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लॉयन मूवी रिव्यू: मिलने और बिछड़ने की अद्भुत कहानी

इस फिल्म के लिए देव पटेल को बाफ्टा में बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर का पुरस्कार मिला है.

Ravindra Choudhary

लॉयन कहानी है- इंसानी जज्बात की, उम्मीद की और कभी भी हार न मानने की. पांच साल का एक बच्चा, जो अपने परिवार से बिछुड़ जाता है और हजार कोस दूर कलकत्ता (अब कोलकाता) पहुंच जाता है और फिर वहां से सात समंदर पार दूसरे देश ऑस्ट्रेलिया पहुंच जाता है. वही बच्चा बड़ा होकर गूगल अर्थ की मदद से अपने घर और परिवार को ढूंढता है.

यह फिल्म आधारित है भारतीय-ऑस्ट्रेलियाई बिजनेसमैन सरू ब्रेयरले और लैरी बटरोस के नॉवेल ‘अ लॉन्ग वे होम’ पर, जिसमें सरू की जिंदगी की सच्ची कहानी है.


सरू अपनी मां कमला (प्रियंका बोस), बड़े भाई गुड्डू (अभिषेक भराटे) और छोटी बहन के साथ रहता है. दोनों भाई मालगाड़ी से कोयला चुराकर घर का खर्च चलाते हैं. मां पहाड़ी पर पत्थर ढोती है. एक रात गुड्डू काम के लिए नजदीक के शहर जाता है, सरू भी जिद करके उसके साथ हो लेता है. वहां वो रेलवे प्लेटफॉर्म की बेंच पर सो जाता है और जब उठता है तो गुड्डू को वहां नहीं पाता. गुड्डू को ढूंढता हुआ वो एक खाली ट्रेन में चढ़ जाता है, जो उसे 1600 किलोमीटर दूर कलकत्ता ले जाती है.

कई दिनों तक वो कलकत्ते की सड़कों पर भटकता है और अंत में अनाथाश्रम पहुंच जाता है, जहां से उसे ऑस्ट्रेलियाई दंपति सू और जॉन ब्रेयरले (निकोल किडमैन और डेविड वेन्हम) गोद ले लेते हैं और वो होबार्ट पहुंच जाता है. बीस साल बाद वो होटल मैनेजमेंट का कोर्स करने मेलबर्न जाता है, जहां दोस्त के घर पार्टी में जलेबी देखकर उसे गुड्डू याद आ जाता है, जिसने उसे एक दिन जलेबी खिलाने का वादा किया था.

यहीं से सरू वर्तमान से जूझता हुआ अपने अतीत की तलाश शुरु करता है. यह तलाश बीच-बीच में थोड़ी धीमी भी लगती है- डॉक्यू ड्रामा की तरह. लेकिन सच्ची कहानी होने की वजह से यह बात ज्यादा नहीं खटकती.

गार्थ डेविस ने बतौर डायरेक्टर अपनी पहली ही फिल्म में कमाल कर दिया है और ग्रेग फ्रेजर के कैमरे ने उनकी कहानी को एक शानदार कविता में बदल दिया है. पांच साल के खोये हुए बच्चे की नजर से कोलकाता का जो चित्रण उन्होंने किया है, वो बेमिसाल है.

देव पटेल ने निश्चित रूप से अवॉर्ड विनिंग परफॉर्मेंस दी है, लेकिन देव से भी ज्यादा जिसने प्रभावित किया है- वो है सनी पवार, जिसने सरू के बचपन की भूमिका की है. इस बच्चे ने अद्भुत काम किया है. इसी वजह से फिल्म का बचपन वाला हिस्सा ज्यादा असरदार है.

सू की भूमिका में निकोल ने भी बहुत शानदार काम किया है और जॉन के रोल में विन्हेम (‘300’ वाले) ने भी. सरू की गर्लफ्रेंड के रोल में लूसी (रूनी मारा) को ज्यादा फुटेज नहीं मिली लेकिन काम उनका भी बढ़िया है. छोटी-छोटी भूमिकाओं में तनिष्ठा चटर्जी और नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी भी हैं.

फिल्म का भारत वाला हिस्सा हिन्दी और बांग्ला में है और जब कहानी ऑस्ट्रेलिया पहुंचती है, वो हिस्सा अंग्रेजी में है. अंत में सरू के अपने दोनों परिवारों के साथ ऑरिजिनल फोटोज और वीडियो भी हैं, जब वो 12 फ़रवरी 2012 को अपने घर खंडवा (मध्य प्रदेश) पहुंचता है. फिल्म का टाइटल ‘लॉयन’ क्यों है, इसका खुलासा भी फिल्म के अंत में है.

‘लॉयन’ बाफ्टा में बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर और बेस्ट अडैप्टेड स्क्रीनप्ले का अवॉर्ड जीत चुकी है और ऑस्कर अवॉर्ड्स में भी बेस्ट पिक्चर, बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर और बेस्ट सपोर्टिंग एक्ट्रेस समेत 6 श्रेणियों में नामांकित है.

और वाकई इसके जीतने के अच्छे चांस हैं क्योंकि बिछड़ने का दुख सार्वभौम है और मिलन का सुख भी! तो आंखें नम कर देने वाले इस मासूम ‘लॉयन’ को हमारी तरफ से 4 स्टार.