view all

Review: अक्षय की ईमानदार कोशिश ‘पैडमैन’ को पंख देती है

‘पैडमैन’ बात करती है महिलाओं के मासिक धर्म के दौरान इस्तेमाल होने वाले सैनेट्री नैपकिन की

Abhishek Srivastava

कलाकार  - अक्षय कुमार, राधिका आप्टे, सोनम कपूर

 सितारे  - तीन


आर बाल्की की ‘पैडमैन’ एक ऐसे विषय वस्तु को टटोलती है जो आज तक हिंदुस्तान में रूढ़िवादी परम्पराओं की बेड़ियों में जकड़ा हुआ है. बाल्की की ये कोशिश निश्चित रूप से सराहनीय है कि उन्होंने एक ऐसे विषय को अपनी फिल्म का विषय बनाया है. ‘पैडमैन’ बात करती है महिलाओं के मासिक धर्म के दौरान इस्तेमाल होने वाले सैनेट्री नैपकिन की. लेकिन ‘पैडमैन’ को अगर हम एक फिल्म के नज़रिये से देखें तो कहानी का आख्यान पूरी तरह से लीनियर होने की वजह से ये आपका उतना ध्यान नहीं खींच पाती जितनी की इस फिल्म से उम्मीद थी. इस फिल्म की सबसे बड़ी परेशानी यही है कि आपको पता है कि आगे क्या होने वाला है. फिल्म के उतार-चढ़ाव के बारे में आपको अच्छी-खासी जानकारी पहले ही हो जाती है. मुझे ये बात बिलकुल भी समझ में नहीं आई कि जब ये फिल्म अरुणाचलम मुरुगनाथम के जीवन पर आधारित है तो फिल्म में मुख्य किरदार का नाम दूसरा क्यों है और फिल्म की सेटिंग तमिलनाडु के बदले मध्य प्रदेश में क्यों रखी गई है? खैर अगर आप इन चीजों को कुछ पलों के लिए दरकिनार कर दें तो आपको फिल्म देखने में मजा आएगा.

फिल्म की कहानी से सभी परिचित हैं

फिल्म की कहानी मध्य प्रदेश के लक्ष्मीकांत चौहान (अक्षय कुमार) के बारे में है जो एक दिन अपनी पत्नी गायत्री को अपने माहवारी के दिनों में गंदे कपड़े का इस्तेमाल करते हुए देख लेता है. उसकी लाख कोशिश के बावजूद कि उसकी पत्नी गंदे कपड़े के बदले सैनेट्री नैपकिन इस्तेमाल नहीं करती है और इसके पीछे की बड़ी वजह होती है नैपकिन का महंगा होना और उससे जुड़ी रूढ़ीवादी परम्परा की कहानियां. लक्ष्मीकांत पर इस बात का धुन सवार हो जाता है कि वो खुद ही नैपकिन बनाकर अपनी पत्नी को उसके इस्तेमाल के लिए विवश करेगा. उसकी इस कोशिश में कई बाधाएं आती हैं और बात हद तक तब पहुंच जाती है जब लक्ष्मीकांत की पत्नी उसकी कारगुजारियों से परेशान होकर घर छोड़ कर अपने मायके चली जाती है और उसके बाद बात तलाक पर भी आ जाती है. लेकिन जब लक्ष्मीकांत की मुलाकात आईआईटी के प्रोफेसर की बेटी परी (सोनम कपूर) से होती है तब उसके जुनून को एक तरह से पंख मिल जाते हैं. परी और उसके पिता की वजह से सैनेट्री नैपकिन बनाकर उसे घर-घर तक पहुंचाने का उसका सपना सफल होता जाता है जिसका अंत राष्ट्रपति के हाथों पद्मश्री से होता है.

अक्षय ने दिल लगाकर फिल्म में काम किया है

लक्ष्मीकांत की भूमिका में अक्षय कुमार पूरी तरह से फिल्म पर छाये हुए है. लेकिन यहां पर मैं ये भी कहूंगा कि अगर अभिनय के नव रस की बात यहां पर की जाए तो अक्षय में कमी जरुर नजर आती है. फिल्म की कहानी इस तरह की है कि दर्शक देखते वक्त उनके किरदार से पूरी तरह अपनी सहमति जताएंगे लिहाजा उनको खामियों को कम ही लोग देख पाएंगे. एक अंडर डॉग की कहानी होने की वजह से उनको पूरी तरह से माफी मिल जाती है. लेकिन अक्षय के बारे में ये भी कहना जरूरी हो जाता है कि जैसे-जैसे उनकी फिल्में आजकल आ रही हैं, उनका आत्मविश्वास और भी बढ़ता जा रहा है. फिल्म में जब वो खुद अपने ऊपर सैनेट्री पैड का प्रयोग करते है तब वो सीन काफी शानदार नजर आता है. उनकी मेहनत और लगन साफ नजर आती है. राधिका आप्टे गायत्री के रूप में फिल्म में नजर आएंगी और भले ही फिल्म मे उनकी वेशभूषा का परिवेश ग्रामीण है लेकिन अपने किरदार में वो पूरी तरह से जची हैं. सोनम इस फिल्म में परी के रोल में है और उनका किरदार ऐसा है जो ज्यादा चुनौतीपूर्ण नहीं है. अपने एक आयामी रोल के लिए सोनम जानी जाती हैं और परी का रोल उसी परंपरा को आगे बढ़ता है.

बाल्की की ये फिल्म उनके पिछली फिल्मों से सबसे बेहतर फिल्म है

बाल्की की ये फिल्म उनकी पिछली फिल्मों से काफी अलग है. कहने का मतलब ये है कि ‘पैडमैन’ उनके फिल्मोग्राफी में अब तक की सबसे सधी हुई फिल्म मानी जाएगी. लेकिन ये भी सच है कि बाल्की ने चतुर निर्देशन और कहानी का सहारा लिया है. एक अंडर डॉग की कहानी ने हमेशा से लोगों को लुभाया है और बॉक्स ऑफिस पर इस तरह की कहानी एक सुरक्षित दांव मानी जाती है. उनका निर्देशन साधारण ही कहा जाएगा. बाल्की के सामने जो चुनौती है वो फिल्म में साफ नजर आती है क्योंकि उन्हें दर्शकों को फिल्म के जरिए मनोरंजन के अलावा समाज में वर्जित एक विषय को भी अपनी कहानी में पिरोना है जो कहीं से भी उपदेश न लगे. बाल्की अपनी इस कोशिश में कामयाब जरूर हुए हैं लेकिन कई बार लड़खड़ाए भी हैं.

पैडमैन आज के परिवेश में एक जरूरी फिल्म है

सामाजिक विषय वस्तु पर आजकल थोक के भाव से फिल्मों का निर्माण हो रहा है लेकिन अपने अनूठे विषय की वजह से ‘पैडमैन’ उन सभी फिल्मों से काफी अलग है. फिल्म का पहला हाफ कुछ हद तक बोर भी करता है क्योंकि विषय को लेकर थोड़ा बहुत उपदेश भी दिया गया है. फिल्म में कई बार आंकड़ों का बखान किया गया है और इस वजह से ये फिल्म एक डीएवीपी के लोक सेवा का कोई विज्ञापन कुछ जगहों पर नजर आता है. फिल्म के मुख्य मुद्दे को आम जनता तक पहुंचाने के लिए कई बार ये फिल्म एक ही चीज को दोहराती है. ‘पैडमैन’ और अक्षय की पिछली फिल्म ‘टॉयलेट-एक प्रेम कथा’ का स्वरूप काफी हद तक एक जैसा ही है. ये फिल्म भी मूलत: एक प्रेम कहानी है जहां पर पति अपनी पत्नी के लिए जुनून की हदों को पार कर जाता है. ‘पैडमैन’ अपने विषय वस्तु के हिसाब से आज के परिवेश में एक जरुरी फिल्म है. एक बड़े ही संवेदनशील विषय को हलके-फुल्के अंदाज में कहा गया है और ये बाल्की की सबसे बड़ी जीत है. लेकिन अगर इस फिल्म को देखने के बाद लोगों का नजरिया इसकी ओर से बदल जाए तो ये सबसे बड़ी जीत मानी जाएगी जिसका कोई मूल्य नहीं है. आप इस फिल्म को एक बार जरूर आजमा सकते हैं.