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अलविदा 2017: बॉलीवुड के वो दिग्गज सितारे जिन्होंने दुनिया को कहा हमेशा के लिए अलविदा

प्रतिभा, स्टाइल और सूरत-सीरत की खूबसूरती सदा के लिए फिल्म जगत से रुखसत हो गई

Abhishek Srivastava

साल 2017 के बारे में भविष्य में जब कभी भी बात होगी तब उस वक्त सबसे पहले इसी बात का जिक्र होगा कि ये वही साल था जब फिल्मी दुनिया के तीन दिग्गज सितारों ने हमेशा के लिए दुनिया को अलविदा कह दिया. या फिर यूं कहें कि प्रतिभा, स्टाईल और सूरत-सीरत की खूबसूरती सदा के लिए फिल्म जगत से रुखसत हो गई. अगर ओम पुरी के निधन से साल के शुरू में फिल्म जगत को भारी क्षति हुई तो वहीं दूसरी तरफ साल के आखिरी महीने में शशि कपूर के चले जाने से मानो यही लगा की 2017 को किसी तरह का ग्रहण लग गया था.


ओम पुरी

6 जनवरी को जब अभिनेता ओम पुरी का निधन हुआ तब सभी ने यही कहा था कि इस खबर से साल की शुरुआत नहीं हो सकती है. अपने सशक्त अभिनय से देश और विदेश में लोहा मनवाने वाले ओम पुरी उन चुनिंदा कलाकारों में से थे जिनकी वजह से पैरलेल सिनेमा मूवमेंट को सत्तर और अस्सी के दशक में एक नई ऊर्जा मिली थी. आक्रोश, अर्ध सत्य, मिर्च मसाला और जाने भी दो यारों कुछ ऐसी फिल्में थीं जिसने ओम पुरी को बुलंदियों पर पहुंचा दिया था. लेकिन उनका दायरा सिर्फ बॉलीवुड तक ही सीमित नहीं था. ईस्ट इज़ ईस्ट, द घोस्ट एंड द डार्कनेस, सिटी ऑफ जॉय और चार्लिज विल्सन वॉर कुछ एक ऐसी फिल्में थीं जिसकी वजह से उनको वही सम्मान हॉलीवुड में भी मिला. दो दफा ओम पुरी ने नेशनल अवार्ड पर भी अपना हाथ साफ किया था.

विनोद खन्ना

ब्लैडर कैंसर की वजह से किसी जमाने में हिंदी फिल्मों के सुपरस्टार रह चुके विनोद खन्ना का निधन 27 अप्रैल को हो गया था. अपनी इस बीमारी की वजह से अपने आखिर के सालों में विनोद खन्ना का पर्दे पर आना काफी कम हो गया था. गोरेगांव के एक अस्पताल में उन्होंने अपनी अंतिम सांसे लीं. विनोद उन चुनिंदा सितारों में से एक थे जिनको स्टारडम पाने के लिए ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ी थी और इसकी वजह थी उनकी प्रतिभा और उनका चेहरा जिसके बारे में यहां तक कहा जाता है कि इतना हैंडसम चेहरा फिल्म जगत ने आज तक नहीं देखा है.

स्टारडम के शिखर पर पहुंच कर विनोद खन्ना ने सब कुछ त्याग दिया था और शांति की खोज में भगवान् रजनीश के आश्रम की ओर रूख कर गये थे. सन 1968 में जब उन्होंने अपनी फिल्मी पारी की शुरुआत की थी तब किसी को इस बात का इल्म नहीं था कि सत्तर के दशक के सुपरस्टार अमिताभ बच्चन उनकी शोहरत और प्रतिभा से खुद को असुरक्षित महसूस करेंगे. जब फिल्म रिहाई की शूटिंग गुजरात में चल रही थी तब उनका शूटिंग के बाहर का वक्त सेट पर लगे चारपाई पर बीतता था और उसी होटल में रहते और खाना कहते थे जहां पर यूनिट के बाकी सभी सदस्य रुकते थे. ये सब कुछ उन्होंने फिल्म के निर्माता के लिए किया था ताकि उसकी जेब से ज्यादा पैसे न निकलें.

शशि कपूर

सीने में कंजेशन के चलते काफी नाजुक हालत में शशि कपूर को मुंबई के कोकिलाबेन अस्पताल में भर्ती किया गया था लेकिन 4 दिसंबर को 79 साल की अवस्था में उन्होंने दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया. भले ही स्टार बनने का रुतबा शशि कपूर को अपने करियर के शुरू में ही हासिल हो गया था लेकिन उनका दिल कहीं और बसता था. अगर उन्होंने मुंबई को पृथ्वी थिएटर के रूप में एक बेहद ही नायाब तोहफा दिया तो वहीं दूसरी तरफ कलियुग, जुनून, उत्सव और 36 चौरंगी लेन जैसी फिल्मों का निर्माण करके ये साबित किया कि सार्थक सिनेमा की जगह उनके दिल में सबसे ऊपर थी. फिल्म नई दिल्ली टाइम्स से उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार सम्मान से नवाजा गया था लेकिन बहुत लोगों को इस बात की जानकारी नहीं है कि इस फिल्म की शूटिंग उन्होंने अपने जीवन के बड़े ही कठिन समय में की थी जब उनकी पत्नी जेनिफर केंडल मृत्यु हो गई थी और मेहनताने के तौर पर अपने मार्केट रेट से 6 गुना कम रकम पर फिल्म साईन की थी.

नीरज वोहरा

अगर अक्षय कुमार इस बात को मानते हैं कि लेखक निर्देशक नीरज वोरा ने उनके कॉमेडी के कौशल को बाहर लाने में उनकी मदद की थी तो ये बात नीरज वोरा के बारे में काफी कुछ कहता है. एक लम्बे समय तक कोमा में रहने के बाद 14 दिसंबर को नीरज दुनिया से हमेशा के लिए रुखसत हो लिए. आमिर खान के फिल्मी करियर में अगर रंगीला का नाम उनकी बेहतरीन फिल्मों की श्रेणी में शुमार होता है तो उसका सेहरा नीरज वोरा को जाता है क्योंकि इस फिल्म को उन्होंने ही लिखी थी. गोलमाल और हेरा फेरी जैसी जबरदस्त हिट फिल्मों की शुरुआत किसी की कलम से हुई थी तो वो कलम नीरज की ही थी. देखकर इस बात को सुकून पहुंचा था कि अपने आखिर के दिनों में जब कइयों ने उनसे किनारा कर लिया था तब निर्माता फिरोज नाडियाडवाला ने उनकी भरपूर सेवा की. उनके आखिर के दिनों में आमिर खान भी अक्सर उनके सेहत का जायजा लेने के लिए उनके पास जाया करते थे.

कुंदन शाह

कुंदन शाह के चले जाने का बाद यही लगा कि पैरेलल सिनेमा का एक स्तम्भ गिर गया है. जब 7 अक्टूबर को लोगों को पता चला कि उनका निधन दिल के दौरे की वजह से हो गया है तब फिल्म जगत में शोक की लहर दौड़ गई थी.एफटीआईआई पुणे से निर्देशन की बारींकियां सीखने वाले कुंदन ने अगर फिल्म जगत को सबसे सदाबहार फिल्म जाने भी दो यारो के रूप में दी तो वहीं दूसरी तरफ सुपरस्टार शाहरुख खान के करियर में उनको कभी हां कभी ना देकर एक तरह से उनके ऊपर उपकार किया क्योंकि कभी हां कभी ना शाहरुख के करियर में उनकी बेहतरीन फिल्म मानी जाती है.

ये फिल्म जगत का क्रूर रूप ही था जिसकी वजह से अपनी पहली फिल्म जाने भी दो यारो बनाने के बाद उनको अपनी दूसरी फिल्म बनाने में पूरे एक दशक लग गए. अगर कुंदन के बारे में ये बात कही जाये की वो ज़माने से आगे थे तो ये कही से गलत नहीं होगा. ये दम कुंदन में ही था जब कभी हाँ कभी ना की गोवा में शूटिंग के दौरान शाह रुख से परेशान हो कर उनको यहां तक कह दिया था कि उनसे बेहतर अभिनय पत्थर कर सकता है. कुंदन शाह जैसे बिरले कम ही पैदा होते हैं. जाने भी दो यारो के लिए उनका तहे दिल से शुक्रिया.

इन्दर कुमार

महज 44 साल की उम्र में इन्दर कुमार ने 28 जुलाई को दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया था. अपनी पहली ही फिल्म मासूम में अपनी थिरकन से इन्दर कुमार ने लोगों का ध्यान अपनी ओर खींच लिया था. ये उनकी बदकिस्मती थी कि उनकी आगे की फ़िल्में उतनी नहीं चलीं. शुक्र था कि सलमान खान उनकी जिंदगी में आए और उन्होंने अपनी ओर से भरपूर कोशिश की कि इन्दर कुमार किसी भी तरह से फिल्म जगत में स्थापित हो जाएं. कहीं प्यार ना हो जाए, तुमको ना भूल पाएंगे और वांटेड कुछ ऐसी फिल्में थीं जो उनको सलमान कि वजह से मिलीं. उनके छोटे फ़िल्मी करियर में विवादों की भी जगह रही थी. 2014 में जब एक मॉडल ने उनके ऊपर रेप का इलज़ाम लगाया तो उनको जेल भी जाना पड़ा था. उसके बाद से फिल्म जगत के कई लोगो ने उनसे किनारा कर लिया था. इन्दर कुमार का निधन दिल के दौरे कि वजह से हुआ था.

लेख टंडन

मौजूदा पीढ़ी शायद लेख टंडन के काम से ज्यादा परिचित न हों क्योंकि इन्होंने आखिरी फिल्म का निर्देशन सन 1997 में किया था. लेकिन जब किसी को ये बताया जाता है कि प्रोफेसर, झुक गया आसमान, प्रिंस, दुल्हन वही जो पिया मन भाए और टीवी सीरियल दिल दरिया जिसमें शाह रुख खान थे का निर्देशन लेख टंडन ने किया था तब उनके प्रति आदर और श्रद्धा का भाव खुद-ब-खुद उमड़ पड़ता है. 15 अक्टूबर को इस सदाबहार निर्देशक ने अपनी अंतिम सांसें लीं.

रीमा लागू

हिंदी फिल्मों में निरुपा रॉय के बाद किसी ने अगर मां के किरदार को रुपहले पर्दे पर पूरे तन्मय से जिया तो वो रीमा लागू ही थीं. रीमा लागू का निधन जब 18 मई को हुआ तो हिंदी फिल्मों के अलावा मराठी फिल्म इंडस्ट्री को भी जबरदस्त झटका लगा था. मैंने प्यार किया, वास्तव, कल हो ना हो, हम आपके है कौन कुछ ऐसी फिल्में थी जिनकी सफलता में रीमा लागू का बहुत बड़ा योगदान था. इस बात में कोई शक नहीं कि मां के फिल्मी किरदार की जगह की पूर्ति अभी तक नहीं हो पाई है.