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BIRTHDAY SPECIAL : ओमपुरी और हिंदी सिनेमा का मर्सिया

ओमपुरी के जन्मदिन पर पढ़िए बॉलीवुड में कैसे बनाई अपने लिए सबसे अलग जगह

Sunita Pandey

1973 में पुणे के एफटीआई में चेचक से भरे चेहरे और बढ़ी दाढ़ी वाले लड़के ने दाखिले के लिए अर्जी दी. उन्हें नाटक पर दो निबंध लिखने को कहा गया. लड़के ने निबंध काफी अच्छा लिखा और इंटरव्यू पैनल के सामने सबसे अव्वल साबित हुआ. लेकिन इस काबिलियत के बावजूद पैनल उन्हें दाखिला देने को तैयार नहीं था, जिसकी वजह थी उसका अजीब-सा चेहरा...

जो ना हीरो और ना ही विलेन के खांचे में फिट बैठ पा रहा. जबकि उस लड़के की जिद्द थी कि वो एक्टिंग के पाठ्यक्रम में ही दाखिला लेगा. ऐसे वक्त में पैनल में शामिल गिरीश कर्नाड ने पैनल का विरोध करते हुए कहा कि, "किसी को केवल उसके चेहरे के कारण ही दाखिले से वंचित नहीं किया जा सकता." आखिरकार पैनल को इस लड़के की प्रतिभा के सामने झुकना ही पड़ा और उन्हें दाखिला दे दिया गया... ये युवक थे ओमपुरी..!


ओमपुरी की धमक बॉलीवुड से हॉलीवुड तक

18 अक्टूबर, 1950 को अंबाला (पंजाब) में जन्मे ओमपुरी बचपन में चाय और चोरी के कोयले बेचकर थियेटर की दहलीज पर पहुंचे. ओमपुरी सिनेमाई एक्टिंग के पारंपरिक खांचे में कहीं से फिट नहीं बैठते थे. इसलिए अपनी मेहनत, लगन और प्रतिभा से उन्होंने अभिनय का ऐसा सांचा तैयार किया, जिसकी धमक बॉलीवुड के रास्ते से होते हुए हॉलीवुड तक सुनाई दी.

हॉलीवुड में उन्हें काफी सम्मानजनक दर्जा हासिल है, लेकिन बॉलीवुड में ओमपुरी आखिरी दिनों में छोटे-मोटे महत्वहीन रोल में ही खुद को खर्च करते नजर आए. ये सीमा उनकी नहीं बल्कि हिंदी सिनेमा की है जहां ओमपुरी की समस्त उपलब्धि के नाम पर 'अर्धसत्य', 'पार', 'आक्रोश' और 'मिर्च मसाला' जैसी चंद फिल्में ही हैं.

ओमपुरी का हॉलीवुड सफर

ओमपुरी बॉलीवुड में समानांतर सिनेमा का प्रतिनिधित्व कर रहे थे जहां नाम तो काफी था, लेकिन पैसा नहीं जिससे वो अक्सर मायूस रहते थे. वो अक्सर कहा करते थे, "ऐसी एक्टिंग से बेहतर तो पटियाला में मूंगफली का ठेला लगा लूं तो ज़िंदगी बड़े आराम से कट सकती है."

लेकिन भले ही बॉलीवुड ने ओमपुरी की हैसियत को पहचानने में देर की, मगर हॉलीवुड में उन्होंने झंडे गाड़ दिए. ‘ईस्ट इज ईस्ट', 'माई सन द फैनेटिक', 'द पैरोल ऑफिसर', 'सिटी ऑफ जॉय', 'वोल्फ', 'द घोस्ट एंड द डार्कनेस', 'चार्ली विल्सन वार’ जैसी फिल्में उनकी लिस्ट शामिल है. वे ऐसे पहले भारतीय अभिनेता हैं जिन्हें लंदन में 'आॅनर आॅफ ब्रिटिश एम्पायर’ खिताब नवाजा गया.

1999 में बनी काॅमेडी ड्रामा फिल्म ’ईस्ट इज ईस्ट’ में उनकी जार्ज खान की भूमिका और पुनः 2010 में बनी फिल्म ’बेस्ट इज बेस्ट’ में उनकी अविस्मरणीय अदाकारी ने यह साबित कर दिया कि कला और कलाकार की भौगोलिक सीमाएं नहीं हुआ करती हैं. हॉलीवुड में ओमपुरी की हैसियत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है इस साल के ऑस्कर अवार्ड समारोह में ओमपुरी को बड़े सम्मानजनक तरीके से याद किया गया.

बॉलीवुड में नहीं मिला उनके कद लायक किरदार

हॉलीवुड में नाम कमाने के बाद ओमपुरी को कमर्शियल सिनेमा में नजरअंदाज करना नामुमकिन हो गया. लेकिन उन्हें कभी उनके कद के हिसाब से रोल नहीं मिला. जबरदस्त प्रतिभावाला एक कलाकार लोगों की संकुचित मानसिकता के कारण परदे पर खुद को मजाक बनते देखता रहा था. शायद बॉलीवुड में यही एक बेहतरीन अभिनेता की नियति थी.

ओमपुरी की आवाज थी उनकी ताकत

एक्टिंग के अलावा ओमपुरी की कामयाबी में उनकी खुरदुरी आवाज का काफी बड़ा योगदान रहा. इस आवाज के कारण ओमपुरी हमेशा दोस्तों के बीच उपहास का पात्र बनते थे, लेकिन उन्होंने इसे अपनी ताकत में बदल दिया. अपनी शानदार आवाज के साथ हर भूमिका में जान डाल देते थे. अपनी शानदार आवाज और दमदार अभिनय से दर्शकों को मोह लेनेवाले ओमपुरी 06 जनवरी, 2017 को अलविदा कह गए.