क्या आपने नवाजुद्दीन सिद्दिकी की नई फिल्म 'बाबूमोशाय बंदूकबाज' का ट्रेलर देखा है. अगर नहीं देखा है तो देख लीजिए, ताकि फिर आप इस लेख को पढ़ने के बाद सही फैसला ले सकेंगे. अगर देखा है तो इतना समझ में जरूर आ चुका होगा कि फिल्म में सेक्स प्रमुखता से उठाया गया है.
सेक्स की बात इसलिए करनी पड़ रही है क्योंकि यहीं से फेयर एंड हैंडसम की पूरी कहानी शुरू होती है. एक कहानी जिसमें नवाजुद्दीन पीड़ित हैं और चित्रांगदा खलनायिका. नवाजुद्दीन ने ट्वीट करके पूरी दुनिया के सामने अपनी बात रखी कि काले रंग की वजह से उनके साथ भेदभाव होता है.यानी गोरी हीरोइनें उनके साथ काम नहीं करना चाहती हैं. लेकिन यह कहानी का सिर्फ एक पक्ष हुआ.
क्या है इंटरवल के बाद की कहानी?
कहानी का दूसरा पक्ष यह है कि चित्रांगदा सिंह नवाजुद्दीन सिद्दीकी के साथ इंटीमेट सीन नहीं करना चाहती थीं. चल रही कहानी के मुताबिक चित्रांगदा ने फिल्म छोड़ दी. दो दिन पहले जब इस बात का खुलासा हुआ तो नवाजुद्दीन ने ट्वीट के जरिए सहानुभूति बटोरने की पूरी कोशिश की. उनकी कोशिश कामयाब भी रही.
लेकिन क्या ऐसा पहली बार हुआ है जब किसी कलाकर ने ऐसी शर्त रखी हो. जरा याद कीजिए क्या आपने सलमान खान को किसी हीरोइन को किस करते हुए देखा है. शाहरुख खान को? नहीं क्योंकि इन्होंने अपने फिल्मी करियर का यह उसूल बना रखा है कि वह किसी हीरोइन को किस नहीं करेंगे.
ऐसे में शाहरुख और सलमान की हीरोइन को क्या यह शिकायत करनी चाहिए कि शाहरुख और सलमान उन्हें किस क्यों नहीं कर रहे हैं. आलिया भट्ट ने आमिर खान की फिल्म 'ठग्स ऑफ हिंदुस्तान' में काम करने से मना कर दिया. वजह आलिया की इनसिक्योरिटी थी. आलिया को लग रहा था कि आमिर खान के साथ काम करने पर उनके हाथ कुछ नहीं आएगा. क्या इसके बाद आमिर खान को भी शिकायत करना चाहिए.
'ना' पर हंगामा है क्यों बरपा
फिल्म इंडस्ट्री की यह बेहद आम घटना है कि किसी कलाकार ने किसी दूसरे कलाकार की वजह से फिल्म छोड़ दी हो. फिर चित्रांगदा के 'बाबूमोशाय बंदूकबाज' छोड़ने पर इतना हो-हल्ला क्यों मच रहा है.
नवाजुद्दीन सिद्दीकी की इस शिकायत को अगर हम आम आदमी की जिंदगी से जोड़कर देखें तो हमें यह अहसास होगा कि चित्रांगदा को भी ‘ना’ कहने का पूरा हक है. क्या आप किसी लड़की से इस बात की जबरदस्ती कर सकते हैं कि वह आपसे दोस्ती कर लें. नहीं! क्या आप यह दलील दे सकते हैं कि आप काले हैं सिर्फ इसलिए किसी लड़की को आपसे दोस्ती कर लेनी चाहिए.
अगर आप यह दलील नहीं दे सकते हैं तो यह अधिकार नवाजुद्दीन सिद्दीकी के पास भी नहीं होना चाहिए. किसी अभिनेत्री को किसके साथ काम करना है, किसके साथ किस सीन देना है, किसके साथ इंटीमेट सीन करना है, यह सिर्फ और सिर्फ उसका अपना फैसला होना चाहिए.
यह रोल कुछ हजम नहीं हुआ
नवाजुद्दीन एक मंझे हुए कलाकार हैं, जो कई खूबसूरत अभिनेत्रियों के साथ काम कर चुके हैं. अगर वो भी सहानुभूति हासिल करने के लिए अपने काले रंग की दुहाई देंगे तो यह उनके प्रशंसकों को अच्छा नहीं लगेगा.
नवाजुद्दीन जैसे कलाकार के लिए रंग कोई मायने नहीं रखता. नसीरुद्दीन शाह गोरे हैं और उम्दा कलाकार भी. लेकिन उन्हें ना तो अमिताभ बच्चन वाला रुतबा मिला और ना हीरोइनें. तब क्या नसीरुद्दीन को भी यह शिकायत करना चाहिए कि अमिताभ अपने से कम उम्र की हीरोइनों के साथ रोमांस कर सकते हैं तो वह मौका उन्हें क्यों नहीं मिलता. जिस तरह फिल्म का हर किरदार अलग होता है उसी तरह जीवन का हर किरदार भी अलग होता है.
नवाजुद्दीन ने गोरेपन की बात छेड़कर बेहद संवेदनशील मुद्दा उठाया है. लेकिन उन्हें यह समझना होगा कि उनका रंग उनकी कमी नहीं बल्कि उनकी यूएसपी है. सांवलापन समाज के एक वर्ग के लिए आज भी चुनौती है लेकिन नवाजुद्दीन ने उस तबके का आत्मविश्वास बढ़ाने के बजाय अपनी टीआरपी बढ़ाने का काम किया है.