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Mom Film Review: शानदार एक्टर्स के बावजूद 'स्टोरी' ने निकाली फिल्म की जान

श्रीदेवी की ये 300वीं फिल्म है और उनकी एक्टिंग को पूरे नंबर देने चाहिए

Abhishek Srivastava

श्रीदेवी भले ही पचास के ऊपर की हैं लेकिन एक तबका अभी भी ऐसा है जो उनकी फिल्मों का बेहद ही उत्सुकता के साथ इंतजार करता है. और इसके पीछे वजह भी है, अगर किसी ने अपने पूरे फिल्मी करियर में एक-से-एक बेहतर और उम्दा अदाकारी रुपहले पर्दे पर दिखाई हो तो लोग उसके कायल क्यों ना हों.

चाहे वो मिस्टर इंडिया हो या फिर चालबाज, सदमा हो या फिर चांदनी, श्रीदेवी ने अपने अभिनय की खुश्बू हर बार पर्दे पर बिखेरी है. मॉम उनकी नई रिलीज है और कम शब्दों में कहें तो वो पूरी फिल्म पर हावी रहती हैं.


स्टोरी से गायब फिल्म का थ्रिल

यही बात हम फिल्म में बारे में नहीं कह सकते हैं. आप बस यूं समझ लीजिए कि फिल्म एक 100 किमी प्रति घंटा की रफ्तार से चलने वाली गाड़ी है जो सफर के दो घंटे के बाद डीरेल हो जाती है.

कहने का आशय ये है कि एक अच्छी शुरुआत के बावजूद फिल्म का मजा अंत मे किरकिरा हो जाता है. निर्देशक रवि उदयवार की ये पहली फिल्म अपने पहले हाफ मे बांध कर रखती है. हर वक्त इसी बात का एहसास होता है कि आगे क्या होने वाला है लेकिन दूसरे हाफ मे सब कुछ प्रेडिक्टबल हो जाता है.

'बदले' की कहानी

मॉम की कहानी देवकी के बारे में है जिसका रोल फिल्म में निभाया है श्रीदेवी ने. देवकी का हंसता खेलता परिवार है जिसमें शामिल है उसके पति आनंद, छोटी बेटी और एक सौतेली बेटी आर्या.

सौतेली बेटी अपनी मां को मां नहीं मानती है इस वजह से कभी-कभी निराशा के पल भी जिंदगी में रहते हैं. एक पार्टी में जब आर्या अपने स्कूल के दोस्तों के साथ जाती है तब वो एक दर्दनाक हादसे का का शिकार हो जाती है. पार्टी के बाद चार बदमाश चलती गाड़ी मे आर्या के साथ बलात्कार करते हैं और उसके बाद उसे नाले मे फेंक देते हैं.

अस्पताल में पुलिस को बयान देने के बाद उन आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया जाता है. लेकिन अदालत में सबूत ना होने की वजह से ये सभी छूट जाते हैं. उसके बाद श्रीदेवी कैसे उन चारों से अपनी बेटी के साथ  बीते हुए हादसे का बदला लेती है यही कहानी है मॉम की.

एक्टिंग के पूरे नंबर

अगर अभिनय की बात करें तो देवकी के रोल मे श्रीदेवी पूरी फिल्म में छाई हुई हैं. एक लंबे अंतराल के बाद वो बड़े पर्दे पर दिख रही हैं.

पिछली बार वो गौरी शिंदे की फिल्म इंग्लिश विंगलिश मे नजर आई थीं. लेकिन जिसके रग-रग मे अभिनय बसता हो उसके लिए पर्दे की लंबी जुदाई भी कोई मायने नहीं रखती है. नवाजुद्दीन सिद्दीकी से भी जिस चीज की उम्मीद थी उस पर वो पूरी तरह खरे उतरे हैं.

नवाज फिल्म में एक जासूस बने हैं और अपने तौर तरीकों से जो जासूसों का स्टीरियोटाईप्ड चेहरा हम आज तक हिंदी फिल्मों में देखते आ रहे हैं वो उनकी अभिनय की अदायगी से आगे चलकर जरूर बदलेगा.

संवाद अदायगी का उनका अंदाज लाजवाब है. अक्षय खन्ना भी इस फिल्म में पुलिस अफसर मैथ्यू के रोल में हैं जो पूरे हादसे की तहकीकात करते हैं, फिल्म में उनके डायलॉग नहीं है लेकिन उनकी बॉडी लैंग्वेज उसकी पूरी तरह से भरपाई कर देता है.

पाकिस्तानी अभिनेता अदनान सिद्दीकी फिल्म में श्रीदेवी के पति के रोल में हैं और उनका भी अभिनय काफी कसा हुआ है. फिल्म के विलेन है अभिमन्यु सिंह और उनको देखकर वाकई मे खौफ लगता है.

डायरेक्टर रवि उदयवार की 'पहली' फिल्म

इसी फिल्म से निर्देशक की पारी शुरुआत की है रवि उदयवार ने और मानना पड़ेगा की अपनी पहली ही फिल्म में उन्होंने छाप छोड़ी है. फिल्म देखकर नहीं लगता की मॉम उनकी पहली फिल्म है. लेकिन अगर फिल्म में किसी का काम सबसे उम्दा है तो वो निश्चित रूप से फिल्म के सिनेमाटोग्राफर अनय गोस्वामी का.

जिस तरह के फ्रेम उन्होंने फिल्म मे इस्तेमाल किए हैं उनको देखकर सिर्फ मुंह से वाह-वाह ही निकलती है. जब देवकी की बेटी के साथ दिल्ली की सुनी सड़कों पर चलती गाड़ी में रेप का सीन है वो दिल दहलाने वाला है.

कुछ ना दिखाते हुए भी कैमरा वर्क ने उस मौके की आत्मा दर्शकों को दिखा दी है जो हमें अंदर तक झकझोरती है. फिल्म का वो सीन भी बेहद उम्दा है जब नवाज, श्रीदेवी से एक मार्डन आर्ट गैलरी में मिलते हैं.

रहमान के म्यूजिक ने किया निराश

फिल्म के संगीत के बारे में भी कुछ कहना पड़ेगा क्योंकि फिल्म मे संगीत दिया है ए आर रहमान ने. इस बात को लिखने में भी दुख हो रहा है कि फिल्म का संगीत बेहद ही एवरेज है. गिने चुने हुए गाने हैं फिल्म में लेकिन बेहद ही साधारण अगर कुछ असाधारण है तो वो है फिल्म का बैकग्राउंड स्कोर जो फिल्म के माहौल के साथ पुरी तरह से मेल खाता है.

फिल्म में हैं कई झोल

लेकिन कुछ सीन्स है फिल्म में जिसे देखकर अटपटा लगता है. फिल्म में नवाजुद्दीन सिद्दीकी एक जासूस बने हैं जो श्रीदेवी की उन चारों रईसजादो तक पहुंचने में मदद करते हैं. लेकिन वो किस तरह से अपना काम करते हैं इसको बताने की जहमत फिल्म में नहीं उठाई गई है.

श्रीदेवी का अपनी सौतेली बेटी के बलात्कारियों तक हर बार आसानी से पहुंच जाना और अपनी पहली ही कोशिश में कामयाब हो जाना अजीब लगता है.

स्टोरी ने मानी जल्दी हार

फिल्म की थीम काफी रियलिस्टीक है इसलिए ये काफी बेतुका लगता है. कुछ महीने पहले बिल्कुल इसी कहानी के साथ रवीना टंडन अपनी फिल्म मातृ लेकर आई थीं लेकिन कमजोर निर्देशन और ट्रीटमेंट की वजह से फिल्म को दर्शकों ने नकार दिया था.

इस फिल्म में भी लगभग सबकुछ वैसा ही है लेकिन निर्देशन, अभिनय और ट्रीटमेंट का कमाल पूरी तरह से नजर आता है. श्रीदेवी की ये 300वीं फिल्म है और इसको हम उनके फिल्मों में सालों के शानदार सफर के रूप में सेलिब्रेट कर सकते हैं.

आप फिल्म की कमियों को दरकिनार करके एक टेक्निकली साउंड फिल्म का लुत्फ इस हफ्ते उठा सकते हैं. अच्छे अभिनय की गारंटी जरूर मिलेगी, लेकिन इसकी कहानी की कसावट के बारे में ज्यादा कुछ नही बोलूंगा.