प्यार करते थे. मैं तो बीच में जाकर उनसे मिला भी था. उनको भी वापस फिर से निर्देशन करना चाहिए. वो भी थक गए है.

आपके विचार बड़े ही बेबाक और बिंदास होते हैं, कभी आपको अपनी पत्नी से फटकार पड़ी है?

उनको पता है कि कहने का कोई फायदा नहीं है. उनको पता रहता है कि जो मैं करता हूं या बोलता हूं उसको वाकई में मैं समझता हूं. मैं किसी इफेक्ट के लिए नहीं बोलता हूं. हां मेरे कहने का अंदाज़ थोड़ा तीखा होता है लेकिन जब गुस्सा बहुत आता है तो अंदर चीजों को रख नहीं पाता हूं. कभी कभी तीखापन ज्यादा हो जाता है.

चलिए मैं आखिर में परेश रावल जो कि सांसद है उनके लिए एक सवाल पूछूंगा. अब रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने कह दिया है कि नोट बंदी के बाद लगभग 99 प्रतिशत नोट वापस आ गए हैं. क्या ये कहना अब मुनासिब होगा कि मोदी का नोट बंदी फ्लॉप साबित हो चुकी है?

देखिए अभी जो आंकड़े आ रहे हैं वो मीडिया वाले बोल रहे हैं. मैंने आधिकारिक रिकॉर्ड नहीं पढ़े हैं. नोट बंदी के पीछे की क्या गिनती है वो अभी पता नहीं है. उसकी चर्चा होगी संसद के अंदर तब जाकर मैं बोल सकूंगा कि वो सही था या गलत. कभी कभी क्या होता है कि जो निर्णय लिए जाते है उसका त्वरित परिणाम ये लगता है कि गलत है लेकिन उसके दूरगामी अच्छे नतीजे भी होते हैं.