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ओम शांति ओम : रियलिटी शोज की दुनिया में युवाओं को उनकी जड़ों और आध्यात्म से जोड़ता एक अलहदा शो

स्टार भारत पर शुरू हुआ रियलिटी शो दर्शकों के बीच अपने कांसेप्ट की वजह से धीरे धीरे अपनी पकड़ बना रहा है

Rajni Ashish

भारत में प्राइवेट चैनल्स के उदय के बाद से ही अंताक्षरी, सारेगामापा, मिले सूर मेरे तुम्हारा, वॉइस ऑफ इंडिया, इंडियन आइडल और ऐसे ही कई बड़े म्यूजिकल रियलिटी शोज आए और आगे भी आते रहेंगे. इन शोज से नीकलकर जहां कुछ सिंगर्स बड़े नाम बन गए वहीं ज्यादातर प्रतियोगी गुमनामी के अंधेरे में खो गए. लेकिन अगर पूछा जाए कि इन शोज से मनोरंजन के अलावा क्या मिला ? तो शायद उसका जवाब कोई ना दे पाए. लेकिन अब स्टार भारत एक ऐसा उम्दा म्यूजिकल रियलिटी शो 'ओम शांति ओम' लेकर आया है जो हमारे इस सवाल का सटीक जवाब देता हुआ दिखाई देता है.

शो के कांसेप्ट ने लगाए चार चांद


'ओम शांति ओम' अपने कमाल के कांसेप्ट की वजह से कम वक्त में ही दर्शकों के बीच अपनी पैंठ बनाने में कामयाब होता हुआ दिखाई देता है. इस शो के जरिये पहली बार शो के मेकर्स ने युवाओं तक उस डिवोशनल म्यूजिक को उनकी स्टाइल में यानी कंटेम्परेरी स्टाइल में परोसने की ईमानदार कोशिश की है जिसे वो बोरिंग समझ कर दूर होते जा रहे थे. इस रियलिटी शो के जरिये युवा जो अपने ही संगीत, अपनी मिट्टी और आध्यात्म से दूर हो रहे थे उन्हें जोड़ने की एक साहसी और चैलेंजिंग कोशिश की गई है. शो में देश के कोने कोने से एक से बढ़कर टैलेंटेड सिंगर्स को सेलेक्ट कर एक मंच पर लाने की कोशिश की गई है, जिनमें संगीत के प्रति सच्ची श्रद्धा और लगन है. जो संगीत को अपने ईश्वर, अल्लाह, वाहेगुरु, ऊपर वाले से जुड़ने का सच्चा और शुद्ध माध्यम समझते हैं.

जजेस का चला जादू

बाबा रामदेव पहली बार किसी शो में महाजज के तौर पर दिखाई दिए हैं. रामदेव की इमेज शो के कांसेप्ट के साथ जुड़कर दर्शकों पर एक सकारात्मक प्रभाव डालती हुई दिखाई देती है. रामदेव ने योग को जिस तरह से आज देश के घर घर में पंहुचा दिया है उसने उन्हें देश के सबसे बड़े देसी ब्रांड के तौर पर खड़ा कर दिया है और जब वो खुद इस तरह के रियलिटी शोज से जुड़ते हैं तो दर्शक अपनी मिट्टी और संगीत की तरफ रुख करने को मजबूर हो ही जाते हैं. बाबा रामदेव के अलावा नामी बॉलीवुड स्टार सोनाक्षी सिन्हा, कनिका कपूर और शेखर रविजानी जैसे सिंगर-कंपोजर की मौजूदगी ने शो की गरिमा को और भी बढ़ा दिया है.

फेस्टिवल स्पेशल एपिसोड्स ने मचाया धमाल

पहली बार किसी म्यूजिकल टीवी रियलिटी शोज में त्योहारों के मुताबिक स्पेशल शोज बनाये गए हैं. जहां नवरात्री स्पेशल में पॉपुलर सिंगर्स प्रीती-पिंकी को शो में आमंत्रित किया गया था. तो वहीं दिवाली स्पेशल में बॉलीवुड के सबसे लोकप्रिय में से एक संगीतकार जोड़ी मीत ब्रदर्स को इन्वाइट किया गया है. इसके साथ सोनू निगम और शंकर महादेवन जैसे बॉलीवुड के लेजेंड्स भी शो के स्पेशल एपिसोड्स में अपनी आवाज का जादू बिखेर चुके हैं.

शो के प्रोड्यूसर पंकज नारायण से हाल ही में में हमसे शो के बारे में हमसे ख़ास बात की. पेश है इस बातचीत के मुख्य अंश.

आज सभी चैनल्स बॉलीवुड संगीत पर आधारित रियलिटी शोज से पटे पड़े हैं, ऐसे में आपने डिवोशनल म्यूजिक पर शो लाने का फैसला क्यों और किस लक्ष्य से किया ?

मैंने ये अनुभव किया है कि डिवोशनल म्यूजिक में इतना प्रदुषण हो गया है कि इसमें सिर्फ पैरोडी चलती थी. यानी बॉलीवुड का कोई गाना हिट हो गया तो डिवोशनल म्यूजिक बनाने वाले उसको कॉपी करना शुरू कर देते थे और उसी की तर्ज पर धार्मिक गीत ले आते थे. आपको बताऊं भजन या ये कहें कि डिवोशनल संगीत को आजतक उसका हक नहीं मिला है. उसे एक बासी म्यूजिक का स्थान प्राप्त होता है जबकि इस देश में ये संगीत सबसे ज्यादा सुना जाता है. आप देखेंगे कि बॉलीवुड में कई बड़े सिंगर्स आए आज भी आते जा रहे हैं, लेकिन भजन गायकी में वही पुराने नाम ही हैं जो 30 साल पहले थे. बीच की पीढ़ी गायब हो गई. वो इसलिए गायब हो गई क्योंकि भजन के लिए बड़ा मंच ही नहीं बना. डिवोशनल म्यूजिक को गरीबों का काम बना दिया गया. कहा जाता था कि हारमोनियम तबला तो लगता है भजन के लिए, उसी पर गालो ना. उसके लिए और क्या चाहिए?

मेरा मानना है कि डिवोशनल म्यूजिक डिजर्व करता है कि उसे ओरिजिनल म्यूजिक मिले. हम अपने शो 'ओम शांति ओम' के जरिये आने वाले दिनों में लोक धुनों के संगीत को आज के युवाओं के हिसाब से बदलने देने जा रहे हैं. आप देखेंगे कि इस देश में संगीत के मामले में डिवोशनल संगीत का सबसे बड़ा कंजम्प्शन है. जिसको बड़ी म्यूजिक कंपनियां प्रदूषित करके बहुत बड़ी बन गई लेकिन उन्होंने भजन के नाम पर कूड़ा परोसा. हमारे जो लोक संगीत थे, भजन थे, जो सुकून देते थे उनको हमने युवाओं से भी काट दिया और उन्हें अब ये संगीत बोरिंग लगने लगा है. मैं ये शो डिवोशनल संगीत के अवॉयडर्स के लिए बना रहा हूं. शंकर, शेखर, सोनू निगम ने आज के म्यूजिक के हिसाब से डिवोशनल गाने भी बनाये हैं. हमारे शो में भी आज के संगीत में ट्रांसलेट करने की कोशिश की जा रही है. युथ का उनके हिसाब का म्यूजिक मिलेगा तो जो गैप आ आ गया है वो खत्म होगा. हमारा शो एक ब्रिज होगा.इसके सक्सेस होने के बाद कोई पेरेंट नहीं कहेगा कि मेरा बेटा भजन नहीं गाता.

तो आपको क्या इस विलुप्त होते संगीत को अपने शो के जरिये पुनर्जीवित करने की कोशिश कर रहे हैं ?

जी मेरा मानना है कि ये विलुप्त नहीं हुआ है, हां इसमें प्रदुषण आ गया है. देश में आज भी डिवोशनल म्यूजिक के लिए भूख है जिसे कभी खत्म नहीं किया जा सकता है. लेकिन वहां हम खाने के लिए क्या देते हैं वो निर्भर करता है. आप देखेंगे कि छोटे शहरों में आज भी मंगलवार, शनिवार को हरिहरण के गाये हुए हनुमान चालीसा की आवाज सुनाई पड़ती रहती है. आप नवरात्री, दीवाली, छठ, कावड़ और इसके जैसे कई त्योहारों को नजरअंदाज नहीं कर सकते ना ही इसमें बजने वाले डिवोशनल म्यूजिक को. उसी तरह हमारे देश कि बाकी धर्मों के साथ भी कुछ ऐसा ही है. बस ये बात है कि आज का डिवोशनल संगीत प्रदूषित हो गया है. हमने कंटेम्परेरी संगीत में डिवोशनल म्यूजिक को परिवर्तित करने की कोशिश है.

हमें ये मालूम है कि डिवोशनल म्यूजिक के लिए भूख तो वैसी ही बनी रहेगी. बस हमने अपने मंच को कितना सार्थक बनाया है ये बड़ा मसला है. जैसा योग की भूख बहुत पुरानी है लेकिन जब रामदेव जी ने इसे सही ढंग से कम्यूनिकेट किया तो उसका सही प्रचार प्रसार हुआ. सेम चीज भजन के साथ है. भजन का हम नया दर्शक या श्रोता नहीं पैदा कर रहे हैं. देश का युवा कितना भी मॉडर्न हो जाए लेकिन आध्यात्म या धर्म से वो विमुख नहीं हुआ है. आज भी नवरात्री, बोल बम में, नमाज में, गुरुद्वारों में सेवादारी में युवा ही दिखाई देते हैं. बस कंटेंट कैसा परोसा जा रहा है उसे रेगुलेट करना इम्पॉर्टेंट है. देश में स्पिरिचुअल भूख है उस भूख के सामने स्वच्छ भोजन, भजन के तौर पर हम पेश करना चाहते हैं.

आपके शो में सभी धर्मों की सिंगर्स आए हैं, क्या धर्मों में बैलेंस की कोई ख़ास स्ट्रेटेजी है ?

बैलेंस करने की कोशिश नहीं है, ये हमारा उद्देश्य है. आपको बताऊं हम मुज्जफरनगर जैसे सेंसिटिव इलाके से जैद अली को ढूंढ़कर लेकर आए हैं. जैद ने पहले एपिसोड में जब वंदे मातरम गाया तो लोगों ने सवाल उठाया कि पॉलिटिकली करेक्ट होने की कोशिश तो नहीं थी. मेरा यही कहना था कि देश के सबसे महान गायक मोहम्मद रफी जब भजन गाते हैं, तो कभी हम उनके धर्म की बात नहीं करते थे. हम लोग किसी का भगवान बदलने या किसी धर्म को बड़ा छोटा साबित करने के लिए ये शो लेकर नहीं लाए हैं. इबादत का एक तरीका संगीत भी है, संगीत जो आपको रूह को सुकून देता है, मन को शांत करता है, इस शो के माध्यम से वही संगीत हम परोसेंगे.

रामदेव जैसे बड़े नाम को शो में लाने के लिए आपको कितना संघर्ष करना पड़ा ?

बाबा-कूल थे, उनके साथ काम करना आसान है. उन्हें जब कांसेप्ट समझ आ गया तो उन्होंने आउट ऑफ द बॉक्स जाकर हमारी हेल्प की. शुरुआत में थोड़ा कनफ्यूजन हुआ, उनकी टीम तैयार नहीं हो रही थी. उन्हें बाबा रामदेव जैसे शख्सियत को नेशनल टीवी पर म्यूजिक रियलिटी शो में जज के तौर लाने की बात समझ नहीं आ रही थी. लेकिन मेरा तीन साल का रिसर्च काम आया. उनकी टीम ने जितने सवाल पूछे मैंने सबके जवाब दिए. रामदेव जी और उनकी टीम के साथ लम्बा डिस्कशन हुआ.ये प्रोसेस थोड़ा लम्बा रहा. शुरूआती दौर में जहां बाबा संशय में थे लेकिन बाद में उन्होंने खुद कहा कि विवधता जिसमें होगी वही कंटेम्परेरी बनेगा. उनको लाने में संघर्ष करना पड़ा. टीम पहले तैयार नहीं थी..रामदेव का जो पॉलिटिक्स..मीडिया में जो ऑरा है वो एंटरटेनमेंट चैनल में सोनाक्षी,कनिका कपूर और शेखर के बीच स्वामी जी क्या करेंगे? फिर मैंने उन्हें समझाया स्वामी जी में विविधता है.कंटेम्परेरी चीजों को करते हैं .योग को मुश्किल नहीं बनाया. बल्कि योग को गुफाओं और पूजा पाठ से निकाल कर आम लोगों तक ले गए. उसी तरह से भक्ति संगीत आपके अंदर नई संवेदना पैदा करता है. वो शो के लिए एक रिफ्लेक्शन है कि हमारी चीजें बोरिंग नहीं है, डिवोशनल म्यूजिक बोरिंग नहीं होता. रामदेव ही क्यों हमारे बाकी टीम मेंबर्स भी हमारे थीम पर पूरी तरह से फिट बैठते हैं. सोनाक्षी का आप बैकग्राउंड देखिये. उनके घर का नाम रामायण है. वो खुद बेहद धार्मिक और आध्यात्मिक हैं. कनिका की तो शुरुआत ही अनूप जलोटा की साथ भजन गाकर हुई है. वो विदेश में रहकर भी हमारे देश के फोक म्यूजिक को लगातार गाती रही हैं. शेखर बेहद ही टैलेंटेड सिंगर, कंपोजर होते हुए भी बेहद जमीनी और आध्यात्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति हैं. मल्टी-टैलेंटेड एक्टर और शो के होस्ट अपारशक्ति का बैकग्राउंड भी शो के एकदम अनुकूल है.

आगे की राह कहा जाती हुई दिखती है?

ये एक यात्रा है जो शुरू हुई है लेकिन बेहद लम्बी है. सबकुछ एक दिन में नहीं बदलेगा. मैं अपने शो को एक प्रारम्भ मानता हूं. पिछले 20 सालों में डिवोशनल म्यूजिक में जो प्रदुषण आया है उसे ठीक करना है. मैं चाहता हूं कि जगरातों में या किसी अन्य धर्म के कार्यक्रमों में ओरिजिनल डिवोशनल गाने बजें. डिवोशनल सिंगर्स को बॉलीवुड सिंगर्स के बराबर इज्जत मिलने लगे तो कुछ हद तक मेरा लक्ष्य पूरा होगा. इतना ही नहीं मैं चाहता हूं कि भारतीय संगीत को देश के हर युवा तक पहुचाऊं. जैद अली जैसे सिंगर्स जब जागरण में आएं तो उन्हें अछूत ना समझा जाए, नफरत भरा माहौल कम हो. वैसे आगे कई और शोज की तैयारी है. फिक्शन और नॉन फिक्शन में कई शोज लेकर आना चाहता हूं. ऐसे शोज जो जमीन से जुड़े हों, जिनमें मैं परंपरा और स्टाइल की दोस्ती करवा पाऊं.और लास्ट बट नॉट द लीस्ट लापरवाह दर्शक को भी कंटेंट के प्रति जिम्मेवारी दिलाने की मेरी कोशिश रहेगी.