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सुबोध मुखर्जी के छल ने निरुपा रॉय को बना दिया 'फिल्मी मां' 

आज भी सबसे हिट है 'मेरे पास मां है' वाला डायलॉग

Kumar Sanjay Singh

बॉलीवुड में फिल्मी मां के रूप में जितनी शोहरत अभिनेत्री निरुपा रॉय को मिली उतनी किसी और को नहीं मिली. उन्होंने अपने समय में लगभग सभी बड़े सितारों की मां का रोल निभाया.

अमिताभ बच्चन की मां के रोल में उनकी ऐसी पहचान बन गयी कि लोगों ने उन्हें 'अमित जी की मां' का ही खिताब दे दिया. लेकिन खुद निरुपा रॉय ने इस फ़िल्मी मां के किरदार के लिए कभी निर्माता-निर्देशक सुबोध मुखर्जी को माफ नहीं किया.


1955 में सुबोध मुखर्जी ने उनके सामने फिल्म 'मुनीम जी' का प्रस्ताव रखा जिसमें उन्हें नायिका के युवावस्था से लेकर वृद्धावस्था तक का रोल निभाना था.

निरूपा रॉय ने इसके लिए हामी भर दी. बाद में सुबोध मुखर्जी ने उनसे बिना बताये युवावस्था वाला रोल नलिनी जयवंत के साथ रीशूट कर लिया.

इस फिल्म में निरूपा रॉय ने खुद से 10 साल बड़े देवानंद की मां का रोल निभाया था. फिल्म तो हिट हो गयी लेकिन इस फिल्म ने निरूपा रॉय की नायिका वाली छवि को तहस-नहस कर दिया.

अब उन्हें हीरोइन के रूप में स्वीकार करने के लिए कोई तैयार ही नहीं था. निरूपा रॉय को काम मिलना बंद हो गया और वो घर बैठ गयी. विमल रॉय की सलाह पर उन्होंने फिल्म 'छोटी बहू' से माँ का किरदार निभाना शुरू किया.

1975 में वैजयंती माला द्वारा फिल्म ठुकराए जाने के बाद यश चोपड़ा ने उन्हें फिल्म 'दीवार' में अमिताभ बच्चन और शशि कपूर की मां का रोल ऑफर किया जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया.

इस फिल्म में उन्हें इतना पसंद किया गया कि आगे चलकर वो अमिताभ बच्चन की फ़िल्मी मां के रोल में टाइपकास्ट ही हो गयी. इस फिल्म में शशि कपूर का डायलॉग 'मेरे पास मां है' तो जैसे अमर ही हो गया.

बिग बी के साथ उन्होंने 'सुहाग, अमर अकबर एंथोनी, मुकद्दर का सिकंदर, मर्द और गंगा जमुना सरस्वती' जैसी हिट फिल्मों में काम किया.

1992 में आई फिल्म 'जहां भी तुम ले चलो' से वो दादी के किरदार में नज़र आने लगी. निरूपा रॉय ने गुजराती,मराठी और हिंदी सहित कुल 500 फिल्मों में काम किया लेकिन हिंदी फिल्मों में उनकी पहचान जो बनी वो आज भी कायम है.