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बाहुबली 2: एक फिल्म कैसे बन गई धार्मिक गाथा?

बाहुबली 2 में ‘एक भी गैर-हिंदू कैरेक्टर न होना’ क्या वास्तव में कोई मायने रखता है?

T S Sudhir

शनिवार से ही बाहुबली 2 के मुख्य कलाकारों अमरेंद्र बाहुबली और देवसेना की मुस्लिम वेशभूषा में एक फोटोशॉप की गई इमेज सोशल मीडिया पर ट्रेंड कर रही है.

एक ट्विटर हैंडल @Atheist_Krishna में इसे ‘बाबू-अली’ कहा गया है. इसमें संकेत किया गया है कि केवल मुस्लिमों को यह मूवी पसंद नहीं आएगी क्योंकि इसमें हिंदू परंपराओं और जीवन पद्धति का जश्न मनाया गया है.


एक अन्य शख्स ने कहा है कि इस फिल्म से ‘हिंदू होने के गर्व को बढ़ावा मिलेगा’. एक अन्य ट्वीट में इशारा किया गया है कि जिस शख्स को यह मूवी पसंद नहीं आई वह ‘लिपस्टिक अंडर माई बुर्का की तारीफें कर सकता है.’

बाहुबली और हिंदू धर्म का कनेक्शन

डायरेक्टर एसएस राजामौली स्वयं स्वीकार चुके हैं कि वह एक नास्तिक हैं. ऐसे में इस बात के कोई आसार नहीं हैं कि बाहुबली को हिंदू आस्था के जश्न के तौर पर तैयार करने का कोई मकसद रहा होगा. लेकिन, बीते दौर को दिखाने वाली और अमर चित्र कथा से प्रभावित बाहुबली 2 अब हिंदू विश्वास का ठोस स्तंभ बन गई है.

यह चीज इतनी बढ़ गई है कि फिल्म की जरा सी भी बुराई करने वाले के खिलाफ जगह उगला जाने लगा है और उनके धर्मों को लेकर सवाल उठाए जाने लगे हैं. अगर ये क्रिटिक्स हिंदू होते हैं तो उन्हें फर्जी हिंदू कहा जाता है और कहा जाता है कि ये लोग हिंदुओं के खिलाफ घृणा फैला रहे हैं.

फिल्म से हिंदुओं में एकजुटता

‘हिंदुओं के लिए बाहुबली’ का जो शोर शुरू हुआ है, उसमें कुछ आस्थावान यह तर्क भी देने लगे हैं कि ‘हिंदुओं में एकजुटता का दौर शुरू हो गया है’. देवसेना और शिवगामी के व्यवहार को ये लोग हिंदू महिलाओं के रुख के तौर पर बता रहे हैं.

फिल्म में जिस तरह से खून बहाया गया है उससे डिजिटल जगत में इन ट्रोल करने वालों को अपने विरोधियों से निपटने का एक हथियार मिल गया है.

हालांकि, अभी तक किसी ने इस हथियार से पाकिस्तान को बर्बाद नहीं किया है. लेकिन मुझे पूरी उम्मीद है कि जल्द ही माहिष्मती पर कब्जे की जंग में पाकिस्तान को भी घसीट लिया जाएगा.

बाहुबली के पहले पार्ट का जायजा

द बिगनिंग में हिंदू चरित्र से इसका प्रमाण मिलता है. युवा प्रभास विशालकाय शिवलिंग को जल अभिषेक के लिए कंधे पर उठाकर झरने के नीचे लाते हैं.

यह सीन पहले पार्ट का शायद सबसे प्रभावशाली सीन था जो आपके दिलोदिमाग में अब तक टिका होगा. इसमें हिंदू धर्म की इमेज को और मजबूत किया गया है. इसने एक सीन ने हिंदू धर्म की भव्य और ताकतवर छवि तैयार की है.

निश्चित तौर पर बाहुबली- द कनक्लूजन में चरित्रों की धार्मिकता पर फोकस किया गया है और हिंदुत्व को और ज्यादा बड़े रूप में दिखाया गया है.

गणेश को माहिष्मती साम्राज्य के मुख्य आराध्य देव के तौर पर दिखाया गया है तो देवसेना का राज्य भगवान कृष्ण को पूजता है. इस तरह से दूसरे पार्ट में पहले पार्ट के मुकाबले अंतर है, जहां कालकेय से लड़ाई से पहले एक अज्ञात देवी की पूजा की गई थी.

किस काल की है फिल्म बाहुबली?

किताब ‘द राइज ऑफ शिवगामी’ के लेखक आनंद नीलकंठन कहते हैं कि फिल्म ऐसे दौर को दिखाती है जब गन पाउडर की खोज नहीं हुई थी.

इस तरह से यह फिल्म 7वीं और 8वीं शताब्दी में चोल साम्राज्य के दौर की मानी जा सकती है. नीलकंठन ने कहा, ‘यह एक खास वक्त और दौर की कहानी है, ऐसे में लेखक को उस वक्त के सामाजिक मूल्यों को दिखाना जरूरी था. उस दौर में हिंदुत्व को फिर से खड़ा करने का प्रयास हुआ और इसके लिए कई भव्य मंदिरों का निर्माण कराया गया. बाहुबली सीधे तौर पर एक फैंटेसी फिक्शन मूवी नहीं है.’

इसमें एक सीक्वेंस है जिसमें अमरेंद्र बाहुबली बैलों पर काबू पाते हैं, वह दो बैलों की सवारी करते हैं. यह सीन शायद जलीकट्टू और कंबाला से प्रभावित है. बड़ी स्क्रीन पर पारंपरिक भारतीय कल्चर हिट हो रहा है और इसे बेस्ट बीएफएक्स की मदद मिल रही है.

कर्नाटक वोकलिस्ट टीएम कृष्णा कहते हैं, ‘मुझे इस बात में कुछ भी चौंकाने वाला नहीं लगता कि यह हाइजैक हो रहा है. मूवी हमारे दौर की राजनीतिक पृष्ठभूमि से जुड़ी हुई है. राजनीतिक जागरूकता के संदर्भ में इस फिल्म की टाइमिंग दुश्मनी को बढ़ावा देती है.’

पांडवों का मिक्स है प्रभास का कैरेक्टर

तेलुगु फिल्ममेकर महेश काठी कहते हैं कि महाभारत जैसे महाकाव्यों की तर्ज पर खड़ी की गई कल्पनाओं के साथ प्रभास का कैरेक्टर सभी पांडवों के चरित्रों का एक मिक्स लगता है.

वह कहते हैं कि ऐसे में बाहुबली एक हिंदू फिल्म होने पर अचरज नहीं होना चाहिए. महेश के मुताबिक, ‘जहां तक बीजेपी का संबंध है, यह उनकी भी फिल्म है. आपको कौन बाहुबली के पहले पार्ट पार्ट के तौर पर आधी फिल्म को बेस्ट फीचर फिल्म के लिए नेशनल अवॉर्ड देगा? यह चीज इसलिए नहीं कही जा रही कि राजमौली का फिल्म बनाते वक्त कोई हिंदुत्व एजेंडा था.’

क्या खास है बाहुबली 2 में?

दूसरी ओर, बाहुबली 2 में ‘एक भी गैर-हिंदू कल्चर का न होना’ क्या वास्तव में क्रिटिक्स के लिए कोई मायने रखता है?

सिनेमा के पारखी और लेखक एल रविचंदर कहते है, ‘मेरे लिए, बाहुबली एक ऐसी मूवी है जो कि न तो इतिहास से न ही भूगोल से जुड़ी हुई है. यह सीधे तौर पर एक फैंटेसी फिल्म है जिसमें रामायण और महाभारत जैसे लोकप्रिय महाकाव्यों के दायरे से बाहर निकलने की कोशिश की गई है.’

कुल मिलाकर अगर फिल्मों को हिंदू या मुस्लिम के तौर पर बांटने की कोशिश की जाए तो अमिताभ बच्चन की कई फिल्में हिंदू मानी जाएंगी. ऐसी ही एक फिल्म में वे कहते हैं, ‘जो कभी मंदिर की सीढ़ियां नहीं चढ़ा, वो आज तेरे सामने हाथ फैलाए खड़ा है.’ लिहाजा ये बेतुके तर्क हैं.

मुगल-ए-आजम को फिर मुस्लिम मूवी माना जाएगा. अमर अकबर एंथोनी किस स्लॉट में आएगी, इस पर तो चर्चा करना भी बेवकूफी होगी.

किस तरह अलग है यह फिल्म?

बाहुबली किस तरह से एक अलग फिल्म है. इसमें अलग है बेहतरीन टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जाना. जबरदस्त वर्ल्ड क्लास टेक्नोलॉजी के जरिए भारतीय कंटेंट को जिस तरह से पेश किया गया है वह काबिले तारीफ है.

कृष्णाा कहते हैं, ‘हॉलिवुड के स्केल पर विजुअल इफेक्ट्स क्रिएट करना इंडियन दिमाग की जीत है.’ इसका नतीजा यह निकला है कि मिथॉलजी और स्टोरी टेलिंग पर वापस लौटकर धार्मिक सर्वोच्चता को सबसे ऊपर बताने की इच्छा पैदा हो गई है. एक प्राचीन दौर की भव्य सभ्यता के विचार को सिनेमैटिक मिथ से ताकत मिल रही है.